रविवार, 16 मई 2010

महाभारत युद्ध का कारण और परिणाम

कृत्रिम रूप से जन्म करते जाने के कारण अपने काल का सर्वाधिक क्रूर और चालाक व्यक्ति था. उसका तुलनीय दुष्ट व्यक्ति न कभी पहले कभी उत्पन्न हुआ और न ही उसके बाद से अब तक. ऐसा व्यक्ति कृत्रिम विधि-विधान से विश्व पर शासन करने की महत्वाकांक्षा के लिए उत्पन्न किया गया था. तत्कालीन विश्व में भारत ही सर्वाधिक विशाल समतल भू क्षेत्र था जो विकास पथ पर तीव्रता से आगे बढ़ रहा था. यद्यपि सभ्यता और विकास की दृष्टि से ग्रीस में एथेंस तत्कालीन भारत से आगे था किन्तु इसका क्षेत्रफल भारत की तुलना में नगण्य था, इसलिए उस पर तो कभी भी अधिकार स्थापित किया जा सकता था.

ऐसे स्थिति में भारत पर शासन करना विश्व पर शासन करने का आरम्भ बिंदु हो सकता था, यही प्लेटो की सोच थी जिसके लिए उसने पहले एक यहूदी परिवार भारत भेजा और फिर उस परिवार में कृष्ण का जन्म कराया - एक बैंगनी रंग के शिशु के रूप में, जैसा रंग किसी शिशु का पहले कभी नहीं रहा था. इस विशिष्टता और अनेक विशिष्ट प्रशिक्षणों द्वारा कृष्ण को अद्भुत नाटक-कार बना दिया जिसके बल पर उसे ईश्वर का रूप सिद्ध कर दिया गया. इसी कृष्ण ने महाभारत युद्ध की रूपरेखा बनायी जिसमें उसने तत्कालीन विश्व के सभी राजाओं को समेट लिया - कुछ पक्ष में तथा कुछ विपक्ष में, ताकि सभी की परस्पर हत्या कराई जा सके और कृष्ण विश्व पर शासन स्थापित कर सके.

युद्ध के लिए 'पांडवों को राज्य में हिस्सा दिलवाने' का बहाना बनाया गया. पांडव चूंकि कुंती के अवैध संबंधों से उत्पन्न संतानें थीं, इसलिए सभ्य एवं कुलीन देव तथा आर्य इसके लिए तैयार न थे, तथापि वृद्धजनों के आदेश पर उन्हें राज्य में भागीदारी दे दी गयी. किन्तु वे राज्य के संचालन एवं इसकी रक्षा करने में पूर्णतः असमर्थ थे, इस कारण से वे इसे जुए में हार गए. यहाँ तक कि मूर्ख पांडवों ने अपनी पत्नी द्रोपदी को भी एक निर्जीव संपत्ति के रूप में जुए के दांव पर लगा दिया और वे उसे भी हार गए. स्त्री जाति का इससे भीषण अपमान न तो पहले कभी हुआ था और न ही उसके बाद कभी देखा गया है.

कृष्ण पांडवों का सतत पथप्रदर्शक था तथापि उन्होंने राज्य जुए में खो दिया, इसमें कृष्ण का आशय महाभारत युद्ध कराना ही था, अन्यथा युद्ध की कोई संभावना नहीं थी. युद्ध के लिए विदुर के माध्यम से सिकंदर को आमंत्रित करना भी कृष्ण की युद्ध की योजना का ही एक अंग था.

युद्ध में जय-पराजय का पूर्वाकलन करना पूरी ताः संभव नहीं होता, इसलिए कृष्ण कदापि अपना जीवन दांव पर लगाना नहीं चाहता था, इसलिए उसने युद्ध में शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा की. वह जानता था कि सभ्य एवं शिष्ट देव और आर्य कदापि निःशस्त्र पर शस्त्र-प्रहार नहीं करेंगे और वह युद्ध की विभीषिका में भी सुरक्षित बना रहेगा. साथ ही उसने उदध इतना व्यापक बना दिया जिससे भूमंडल पर उसका कोई प्रतिद्वंदी शेष न रहे.

युद्ध आरम्भ होने के अंतिम समय पर युद्ध टालने के लिए अर्जुन ने पूरा प्रयास किया और उसने युद्ध की विभीषिका को समझते हुए किसी भी मूल्य पर युद्ध न करने की ठान ली. किन्तु कृष्ण ने अपनी योजना असफल होते देख अपनी पूरी शक्ति अर्जुन को भ्रमित करने में लगा दी. उसने अर्जुन को क्षत्रिय धर्म की याद दिलाई और उसे युद्ध ही उसका धर्म बताया. किन्तु उसने आचार्य ड्रोन को यह नहीं बताया कि वे ब्रह्मण थे, और युद्ध उनका धर्म नहीं था. उसने स्वयं को यह पाठ नहीं पढाया कि जब वह अन्य लोगों को युद्ध के लिए प्रेरित कर रहा है तो स्वयं भी इसमे सशस्त्र सम्मिलित होना चाहिए. सारथी के निकृष्ट कार्य करते हुए अमानी कायरता प्रदर्शित नहीं करनी चाहिए. अंततः कृष्ण अपने दुश्चक्र में सफल रहा और युद्ध हुआ.
Mahabharat
युद्ध का परिणाम कृष्ण की आशाओं के अनुकूल ही रहा, उसमें विश्व के सभी योद्धा खेत रहे, शेष बचा तो कृष्ण और पांडव, तथा कुछ अन्य जिनमें विष्णु और सिकंदर भी सम्मिलित थे. पांडवों को राज्य दिलाने के बहाने से युद्ध नियोजित किया गया था किन्तु युद्ध में विजय के बाद भी राज्य पांडवों को नहीं सौंपा गया, सिकंदर और कृष्ण के परामर्श से यहूदी वंश के उत्तरिधिकारी महापद्मानंद को भारत भूमि का सम्राट बनाया गया. युद्ध के बाद सिकंदर भारत से बेबीलोन गया और ज्ञात विश्व इतिहास के अनुसार उसके कुछ समय बाद वहीं मर गया.

6 टिप्‍पणियां:

  1. आखिर इन दावों को कितना ऐतिहासिक और तथ्यपरक माना जाए?

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  2. "पांडव चूंकि द्रोपदी के अवैध संबंधों से उत्पन्न संतानें थीं"

    "मूर्ख पांडवों ने अपनी पत्नी द्रोपदी को भी एक निर्जीव संपत्ति के रूप में जुए के दांव पर लगा दिया"
    महोदय, या तो आपकी मति भ्रष्ट हो चुकी है..जिसके लिए आपको अपना इलाज कराना बहुत जरूरी है...अन्यथा कल को राह चलते लोग पत्थर मारा करेंगें या फिर आप ये जो कुछ भी बकवास लिख रहे हैं, वो आपके किसी सोचे समझे सुनियोजित षडयन्त्र का हिस्सा है...एक निवेदन है कि कृ्प्या इस प्रकार के कृ्त्यो से बाज आएं अन्यथा ऎसा न हो कि कल को कोई सिरफिरा आपको अदालत में घसीट ले.

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  3. @शिक्षमित्र,
    जहाँ तक आपकी बुद्धि साथ दे, उससे अधिक हम कुच्छ कर भी नहीं सकते.

    @पंडित वत्स,
    लगभग २००० वर्ष ठगा है आप जैसे लोगों ने इस देश की भोली-भाली जनता को, केवल मुफ़्त में हलवा पूड़ी का भोग पाने के लिए. बेहतर होता की आप तर्कपूर्ण टिप्पणी करते, यह टिप्पणी तो आपके पांडिटी को बेनकाब करती है.

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  4. @ राम कुमार बंसल,
    आप मुझे तर्कपूर्ण टिप्पणी देने का मशवरा दे रहे हैं...लेकिन आपने अपनी 3 लाईनों की टिप्पणी में जो बकवास की है, उसकी जगह यदि कोई तर्कपूर्ण जवाब देते तो शायद पाठकों का भी कुछ भला होता....लेकिन जवाब तो आप तब दें जब आपके पास जवाब हों, उपरोक्त लिखी बकवास को सच साबित करने के लिए कुछ साक्ष्य मौजूद हों, कोई तर्क हो......आपको तो बस अपनी भ्रष्ट मति और कल्पनाओं के उद्वेग को ब्लाग पर छापने से मतलब है.....
    अपने इसी लेख को दुबारा से पढ लीजिए......आप एक जगह कह रहे हैं कि "पांडव द्रोपदी के अवैध संबंधों से उत्पन्न संतानें थीं"....वहीं दूसरी ओर आप लिखते हैं कि "मूर्ख पांडवों ने अपनी पत्नी द्रोपदी को भी एक निर्जीव संपत्ति के रूप में जुए के दांव पर लगा दिया".....
    वाह्! क्या कल्पना की है.....द्रोपदी पांडवों की माँ भी हो गई और पत्नि भी....
    जरूर ये माँ और पत्नि वाली परम्परा आपके वंश में चलती होगी...महोदय! निवेदन है कि अपने पूर्वजों के नाम, उनकी मान-मर्यादा को यूँ कलंकित न करें.... ईश्वर आपको सदबुद्धि प्रदान करे..

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  5. वत्स
    क्षमा करें वत्स, थोड़ी भूल मुझसे हुई. पांडव कुंती के अवैध संबंधों से उत्पन्न संतानें थीं. वैसे युग परिवर्तन हो गया है, थोड़े से सभ्य हो जाएँ तो ठीक ही रहेगा. आप जैसी बुद्धि वाले लोगों के कारण मुझे टिप्पणियाँ मॉडारेट करनी पड़ेंगी.

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