सोमवार, 10 मई 2010

जनगणना और मतदाता सूची के छिद्र

भारत की वर्तमान जनसँख्या लगभग १,२००,०००,००० कही जाती है. किन्तु इस बारे में जो अव्यवस्था मेरे गाँव के रूप में दिखाई देती है वही सर्वत्र व्याप्त है. मेरे गाँव में इस समय लगभग १,७०० मतदाता हैं किन्तु इनमें से लगभग ३०० ऐसे मतदाता हैं जो गाँव से बाहर रहते हैं और गाँव में विशेष अवसरों पर ही आते हैं. ऐसे व्यक्ति अन्यत्र अपने व्यवसाय अथवा सेवा कार्य करते हैं, इन्होने अपने स्थायी निवास भी वहीं बना लिए हैं, वहीं इनके राशन कार्ड आदि बने हुए हैं और वहां की मतदाता सूचियों में भी इनके नाम सम्मिलित हैं. लिन्तु ये नहीं चाहते कि इनके नाम गाँव की मतदाता सूची से निकाले जाएँ और न ही शासन की ओर से इस बारे में कोई कार्यवाही की जाती है. प्रत्येक चुनाव से पूर्व मतदाता सूचियों के जो संशोधन किये जाते हैं उनमें नए नाम तो जोड़े जाते हैं किन्तु कोई पुराना नाम नहीं निकाला जाता. इस प्रकार गाँव में लगभग २० प्रतिशत अनधिकृत मतदाता हैं, जिसे राष्ट्र स्तर पर भी सत्य माना जा सकता है.
Votes and Violence: Electoral Competition and Ethnic Riots in India 
अभी उत्तर प्रदेश के पंचायती चुनाव होने हैं जिसके लिए राज्य चुनाव आयोग ने मतदाता सूची पुनार्वीक्सन के आदेश दिए हैं. मैंने राज्य चुनाव आयुक्त को गाँव की सूची से ऐसे मतदाताओं के नाम कटे जाने का आग्रह किया है जिनके माम अन्यत्र की मतदाता सूचियों में भी सम्मिलित हैं. किन्तु इस बारे में न तो मुझे कोई उत्तर दिया गया है और न ही मतदाता सूची संशोधकों को समुचित आदेश दिए गए हैं.  

यहाँ यह भी ध्यान देने योग्य तथ्य है कि राज्य चुनाव आयोग तथा भारत के मुख्य चुनाव आयोग अपनी-अपनी प्रथक मतदाता सूचियों का निर्माण एवं उनका संशोधन करते हैं जब कि दोनों के मानदंड एक समान हैं और प्रथक मतदाता सूचियों का कोई औचित्य नहीं है. तथापि इस कार्य में बार-बार सार्वजनिक धान का दुरूपयोग किया जा रहा है.
Various Census of India 
जो स्थिति मतदाता सूची की है वही स्थिति जनगणना की भी है. गाँव की जनसँख्या ३५०० के लगबग कही जाती है किन्तु इनमें से लगभग ६०० व्यक्ति बाहर रहते हैं और उनके नाम उनके वर्तमान निवास स्थानों की जनगणना में भी निश्चित रूप से सम्मिलित होंगे.

यह  सब दर्शाता है कि हमारी कार्य प्रणाली और संस्कृति कैसी है और हम व्यक्तिगत, सम्माजिक और मानसिक रूप में कितने स्वस्थ हैं. अधिकतम लाभ पाने की लालसा हमारी संस्कृति बन गयी है इसका परिणाम चाहे कुछ भी हो.  

1 टिप्पणी:

  1. चारों तरफ कुव्यवस्था का आलम है / सरकार और सरकार में बैठे भर्ष्ट लोग किसी भी योजना को ईमानदारी से लागू नहीं होने देती और ना ही चुनाव आयोग कुछ सार्थक और प्रभावी कदम उठाने का प्रयास करती है / ऐसे में लोगों को ही एकजुट होकर इस दिशा में पहल कर कोई ठोस कार्यवाही करनी होगी /

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