इतिहास प्रायः कटु सत्यों का विषय होता है, न कि भावनाओं का. किन्तु इसको लोग प्रायः अपनी भावनाओं से जोड़ने लगते हैं. ऐसा करके वे इतिहास विषयक शोधों में व्यवधान उत्पन्न करते हैं. शोधों के आधार पर बड़े से बड़े और स्थापित वैज्ञानिक सत्य भी बदलते रहते हैं तो ज्ञात इतिहास में त्रुटि क्यों नहीं खोजी जानी चाहिए. भारत के ज्ञात इतिहास में इतनी भयंकर त्रुटियाँ हैं कि इसे विश्व स्तर पर विश्वसनीय नहीं माना जा रहा है. इसलिए हम सभी भारतीयों का कर्तव्य है कि हम इस पर शोध करें और इसे विश्वसनीय बनाएं. केवल भावनाओं के आधार पर इस विषय में कट्टरता दिखने से कोई लाभ नहीं होने वाला.
इस विषय में दूसरा महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इतिहास किसी जाति अथवा धर्म का पक्षधर बने रहने से सही रूप में नहीं रचा जा सकता, इसके लिए धर्म और जाति से निरपेक्ष होने की आवश्यकता है. भारत के महाभारतकालीन इतिहास के बारे में तो यह अतीव सरल और सहज इसलिए भी है कि उस समय भारत का मौलिक समाज किसी वर्तमान धर्म अथवा जाति से सम्बद्ध नहीं था.
भारत सहित विश्व के सभी भाषाविद और इतिहासकार जानते और मानते हैं कि वैदिक संस्कृत, जिसमें भारत के वेद और शस्त्र रचे हुए हैं, आधुनिक संस्कृत से कोई सम्बन्ध नहीं है. तथापि आज तक ऐसा कोई प्रयास नहीं किया गया कि वैदिक संस्कृत को जाना जाए. इसका कारण और प्रमाण यह है कि आज तक वेदों और शास्त्रों का कोई ऐसा अनुवाद नहीं किया गया जो आधुनिक संस्कृत पर आधारित न हो. इस कारण से इन प्राचीन ग्रंथों के कोई भी सही अनुवाद उपलब्ध नहीं है जिनसे भारत के तत्कालीन इतिहास की सत्यता को प्रमाणित किया जा सकता. जो भी इतिहास संबंधी सूचनाएं उपलब्ध हुई हैं वे उक्त भृष्ट अनुवादों से ही प्राप्त हुई हैं. इसी लिए वे भी भृष्ट हैं और विश्वसनीय नहीं हैं.
महर्षि अरविन्द ने 'वेद रहस्य' नामक पुस्तक में वैदिक संस्कृत के बारे में कुछ अध्ययन किया है और संकेत दिए हैं कि वैदिक संस्कृत की शब्दावली लैटिन और ग्रीक भाषाओं की शब्दावली से मेल खाती है. इस आधार पर मेने भी कुछ अध्ययन किये और पाया कि हम लैटिन और ग्रीक भाषाओँ के शब्दार्थों के आधार पर वेदों और शास्त्रों के सही अनुवाद प्राप्त कर सकते हैं. चूंकि मैं लैटिन और ग्रीक भाषाओँ का महर्षि अरविन्द की तरह ज्ञानवान नहीं हूँ तथापि इन भाषाओँ के शब्दकोशों के आधार पर वेदों और शास्त्रों के कुछ अंशों के अनुवाद पाने में समर्थ हो पाया हूँ, जिसके आधार पर भारत के इतिहास के पुनर्रचना आरम्भ की है. इसमें दूसरों का भी सहयोग मिले इसी आशा से वैदिक और शास्त्रीय शब्दावली के अर्थ भी प्रकाशित करने आरम्भ किये हैं. यदि किसी व्यक्ति की दृष्टि में वैदिक संस्कृत के बारे में दोषपूर्ण है तो वह यह अपने विचार से सही अवधारणा प्रतिपादित करे न कि केवल दोष निकालने को ही अपना कर्तव्य समझे. किन्तु ऐसा किसी ने कुछ नहीं किया है.
यहाँ यह भी सभी को स्वीकार्य होगा कि 'महाभारत' युद्ध विश्व का भीषणतम सशस्त्र संग्राम था जिसमें तत्कालीन विश्व के अधिकाँश देश सम्मिलित थे. इसकी भीषणता सिद्ध करती है कि दोनों पक्षों की जीवन-शैली, चरित्र और विचारधारा में अत्यंत गहन अंतराल थे. एक परिवार के ही दो पक्ष तो बन सकते हैं, और दोनों के मध्य स्थानीय स्तर का संघर्ष भी हो सकता है किन्तु उनके कारण विश्व व्यापक सशस्त्र संघर्ष नहीं हो सकता. वस्तुतः यह युद्ध पृथ्वी का प्रथम विश्व-युद्ध था किन्तु भारत के इतिहास को विश्वसनीयता प्राप्त न होने के कारण इसे इतिहास में कोई महत्व नहीं दिया जा रहा है. यह भी हम भारतीयों को अपनी त्रुटि सुधारने का पर्याप्त कारण होना चाहिए यदि हम में लेश मात्र भी आत्म-सम्मान की भावना शेष है. आखिर भारत के इतिहास में कहीं तो कुछ ऐसा है जिसे हम समझ नहीं पा रहे हैं और लकीर के फ़कीर बने गलत-सलत अवधारणाओं को गले लगाये बैठे हैं और मूर्खतापूर्ण आत्म-संतुष्टि प्राप्त कर रहे हैं.
आर्य विश्व स्तर की एक महत्वपूर्ण जाति थी जिसका भारत से गहन सम्बन्ध था, इससे भी कोई इनकार नहीं कर सकता. किन्तु भारत के इतिहास के त्रुटिपूर्ण होने के कारण आर्यों के बारे में भी अभी तक इतिहासकार एक मत नहीं हो पाए हैं. यह भी हमारे लिए डूब मरने के लिए पर्याप्त होना चाहिए था.
समस्त विश्व सिकंदर को महान कहता है तथापि उसके बारे में शोधों से ज्ञात हुआ है कि वह समलिंगी था जिसे अभी हाल में बनी हॉलीवुड फिल्म 'अलैक्सैंदर' में प्रस्तुत किया गया है, किन्तु उसे महान कहने वाले किसी व्यक्ति ने इस फिल्म पर उंगली नहीं उठायी क्योंकि विश्व भार के समझदार लोग इतिहास को भावुकता से प्रथक रखते हैं और इस बारे में शोधों को महत्व देते हैं. इसी व्यक्ति के बारे में इंटरपोल द्वारा की गयी छान-बीनों के आधार पर सिद्ध किया गया कि सिकंदर बेहद शराबी और नृशंस व्यक्ति था जो उसकी महानता पर प्रश्न चिन्ह लगाता है. इसे भी डिस्कवरी चैनल पर बड़े जोर-शोर से प्रकाशित किया गया. इसी प्रकाशन में यह संदेह भी व्यक्त किया गया कि सिकंदर की हत्या उसके गुरु अरस्तू ने की थी. किन्तु उसका भी भावुकता के आधार पर कोई विरोध नहीं किया गया क्यों कि इसमें भी शोधपूर्ण दृष्टिकोण को महत्व दिया गया.
मेरे आलेखों का कुछ भावुक लोग विरोध कर रहे हैं किन्तु इस बारे में वे कोई शोधपरक तर्क न देकर केवल अपनी भावनाओं को सामने ले आते हैं, जो उग्रता है न कि मानवीय अथवा वैज्ञानिक दृष्टिकोण. अतः मेरा निवेदन है कि वे कुछ शोध करें विशेष कर वैदिक संस्कृत और आधुनिक संस्कृत के अंतराल पर और जब भी वे इस अंतराल को समझ सकें उसके आधार पर शास्त्रों के अनुवाद करें, तभी कोई सार्थक निष्कर्ष निकाला जा सकता है.
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शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010
इतिहास, भावुकता और असहिष्णुता
इतिहास प्रायः कटु सत्यों का विषय होता है, न कि भावनाओं का. किन्तु इसको लोग प्रायः अपनी भावनाओं से जोड़ने लगते हैं. ऐसा करके वे इतिहास विषयक शोधों में व्यवधान उत्पन्न करते हैं. शोधों के आधार पर बड़े से बड़े और स्थापित वैज्ञानिक सत्य भी बदलते रहते हैं तो ज्ञात इतिहास में त्रुटि क्यों नहीं खोजी जानी चाहिए. भारत के ज्ञात इतिहास में इतनी भयंकर त्रुटियाँ हैं कि इसे विश्व स्तर पर विश्वसनीय नहीं माना जा रहा है. इसलिए हम सभी भारतीयों का कर्तव्य है कि हम इस पर शोध करें और इसे विश्वसनीय बनाएं. केवल भावनाओं के आधार पर इस विषय में कट्टरता दिखने से कोई लाभ नहीं होने वाला.
इस विषय में दूसरा महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इतिहास किसी जाति अथवा धर्म का पक्षधर बने रहने से सही रूप में नहीं रचा जा सकता, इसके लिए धर्म और जाति से निरपेक्ष होने की आवश्यकता है. भारत के महाभारतकालीन इतिहास के बारे में तो यह अतीव सरल और सहज इसलिए भी है कि उस समय भारत का मौलिक समाज किसी वर्तमान धर्म अथवा जाति से सम्बद्ध नहीं था.
भारत सहित विश्व के सभी भाषाविद और इतिहासकार जानते और मानते हैं कि वैदिक संस्कृत, जिसमें भारत के वेद और शस्त्र रचे हुए हैं, आधुनिक संस्कृत से कोई सम्बन्ध नहीं है. तथापि आज तक ऐसा कोई प्रयास नहीं किया गया कि वैदिक संस्कृत को जाना जाए. इसका कारण और प्रमाण यह है कि आज तक वेदों और शास्त्रों का कोई ऐसा अनुवाद नहीं किया गया जो आधुनिक संस्कृत पर आधारित न हो. इस कारण से इन प्राचीन ग्रंथों के कोई भी सही अनुवाद उपलब्ध नहीं है जिनसे भारत के तत्कालीन इतिहास की सत्यता को प्रमाणित किया जा सकता. जो भी इतिहास संबंधी सूचनाएं उपलब्ध हुई हैं वे उक्त भृष्ट अनुवादों से ही प्राप्त हुई हैं. इसी लिए वे भी भृष्ट हैं और विश्वसनीय नहीं हैं.
महर्षि अरविन्द ने 'वेद रहस्य' नामक पुस्तक में वैदिक संस्कृत के बारे में कुछ अध्ययन किया है और संकेत दिए हैं कि वैदिक संस्कृत की शब्दावली लैटिन और ग्रीक भाषाओं की शब्दावली से मेल खाती है. इस आधार पर मेने भी कुछ अध्ययन किये और पाया कि हम लैटिन और ग्रीक भाषाओँ के शब्दार्थों के आधार पर वेदों और शास्त्रों के सही अनुवाद प्राप्त कर सकते हैं. चूंकि मैं लैटिन और ग्रीक भाषाओँ का महर्षि अरविन्द की तरह ज्ञानवान नहीं हूँ तथापि इन भाषाओँ के शब्दकोशों के आधार पर वेदों और शास्त्रों के कुछ अंशों के अनुवाद पाने में समर्थ हो पाया हूँ, जिसके आधार पर भारत के इतिहास के पुनर्रचना आरम्भ की है. इसमें दूसरों का भी सहयोग मिले इसी आशा से वैदिक और शास्त्रीय शब्दावली के अर्थ भी प्रकाशित करने आरम्भ किये हैं. यदि किसी व्यक्ति की दृष्टि में वैदिक संस्कृत के बारे में दोषपूर्ण है तो वह यह अपने विचार से सही अवधारणा प्रतिपादित करे न कि केवल दोष निकालने को ही अपना कर्तव्य समझे. किन्तु ऐसा किसी ने कुछ नहीं किया है.
यहाँ यह भी सभी को स्वीकार्य होगा कि 'महाभारत' युद्ध विश्व का भीषणतम सशस्त्र संग्राम था जिसमें तत्कालीन विश्व के अधिकाँश देश सम्मिलित थे. इसकी भीषणता सिद्ध करती है कि दोनों पक्षों की जीवन-शैली, चरित्र और विचारधारा में अत्यंत गहन अंतराल थे. एक परिवार के ही दो पक्ष तो बन सकते हैं, और दोनों के मध्य स्थानीय स्तर का संघर्ष भी हो सकता है किन्तु उनके कारण विश्व व्यापक सशस्त्र संघर्ष नहीं हो सकता. वस्तुतः यह युद्ध पृथ्वी का प्रथम विश्व-युद्ध था किन्तु भारत के इतिहास को विश्वसनीयता प्राप्त न होने के कारण इसे इतिहास में कोई महत्व नहीं दिया जा रहा है. यह भी हम भारतीयों को अपनी त्रुटि सुधारने का पर्याप्त कारण होना चाहिए यदि हम में लेश मात्र भी आत्म-सम्मान की भावना शेष है. आखिर भारत के इतिहास में कहीं तो कुछ ऐसा है जिसे हम समझ नहीं पा रहे हैं और लकीर के फ़कीर बने गलत-सलत अवधारणाओं को गले लगाये बैठे हैं और मूर्खतापूर्ण आत्म-संतुष्टि प्राप्त कर रहे हैं.
आर्य विश्व स्तर की एक महत्वपूर्ण जाति थी जिसका भारत से गहन सम्बन्ध था, इससे भी कोई इनकार नहीं कर सकता. किन्तु भारत के इतिहास के त्रुटिपूर्ण होने के कारण आर्यों के बारे में भी अभी तक इतिहासकार एक मत नहीं हो पाए हैं. यह भी हमारे लिए डूब मरने के लिए पर्याप्त होना चाहिए था.
समस्त विश्व सिकंदर को महान कहता है तथापि उसके बारे में शोधों से ज्ञात हुआ है कि वह समलिंगी था जिसे अभी हाल में बनी हॉलीवुड फिल्म 'अलैक्सैंदर' में प्रस्तुत किया गया है, किन्तु उसे महान कहने वाले किसी व्यक्ति ने इस फिल्म पर उंगली नहीं उठायी क्योंकि विश्व भार के समझदार लोग इतिहास को भावुकता से प्रथक रखते हैं और इस बारे में शोधों को महत्व देते हैं. इसी व्यक्ति के बारे में इंटरपोल द्वारा की गयी छान-बीनों के आधार पर सिद्ध किया गया कि सिकंदर बेहद शराबी और नृशंस व्यक्ति था जो उसकी महानता पर प्रश्न चिन्ह लगाता है. इसे भी डिस्कवरी चैनल पर बड़े जोर-शोर से प्रकाशित किया गया. इसी प्रकाशन में यह संदेह भी व्यक्त किया गया कि सिकंदर की हत्या उसके गुरु अरस्तू ने की थी. किन्तु उसका भी भावुकता के आधार पर कोई विरोध नहीं किया गया क्यों कि इसमें भी शोधपूर्ण दृष्टिकोण को महत्व दिया गया.
मेरे आलेखों का कुछ भावुक लोग विरोध कर रहे हैं किन्तु इस बारे में वे कोई शोधपरक तर्क न देकर केवल अपनी भावनाओं को सामने ले आते हैं, जो उग्रता है न कि मानवीय अथवा वैज्ञानिक दृष्टिकोण. अतः मेरा निवेदन है कि वे कुछ शोध करें विशेष कर वैदिक संस्कृत और आधुनिक संस्कृत के अंतराल पर और जब भी वे इस अंतराल को समझ सकें उसके आधार पर शास्त्रों के अनुवाद करें, तभी कोई सार्थक निष्कर्ष निकाला जा सकता है.
इस विषय में दूसरा महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इतिहास किसी जाति अथवा धर्म का पक्षधर बने रहने से सही रूप में नहीं रचा जा सकता, इसके लिए धर्म और जाति से निरपेक्ष होने की आवश्यकता है. भारत के महाभारतकालीन इतिहास के बारे में तो यह अतीव सरल और सहज इसलिए भी है कि उस समय भारत का मौलिक समाज किसी वर्तमान धर्म अथवा जाति से सम्बद्ध नहीं था.
भारत सहित विश्व के सभी भाषाविद और इतिहासकार जानते और मानते हैं कि वैदिक संस्कृत, जिसमें भारत के वेद और शस्त्र रचे हुए हैं, आधुनिक संस्कृत से कोई सम्बन्ध नहीं है. तथापि आज तक ऐसा कोई प्रयास नहीं किया गया कि वैदिक संस्कृत को जाना जाए. इसका कारण और प्रमाण यह है कि आज तक वेदों और शास्त्रों का कोई ऐसा अनुवाद नहीं किया गया जो आधुनिक संस्कृत पर आधारित न हो. इस कारण से इन प्राचीन ग्रंथों के कोई भी सही अनुवाद उपलब्ध नहीं है जिनसे भारत के तत्कालीन इतिहास की सत्यता को प्रमाणित किया जा सकता. जो भी इतिहास संबंधी सूचनाएं उपलब्ध हुई हैं वे उक्त भृष्ट अनुवादों से ही प्राप्त हुई हैं. इसी लिए वे भी भृष्ट हैं और विश्वसनीय नहीं हैं.
महर्षि अरविन्द ने 'वेद रहस्य' नामक पुस्तक में वैदिक संस्कृत के बारे में कुछ अध्ययन किया है और संकेत दिए हैं कि वैदिक संस्कृत की शब्दावली लैटिन और ग्रीक भाषाओं की शब्दावली से मेल खाती है. इस आधार पर मेने भी कुछ अध्ययन किये और पाया कि हम लैटिन और ग्रीक भाषाओँ के शब्दार्थों के आधार पर वेदों और शास्त्रों के सही अनुवाद प्राप्त कर सकते हैं. चूंकि मैं लैटिन और ग्रीक भाषाओँ का महर्षि अरविन्द की तरह ज्ञानवान नहीं हूँ तथापि इन भाषाओँ के शब्दकोशों के आधार पर वेदों और शास्त्रों के कुछ अंशों के अनुवाद पाने में समर्थ हो पाया हूँ, जिसके आधार पर भारत के इतिहास के पुनर्रचना आरम्भ की है. इसमें दूसरों का भी सहयोग मिले इसी आशा से वैदिक और शास्त्रीय शब्दावली के अर्थ भी प्रकाशित करने आरम्भ किये हैं. यदि किसी व्यक्ति की दृष्टि में वैदिक संस्कृत के बारे में दोषपूर्ण है तो वह यह अपने विचार से सही अवधारणा प्रतिपादित करे न कि केवल दोष निकालने को ही अपना कर्तव्य समझे. किन्तु ऐसा किसी ने कुछ नहीं किया है.
यहाँ यह भी सभी को स्वीकार्य होगा कि 'महाभारत' युद्ध विश्व का भीषणतम सशस्त्र संग्राम था जिसमें तत्कालीन विश्व के अधिकाँश देश सम्मिलित थे. इसकी भीषणता सिद्ध करती है कि दोनों पक्षों की जीवन-शैली, चरित्र और विचारधारा में अत्यंत गहन अंतराल थे. एक परिवार के ही दो पक्ष तो बन सकते हैं, और दोनों के मध्य स्थानीय स्तर का संघर्ष भी हो सकता है किन्तु उनके कारण विश्व व्यापक सशस्त्र संघर्ष नहीं हो सकता. वस्तुतः यह युद्ध पृथ्वी का प्रथम विश्व-युद्ध था किन्तु भारत के इतिहास को विश्वसनीयता प्राप्त न होने के कारण इसे इतिहास में कोई महत्व नहीं दिया जा रहा है. यह भी हम भारतीयों को अपनी त्रुटि सुधारने का पर्याप्त कारण होना चाहिए यदि हम में लेश मात्र भी आत्म-सम्मान की भावना शेष है. आखिर भारत के इतिहास में कहीं तो कुछ ऐसा है जिसे हम समझ नहीं पा रहे हैं और लकीर के फ़कीर बने गलत-सलत अवधारणाओं को गले लगाये बैठे हैं और मूर्खतापूर्ण आत्म-संतुष्टि प्राप्त कर रहे हैं.
आर्य विश्व स्तर की एक महत्वपूर्ण जाति थी जिसका भारत से गहन सम्बन्ध था, इससे भी कोई इनकार नहीं कर सकता. किन्तु भारत के इतिहास के त्रुटिपूर्ण होने के कारण आर्यों के बारे में भी अभी तक इतिहासकार एक मत नहीं हो पाए हैं. यह भी हमारे लिए डूब मरने के लिए पर्याप्त होना चाहिए था.
समस्त विश्व सिकंदर को महान कहता है तथापि उसके बारे में शोधों से ज्ञात हुआ है कि वह समलिंगी था जिसे अभी हाल में बनी हॉलीवुड फिल्म 'अलैक्सैंदर' में प्रस्तुत किया गया है, किन्तु उसे महान कहने वाले किसी व्यक्ति ने इस फिल्म पर उंगली नहीं उठायी क्योंकि विश्व भार के समझदार लोग इतिहास को भावुकता से प्रथक रखते हैं और इस बारे में शोधों को महत्व देते हैं. इसी व्यक्ति के बारे में इंटरपोल द्वारा की गयी छान-बीनों के आधार पर सिद्ध किया गया कि सिकंदर बेहद शराबी और नृशंस व्यक्ति था जो उसकी महानता पर प्रश्न चिन्ह लगाता है. इसे भी डिस्कवरी चैनल पर बड़े जोर-शोर से प्रकाशित किया गया. इसी प्रकाशन में यह संदेह भी व्यक्त किया गया कि सिकंदर की हत्या उसके गुरु अरस्तू ने की थी. किन्तु उसका भी भावुकता के आधार पर कोई विरोध नहीं किया गया क्यों कि इसमें भी शोधपूर्ण दृष्टिकोण को महत्व दिया गया.
मेरे आलेखों का कुछ भावुक लोग विरोध कर रहे हैं किन्तु इस बारे में वे कोई शोधपरक तर्क न देकर केवल अपनी भावनाओं को सामने ले आते हैं, जो उग्रता है न कि मानवीय अथवा वैज्ञानिक दृष्टिकोण. अतः मेरा निवेदन है कि वे कुछ शोध करें विशेष कर वैदिक संस्कृत और आधुनिक संस्कृत के अंतराल पर और जब भी वे इस अंतराल को समझ सकें उसके आधार पर शास्त्रों के अनुवाद करें, तभी कोई सार्थक निष्कर्ष निकाला जा सकता है.
रविवार, 16 मई 2010
महाभारत युद्ध का कारण और परिणाम
कृत्रिम रूप से जन्म करते जाने के कारण अपने काल का सर्वाधिक क्रूर और चालाक व्यक्ति था. उसका तुलनीय दुष्ट व्यक्ति न कभी पहले कभी उत्पन्न हुआ और न ही उसके बाद से अब तक. ऐसा व्यक्ति कृत्रिम विधि-विधान से विश्व पर शासन करने की महत्वाकांक्षा के लिए उत्पन्न किया गया था. तत्कालीन विश्व में भारत ही सर्वाधिक विशाल समतल भू क्षेत्र था जो विकास पथ पर तीव्रता से आगे बढ़ रहा था. यद्यपि सभ्यता और विकास की दृष्टि से ग्रीस में एथेंस तत्कालीन भारत से आगे था किन्तु इसका क्षेत्रफल भारत की तुलना में नगण्य था, इसलिए उस पर तो कभी भी अधिकार स्थापित किया जा सकता था.
ऐसे स्थिति में भारत पर शासन करना विश्व पर शासन करने का आरम्भ बिंदु हो सकता था, यही प्लेटो की सोच थी जिसके लिए उसने पहले एक यहूदी परिवार भारत भेजा और फिर उस परिवार में कृष्ण का जन्म कराया - एक बैंगनी रंग के शिशु के रूप में, जैसा रंग किसी शिशु का पहले कभी नहीं रहा था. इस विशिष्टता और अनेक विशिष्ट प्रशिक्षणों द्वारा कृष्ण को अद्भुत नाटक-कार बना दिया जिसके बल पर उसे ईश्वर का रूप सिद्ध कर दिया गया. इसी कृष्ण ने महाभारत युद्ध की रूपरेखा बनायी जिसमें उसने तत्कालीन विश्व के सभी राजाओं को समेट लिया - कुछ पक्ष में तथा कुछ विपक्ष में, ताकि सभी की परस्पर हत्या कराई जा सके और कृष्ण विश्व पर शासन स्थापित कर सके.
युद्ध के लिए 'पांडवों को राज्य में हिस्सा दिलवाने' का बहाना बनाया गया. पांडव चूंकि कुंती के अवैध संबंधों से उत्पन्न संतानें थीं, इसलिए सभ्य एवं कुलीन देव तथा आर्य इसके लिए तैयार न थे, तथापि वृद्धजनों के आदेश पर उन्हें राज्य में भागीदारी दे दी गयी. किन्तु वे राज्य के संचालन एवं इसकी रक्षा करने में पूर्णतः असमर्थ थे, इस कारण से वे इसे जुए में हार गए. यहाँ तक कि मूर्ख पांडवों ने अपनी पत्नी द्रोपदी को भी एक निर्जीव संपत्ति के रूप में जुए के दांव पर लगा दिया और वे उसे भी हार गए. स्त्री जाति का इससे भीषण अपमान न तो पहले कभी हुआ था और न ही उसके बाद कभी देखा गया है.
कृष्ण पांडवों का सतत पथप्रदर्शक था तथापि उन्होंने राज्य जुए में खो दिया, इसमें कृष्ण का आशय महाभारत युद्ध कराना ही था, अन्यथा युद्ध की कोई संभावना नहीं थी. युद्ध के लिए विदुर के माध्यम से सिकंदर को आमंत्रित करना भी कृष्ण की युद्ध की योजना का ही एक अंग था.
युद्ध में जय-पराजय का पूर्वाकलन करना पूरी ताः संभव नहीं होता, इसलिए कृष्ण कदापि अपना जीवन दांव पर लगाना नहीं चाहता था, इसलिए उसने युद्ध में शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा की. वह जानता था कि सभ्य एवं शिष्ट देव और आर्य कदापि निःशस्त्र पर शस्त्र-प्रहार नहीं करेंगे और वह युद्ध की विभीषिका में भी सुरक्षित बना रहेगा. साथ ही उसने उदध इतना व्यापक बना दिया जिससे भूमंडल पर उसका कोई प्रतिद्वंदी शेष न रहे.
युद्ध आरम्भ होने के अंतिम समय पर युद्ध टालने के लिए अर्जुन ने पूरा प्रयास किया और उसने युद्ध की विभीषिका को समझते हुए किसी भी मूल्य पर युद्ध न करने की ठान ली. किन्तु कृष्ण ने अपनी योजना असफल होते देख अपनी पूरी शक्ति अर्जुन को भ्रमित करने में लगा दी. उसने अर्जुन को क्षत्रिय धर्म की याद दिलाई और उसे युद्ध ही उसका धर्म बताया. किन्तु उसने आचार्य ड्रोन को यह नहीं बताया कि वे ब्रह्मण थे, और युद्ध उनका धर्म नहीं था. उसने स्वयं को यह पाठ नहीं पढाया कि जब वह अन्य लोगों को युद्ध के लिए प्रेरित कर रहा है तो स्वयं भी इसमे सशस्त्र सम्मिलित होना चाहिए. सारथी के निकृष्ट कार्य करते हुए अमानी कायरता प्रदर्शित नहीं करनी चाहिए. अंततः कृष्ण अपने दुश्चक्र में सफल रहा और युद्ध हुआ.
युद्ध का परिणाम कृष्ण की आशाओं के अनुकूल ही रहा, उसमें विश्व के सभी योद्धा खेत रहे, शेष बचा तो कृष्ण और पांडव, तथा कुछ अन्य जिनमें विष्णु और सिकंदर भी सम्मिलित थे. पांडवों को राज्य दिलाने के बहाने से युद्ध नियोजित किया गया था किन्तु युद्ध में विजय के बाद भी राज्य पांडवों को नहीं सौंपा गया, सिकंदर और कृष्ण के परामर्श से यहूदी वंश के उत्तरिधिकारी महापद्मानंद को भारत भूमि का सम्राट बनाया गया. युद्ध के बाद सिकंदर भारत से बेबीलोन गया और ज्ञात विश्व इतिहास के अनुसार उसके कुछ समय बाद वहीं मर गया.
ऐसे स्थिति में भारत पर शासन करना विश्व पर शासन करने का आरम्भ बिंदु हो सकता था, यही प्लेटो की सोच थी जिसके लिए उसने पहले एक यहूदी परिवार भारत भेजा और फिर उस परिवार में कृष्ण का जन्म कराया - एक बैंगनी रंग के शिशु के रूप में, जैसा रंग किसी शिशु का पहले कभी नहीं रहा था. इस विशिष्टता और अनेक विशिष्ट प्रशिक्षणों द्वारा कृष्ण को अद्भुत नाटक-कार बना दिया जिसके बल पर उसे ईश्वर का रूप सिद्ध कर दिया गया. इसी कृष्ण ने महाभारत युद्ध की रूपरेखा बनायी जिसमें उसने तत्कालीन विश्व के सभी राजाओं को समेट लिया - कुछ पक्ष में तथा कुछ विपक्ष में, ताकि सभी की परस्पर हत्या कराई जा सके और कृष्ण विश्व पर शासन स्थापित कर सके.
युद्ध के लिए 'पांडवों को राज्य में हिस्सा दिलवाने' का बहाना बनाया गया. पांडव चूंकि कुंती के अवैध संबंधों से उत्पन्न संतानें थीं, इसलिए सभ्य एवं कुलीन देव तथा आर्य इसके लिए तैयार न थे, तथापि वृद्धजनों के आदेश पर उन्हें राज्य में भागीदारी दे दी गयी. किन्तु वे राज्य के संचालन एवं इसकी रक्षा करने में पूर्णतः असमर्थ थे, इस कारण से वे इसे जुए में हार गए. यहाँ तक कि मूर्ख पांडवों ने अपनी पत्नी द्रोपदी को भी एक निर्जीव संपत्ति के रूप में जुए के दांव पर लगा दिया और वे उसे भी हार गए. स्त्री जाति का इससे भीषण अपमान न तो पहले कभी हुआ था और न ही उसके बाद कभी देखा गया है.
कृष्ण पांडवों का सतत पथप्रदर्शक था तथापि उन्होंने राज्य जुए में खो दिया, इसमें कृष्ण का आशय महाभारत युद्ध कराना ही था, अन्यथा युद्ध की कोई संभावना नहीं थी. युद्ध के लिए विदुर के माध्यम से सिकंदर को आमंत्रित करना भी कृष्ण की युद्ध की योजना का ही एक अंग था.
युद्ध में जय-पराजय का पूर्वाकलन करना पूरी ताः संभव नहीं होता, इसलिए कृष्ण कदापि अपना जीवन दांव पर लगाना नहीं चाहता था, इसलिए उसने युद्ध में शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा की. वह जानता था कि सभ्य एवं शिष्ट देव और आर्य कदापि निःशस्त्र पर शस्त्र-प्रहार नहीं करेंगे और वह युद्ध की विभीषिका में भी सुरक्षित बना रहेगा. साथ ही उसने उदध इतना व्यापक बना दिया जिससे भूमंडल पर उसका कोई प्रतिद्वंदी शेष न रहे.
युद्ध आरम्भ होने के अंतिम समय पर युद्ध टालने के लिए अर्जुन ने पूरा प्रयास किया और उसने युद्ध की विभीषिका को समझते हुए किसी भी मूल्य पर युद्ध न करने की ठान ली. किन्तु कृष्ण ने अपनी योजना असफल होते देख अपनी पूरी शक्ति अर्जुन को भ्रमित करने में लगा दी. उसने अर्जुन को क्षत्रिय धर्म की याद दिलाई और उसे युद्ध ही उसका धर्म बताया. किन्तु उसने आचार्य ड्रोन को यह नहीं बताया कि वे ब्रह्मण थे, और युद्ध उनका धर्म नहीं था. उसने स्वयं को यह पाठ नहीं पढाया कि जब वह अन्य लोगों को युद्ध के लिए प्रेरित कर रहा है तो स्वयं भी इसमे सशस्त्र सम्मिलित होना चाहिए. सारथी के निकृष्ट कार्य करते हुए अमानी कायरता प्रदर्शित नहीं करनी चाहिए. अंततः कृष्ण अपने दुश्चक्र में सफल रहा और युद्ध हुआ.
युद्ध का परिणाम कृष्ण की आशाओं के अनुकूल ही रहा, उसमें विश्व के सभी योद्धा खेत रहे, शेष बचा तो कृष्ण और पांडव, तथा कुछ अन्य जिनमें विष्णु और सिकंदर भी सम्मिलित थे. पांडवों को राज्य दिलाने के बहाने से युद्ध नियोजित किया गया था किन्तु युद्ध में विजय के बाद भी राज्य पांडवों को नहीं सौंपा गया, सिकंदर और कृष्ण के परामर्श से यहूदी वंश के उत्तरिधिकारी महापद्मानंद को भारत भूमि का सम्राट बनाया गया. युद्ध के बाद सिकंदर भारत से बेबीलोन गया और ज्ञात विश्व इतिहास के अनुसार उसके कुछ समय बाद वहीं मर गया.
लेबल:
कृष्ण छल,
पांडव,
महाभारत युद्ध,
विष्णु,
सिकंदर
महाभारत युद्ध का कारण और परिणाम
कृत्रिम रूप से जन्म करते जाने के कारण अपने काल का सर्वाधिक क्रूर और चालाक व्यक्ति था. उसका तुलनीय दुष्ट व्यक्ति न कभी पहले कभी उत्पन्न हुआ और न ही उसके बाद से अब तक. ऐसा व्यक्ति कृत्रिम विधि-विधान से विश्व पर शासन करने की महत्वाकांक्षा के लिए उत्पन्न किया गया था. तत्कालीन विश्व में भारत ही सर्वाधिक विशाल समतल भू क्षेत्र था जो विकास पथ पर तीव्रता से आगे बढ़ रहा था. यद्यपि सभ्यता और विकास की दृष्टि से ग्रीस में एथेंस तत्कालीन भारत से आगे था किन्तु इसका क्षेत्रफल भारत की तुलना में नगण्य था, इसलिए उस पर तो कभी भी अधिकार स्थापित किया जा सकता था.
ऐसे स्थिति में भारत पर शासन करना विश्व पर शासन करने का आरम्भ बिंदु हो सकता था, यही प्लेटो की सोच थी जिसके लिए उसने पहले एक यहूदी परिवार भारत भेजा और फिर उस परिवार में कृष्ण का जन्म कराया - एक बैंगनी रंग के शिशु के रूप में, जैसा रंग किसी शिशु का पहले कभी नहीं रहा था. इस विशिष्टता और अनेक विशिष्ट प्रशिक्षणों द्वारा कृष्ण को अद्भुत नाटक-कार बना दिया जिसके बल पर उसे ईश्वर का रूप सिद्ध कर दिया गया. इसी कृष्ण ने महाभारत युद्ध की रूपरेखा बनायी जिसमें उसने तत्कालीन विश्व के सभी राजाओं को समेट लिया - कुछ पक्ष में तथा कुछ विपक्ष में, ताकि सभी की परस्पर हत्या कराई जा सके और कृष्ण विश्व पर शासन स्थापित कर सके.
युद्ध के लिए 'पांडवों को राज्य में हिस्सा दिलवाने' का बहाना बनाया गया. पांडव चूंकि कुंती के अवैध संबंधों से उत्पन्न संतानें थीं, इसलिए सभ्य एवं कुलीन देव तथा आर्य इसके लिए तैयार न थे, तथापि वृद्धजनों के आदेश पर उन्हें राज्य में भागीदारी दे दी गयी. किन्तु वे राज्य के संचालन एवं इसकी रक्षा करने में पूर्णतः असमर्थ थे, इस कारण से वे इसे जुए में हार गए. यहाँ तक कि मूर्ख पांडवों ने अपनी पत्नी द्रोपदी को भी एक निर्जीव संपत्ति के रूप में जुए के दांव पर लगा दिया और वे उसे भी हार गए. स्त्री जाति का इससे भीषण अपमान न तो पहले कभी हुआ था और न ही उसके बाद कभी देखा गया है.
कृष्ण पांडवों का सतत पथप्रदर्शक था तथापि उन्होंने राज्य जुए में खो दिया, इसमें कृष्ण का आशय महाभारत युद्ध कराना ही था, अन्यथा युद्ध की कोई संभावना नहीं थी. युद्ध के लिए विदुर के माध्यम से सिकंदर को आमंत्रित करना भी कृष्ण की युद्ध की योजना का ही एक अंग था.
युद्ध में जय-पराजय का पूर्वाकलन करना पूरी ताः संभव नहीं होता, इसलिए कृष्ण कदापि अपना जीवन दांव पर लगाना नहीं चाहता था, इसलिए उसने युद्ध में शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा की. वह जानता था कि सभ्य एवं शिष्ट देव और आर्य कदापि निःशस्त्र पर शस्त्र-प्रहार नहीं करेंगे और वह युद्ध की विभीषिका में भी सुरक्षित बना रहेगा. साथ ही उसने उदध इतना व्यापक बना दिया जिससे भूमंडल पर उसका कोई प्रतिद्वंदी शेष न रहे.
युद्ध आरम्भ होने के अंतिम समय पर युद्ध टालने के लिए अर्जुन ने पूरा प्रयास किया और उसने युद्ध की विभीषिका को समझते हुए किसी भी मूल्य पर युद्ध न करने की ठान ली. किन्तु कृष्ण ने अपनी योजना असफल होते देख अपनी पूरी शक्ति अर्जुन को भ्रमित करने में लगा दी. उसने अर्जुन को क्षत्रिय धर्म की याद दिलाई और उसे युद्ध ही उसका धर्म बताया. किन्तु उसने आचार्य ड्रोन को यह नहीं बताया कि वे ब्रह्मण थे, और युद्ध उनका धर्म नहीं था. उसने स्वयं को यह पाठ नहीं पढाया कि जब वह अन्य लोगों को युद्ध के लिए प्रेरित कर रहा है तो स्वयं भी इसमे सशस्त्र सम्मिलित होना चाहिए. सारथी के निकृष्ट कार्य करते हुए अमानी कायरता प्रदर्शित नहीं करनी चाहिए. अंततः कृष्ण अपने दुश्चक्र में सफल रहा और युद्ध हुआ.
युद्ध का परिणाम कृष्ण की आशाओं के अनुकूल ही रहा, उसमें विश्व के सभी योद्धा खेत रहे, शेष बचा तो कृष्ण और पांडव, तथा कुछ अन्य जिनमें विष्णु और सिकंदर भी सम्मिलित थे. पांडवों को राज्य दिलाने के बहाने से युद्ध नियोजित किया गया था किन्तु युद्ध में विजय के बाद भी राज्य पांडवों को नहीं सौंपा गया, सिकंदर और कृष्ण के परामर्श से यहूदी वंश के उत्तरिधिकारी महापद्मानंद को भारत भूमि का सम्राट बनाया गया. युद्ध के बाद सिकंदर भारत से बेबीलोन गया और ज्ञात विश्व इतिहास के अनुसार उसके कुछ समय बाद वहीं मर गया.
ऐसे स्थिति में भारत पर शासन करना विश्व पर शासन करने का आरम्भ बिंदु हो सकता था, यही प्लेटो की सोच थी जिसके लिए उसने पहले एक यहूदी परिवार भारत भेजा और फिर उस परिवार में कृष्ण का जन्म कराया - एक बैंगनी रंग के शिशु के रूप में, जैसा रंग किसी शिशु का पहले कभी नहीं रहा था. इस विशिष्टता और अनेक विशिष्ट प्रशिक्षणों द्वारा कृष्ण को अद्भुत नाटक-कार बना दिया जिसके बल पर उसे ईश्वर का रूप सिद्ध कर दिया गया. इसी कृष्ण ने महाभारत युद्ध की रूपरेखा बनायी जिसमें उसने तत्कालीन विश्व के सभी राजाओं को समेट लिया - कुछ पक्ष में तथा कुछ विपक्ष में, ताकि सभी की परस्पर हत्या कराई जा सके और कृष्ण विश्व पर शासन स्थापित कर सके.
युद्ध के लिए 'पांडवों को राज्य में हिस्सा दिलवाने' का बहाना बनाया गया. पांडव चूंकि कुंती के अवैध संबंधों से उत्पन्न संतानें थीं, इसलिए सभ्य एवं कुलीन देव तथा आर्य इसके लिए तैयार न थे, तथापि वृद्धजनों के आदेश पर उन्हें राज्य में भागीदारी दे दी गयी. किन्तु वे राज्य के संचालन एवं इसकी रक्षा करने में पूर्णतः असमर्थ थे, इस कारण से वे इसे जुए में हार गए. यहाँ तक कि मूर्ख पांडवों ने अपनी पत्नी द्रोपदी को भी एक निर्जीव संपत्ति के रूप में जुए के दांव पर लगा दिया और वे उसे भी हार गए. स्त्री जाति का इससे भीषण अपमान न तो पहले कभी हुआ था और न ही उसके बाद कभी देखा गया है.
कृष्ण पांडवों का सतत पथप्रदर्शक था तथापि उन्होंने राज्य जुए में खो दिया, इसमें कृष्ण का आशय महाभारत युद्ध कराना ही था, अन्यथा युद्ध की कोई संभावना नहीं थी. युद्ध के लिए विदुर के माध्यम से सिकंदर को आमंत्रित करना भी कृष्ण की युद्ध की योजना का ही एक अंग था.
युद्ध में जय-पराजय का पूर्वाकलन करना पूरी ताः संभव नहीं होता, इसलिए कृष्ण कदापि अपना जीवन दांव पर लगाना नहीं चाहता था, इसलिए उसने युद्ध में शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा की. वह जानता था कि सभ्य एवं शिष्ट देव और आर्य कदापि निःशस्त्र पर शस्त्र-प्रहार नहीं करेंगे और वह युद्ध की विभीषिका में भी सुरक्षित बना रहेगा. साथ ही उसने उदध इतना व्यापक बना दिया जिससे भूमंडल पर उसका कोई प्रतिद्वंदी शेष न रहे.
युद्ध आरम्भ होने के अंतिम समय पर युद्ध टालने के लिए अर्जुन ने पूरा प्रयास किया और उसने युद्ध की विभीषिका को समझते हुए किसी भी मूल्य पर युद्ध न करने की ठान ली. किन्तु कृष्ण ने अपनी योजना असफल होते देख अपनी पूरी शक्ति अर्जुन को भ्रमित करने में लगा दी. उसने अर्जुन को क्षत्रिय धर्म की याद दिलाई और उसे युद्ध ही उसका धर्म बताया. किन्तु उसने आचार्य ड्रोन को यह नहीं बताया कि वे ब्रह्मण थे, और युद्ध उनका धर्म नहीं था. उसने स्वयं को यह पाठ नहीं पढाया कि जब वह अन्य लोगों को युद्ध के लिए प्रेरित कर रहा है तो स्वयं भी इसमे सशस्त्र सम्मिलित होना चाहिए. सारथी के निकृष्ट कार्य करते हुए अमानी कायरता प्रदर्शित नहीं करनी चाहिए. अंततः कृष्ण अपने दुश्चक्र में सफल रहा और युद्ध हुआ.
युद्ध का परिणाम कृष्ण की आशाओं के अनुकूल ही रहा, उसमें विश्व के सभी योद्धा खेत रहे, शेष बचा तो कृष्ण और पांडव, तथा कुछ अन्य जिनमें विष्णु और सिकंदर भी सम्मिलित थे. पांडवों को राज्य दिलाने के बहाने से युद्ध नियोजित किया गया था किन्तु युद्ध में विजय के बाद भी राज्य पांडवों को नहीं सौंपा गया, सिकंदर और कृष्ण के परामर्श से यहूदी वंश के उत्तरिधिकारी महापद्मानंद को भारत भूमि का सम्राट बनाया गया. युद्ध के बाद सिकंदर भारत से बेबीलोन गया और ज्ञात विश्व इतिहास के अनुसार उसके कुछ समय बाद वहीं मर गया.
लेबल:
कृष्ण छल,
पांडव,
महाभारत युद्ध,
विष्णु,
सिकंदर
सोमवार, 10 मई 2010
महाभारत युद्ध
वस्तुतः महाभारत युद्ध विश्व का प्रथम विश्व-युद्ध था किन्तु भारतीय इतिहासकारों द्वारा इसे सही रूप में प्रस्तुत न किये जाने के कारण विश्व इतिहास इसे विश्व यूद्ध की मान्यता प्रदान नहीं करता है. महाभारत ग्रन्थ के अनुवादों में हुई त्रुटियों के कारण इस युद्ध के स्थान और समय में गंभीर भ्रांतियां उत्पन्न हुई हैं जिसके कारण विश्व इतिहास में इस युद्ध का कोई विवरण नहीं दिया जाता है. इसके पात्रों, काल और स्थल के बारे में मैंने जो शोध किये हैं, उनके परिणाम निम्नांकित हैं -
महाभारत के प्रमुख पात्र
महाभारत ग्रन्थ के वास्तविक नायक राम हैं जिन्हें ब्रह्मा भी कहा जाता था. किन्तु ग्रन्थ के मूल पथ में जहां-जहां राम शब्द आया है, हिंदी अनुवाद में उसे बलराम, परशुराम आदि कर दिया गया है जिससे राम को ग्रन्थ से पूरी तरह अनुपस्थित किया गया है. किन्तु राम की हत्या महाभारत युद्ध के पूर्व ही कर दी गयी थी.
ग्रन्थ में कृष्ण खलनायक की भूमिका में है किन्तु उसकी भूमिका व्यापक सिद्ध करने के लिए अनेक शब्दों, जैसे श्याम, गोपाल, वासुदेव, माधव, हृषिकेश, जनार्दन, देवकीनंदन, आदि, को कृष्ण के अन्य नाम कह दिया गया है, जब कि इनमें से अनेक के तात्पर्य अन्य हैं. राम और कृष्ण की समकालीनता एक अन्य प्रमाण मैं पहले ही दे चुका हूँ.
महाभारत युद्ध में सिकंदर ने भाग लिया था जिसे महाभारत ग्रन्थ में शिखंडी कहा गया है. इस के अतिरिक्त महाभारत ग्रन्थ में सेल्युकस का नाम हेल्युकस लिखा गया है जैसे कि सिन्धु को इंडस अथवा हिन्दू कहा जाता है. कृष्ण के आमंत्रण पर सिकंदर द्वारा भारत पर आक्रमण और पराजय के बाद सिकंदर ने समझौता कर लिया था, किन्तु कृष्ण ने उसे और उसकी सेना को दक्षिण भारत में बसा दिया गया था जिससे कि वे आगामी युद्ध की तैयारी कर सकें. १५ माह की तैयारी के पश्चात महाभारत युद्ध हुआ. इसीलिये विश्व इतिहास में सिकंदर का भारत में ठहराव १८ माह कहा गया है.
युद्ध से पूर्व कृष्ण द्वारा देव योद्धाओं जैसे जरासंध, कंस, कीचक, आदि की हत्या छल-कपट से करा दी थी इसलिए वे स्वयं युद्ध करने में असमर्थ थे. इसलिए देव प्रमुख विष्णु ने भारत की यवनों से रक्षा के लिए सिकंदर द्वारा पराजित आर्यणाम के सम्राट डरायस-2 (दुर्योदन) आमंत्रित किया और शकुनि के छद्मरूप में उसक नीतिकार बने रहे. यही भारत में आर्यों का आगमन था.
काल निर्णय
यदि विश्व इतिहास में माना गया सिकंदर के भारत पर आक्रमण का काल सही माना जाये तो महाभारत युद्ध ३२२ ईसापूर्व में हुआ. मुझे अभी इसकी पुष्टि हेतु कोई सूत्र प्राप्त नहीं हुआ है, इसलिए मैं अभी इस बारे में अपनी ओर से कुछ नहीं कह सकता.
युद्ध स्थल
प्रचारित मान्यता के अनुसार महाभारत युद्ध कुरुक्षेत्र में हुआ जो मुझे सही प्रतीत नहीं हुआ. इस बारे में मैंने कुरुक्षेत्र विश्व विद्यालय के इतिहास और इंडोलोजी विभाग के विद्वानों के मत जानने चाहे जिनके अनुसार कुरुक्षेत्र में की गयी अनेक खुदाइयों पर भी उस क्षेत्र में युद्ध के कोई प्रमाण प्राप्त नहीं हुए हैं. मेरे द्वारा सरस्वती नदी के मार्ग और अवशेषों के अन्वेषण हेतु की गयी पदयात्राओं के दौरान मुझे अजमेर रेलवे स्टेशन के लगभग २ किलोमीटर उत्तर में उपस्थित जलधारा के दूसरे किनारे पर एक विशाल मैदान दिखाई दिया. वस्तुतः यह जलधारा ही सरस्वती नदी का एक अवशेष है. इस मैदान में महाबारत युद्ध क्षेत्र के अनेक लक्षण उपलब्ध हैं, विशेषकर युद्ध का अवलोकन करने का स्थान जो एक समीपस्थ पर्वत शिखर पर बना है. इस बारे में अभी अनुसंधान चल रहा है, विशेषकर महाभारत ग्रन्थ में इस स्थान के सन्दर्भ के बारे में.
महाभारत के प्रमुख पात्र
महाभारत ग्रन्थ के वास्तविक नायक राम हैं जिन्हें ब्रह्मा भी कहा जाता था. किन्तु ग्रन्थ के मूल पथ में जहां-जहां राम शब्द आया है, हिंदी अनुवाद में उसे बलराम, परशुराम आदि कर दिया गया है जिससे राम को ग्रन्थ से पूरी तरह अनुपस्थित किया गया है. किन्तु राम की हत्या महाभारत युद्ध के पूर्व ही कर दी गयी थी.
ग्रन्थ में कृष्ण खलनायक की भूमिका में है किन्तु उसकी भूमिका व्यापक सिद्ध करने के लिए अनेक शब्दों, जैसे श्याम, गोपाल, वासुदेव, माधव, हृषिकेश, जनार्दन, देवकीनंदन, आदि, को कृष्ण के अन्य नाम कह दिया गया है, जब कि इनमें से अनेक के तात्पर्य अन्य हैं. राम और कृष्ण की समकालीनता एक अन्य प्रमाण मैं पहले ही दे चुका हूँ.
महाभारत युद्ध में सिकंदर ने भाग लिया था जिसे महाभारत ग्रन्थ में शिखंडी कहा गया है. इस के अतिरिक्त महाभारत ग्रन्थ में सेल्युकस का नाम हेल्युकस लिखा गया है जैसे कि सिन्धु को इंडस अथवा हिन्दू कहा जाता है. कृष्ण के आमंत्रण पर सिकंदर द्वारा भारत पर आक्रमण और पराजय के बाद सिकंदर ने समझौता कर लिया था, किन्तु कृष्ण ने उसे और उसकी सेना को दक्षिण भारत में बसा दिया गया था जिससे कि वे आगामी युद्ध की तैयारी कर सकें. १५ माह की तैयारी के पश्चात महाभारत युद्ध हुआ. इसीलिये विश्व इतिहास में सिकंदर का भारत में ठहराव १८ माह कहा गया है.
युद्ध से पूर्व कृष्ण द्वारा देव योद्धाओं जैसे जरासंध, कंस, कीचक, आदि की हत्या छल-कपट से करा दी थी इसलिए वे स्वयं युद्ध करने में असमर्थ थे. इसलिए देव प्रमुख विष्णु ने भारत की यवनों से रक्षा के लिए सिकंदर द्वारा पराजित आर्यणाम के सम्राट डरायस-2 (दुर्योदन) आमंत्रित किया और शकुनि के छद्मरूप में उसक नीतिकार बने रहे. यही भारत में आर्यों का आगमन था.
काल निर्णय
यदि विश्व इतिहास में माना गया सिकंदर के भारत पर आक्रमण का काल सही माना जाये तो महाभारत युद्ध ३२२ ईसापूर्व में हुआ. मुझे अभी इसकी पुष्टि हेतु कोई सूत्र प्राप्त नहीं हुआ है, इसलिए मैं अभी इस बारे में अपनी ओर से कुछ नहीं कह सकता.
युद्ध स्थल
प्रचारित मान्यता के अनुसार महाभारत युद्ध कुरुक्षेत्र में हुआ जो मुझे सही प्रतीत नहीं हुआ. इस बारे में मैंने कुरुक्षेत्र विश्व विद्यालय के इतिहास और इंडोलोजी विभाग के विद्वानों के मत जानने चाहे जिनके अनुसार कुरुक्षेत्र में की गयी अनेक खुदाइयों पर भी उस क्षेत्र में युद्ध के कोई प्रमाण प्राप्त नहीं हुए हैं. मेरे द्वारा सरस्वती नदी के मार्ग और अवशेषों के अन्वेषण हेतु की गयी पदयात्राओं के दौरान मुझे अजमेर रेलवे स्टेशन के लगभग २ किलोमीटर उत्तर में उपस्थित जलधारा के दूसरे किनारे पर एक विशाल मैदान दिखाई दिया. वस्तुतः यह जलधारा ही सरस्वती नदी का एक अवशेष है. इस मैदान में महाबारत युद्ध क्षेत्र के अनेक लक्षण उपलब्ध हैं, विशेषकर युद्ध का अवलोकन करने का स्थान जो एक समीपस्थ पर्वत शिखर पर बना है. इस बारे में अभी अनुसंधान चल रहा है, विशेषकर महाभारत ग्रन्थ में इस स्थान के सन्दर्भ के बारे में.
महाभारत युद्ध
वस्तुतः महाभारत युद्ध विश्व का प्रथम विश्व-युद्ध था किन्तु भारतीय इतिहासकारों द्वारा इसे सही रूप में प्रस्तुत न किये जाने के कारण विश्व इतिहास इसे विश्व यूद्ध की मान्यता प्रदान नहीं करता है. महाभारत ग्रन्थ के अनुवादों में हुई त्रुटियों के कारण इस युद्ध के स्थान और समय में गंभीर भ्रांतियां उत्पन्न हुई हैं जिसके कारण विश्व इतिहास में इस युद्ध का कोई विवरण नहीं दिया जाता है. इसके पात्रों, काल और स्थल के बारे में मैंने जो शोध किये हैं, उनके परिणाम निम्नांकित हैं -
महाभारत के प्रमुख पात्र
महाभारत ग्रन्थ के वास्तविक नायक राम हैं जिन्हें ब्रह्मा भी कहा जाता था. किन्तु ग्रन्थ के मूल पथ में जहां-जहां राम शब्द आया है, हिंदी अनुवाद में उसे बलराम, परशुराम आदि कर दिया गया है जिससे राम को ग्रन्थ से पूरी तरह अनुपस्थित किया गया है. किन्तु राम की हत्या महाभारत युद्ध के पूर्व ही कर दी गयी थी.
ग्रन्थ में कृष्ण खलनायक की भूमिका में है किन्तु उसकी भूमिका व्यापक सिद्ध करने के लिए अनेक शब्दों, जैसे श्याम, गोपाल, वासुदेव, माधव, हृषिकेश, जनार्दन, देवकीनंदन, आदि, को कृष्ण के अन्य नाम कह दिया गया है, जब कि इनमें से अनेक के तात्पर्य अन्य हैं. राम और कृष्ण की समकालीनता एक अन्य प्रमाण मैं पहले ही दे चुका हूँ.
महाभारत युद्ध में सिकंदर ने भाग लिया था जिसे महाभारत ग्रन्थ में शिखंडी कहा गया है. इस के अतिरिक्त महाभारत ग्रन्थ में सेल्युकस का नाम हेल्युकस लिखा गया है जैसे कि सिन्धु को इंडस अथवा हिन्दू कहा जाता है. कृष्ण के आमंत्रण पर सिकंदर द्वारा भारत पर आक्रमण और पराजय के बाद सिकंदर ने समझौता कर लिया था, किन्तु कृष्ण ने उसे और उसकी सेना को दक्षिण भारत में बसा दिया गया था जिससे कि वे आगामी युद्ध की तैयारी कर सकें. १५ माह की तैयारी के पश्चात महाभारत युद्ध हुआ. इसीलिये विश्व इतिहास में सिकंदर का भारत में ठहराव १८ माह कहा गया है.
युद्ध से पूर्व कृष्ण द्वारा देव योद्धाओं जैसे जरासंध, कंस, कीचक, आदि की हत्या छल-कपट से करा दी थी इसलिए वे स्वयं युद्ध करने में असमर्थ थे. इसलिए देव प्रमुख विष्णु ने भारत की यवनों से रक्षा के लिए सिकंदर द्वारा पराजित आर्यणाम के सम्राट डरायस-2 (दुर्योदन) आमंत्रित किया और शकुनि के छद्मरूप में उसक नीतिकार बने रहे. यही भारत में आर्यों का आगमन था.
काल निर्णय
यदि विश्व इतिहास में माना गया सिकंदर के भारत पर आक्रमण का काल सही माना जाये तो महाभारत युद्ध ३२२ ईसापूर्व में हुआ. मुझे अभी इसकी पुष्टि हेतु कोई सूत्र प्राप्त नहीं हुआ है, इसलिए मैं अभी इस बारे में अपनी ओर से कुछ नहीं कह सकता.
युद्ध स्थल
प्रचारित मान्यता के अनुसार महाभारत युद्ध कुरुक्षेत्र में हुआ जो मुझे सही प्रतीत नहीं हुआ. इस बारे में मैंने कुरुक्षेत्र विश्व विद्यालय के इतिहास और इंडोलोजी विभाग के विद्वानों के मत जानने चाहे जिनके अनुसार कुरुक्षेत्र में की गयी अनेक खुदाइयों पर भी उस क्षेत्र में युद्ध के कोई प्रमाण प्राप्त नहीं हुए हैं. मेरे द्वारा सरस्वती नदी के मार्ग और अवशेषों के अन्वेषण हेतु की गयी पदयात्राओं के दौरान मुझे अजमेर रेलवे स्टेशन के लगभग २ किलोमीटर उत्तर में उपस्थित जलधारा के दूसरे किनारे पर एक विशाल मैदान दिखाई दिया. वस्तुतः यह जलधारा ही सरस्वती नदी का एक अवशेष है. इस मैदान में महाबारत युद्ध क्षेत्र के अनेक लक्षण उपलब्ध हैं, विशेषकर युद्ध का अवलोकन करने का स्थान जो एक समीपस्थ पर्वत शिखर पर बना है. इस बारे में अभी अनुसंधान चल रहा है, विशेषकर महाभारत ग्रन्थ में इस स्थान के सन्दर्भ के बारे में.
महाभारत के प्रमुख पात्र
महाभारत ग्रन्थ के वास्तविक नायक राम हैं जिन्हें ब्रह्मा भी कहा जाता था. किन्तु ग्रन्थ के मूल पथ में जहां-जहां राम शब्द आया है, हिंदी अनुवाद में उसे बलराम, परशुराम आदि कर दिया गया है जिससे राम को ग्रन्थ से पूरी तरह अनुपस्थित किया गया है. किन्तु राम की हत्या महाभारत युद्ध के पूर्व ही कर दी गयी थी.
ग्रन्थ में कृष्ण खलनायक की भूमिका में है किन्तु उसकी भूमिका व्यापक सिद्ध करने के लिए अनेक शब्दों, जैसे श्याम, गोपाल, वासुदेव, माधव, हृषिकेश, जनार्दन, देवकीनंदन, आदि, को कृष्ण के अन्य नाम कह दिया गया है, जब कि इनमें से अनेक के तात्पर्य अन्य हैं. राम और कृष्ण की समकालीनता एक अन्य प्रमाण मैं पहले ही दे चुका हूँ.
महाभारत युद्ध में सिकंदर ने भाग लिया था जिसे महाभारत ग्रन्थ में शिखंडी कहा गया है. इस के अतिरिक्त महाभारत ग्रन्थ में सेल्युकस का नाम हेल्युकस लिखा गया है जैसे कि सिन्धु को इंडस अथवा हिन्दू कहा जाता है. कृष्ण के आमंत्रण पर सिकंदर द्वारा भारत पर आक्रमण और पराजय के बाद सिकंदर ने समझौता कर लिया था, किन्तु कृष्ण ने उसे और उसकी सेना को दक्षिण भारत में बसा दिया गया था जिससे कि वे आगामी युद्ध की तैयारी कर सकें. १५ माह की तैयारी के पश्चात महाभारत युद्ध हुआ. इसीलिये विश्व इतिहास में सिकंदर का भारत में ठहराव १८ माह कहा गया है.
युद्ध से पूर्व कृष्ण द्वारा देव योद्धाओं जैसे जरासंध, कंस, कीचक, आदि की हत्या छल-कपट से करा दी थी इसलिए वे स्वयं युद्ध करने में असमर्थ थे. इसलिए देव प्रमुख विष्णु ने भारत की यवनों से रक्षा के लिए सिकंदर द्वारा पराजित आर्यणाम के सम्राट डरायस-2 (दुर्योदन) आमंत्रित किया और शकुनि के छद्मरूप में उसक नीतिकार बने रहे. यही भारत में आर्यों का आगमन था.
काल निर्णय
यदि विश्व इतिहास में माना गया सिकंदर के भारत पर आक्रमण का काल सही माना जाये तो महाभारत युद्ध ३२२ ईसापूर्व में हुआ. मुझे अभी इसकी पुष्टि हेतु कोई सूत्र प्राप्त नहीं हुआ है, इसलिए मैं अभी इस बारे में अपनी ओर से कुछ नहीं कह सकता.
युद्ध स्थल
प्रचारित मान्यता के अनुसार महाभारत युद्ध कुरुक्षेत्र में हुआ जो मुझे सही प्रतीत नहीं हुआ. इस बारे में मैंने कुरुक्षेत्र विश्व विद्यालय के इतिहास और इंडोलोजी विभाग के विद्वानों के मत जानने चाहे जिनके अनुसार कुरुक्षेत्र में की गयी अनेक खुदाइयों पर भी उस क्षेत्र में युद्ध के कोई प्रमाण प्राप्त नहीं हुए हैं. मेरे द्वारा सरस्वती नदी के मार्ग और अवशेषों के अन्वेषण हेतु की गयी पदयात्राओं के दौरान मुझे अजमेर रेलवे स्टेशन के लगभग २ किलोमीटर उत्तर में उपस्थित जलधारा के दूसरे किनारे पर एक विशाल मैदान दिखाई दिया. वस्तुतः यह जलधारा ही सरस्वती नदी का एक अवशेष है. इस मैदान में महाबारत युद्ध क्षेत्र के अनेक लक्षण उपलब्ध हैं, विशेषकर युद्ध का अवलोकन करने का स्थान जो एक समीपस्थ पर्वत शिखर पर बना है. इस बारे में अभी अनुसंधान चल रहा है, विशेषकर महाभारत ग्रन्थ में इस स्थान के सन्दर्भ के बारे में.
रविवार, 4 अप्रैल 2010
सिकंदर का आक्रमण
प्रचलित विश्व इतिहास के अनुसार सिकंदर, जिसे यूरोपीय भाषाओँ में अलग्जेंदर कहा जाता है, मिश्र और पर्शिया को विजित करता हुआ ३२३ ईसापूर्व में भारत पहुंचा. वस्तुतः सिकंदर को भारत पर आक्रमण के लिए कृष्ण ने आमंत्रित किया था जिसके लिए संदेशवाहक के रूप में विदुर को भेजा गया था.
भारत के प्रवेश पर ही सिकंदर का सामना भरत ने किया था जिन्हें पुरु वंशी होने के कारण इतिहास में पोरस कहा गया है.इस युद्ध के बारे में बड़ी भ्रांतियां प्रचारित की गयी हैं - कि सिकंदर विजयी हुआ था और उसने भरत को क्षमा कर दिया था. यह सर्व विदित ई कि भारत में आगमन पर सिकंदर की सेना ने विद्रोह कर दिया था. यदि विद्रोह युद्ध से पूर्व किया गया था तो सिकंदर विजयी नहीं हो सकता था, और सिकंदर के विजयी होने बाद सेना को विद्रोह की आवश्यकता ही नहीं थी. यद्यपि सिकंदर की सेना भारतीय सेना की तुलना में अधिक अनुभवी और अस्त्र-शास्त्रों से सुसज्जित थी, किन्तु भरत को युद्ध की आशंका थी और इसके लिए पूरी तैयारियां की गयीं थीं. युद्ध के प्रथम दिन के परिणाम देखते हुए ही सिकंदर के सेना-नायकों ने और आगे युद्ध करने में अपनी असक्षमता दर्शाई थी जिसे विद्रोह कहा गया है. इस पराजय और विद्रोह के बाद ही सिकंदर ने भरत से संझौता किया था और सीमा से ही वापिस लौट जाने का वचन दिया था. युद्ध तो थम गया किन्तु सिकंदर उसी समय वापिस नहीं लौटा. कृष्ण ने उसे और उसकी सेना को दक्षिण भारत मदुरै के पास बसा दिया था.
सिकंदर की सेना में यद्यपि अनेक जातियों के सैनिक थे किन्तु मूल सेना में अधिकाँश डोरियन होने के कारण सभी को डोरियन कहा जाता था. 'डोरियन' शब्द का आधुनिक स्वरुप ;द्रविड़' है. अतः दक्षिण भारत के द्रविड़ सिकंदर के सैनिकों के रूप में भारत आये थे. यहाँ यह भी महत्वपूर्ण है कि मलयाली और कन्नड़ मूलतः द्रविड़ नहीं हैं यद्यपि इन्हें भी अब द्रविड़ ही माना जाता है.
यूरोपीय इतिहासकारों का अनुसतन करते हुए भारत के राजकीय वेतनभोगी तथाकथित इतिहासकार भी सिकंदर को 'महान' कहते हैं जब कि उसमें महानता का कोई लक्षण नहीं था. इंटरपोल के आधुनिक शोधों के अनुसार वह अत्यधिक शराबी था और मामूली की नाराजगी पर ही अपने प्रियजनों की हत्या कर देता था. उसके शरीर में पाशविक शक्ति थी जिसके कारण वह घायल अवस्था में भी युद्ध में सक्रिय रहता था. इसी पाशविकता के कारण वह युद्धों में विजयी रहा.न कि किसी मानवीय गुण के कारण. हौलीवूद से अभी बनी फिल्म के अनुसार समलैंगिक मैथुन का शौक़ीन था और उसके पुरुष प्रेमी का नाम हाइलास था जो युद्धों में भी उसका शौक पूरा करता था.
भारत में बसने के बाद उसके सैनिकों ने भारतीय स्त्रियों का अपहरण कर अपने घर बसाये जिसके लिए उन्हें क्तिष्ण का अभयदान प्राप्त ता. उसको समर्पित कर वे कुछ भी अनैतिक करने के लिए स्वतंत्र थे. इसी पड़ाव में सिकंदर ने अपनी सेना को पुनर्संगठित किया और लगभग १५ माह बाद हुए महाबारत युद्ध में 'शिखंडी' नाम से भाग लिया.समस्त आशिया का विजयी सिकंदर महाभारत में एक नगण्य योद्धा रहा, अतः भारतीय दृष्टिकोण से उसे महान नहीं कहा जा सकता.
भारत के प्रवेश पर ही सिकंदर का सामना भरत ने किया था जिन्हें पुरु वंशी होने के कारण इतिहास में पोरस कहा गया है.इस युद्ध के बारे में बड़ी भ्रांतियां प्रचारित की गयी हैं - कि सिकंदर विजयी हुआ था और उसने भरत को क्षमा कर दिया था. यह सर्व विदित ई कि भारत में आगमन पर सिकंदर की सेना ने विद्रोह कर दिया था. यदि विद्रोह युद्ध से पूर्व किया गया था तो सिकंदर विजयी नहीं हो सकता था, और सिकंदर के विजयी होने बाद सेना को विद्रोह की आवश्यकता ही नहीं थी. यद्यपि सिकंदर की सेना भारतीय सेना की तुलना में अधिक अनुभवी और अस्त्र-शास्त्रों से सुसज्जित थी, किन्तु भरत को युद्ध की आशंका थी और इसके लिए पूरी तैयारियां की गयीं थीं. युद्ध के प्रथम दिन के परिणाम देखते हुए ही सिकंदर के सेना-नायकों ने और आगे युद्ध करने में अपनी असक्षमता दर्शाई थी जिसे विद्रोह कहा गया है. इस पराजय और विद्रोह के बाद ही सिकंदर ने भरत से संझौता किया था और सीमा से ही वापिस लौट जाने का वचन दिया था. युद्ध तो थम गया किन्तु सिकंदर उसी समय वापिस नहीं लौटा. कृष्ण ने उसे और उसकी सेना को दक्षिण भारत मदुरै के पास बसा दिया था.
सिकंदर की सेना में यद्यपि अनेक जातियों के सैनिक थे किन्तु मूल सेना में अधिकाँश डोरियन होने के कारण सभी को डोरियन कहा जाता था. 'डोरियन' शब्द का आधुनिक स्वरुप ;द्रविड़' है. अतः दक्षिण भारत के द्रविड़ सिकंदर के सैनिकों के रूप में भारत आये थे. यहाँ यह भी महत्वपूर्ण है कि मलयाली और कन्नड़ मूलतः द्रविड़ नहीं हैं यद्यपि इन्हें भी अब द्रविड़ ही माना जाता है.
यूरोपीय इतिहासकारों का अनुसतन करते हुए भारत के राजकीय वेतनभोगी तथाकथित इतिहासकार भी सिकंदर को 'महान' कहते हैं जब कि उसमें महानता का कोई लक्षण नहीं था. इंटरपोल के आधुनिक शोधों के अनुसार वह अत्यधिक शराबी था और मामूली की नाराजगी पर ही अपने प्रियजनों की हत्या कर देता था. उसके शरीर में पाशविक शक्ति थी जिसके कारण वह घायल अवस्था में भी युद्ध में सक्रिय रहता था. इसी पाशविकता के कारण वह युद्धों में विजयी रहा.न कि किसी मानवीय गुण के कारण. हौलीवूद से अभी बनी फिल्म के अनुसार समलैंगिक मैथुन का शौक़ीन था और उसके पुरुष प्रेमी का नाम हाइलास था जो युद्धों में भी उसका शौक पूरा करता था.
भारत में बसने के बाद उसके सैनिकों ने भारतीय स्त्रियों का अपहरण कर अपने घर बसाये जिसके लिए उन्हें क्तिष्ण का अभयदान प्राप्त ता. उसको समर्पित कर वे कुछ भी अनैतिक करने के लिए स्वतंत्र थे. इसी पड़ाव में सिकंदर ने अपनी सेना को पुनर्संगठित किया और लगभग १५ माह बाद हुए महाबारत युद्ध में 'शिखंडी' नाम से भाग लिया.समस्त आशिया का विजयी सिकंदर महाभारत में एक नगण्य योद्धा रहा, अतः भारतीय दृष्टिकोण से उसे महान नहीं कहा जा सकता.
सिकंदर का आक्रमण
प्रचलित विश्व इतिहास के अनुसार सिकंदर, जिसे यूरोपीय भाषाओँ में अलग्जेंदर कहा जाता है, मिश्र और पर्शिया को विजित करता हुआ ३२३ ईसापूर्व में भारत पहुंचा. वस्तुतः सिकंदर को भारत पर आक्रमण के लिए कृष्ण ने आमंत्रित किया था जिसके लिए संदेशवाहक के रूप में विदुर को भेजा गया था.
भारत के प्रवेश पर ही सिकंदर का सामना भरत ने किया था जिन्हें पुरु वंशी होने के कारण इतिहास में पोरस कहा गया है.इस युद्ध के बारे में बड़ी भ्रांतियां प्रचारित की गयी हैं - कि सिकंदर विजयी हुआ था और उसने भरत को क्षमा कर दिया था. यह सर्व विदित ई कि भारत में आगमन पर सिकंदर की सेना ने विद्रोह कर दिया था. यदि विद्रोह युद्ध से पूर्व किया गया था तो सिकंदर विजयी नहीं हो सकता था, और सिकंदर के विजयी होने बाद सेना को विद्रोह की आवश्यकता ही नहीं थी. यद्यपि सिकंदर की सेना भारतीय सेना की तुलना में अधिक अनुभवी और अस्त्र-शास्त्रों से सुसज्जित थी, किन्तु भरत को युद्ध की आशंका थी और इसके लिए पूरी तैयारियां की गयीं थीं. युद्ध के प्रथम दिन के परिणाम देखते हुए ही सिकंदर के सेना-नायकों ने और आगे युद्ध करने में अपनी असक्षमता दर्शाई थी जिसे विद्रोह कहा गया है. इस पराजय और विद्रोह के बाद ही सिकंदर ने भरत से संझौता किया था और सीमा से ही वापिस लौट जाने का वचन दिया था. युद्ध तो थम गया किन्तु सिकंदर उसी समय वापिस नहीं लौटा. कृष्ण ने उसे और उसकी सेना को दक्षिण भारत मदुरै के पास बसा दिया था.
सिकंदर की सेना में यद्यपि अनेक जातियों के सैनिक थे किन्तु मूल सेना में अधिकाँश डोरियन होने के कारण सभी को डोरियन कहा जाता था. 'डोरियन' शब्द का आधुनिक स्वरुप ;द्रविड़' है. अतः दक्षिण भारत के द्रविड़ सिकंदर के सैनिकों के रूप में भारत आये थे. यहाँ यह भी महत्वपूर्ण है कि मलयाली और कन्नड़ मूलतः द्रविड़ नहीं हैं यद्यपि इन्हें भी अब द्रविड़ ही माना जाता है.
यूरोपीय इतिहासकारों का अनुसतन करते हुए भारत के राजकीय वेतनभोगी तथाकथित इतिहासकार भी सिकंदर को 'महान' कहते हैं जब कि उसमें महानता का कोई लक्षण नहीं था. इंटरपोल के आधुनिक शोधों के अनुसार वह अत्यधिक शराबी था और मामूली की नाराजगी पर ही अपने प्रियजनों की हत्या कर देता था. उसके शरीर में पाशविक शक्ति थी जिसके कारण वह घायल अवस्था में भी युद्ध में सक्रिय रहता था. इसी पाशविकता के कारण वह युद्धों में विजयी रहा.न कि किसी मानवीय गुण के कारण. हौलीवूद से अभी बनी फिल्म के अनुसार समलैंगिक मैथुन का शौक़ीन था और उसके पुरुष प्रेमी का नाम हाइलास था जो युद्धों में भी उसका शौक पूरा करता था.
भारत में बसने के बाद उसके सैनिकों ने भारतीय स्त्रियों का अपहरण कर अपने घर बसाये जिसके लिए उन्हें क्तिष्ण का अभयदान प्राप्त ता. उसको समर्पित कर वे कुछ भी अनैतिक करने के लिए स्वतंत्र थे. इसी पड़ाव में सिकंदर ने अपनी सेना को पुनर्संगठित किया और लगभग १५ माह बाद हुए महाबारत युद्ध में 'शिखंडी' नाम से भाग लिया.समस्त आशिया का विजयी सिकंदर महाभारत में एक नगण्य योद्धा रहा, अतः भारतीय दृष्टिकोण से उसे महान नहीं कहा जा सकता.
भारत के प्रवेश पर ही सिकंदर का सामना भरत ने किया था जिन्हें पुरु वंशी होने के कारण इतिहास में पोरस कहा गया है.इस युद्ध के बारे में बड़ी भ्रांतियां प्रचारित की गयी हैं - कि सिकंदर विजयी हुआ था और उसने भरत को क्षमा कर दिया था. यह सर्व विदित ई कि भारत में आगमन पर सिकंदर की सेना ने विद्रोह कर दिया था. यदि विद्रोह युद्ध से पूर्व किया गया था तो सिकंदर विजयी नहीं हो सकता था, और सिकंदर के विजयी होने बाद सेना को विद्रोह की आवश्यकता ही नहीं थी. यद्यपि सिकंदर की सेना भारतीय सेना की तुलना में अधिक अनुभवी और अस्त्र-शास्त्रों से सुसज्जित थी, किन्तु भरत को युद्ध की आशंका थी और इसके लिए पूरी तैयारियां की गयीं थीं. युद्ध के प्रथम दिन के परिणाम देखते हुए ही सिकंदर के सेना-नायकों ने और आगे युद्ध करने में अपनी असक्षमता दर्शाई थी जिसे विद्रोह कहा गया है. इस पराजय और विद्रोह के बाद ही सिकंदर ने भरत से संझौता किया था और सीमा से ही वापिस लौट जाने का वचन दिया था. युद्ध तो थम गया किन्तु सिकंदर उसी समय वापिस नहीं लौटा. कृष्ण ने उसे और उसकी सेना को दक्षिण भारत मदुरै के पास बसा दिया था.
सिकंदर की सेना में यद्यपि अनेक जातियों के सैनिक थे किन्तु मूल सेना में अधिकाँश डोरियन होने के कारण सभी को डोरियन कहा जाता था. 'डोरियन' शब्द का आधुनिक स्वरुप ;द्रविड़' है. अतः दक्षिण भारत के द्रविड़ सिकंदर के सैनिकों के रूप में भारत आये थे. यहाँ यह भी महत्वपूर्ण है कि मलयाली और कन्नड़ मूलतः द्रविड़ नहीं हैं यद्यपि इन्हें भी अब द्रविड़ ही माना जाता है.
यूरोपीय इतिहासकारों का अनुसतन करते हुए भारत के राजकीय वेतनभोगी तथाकथित इतिहासकार भी सिकंदर को 'महान' कहते हैं जब कि उसमें महानता का कोई लक्षण नहीं था. इंटरपोल के आधुनिक शोधों के अनुसार वह अत्यधिक शराबी था और मामूली की नाराजगी पर ही अपने प्रियजनों की हत्या कर देता था. उसके शरीर में पाशविक शक्ति थी जिसके कारण वह घायल अवस्था में भी युद्ध में सक्रिय रहता था. इसी पाशविकता के कारण वह युद्धों में विजयी रहा.न कि किसी मानवीय गुण के कारण. हौलीवूद से अभी बनी फिल्म के अनुसार समलैंगिक मैथुन का शौक़ीन था और उसके पुरुष प्रेमी का नाम हाइलास था जो युद्धों में भी उसका शौक पूरा करता था.
भारत में बसने के बाद उसके सैनिकों ने भारतीय स्त्रियों का अपहरण कर अपने घर बसाये जिसके लिए उन्हें क्तिष्ण का अभयदान प्राप्त ता. उसको समर्पित कर वे कुछ भी अनैतिक करने के लिए स्वतंत्र थे. इसी पड़ाव में सिकंदर ने अपनी सेना को पुनर्संगठित किया और लगभग १५ माह बाद हुए महाबारत युद्ध में 'शिखंडी' नाम से भाग लिया.समस्त आशिया का विजयी सिकंदर महाभारत में एक नगण्य योद्धा रहा, अतः भारतीय दृष्टिकोण से उसे महान नहीं कहा जा सकता.
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