रविवार, 9 मई 2010

बौद्धिक जनतंत्र में शासन व्यवस्था

बौद्धिक जनतंत्र में सर्वकार के दो प्रमुख कार्य निर्धारित हैं जिनमें से प्रथम सर्वकार का कर्म है  तथा दूसरा उसका नियंत्रण है  -
  • लोगों को स्वयं के  स्वस्थ, सभ्य और सम्मानपूर्ण जीवन यापन की सुविधाएँ प्रदान करना, तथा 
  • लोगों को दूसरों के स्वस्थ, सभ्य और सम्मानपूर्ण जीवन यापन में बाधक होने से प्रतिबंधित करना. 
इस कर्म और नियंत्रण के लिए बौद्धिक सर्वकार पांच स्तरों पर नियोजित है -

गाँव/नगर  सर्वकार -
स्वच्छता, शिक्षा संस्थान संचालन, स्वास्थ सेवाएं, सार्वजनिक संपदा की रक्षा, भूमि और जनसँख्या आंकड़े, पेय जल, राजस्व वसूली.

विकास खंड सर्वकार -
विकास नियोजन, सामाजिक वानिकी, कृषि/खनन विकास सेवाएं, दूध एवं खाद्य संस्कारण उद्योग, गाँव/नगर सर्वकार नियंत्रण.

जनपद सर्वकार -
न्याय और व्यवस्था प्रशासन, शिक्षा एवं स्वास्थ प्रशासन, विकास कंद सर्वकार नियंत्रण.


प्रांतीय सर्वकार -
विधानों के अंतर्गत नियम निर्माण, कला-संस्कृति विकास, औद्योगिक विकास, यातायात साधन विकास, जनपद सर्वकार नियंत्रण.

राष्ट्रीय सर्वकार -
संविधान, अंतर-राष्ट्रीय सम्बन्ध, सीमा सुरक्षा, जल-विद्युत्-ईंधन-रेलवे विकास, प्रांतीय सर्वकार नियंत्रण.

सर्वकार का कर्म गाँव स्तर से आरम्भ होकर राष्ट्र स्तर तक शनैः-शनैः घटता जाता है जबकि उसका नियंत्रण राष्ट्र स्तर से आरम्भ होकर गाँव स्तर तक न्यूनतम हो जाता है तथापि बौद्धिक जनतंत्र संघीय व्यवस्था के विरुद्ध एक राष्ट्राध्यक्ष के नेतृत्व में केन्द्रीय  व्यवस्था का समर्थक है. इसलिए केन्द्रीय सर्वकार राष्ट्र के सर्वांगीण एवं समरूपी विकास में महत्वपूर्ण भूमिका में है. राष्ट्राध्यक्ष अपने १६ सदस्यीय मंत्री परिषद के माध्यम से कार्य करता और देश की संसद उसके कार्यों की समीक्षा करती है. राष्टाध्यक्ष के अधीन १६ निम्नांकित विभाग होंगे -
  1. कृषि, वन, ग्रामीण एवं कुटीर उद्योग,
  2. स्वास्थ सेवाएँ,
  3. शिक्षा सेवाएँ,
  4. न्याय और विधान,
  5. औद्योगिक विकास,
  6. अर्थ एवं वित्त व्यवस्था ,
  7. जल संसाधन विकास,
  8. अंतर्राष्ट्रीय मामले एवं व्यापार,
  9. राष्ट्रीय सुरक्षा एवं प्राकृत आपदा,
  10. यातायात एवं पर्यटन विकास,
  11. खनन एवं खनिज संस्कारण,
  12. प्रांतीय सर्वकार नियंत्रण,
  13. विद्युत् उत्पादन एवं वितरण विकास,
  14. विज्ञान, तकनीकी एवं संचार,
  15. ईंधन स्रोत विकास,
  16. जनजीवन एवं उत्पाद गुणता विकास.  

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