रविवार, 18 अप्रैल 2010

आर्यों का भारत आगमन

सिकंदर के भारत पर आक्रमण और उसके कृष्ण के सानिध्य में दक्षिण भारत में बस कर एक बड़े युद्ध की तैयारियों में जुट जाने से देवों में चिंता व्याप्त हो गयी. कृष्ण और पांडवों ने उन के योद्धाओं की एक-एक करके पहले ही हत्या कर दी थी इसलिए उनकी क्षीण हो चुकी थी, जिसके कारण वे स्वयं युद्ध करने में असमर्थ थे. उनमें से जो प्रमुख व्यक्ति जीवित थे उनमें विष्णु, जीसस ख्रीस्त, विश्वामित्र, भरत और कर्ण आदि सम्मिलित थे.

उधर सिकंदर ने पर्शिया के शासक डराय्स-द्वितीय को पराजित कर दिया था और वह महान योद्धा जंगलों में भटक रहा था. पर्शिया का साम्राज्य ही आर्य साम्राज्य था और उस समय उनका प्रमुख डराय्स ही था. यह जाति देवों की तरह ही एक सभ्य जाति थी और यवनों से आतंकित थी. विष्णु ने डराय्स-द्वितीय से संपर्क स्थापित किया और उसे भारत में सेना संगठित कर यवनों का मुकाबला करने को राजी कर लिया. डराय्स-द्वितीय का भारतीय नाम दुर्योधन रखा गया जो कौरव प्रमुख के रूप में विख्यात है. इस प्रकार आर्य जाति का भारत में आगमन हुआ. यह जाति मूल रूप से यूरोप में क्यूरा नदी पर बसती थी जिसके कारण इसे कुरु वंश भी कहा गया है. वहीं से आकर इस जाति ने पर्शिया में अपना साम्राज्य स्थापित किया और बेबीलोन को अपनी राजधानी बनाकर विश्व के सुन्दरतम नगर के रूप में विकसित किया था. पर्शिया का एक अन्य नाम आर्यणाम था जिससे आधुनिक शब्द ईरान बना है.  स्वयं के साम्राज्य की स्थापना हेतु आर्य जाति ने अनेक युद्ध किये थे जिसके कारण इन्हें युद्ध का अच्छा अनुभव था.

दुर्योधन के बारे में एक और ऐतिहासिक तथ्य प्रासंगिक है. उसके एक पूर्वज सायरस ने हिन्दुकुश पार करके सिन्धु घाटी के नगरों के समूह को गांधार नाम दिया था. इस प्रकार गान्धार, दुर्योधन और शकुनी का गुप्त सम्बन्ध स्थापित होता है.

विष्णु स्वयं यवन आतंक के निशाने पर थे और वे अकेले खुले रूप में नहीं रह सकते थे. इसलिए उन्होंने शकुनी का छद्म रूप धारण किया और दुर्योधन के मामा बनकर कौरव पक्ष के नीतिकार के रूप में कार्य करते रहे. इस विषयक सन्दर्भ भावप्रकाश नामक शास्त्र में गुप्त रूप में उपलब्ध है. क्योंकि महाभारत में यवन समूह की विजय के बाद कोई भी तथ्य स्पष्ट रूप में नहीं लिखा जा सकता था, जबकि भाव प्रकाश नामक ग्रन्थ स्वस्तिका, लक्ष्मी और सरस्वती देवियों ने महाभारत युद्ध के बाद उडीसा के तितलागढ़ नामक स्थान पर एक गुफा में गुप्त वास में लिखा था. तित्लागढ़ विष्णु की माँ देवी सुमित्रा का मायका था जिसके निकट के विशाल घोडार नामक ऐतिहासिक स्थल की प्राचीनता अब दम तोड़ रही है तथापि आसपास की पहाड़ियों पर अनेक भित्तिचित्र आज भी विद्यमान हैं.  

4 टिप्‍पणियां:

  1. BAhut bahiya itihash ki jankari de rahe hain aap. kam se kam aane wale bacche ye to samajh sakenge ki Raziya Sultana ne dubara Itly main janm liya aur fir bharat aa karke Pradhan Mantri banne ke sapne dekhane lagi.

    Aur Man Mohan Singh hi Mohammad saheb ke roop awatarit huye hain.

    जवाब देंहटाएं
  2. विष्णु स्वयं यवन आतंक के निशाने पर थे और वे अकेले खुले रूप में नहीं रह सकते थे. इसलिए उन्होंने शकुनी का छद्म रूप धारण किया और दुर्योधन के मामा बनकर कौरव पक्ष के नीतिकार के रूप में कार्य करते रहे. इस विषयक सन्दर्भ भावप्रकाश नामक शास्त्र में गुप्त रूप में उपलब्ध है
    यह भावप्रकाश लैटिन में है या यह बहे उसी संस्कृत में है जिसके सारे अर्थ आपके कथनानुसार गलत-सलत हैं?

    जवाब देंहटाएं
  3. @स्मार्ट इंडियन
    भाव प्रकाश वेडिक संस्कृत में ही है जिसके हिन्दी अनुवाद ग़लत-सॉल्ट किए हुए हैं, किंतु सही अनुवाद करने की मनाही नहीं है.

    जवाब देंहटाएं
  4. मरे ख्याल से आपकी ७०% बाते गलत है भारत का इतिहास ये है की आर्य ५००० वर्ष पूर्व इस देश में आये और यहाँ पे शाशन किया,फिर बोद्ध धर्म ने उन्हें चुनौती दी पर ५०० वर्ष पश्चात् ब्राम्हणों के षड्यंत्र द्वारा ज्यादा टिक नहीं सका,और फिर अंग्रेजो का शाशन आया आप किस इतिहास को बता रहे है मैं नहीं जनता कृपया बाते साफ़ करे....

    जवाब देंहटाएं

केवल प्रासंगिक टिप्पणी करें, यही आपका बौद्धिक प्रतिबिंब होंगी