रविवार, 30 मई 2010

किशोरावस्था प्रेम, समाज और विधान

मेरे गाँव का एक परिवार नगर में रहता है जो कुछ दिन पूर्व ग्रीष्मावकाश व्यतीत करने गाँव आया था. आगमन के तीसरे दिन उस परिवार की १५ वर्षीय किशोरी एक संध्या में अचानक लुप्त हो गयी. परिवार ने तुरंत मुझसे सहायता माँगी और मैं किशोरी की खोज में लग गया. रात्रि भर आस-पास के खेतों में उसकी खोज की गयी और स्थानीय पुलिस को उसके लुप्त होने की सूचना भी दे दी गयी. किन्तु प्रातःकाल तक उसका कोई सुराग नहीं मिला.

प्रातःकाल में गाँव के एक युवा ने मुझे बताया कि कल शाम दो अपरिचित युवक एक मोटर-सायकिल पर गाँव के आसपास चक्कर लगाते देखे गए थे जिनके पास किसी व्यक्ति का फोन भी आया था. उनके परस्पर वार्तालाप से सूचना देने वाले युवा ने फ़ोन करने वाले व्यक्ति का नाम भी जान लिया था. इस नाम का एक व्यक्ति नगर में किशोरी के पड़ोस में रहता है, ऐसा किशोरी के पिता ने बताया. इस बारे में पुलिस को सूचना दी गयी जहां से एक पुलिस बल मुझे नगर में छापा मार कर किशोरी की खोज के लिए दे दिया गया. 

नगर में फ़ोन करने वाले व्यक्ति ने बताया कि उसका किशोरी के लुप्त होने से कोई सम्बन्ध नहीं है किन्तु वह हमें उस घर पर ले गया जहां वह लड़का रहता है जिसको उसने फ़ोन किया था. उस समय घर में केवल स्त्रियाँ थीं और उन्होंने बताया कि उक्त लड़का वहीं रहता है किन्तु उस समय वे उसकी स्थिति के बारे में कुछ नहीं जानतीं. पुलिस ने उन स्त्रियों को लड़के की खोज कर बुलाने के लिए कहा और उनके तलाने पर उन्हें कुछ भयभीत भी किया. इसके बाद हम सब किशोरी के निवास पर आ गए जो पास में ही है.

किशोरी के निवास पर हम अपने अगले कदम का निर्णय ही कर रहे थे कि किशोरी वहां उपस्थित हो गयी. उसने बताया कि वह अपनी इच्छा से अपने मित्र के पास आयी थी. इस प्रकार यह किशोरावस्था का प्रेम सिद्ध हुआ जिसके लिए किशोरी ने इतना बड़ा कदम उठाया था. ऐसे भावुकता भरे सम्बन्ध इस आयु में बहुधा हो जाते हैं जिनमे किशोर-किशोरियों को इनके औचित्य का ज्ञान भी नहीं होता.

जहां एक ओर किशोर-किशोरी अपनी भावुकताओं में विवश हो जाते हैं, वहीं भारतीय विधान इस प्रकार के सम्बन्ध को विवाह में परिवर्तित करने की अनुमति नहीं देता. इसका सटीक कारण यह है कि इस अवस्था में बच्चे अपने भविष्य के बारे में निर्णय लेने में समर्थ नहीं होते और जो इस प्रकार के दुस्साहस दर्शाते हैं वे प्रायः जीवन भर पाश्चाताप करते हैं. यह आयु उनकी शिक्षा को समर्पित होनी चाहिए ताकि वे स्वस्थ एवं सभ्य नागरिक बन सकें, जो व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्रीय स्तरों पर विकास के लिए आवश्यक है. इस सर्वोपयोगी आदर्श से परिचित होते हुए भी किशोर-किशोरी ऐसी भूलें करते हैं जिनके परिणाम व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र, सभी के लिए घातक सिद्ध होते हैं.

इस आलेख की रचना का आशय यही है कि हम जानें कि ऐसा क्यों होता है, जो सभी के लिए घातक है. यह प्रकृति का विधान नहीं हो सकता, इसलिए इसका कारण हमारे समाज की कहीं कोई कृत्रिम विकृति है. प्रेम सम्बन्ध में लिप्त लिशोर-किशोरी निश्चित रूप से अपनी शिक्षण प्रक्रिया से विमुख हो जाते हैं.  इसे दूसरे शब्दों में इस प्रकार भी कहा जा सकता है कि शिक्षा से विमुख किशोर-किशोरी ही इस प्रकार के संबंधों में लिप्त होते हैं. बच्चे अपनी शिक्षा के प्रति गंभीर रहें, इसका दायित्व शिक्षकों तथा माता-पिता दोनों का है. आज हम देख रहे हैं कि ये दोनों वर्ग ही अपने इस दायित्व के प्रति गंभीर नहीं हैं. शिक्षक वर्ग तो यह मान कर निश्चिन्त हो जाता है कि उनके छात्रों के भ्रमित होने से उन पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता. किन्तु माता-पिता और सारे परिवार का भविष्य किशोरों के इस प्रकार के व्यवहार से खतरे में पड़ जाता है.  अतः प्राथमिक स्तर पर माता-पिता को ही इसके लिए गंभीर होने की आवश्यकता है.
The Psychology Of Adolescent Love 
मैं बहुधा देखता हूँ कि अधिकाँश माता-पिता अपने बच्चों की शिक्षा-दीक्षा पर अधिकाधिक धन व्यय करने के लिए तो तत्पर रहते हैं किन्तु उनके सतत मार्गदर्शन के लिए उनके पास समय नहीं होता या वे इसे महत्वपूर्ण नहीं समझते. वे असीमित धन और सुख-सुविधाएं जुटाने में इतने लीं रहते हैं कि परिवार के प्रति अपने कर्तव्यों के प्रति उदासीन हो जाते हैं. इस उदासीनता के कारण उनके बच्चे पथ्भ्रिष्ट हो जाते हैं और उनके जीवन भर की असीमित कमाई भी व्यर्थ चली जाती है. जी हाँ यही है मेरा मंतव्य.  

1 टिप्पणी:

  1. दरअसल ये समाज के लिए आज भी गंभीर शोध का विषय है ,हलांकि इसे किसी भी कीमत पर रोका नहीं जा सकता लेकिन समाज का हर व्यक्ति अगर समाज के हर बच्चे का ख्याल उसी तरह रखने लगे जिस तरह अपने बच्चे का रखते हैं तो इस स्थिति को नियंत्रित जरूर किया जा सकता है साथ-साथ माता पिता को भी बच्चों को अनुशासन तथा बड़े बुजुर्गों का कद्र करना गंभीरता से सिखाना होगा / इसके साथ ही स्कूलों में भी चरित्र निर्माण को प्राथमिकता देना होगा और उच्च चरित्र को सम्मानित भी करना होगा /

    जवाब देंहटाएं

केवल प्रासंगिक टिप्पणी करें, यही आपका बौद्धिक प्रतिबिंब होंगी