मंगलवार, 30 जनवरी 2018

आक्रोश


मैंने कई शिकायतें प्रधानमंत्री को आइने की तरह भेजी हैं, जिनमें से दो - PMOPG/E/2017/0653718, PMOPG/E/2018/0006929 
के बारे में मुझे सूचना दी गयी है कि उनका निस्तारण किया जा चूका है, जिनके विवरण के लिए मुझे सम्बंधित वेबसाइट पर जाना होगा. मैंने जैसा कहा गया वैसा किया, रजिस्ट्रेशन के लम्बे मार्ग से गुजरा, किन्तु मेरी किसी शिकायत की कोई सूचना वहां उपलब्ध नहीं हुई. 
मैंने जनशिकायत के निदेशक एवं जॉइंट सेक्रेटरी को फ़ोन किये परन्तु वे दोनों ही 11 बजे तक कार्यालय नहीं पहुंचे थे. मुझे इस मामले की शिकायत भी प्रधानमंत्री को भेजनी पड़ी यह बताने के लिए की केंद्र सर्कार की वास्तविकता क्या है.
आज मुझे दूसरी शिकायत के बारे में सूचना मिली है की उसका निस्तारण कर दिया गया है, किन्तु वेबसाइट पर मुझे कोई विवरण नहीं मिला. इसके बाद मैंने जन-शिकायत निदेशालय के निदेशक को फ़ोन किया, और अपनी समस्या बताई. उन्होंने मुझे एक अन्य नंबर पर बात करने को कहकर टला दिया, क्योंकि उस नंबर से कोई उत्तर नहीं मिला. इसके बाद मैंने जॉइंट सेक्रेटरी को फ़ोन किया जिसने कहा की वह बहुत व्यस्त है, बाद में बात कीजिये.
अब सोचिये जनशिकायतों के प्रबंधन के लिए स्वचालित कंप्यूटर लगे हैं, जो अपना कार्य ठीक कर रहें हैं, किन्तु निदेशालय में दो आईएएस ऑफिसर सहित एक दर्ज़न से अधिक कर्मचारी हैं जो बिलकुल निठल्ले बैठे देश के गरीबों का खून चूस रहे हैं. क्या होगा इस देश का??

गुरुवार, 25 जनवरी 2018

भारत में जन-शिकायत निस्तारण


भारत में जन-समस्याओं की संख्या में वृद्धि होती जा रही है क्योंकि इनके निस्तारण के गंभीर प्रयास न किये जाकर केवल दिखावे पर सार्वजनिक धन का दुरूपयोग किया जा रहा है. सर्वप्रथम हम यह जानें की जन-समस्याएँ उगती कहाँ से हैं. सरकार के निम्नतम स्तर के कर्मचारी जन-साधारण के संपर्क रखने एवं सार्वजनिक कार्यों के निष्पादन हेतु नियुक्त होते हैं. उनके बड़े अधिकारी उनका दिशा-निर्देशन करते हैं किन्तु उनका जन-संपर्क नगण्य होता है. यदि निम्नतम स्तर के कर्मचारी सही मार्गदर्शन में अपना कार्य कुशलता से करते रहें तो जन-समस्याओं के उपस्थित होने की सम्भावना नगण्य हो जाती है. चूंकि इनके मार्गदर्शन में लापरवाही अथवा अधिकारीयों के स्वार्थसिद्धि हेतु होते हैं, इसलिए निम्नतम स्तर के कर्मचारी अपने कर्त्तव्य-निर्वाह में लापरवाही भी करते हैं और भृष्टाचार भी, जिससे जन-समस्याएँ उगती हैं.
जिस स्तर से समस्याएँ उगती हैं, उस स्तर पर अथवा उस स्तर के कर्मियों पर निर्भर होने से जन-समस्याओं के समाधान नहीं हो सकते, केवल इसके प्रदर्शन हो सकते हैं. राज्य और केंद्र सरकारें ऐसा ही कर रही हैं, इसलिए जन-समस्याओं की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है, किसी का कोई समाधान नहीं होता, इसलिए जन-साधारण बुरी तरह हताश एवं परेशान हैं. मैं अपने अनुभवों के कुछ उदाहरणों से इस बिंदु को स्पष्ट करना चाहूँगा.
मेरे ग्राम खंदोई के पूर्व प्रधान ने ग्राम की गलियों में प्रकाश हेतु 15 सौर-प्रकाश स्तम्भ लगवाये थे, जिनकी 5 वर्ष की गारन्टी थी. किन्तु प्रधान ने १ वर्ष के अन्दर ही स्वयं एवं उसके कुछ सहयोगियों ने उन स्तंभों में से अधिकांश की बैटरियां चुरा लीं. इसकी शिकायत मैंने जिलाधिकारी एवं तत्कालीन मुख्यमंत्री को भेजीं, जिन्होंने उन्हें खंड विकास अधिकारी को एवं उसने एक उप खंड विकास अधिकारी को जांच हेतु भेज दी. उप खंड विकास अधिकारी शिकायत पत्र के साथ दोषी ग्राम प्रधान के पास गया, और कुछ लेन-देन करके शिकायत को नकार दिया गया.
नोट-बंदी के समय मैंने पंजाब नेशनल बैंक के ऊंचागांव शाखा प्रबंधक एवं क्षेत्रीय प्रबंधक की सांठ-गाँठ से कालेधन के नोटों की की गयी अवैध बदली की शिकायत सेंट्रल पब्लिक ग्रिवांस एंड मोनिटरिंग सिस्टम पर की, जिसे उसी बैंक के बुलंदशहर सर्किल ऑफिसर को निस्तारण हेतु भेज दिया गया जब की सर्किल ऑफिसर क्षेत्रीय प्रबंधक के अधीन होता है जिससे क्षेत्रीय प्रबंधक के विरुद्ध कार्यवाही की अपेक्षा नहीं की जा सकती.  
मेरे ग्राम के एक व्यक्ति ने भाजपा के बुलंदशहर जिला पंचायत अध्यक्ष को दावत देकर एवं जातीय सम्बन्ध के कारण अपने घर के लिए कंक्रीट की सड़क बनवाने की स्वीकृति प्राप्त कर ली, जबकि ग्राम के दो अन्य सार्वजनिक रूप से बहूपयोगी मार्ग बहुत बुरी हालत में हैं. इसकी सूचना मिलने पर मैंने इसकी शिकायत २८ दिसम्बर २०१७ को जिलाधिकारी बुलंदशहर से की, जहाँ से इसे मुख्य विकास अधिकारी को एवं वहां से जिला पंचायत के जूनियर इंजिनियर को भेज दिया गया. इसमें कुछ विवेक की आवश्यकता थी कि जिला पंचायत का जे ई अपने अध्यक्ष की इच्छा के विरुद्ध कुछ कर सकता है अथवा नहीं.
मामले की गंभीरता के कारण इसी की दूसरी शिकायत 29/12/2017 को मैंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कार्यालय के जनसुनवाई पोर्टल पर की जहाँ से स्वचालित कंप्यूटर द्वारा इसे जिलाधिकारी को भेज दिया गया. जहाँ से शिकायत को खंड विकास अधिकारी को एवं वहां से एक जूनियर इंजिनियर को जांच हेतु भेज दिया गया जो अभी तक वहीँ लंबित है. इसके बाद जिलाधिकारी अथवा खंड विकास अधिकारी को इस से कोई सरोकार नहीं है कि जूनियर इंजिनियर इसपर कुछ करता है अथवा नहीं. खंड विकास कार्यालय में जूनियर इंजिनियर एक अस्थायी संविदाकर्मी है एवं जिला पंचायत अध्यक्ष की तुलना में बहुत छोटे स्तर पर है, इसलिए वह शिकायत के बारे में कुछ भी करने में सक्षम नहीं है. उत्तर प्रदेश की वर्तमान सरकार ने तो शासन-प्रशासन का पूरा कार्य जिलाधिकारियों के ऊपर छोड़ दिया है,  
जन-शिकायतों के सटीक निस्तारण हेतु यह आवश्यक है की उन्हें जनपद स्तर के अधिकारियों से नीचे कदापि न भेजा जाए, उनकी जांच, वांछित कार्यवाही एवं दोषियों को दंड जनपद स्तर पर ही निर्धारित हों. यदि कोई शिकायत जनपद स्तर के अधिकारी के विरुद्ध है तो उसका निस्तारण मंडल स्तर पर किया जाना चाहिए.
केंद्र सरकार जन-शिकायत निदेशालय (पब्लिक ग्रिएवांस डायरेक्टरेट) के माध्यम से अधिकांश शिकायतें प्राप्त करता है जो प्रशासनिक सुधार मंत्रालय के अधीन है. किन्तु मेरा अधोलिखित व्यक्तिगत अनुभव सिद्ध करता है कि इस निदेशालय में प्रशासनिक सुधारों की आवश्यकता है.
प्रधानमंत्री को भेजी गयी मेरी जन-शिकायत पंजीकरण संख्या PMOPG/E/2017/0653718 के बारे में मुझे 20/1/2018  को ईमेल पर सूचना दी गयी कि उसका निस्तारण कर दिया गया है जिसका विवरण जानने के लिए मुझे निदेशालय की वेबसाइट पर लॉग इन करने का परामर्श स्वचालित तंत्र द्वारा दिया गया. तदनुसार मेंने दिनांक 20/1/2018 को उक्त वेबसाइट पर पंजीकरण कर अपना मोबाइल एवं ईमेल वेरीफाई कराये. इसके बाद भी वेबसाइट पर मेरी उक्त जन-शिकायत की कोई सूचना उपलब्ध नहीं हुई. इसी वेबसाइट पर मैंने पुनः 23/1/2018 को लॉग इन किया किन्तु मुझे निराशा ही मिली. इसके बाद मैंने लगभग 11 बजे प्रातः निदेशालय से संपर्क हेतु वेबसाइट पर दिए गए निदेशक एवं संयुक्त सचिव के फ़ोन नंबरों क्रमशः 23742536 एवं 23741006 पर संपर्क के प्रयास किये किन्तु किसी ने फ़ोन नहीं उठाया. इससे सिद्ध होता है कि जन-शिकायतों के नाम पर देश के परिश्रमी वर्ग की कमाई को बड़े-बड़े ऐसे अधिकारीयों के वेतन-भत्तों एवं अकूत सुख-सुविधाओं आदि में बहाया जा रहा है, जो अपने कार्यालयों में आना भी उचित नहीं समझते. देश डूब रहा है, सरकार दिवास्वप्न में लीन है.
इस प्रकार मैं पाता हूँ कि जन-समस्याओं के निस्तारण में किसी अधिकारी की कोई रूचि नहीं है, बस शिकायत-पत्रों को अपनी-अपनी मेजों से दूर फेंकने को ही अपना कर्तव्यपालन समझे बैठे हैं. भृष्टाचार एवं अनियमितताओं के विरुद्ध जन-शिकायते लोगों के जागरूक होने की लक्षण हैं, साथ ही शासन-प्रशासन द्वारा इनकी अव्हेलना लोकतंत्र-विरोधी है, देश में स्वस्थ लोकतंत्र की स्थापना के लिए यह अत्यावश्यक है की जन-शिकायतों का शासन-प्रशासन द्वारा समयबद्ध एवं समुचित निस्तारण हो.
इंजिनियर राम बन्सल
सुपुत्र स्वतन्त्रता सेनानी स्व० श्री करन लाल 
ग्राम खंदोई, जनपद बुलंदशहर, उ० प्र० 

शुक्रवार, 12 जनवरी 2018

खुदरा व्यापार में विदेशी पूँजी निवेश - देश बेचने की तैयारी

कांग्रेस ने अपने शासनकाल में व्यापार में विदेशी पूँजी निवेश की अनुमति देनी चाही थी, तब विपक्षी भाजपा ने इसका विरोध किया था। तब संवेदनशील कांग्रेस ने खुदरा व्यापार में 49 प्रतिशत तक ही विदेशी पूँजी निवेश की अनुमति दी थी। अब भाजपा सत्ता में है, और भारतीयों के हित के प्रति एक अत्यधिक संवेदनाहीन व्यक्ति शीर्ष पर है जिसने १० जनवरी 2018 को खुदरा व्यापार में १०० प्रतिशत विदेशी पूँजी निवेश की अनुमति देने की घोषणा की है। यह निर्णय इस देश में सदैव कलुष कर्म के रूप में जाना जायेगा क्योंकि इससे देश का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जायेगा।
वर्तमान में भारतीय परिवारों की आजीविका के साधनों का अनुमान निम्नांकित है -
राजनैतिक एवं धार्मिक पराश्रयी 3 प्रतिशत
उद्योगपति एवं भवन निर्माण व्यवसायी   4  प्रतिशत
मार्गदर्शन सेवा प्रदाता - लेखक, वकील, आदि 5  प्रतिशत
तकनीकी सेवा प्रदाता - लुहार, बढ़ई, आदि 8  प्रतिशत
नौकरी, मज़दूरी, आदि पेशेवर 15 प्रतिशत
व्यापारी 25 प्रतिशत
कृषक 40 प्रतिशत  
इस प्रकार वस्तुओं का व्यापार देश की जनसँख्या की आजीविका का कृषि के बाद दूसरा सबसे बड़ा पेशा है, जिसमें सभी जातियों, धर्मों, सम्प्रदायों, आय-वर्गों एवं क्षेत्रों के लोग सम्मिलित हैं। खुदरा व्यापार में विदेशी पूँजी निवेश से इन सभी परिवारों की आजीविका विदेशियों द्वारा अपनी साधन सम्पन्नता के बल पर छीन ली जायेगी।
सरकार का अपने निर्णय के पक्ष में कहना है कि व्यापारी कंपनियों के केवल स्वामित्व ही विदेशियों के हाथ में रहेंगे, कर्मचारी तो भारत के ही होंगे, इसलिए इससे रोजगार के अवसरों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। सरकार में बैठे नेता सुप्रसिद्ध कवि घाघ की उस उक्ति को भूल रहे हैं जो भारत का बच्चा-बच्चा जानता है -
उत्तम खेती, माध्यम बान।  निषिध चाकरी भीख निदान।  
अर्थात - सम्पदा का कृषि द्वारा सृजन सर्वोत्तम कार्य है जिसके बाद वाणिज्य मध्यम वर्ग का है। नौकरी करना केवल विवशता में ही उचित है, जबकि भिक्षा को आजीविका बनाना पूर्णतः त्याज्य है।
व्यापार में विदेशी पूँजी निवेश से देश की २५ प्रतिशत जनसँख्या की अधिक सम्मानजनक, लाभकर, वृद्धिजनक एवं स्वतंत्रतापरक आजीविका खतरे में पड़ जाएगी जिससे उन्हें निषिद्ध चाकरी ही अपनानी पड़ेगी।
वस्तुओं का व्यापार विदेशियों के हाथ में जाने के बाद वे देश में उत्पादित वस्तुओं के स्थान पर विदेशी वस्तुओं को ही लोगों को प्रदान करेंगे जिससे देश की अर्थव्यवस्था पूर्णतः उन्ही के हाथ में चली जाएगी। इससे देश का अस्तित्व समाप्त तो होगा ही, लोगों की स्वतन्त्रता भी छीन ली जाएगी।
अठारहवीं शताब्दी में भारत में आयी ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपना शासन स्थापित कर दिया था। तथापि देश के बहुल भाग में ब्रिटिश शासन होने के कारण देश का विभाजन नहीं किया गया। अब तो केंद्र सरकार के आमंत्रण पर हज़ारों विदेशी व्यापारी भारत में आएंगे और देश को टुकड़ों में तोड़-तोड़ कर अपने-अपने शासन स्थापित करेंगे। ब्रिटिश शासन से मुक्त होने के लिए कितने ही देश भक्तों ने अपने प्राणों की आहुति दी, कितनों ने कारागारों में यातनाएं सहीं, कितने ही परिवार उजड़ गए, कितने ही बच्चे अनाथ हो गए।  इस सबके चलते हुए भी देशभक्त न झुके, न टूटे, 90 वर्ष चले संघर्ष के बाद 1947 में भारत स्वतंत्र हुआ। इस स्वतंत्रता का महत्व वही लोग समझ सकते हैं जिनके पूर्वजों ने कुर्बानियां दीं।  देशद्रोही उस समय भी सक्रिय थे और ब्रिटिश शासकों से क्षमा याचना कर रहे थे, एवं देशभक्तों के विरुद्ध दमनचक्र में उनका साथ दे रहे थे।  आज वही संगठित होकर सत्ताधारी बने बैठे हैं। इसीलिए देश बेचा जा रहा है।
अतः सभी नागरिकों विशेषकर व्यापारी वर्ग से निवेदन है कि केंद्र सरकार के उक्त निर्णय का संगठित होकर विरोध करें, ताकि लोगों का आत्मसम्मान एवं देश का स्वतंत्र अस्तित्व बना रहे।  
राम बंसल
खंदोई, बुलंदशहर 203398

rambansal5@gmail.com