बौद्धिक जनतंत्र की सुविचारित मान्यता है कि देश में घटिया वस्तुओं का उत्पादन संसाधनों की बर्बादी होता है और यह किसी भी वर्ग के हित में नहीं होता. इससे उत्पादक को को अपयश प्राप्त होता है तथा उपभोक्ता द्वारा खरीदारी में लगाया गया धन व्यर्थ जाता है. देश की अर्थव्यवस्था खराब होती है तथा समाज में अराजकता फैलती है. इसलिए बौद्धिक जनतंत्र में केवल उच्च कोटि के सामान का उत्पादन अनुमत होगा जिससे कि लोगों की जीवन-शैली उच्च कोटि की हो. बौद्धिक जनतंत्र में इसका दायित्व एक संवैधानिक आयोग 'उत्पाद गुणवत्ता एवं मूल्य नियंत्रण आयोग' को सौंपा जाएगा.
देश में प्रत्येक उत्पाद की केवल तीन निर्धारित कोटियाँ होंगी - उत्तम, मध्यम तथा साधारण, जिनके उपभोक्ता मूल्यों का अनुपात 6 : 5 : 4 होगा और तदनुसार ही कोटियाँ होंगी. इनके अतिरिक्त कोटियों का उत्पादन एवं वितरण अवैध माना जायेगा जिसके उत्पादक तथा वितरक को दंड दिया जाएगा.
किसी वस्तु के उपभोक्ता मूल्य का निर्धारण उसकी उत्पादन लागत के अनुसार निर्धारित होगा तथा मध्यम्कोती के उत्पाद के लिए लागत मूल्य और उपभोलता मूल्य में केवल १५ प्रतिशत का अंतर रखा जायेगा ताकि उपभोक्ताओं को समुचित मूल्यों पर सामग्रियाँ प्राप्त हों. उत्पादक से उपभोलता के मध्य अधिकतम तीन स्तर के व्यापारी अनुमत होंगे,जिनमें से प्रत्येक का लाभ क्रमशः ३, ५ तथा ७ प्रतिशत होगा. इस प्रावधान से देश में मध्यस्थ व्यापारियों की संख्या सीमित रहेगी और अधिकाँश जनसँख्या उत्पादन कार्यों के लिए उपलब्ध होगी.
सामान्यतः किसी उपभोक्ता वस्तु का आयत नहीं किया जाएगा जिसके लिए दोहरी नीति अपनाई जायेगी - प्रत्येक उपभोक्ता वस्तु का उत्पादन देश में ही हो, तथा उपभोक्ता केवल देश में उत्पादित वस्तुओं को ही पर्याप्त स्वीकारे और उन्हीं पर निर्भर करे.
उपभोक्ता वस्तुएं केवल दो वर्गों की होंगी - उपभोग्य और उपयोक्त. उपभोग्य वस्तुएं अपने मूल रूप में केवल एक बार उपयोग जाती हैं, किन्तु उपयोक्त वस्तुएं बार बार उपयोग में ली जा सकती हैं तथापि उनके उपयोग-काल होते हैं जिनके बाद वे असक्षम हो जाती हैं. प्रथम वर्ग की वस्तुएं प्रायः रूप परिवर्तन के बाद अन्य उपयोगों, जैसे उर्वरक के रूप में, में ली जा सकती हैं. दूसरे वर्ग की वस्तुएं अनुपयोगी कचरे में परिवर्तित हो जाती हैं जिनका निस्तारण कठिन होता है. अतः उत्पादन में केवल उन सामग्रियों के उपयोग पर बल दिया जाएगा जो उपयोग के बाद किसी अन्य उपयोगी वस्तु में परिवर्तित हो जाती हों, जिससे कि देश में अनुपयोगी कचरे का उत्पादन न्यूनतम रहे.
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