सोमवार, 17 मई 2010

जनसामान्य की मानसिकता

अभी विगत कुछ दिनों में मुझे अपने गाँव के जनसामान्य की मानसिकता का प्रत्यक्ष बोध हुआ जिसे में लघु स्तर पर पूरे भारत के जनसामान्य की मानसिकता का प्रतिबिम्ब मानता हूँ. जैसा कि मैं इसी संलेख पर पहले घोषित कर चुका हूँ कि मैंने अनेक लोगों के बार-बार आग्रह पर गाँव के प्रधान पद हेतु चुनाव लड़ने के लिए अपनी स्वीकृति दे दी थी, जो मेरी इच्छा के विरुद्ध है तथापि गाँव के हित में मैंने इसे स्वीकार कर लिया था -
"मैं बसाना चाहता हूँ स्वर्ग धरती पर, आदमी जिसमें रहे बस आदमी बनकर."

१९९५ में ५ वर्ष के लिए जो व्यक्ति गाँव प्रधान चुना गया था उसे भृष्ट आचरण के कारण तीसरे वर्ष में ही प्रशासन ने प्रधान पद से मुक्त कर दिया था. २००० में जो व्यक्ति प्रधान बना वह बेहद शराबी है और भृष्ट आचरण में लिप्त रहा था, उसे भी मध्यावधि में कुछ समय के लिए पदमुक्त किया गया था. सन २००५ में जो व्यक्ति प्रधान बना वह शराबी होने के साथ-साथ निरक्षर भी है. उसने लोगों की चापलूसी करते हुए ही बिना कोई विशेष विकास कार्य किये अपना कार्यकाल लगभग पूरा कर लिया है. इन सभी ने क्रमशः अधिकाधिक दान व्यय करके प्रधान पद पाया था. इस १५ वर्ष की अवधि में गाँव में हत्याएं, लूट-पाट, चोरी आदि की घटनाएं होती रहीं हें जिनके कारण स्थानीय पुलिस द्वारा अनेक निर्दोष लोगो को अनावश्यक  रूप से सताया गया है. गाँव की कोई भी समस्या बिना दलाली और रिश्वतखोरी के बिना सुलझ नहीं पाई है. इन सब कारणों से ही गाँव के कुछ लोगों ने मुझसे प्रधान बनकर गाँव का विकास करने और गाँव की स्थिति में सुधार करने का आग्रह किया जिसे मैंने अंतरिम रूप में स्वीकार कर लिया था किन्तु यह स्पष्ट कर दिया था कि मैं इस पद को पाने के लिए कोई धन व्यय नहीं करूंगा. इसके विपरीत मेरे तीन प्रमुख प्रतिद्वंदी इस पद के लिए २ से ४ लाख रुपये व्यय करने की घोषणाएँ कर चुके हैं.

चुनाव होने में अभी चार माह का समय लगेगा जिसके लिए मैंने अपनी मानसिक तैयारी के अतिरिक्त गाँव के लोगों की मानसिकता का आकलन किया. स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों की मानसिकता का भी अध्ययन किया क्योंकि मेरे लिए यह जानना आवश्यक है कि वे बिना किसी भृष्ट आचरण के मुझे अपना कार्य करने देंगे अथवा नहीं. मैंने पाया कि अधिकारी वर्ग अपनी आजीविका के बारे में चिंतित रहता है इसलिए उसे पूरी ईमानदारी और कठोरता दर्शाने पर उसके आचरण में सुधार किया जा सकता है. किन्तु गाँव के लोगों के, जिन्हें गरीब और निस्सहाय समझा जाता है, भृष्ट आचरण में सुधार करना मेरे लिए दुष्कर है.

लगभग ५ वर्षों से मैं गाँव में विद्युत् उपकरणों की देखरेख और विद्युत् उपलब्धि के बारे में संघर्ष करता रहा हूँ, जिसके परिनान्स्वरूप पर्याप्त सुधार हुए हैं. साथ ही इसके कारण विद्युत् अधिकारियों ने विद्युत् चोरी पर भी रोल लगाई है जिसका आरोप भी लोग मुझी पर लगाते हैं और मेरे विरुद्ध ४० वर्षों से चली आ रही विद्युत् चोरी की परम्परा को तोड़ने के लिए दुष्प्रचार किया जा रहा है.

मेरे चीफ इंजीनियर पद पर रहने के कारण गाँव के बहुत से लोग समझते हैं कि मैं बहुत धनवान हूँ और मेरे बच्चों के प्रतिष्ठित होने के कारण भी लोग समझते हैं कि मेरे पास धनाभाव नहीं है. जबकि मैं गाँव के एक साधारण व्यक्ति की भांति ही रहता हूँ और कदापि धनवान नहीं हूँ. प्रधान पद पाने की मेरी स्वीकृति के बाद अनेक लोगों ने मुझपर शराब और अन्य प्रकार की दावतें देने के लिए दवाब देना आरम्भ किया जो मैं कठोरता से निरस्त करता रहा. मेरे इस रुख से अनेक लोग मुझसे रुष्ट हो गए.
Syndromes of Corruption: Wealth, Power, and Democracy

गाँव की लगभग ५० बीघा भूमि ग्रामसभा के स्वामित्व में है जो सभी अनधिकृत रूप से निजी अधिकारों में ले ली गयी है. ऐसा विगत २० वर्षों से हो रहा है, किन्तु किसी प्रधान ने इसे वापिस प्राप्त कर इसके सदुपयोग करने के प्रयास नहीं किये. यहाँ तक कि भूमि उपलब्ध न होने के कारण गाँव में राजकीय सहायता से उच्च प्राथमिक विद्यालय का निर्माण नहीं हो सका है, और गाँव में बच्चों के खेलने के लिए कोई स्थान उपलब्ध नहीं है. गाँव के निर्धन वर्ग को आशा है कि मैं इस भूमि को निजी अधिकारों से मुक्त करा उन्हें अधिकृत उपयोग के लिए आबंटित कर सकूंगा, तथा स्कूल आदि का निर्माण करा सकूंगा. मैंने इसकी अनौपचारिक घोषणा भी कर दी. इससे वे लोग मुझसे रुष्ट हो गए जो इस भूमि पर अधिकार किये हुए हैं तथापि निर्धन वर्ग प्रसन्न हुआ. 

मुझे गाँव का भावी प्रधान समझते हुए प्रशासनिक अधिकारियों ने अनधिकृत रूप में मुझसे गाँव के २० ऐसे लोगों की सूची माँगी जिन्हें आवासीय भवन की समस्या है ताकि उन्हें राज्य की ओर से आर्थिक सहायता प्रदान की जा सके. सबसे पहले तो मेरे एक निकट सहयोगी और आर्थिक रूप से संपन्न व्यक्ति ने अपने उस भाई के लिए आर्थिक सहायता की मांग की जो विगत ६ वर्षों से न तो गाँव में रहता है और न ही कभी यहाँ आता है. इस सुझाव के मेरे द्वारा निरस्त किये जाने पर वह मुझसे रुष्ट हो गया. इससे मुझे ज्ञात हुआ कि मेरे कुछ सहयोगी मुझे क्यों इस पद पर बैठाना चाहते हैं.
Corruption and Government: Causes, Consequences, and Reform

मैंने गाँव के निर्धन वर्ग को आवासीय सहायता की सूचना दी तथा जिस किसी से भी इसके बारे में आवासविहीन व्यक्ति का नाम पूछा उसने स्वयं का नाम ही प्रस्तावित किया. उसके आवास को देखने पर मुझे वह संतोषजनक लगा तथा जो कुछ वर्ष पहले ही राजकीय सहायता से बनवाया गया था. ऐसे प्रस्तावों को निरस्त किये जाने पर वे सभी मुझसे रुष्ट हो गए, क्योंकि वे इसके आदि हैं और उन्हें बार-बार ऐसी सहायता दी जाती रही हैं तथा उनसे रिश्वत ली जाती रही है. कई दिन तक प्रयास करने पर मैं पूरे गाँव में केवल १२ ऐसे व्यक्ति खोज पाया जिन्हें आवासीय समस्या है. मैंने उनके नाम अधिकारियों को सौंप दिए किन्तु इस प्रक्रिया में गाँव के बहुत से लोगों को रुष्ट कर दिया.
A Framework for Understanding Poverty 
अपने बारे में आकलन के लिए कल मैंने गाँव के ५० प्रमुख व्यक्तियों की एक मीटिंग बुलाई थी जिन में अधिकाँश वे व्यक्ति सम्मिलित थे जो मुझसे यह पद स्वीकार करने का आग्रह करते रहे थे. इनमें से केवल २० व्यक्ति ही मीटिंग में उपस्थित हुए. इनमें कुछ अपने स्वार्थों की आपूर्ति के लिए उपस्थित ते तो कुछ अन्य इस आशा में थे कि मेरे यहाँ भव्य दावत होगी. मैंने केवल संतरे के पेय से उनका स्वागत किया, इससे कुछ असंतुष्ट हो गए.

आज प्रातः मैं उन लोगों से मिला जो मीटिंग में उपस्थित नहीं हे थे और उनसे अनुपस्थिति का कारण पूछा. मुझे ज्ञात हुआ कि उनमें से अधिकाँश मुझसे उपरोक्त किसी न किसी कारण से रुष्ट हैं. इस पर मैंने प्रधान पद हेतु चुनाव लड़ने का निर्णय रद्द कर दिया.    

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत-बहुत उम्दा विचार / मेरी सलाह है आप प्रधान के लिए नामांकन जरूर करें / आपके जैसे न्यायप्रिय और इमानदार लोगों की इस देश को जरूरत है / मैं दिल्ली से आपके चुनाव प्रचार के लिए जरूर आऊंगा ,अगर आपको मेरी जरूरत अभी हो तो, मुझे अभी फोन करें / आपके जैसे लोगों का सहयोग करने से ही देश को सही राह पे लाया जा सकता है /

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  2. @honesty project democracy
    आपके प्रोत्साहन और सहयोग के लिए धन्यवाद. बहुत से गाँव के लोगों का भी मुझ पर दवाब है. यदि मैने चुनाव लड़ा तो आपको एक गणमान्य अतिथि के रूप में अवश्य आमंत्रित करूँगा.

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  3. अरे नहीं बंसल साहब मैं तो सिर्फ एक सच्चे इन्सान की मदद करने आऊंगा ,जिसकी आज बहुत जरूरत है ,हैवानियत बढती जा रही है और इंसानियत कराह रही है /

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