अभी उत्तर प्रदेश के पंचायती चुनाव होने हैं जिसके लिए राज्य चुनाव आयोग ने मतदाता सूची पुनार्वीक्सन के आदेश दिए हैं. मैंने राज्य चुनाव आयुक्त को गाँव की सूची से ऐसे मतदाताओं के नाम कटे जाने का आग्रह किया है जिनके माम अन्यत्र की मतदाता सूचियों में भी सम्मिलित हैं. किन्तु इस बारे में न तो मुझे कोई उत्तर दिया गया है और न ही मतदाता सूची संशोधकों को समुचित आदेश दिए गए हैं.
यहाँ यह भी ध्यान देने योग्य तथ्य है कि राज्य चुनाव आयोग तथा भारत के मुख्य चुनाव आयोग अपनी-अपनी प्रथक मतदाता सूचियों का निर्माण एवं उनका संशोधन करते हैं जब कि दोनों के मानदंड एक समान हैं और प्रथक मतदाता सूचियों का कोई औचित्य नहीं है. तथापि इस कार्य में बार-बार सार्वजनिक धान का दुरूपयोग किया जा रहा है.
जो स्थिति मतदाता सूची की है वही स्थिति जनगणना की भी है. गाँव की जनसँख्या ३५०० के लगबग कही जाती है किन्तु इनमें से लगभग ६०० व्यक्ति बाहर रहते हैं और उनके नाम उनके वर्तमान निवास स्थानों की जनगणना में भी निश्चित रूप से सम्मिलित होंगे.
यह सब दर्शाता है कि हमारी कार्य प्रणाली और संस्कृति कैसी है और हम व्यक्तिगत, सम्माजिक और मानसिक रूप में कितने स्वस्थ हैं. अधिकतम लाभ पाने की लालसा हमारी संस्कृति बन गयी है इसका परिणाम चाहे कुछ भी हो.