महिलाओं के लिए विधायिकाओं में एक तिहाई स्थान प्रदान करने वाला आरक्षण बिल राज्यसभा में पारित हो गया, जो प्रत्यक्ष अनुभवों से कुछ भी न सीखने का सटीक उदाहरण है. पंचायतों में महिलाओं के लिए आरक्षण पहले से ही लागू है और इसके परिणाम घोर निराशाजनक सिद्ध हुए हैं.
मेरे गाँव के प्रधान एक निरक्षर महिला है और ऐसी ही एक महिला विकास खंड की प्रमुख है. मैं गाँव में ही रहता हूँ किन्तु मैंने कभी ग्राम प्रधान को कभी नहीं देखा क्योंकि वह घूँघट में रहती है. उसका निरक्षर एवं शराबी पति ही प्रधान की भूमिका का निर्वाह करता है. ग्रामवासियों को शराब पिलाकर ही उसने यह पड प्राप्त किया था जो भारत में जनतंत्र की वास्तविक स्थिति है. अन्य प्रत्याशी कुछ साक्षर थे और सौम्य भी, वे इस सीमा तक नहीं गिर सके और चुनाव में पराजित हो गए.
विकास खंड कार्यालय में भी मुझे यदा-कदा जाना होता है, किन्तु मैंने कभी भी वहां प्रमुख महोदया को नहीं पाया, उसके लिए निर्धारित कुर्सी पर उसके पति ही विराजमान पाए जाते हैं. उन्होंने चुनाव में विजय के लिए प्रत्येक सदस्य को एक-एक लाख रुपये दिए थे और उन्हें लगभग १५ दिन ऋषिकेश के एक आश्रम में कैद करके रखा था.
ये महिला आरक्षण के व्यवहारिक पक्ष हैं और ऐसा ही कुछ विधायिकाओं में होगा. वहाँ सदस्य महिलाओं के पति उपस्थित तो संभवतः न हों किन्तु सडन के बाहर के सभी कार्य उनके पति ही करेंगे. ऐसे अनुभवों और संभावनाओं पर भी महिला आरक्षण पर बल दिया जा रहा है, इसका कुछ विशेष कारण तो होगा ही. आइये झांकें इसके यथार्थ में.
यह सर्वविदित है कि भारत के राजनेताओं की सपरिवार सत्ता में बने रहने की भूख अमिट और असीमित है अनेक परिवारों के कई-कई सदस्य विधायिकाओं में विराजमान देखे जा सकते हैं. इस पर भी ये सुनिश्चित करना चाहते हैं कि विधायिकाओं में उनके परिवारों के अतिरिक्त कोई अन्य व्यक्ति प्रवेश न कर पाए, क्योंकि जितने अधिक परिवार वहाँ होंगे, राजनेताओं के कुत्सित व्यवसायों की सफलताओं में उतनी ही अधिक अनिश्चितता आयेगी. इनमें वे और केवल उनके परिवार ही उपस्थित रहें, महिला आरक्षण इसमें उनकी सहायता करेगा.
भारत के लगभग सभी राजनैतिक दल राजनेताओं की जागीरें हैं जहाँ उनके एक छात्र शासन चलते हैं. विधायिकाओं में प्रवेश के टिकेट इन्हीं जागीरों से निर्धारित किये जाते हैं. महिलाओं के लिए आरक्षण न होने से अनेक बाहरी व्यक्ति भी इन जागीरदारों से अनुनय-विनय करके विदयिकाओं में प्रवेश पाने के प्रयास करते हैं. विधायिकाओं में महिला आरक्षण से पति-पत्नी दोनों ही चुने जाने के प्राकृत रूप से अधिकारी हो जायेंगे, अथवा प्रवेश टिकेट ऐसी अन्य मेलों को दिए जायेंगे जो पत्नी न होकर परनी-समतुल्य भूमिका का निर्वाह करने को तत्पर हों. इससे राज्नाताओं के सुविधा-संपन्न जीवन और अधिक सुविधा-संपन्न बन सकेंगे.
लोकतंत्र के इस मॉडल में बहुत खामियाँ हैं। अच्छी पहल दिखती भ है - मंतव्य कुछ और ही होते हैं। समय मिले तो मेरे ये लेख पढ़ें :
जवाब देंहटाएंhttp://girijeshrao.blogspot.com/2009/04/blog-post.html
http://girijeshrao.blogspot.com/2009/04/2.html
http://girijeshrao.blogspot.com/2009/05/blog-post.html
http://girijeshrao.blogspot.com/2009/05/1.html
http://girijeshrao.blogspot.com/2009/05/2.html
http://girijeshrao.blogspot.com/2009/05/3_24.html
दिक्कतें तो काफी हैं. कोई भी नहीं चाहता कि उसके हाथ से सत्ता फिसले.
जवाब देंहटाएं