विगत २ वर्षों में केंद्र सरकार में पदासीन राजनेताओं के निहित स्वार्थों और कुप्रबंधन के कारण शक्कर के उपभोक्ता मूल्य में सतत वृद्धि होती रही है और लगभग २० रुपये से ४० रुपये प्रति किलोग्राम हो गयी है. यह शक्कर उस गन्ने से बनी थी जिसका किसानों को दिया गया मूल्य लगभग १०० रुपये प्रति कुंतल था. शक्कर की अप्रत्याशित मूल्य वृद्धि से पीड़ित किसानों ने भी इस वर्ष अपने गन्ने के मूल्य बढ़ने की मांग की. सरकार ने इसके मूल्य भी २५० रुपये प्रति कुंतल कर दिए टाटा निजी शक्कर मिल किसानों को गन्ने का मूल्य लगभग ३०० रुपये दे रहे अं. जब इस गन्ने से बनी शक्कर बाज़ार में आयेगी तो उसका मूल्य तार्किक दृष्टि से १०० रुपये प्रति किलोग्राम होना चाहिए.
वर्तमान का शक्कर मूल्य लगभग ४० रुपये प्रति किलोग्राम जनसाधारण की जेबों को भारी लग रहा है, इसमें और अधिक वृद्धि होने से देश में शक्कर की खपत में भारी गिरावट हो जायेगी जिससे शक्कर कारखानों को अपना उत्पाद विक्त्रय करने में कठिनाई होगी, हो सकता है कि उन्हें शक्कर का खुदरा मूल्य गिरना पड़े जिससे उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं राह पायेगी..
दूसरी ओर गन्ने के मूल्य लगभग ३ गुना वृद्धित होने से इस वर्ष किसानों ने बहुत अधिक गन्ना बोया है. जिससे अगले शक्कर चक्र में गन्ने का उत्पादन बहुत अधिक होगा. कारखानों की आर्थिक स्थिति बिगड़ने से वे किसानों का गन्ना अब निर्धारित मूल्य पर नहीं खरीद पाएंगे. हो सकता है कि किसानों का सकल उत्पाद विक्रय ही न हो पाए. जिस समय चौधरी चरण सिंह देश के प्रधान मंत्री थे उस समय ऐसी हे स्थिति उत्पन्न हो गयी थी और किसानों को अपनी गन्ने की फसल खेतों में ही जलानी पडी थी. अगले शक्कर चक्र में इसकी पुनरावृत्ति होने की बहुत अधिक संभावना है.
ऐसी स्थिति में सरकार को गन्ने के मूल्य को नियंत्रण मुक्त करना होगा ताकि कारखाने अपनी इच्छानुसार मूकी पर गन्ना खरीदें. इससे किसानों की आशाओं पर पानी फिर जायेगा. कारखानों के सामने एक विकल्प शक्कर का निर्यात है किन्तु इससे उन्हें शक्कर की वह कीमत नहीं मिल पायेगी जिसकी वे आशा किये बैठे हैं.
इस प्रकार अगला शक्कर चक्र गन्ना उत्पादकों और शक्कर कारखानों के लिए निराशाजनक होगा, जिसका पूरा पूरा दायित्व वर्तमान कृषि मंत्री और प्रधान मंत्री का होगा. ऐसी स्थिति उत्पन्न होने का मुख्य कारण यह है कि देश में उत्पादन का कोई नियोजन नहीं है. विभिन्न क्षेत्रों में ऐसी स्थिति आती रही हैं किन्तु शासक-प्रशासक इनसे कोई सबक नहीं सीखते.
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