शुक्रवार, 12 मार्च 2010

मानव संसाधन विकास एवं उपयोग

बौद्दिक जनतंत्र मानव संसाधन विकास को ही अपना उत्तरदायित्व  नहीं मानता अपितु इसके सम्यक उपयोग के लिए भी तत्पर है. जबकि वर्त्तमान भारतीय जनतंत्र जनसँख्या वृद्धि कहकर उपयोग से आँखें मूंदे हुए है. प्रत्येक स्वस्थ व्यक्ति अपने उप्ब्जोग से अधिक सम्पदा का उत्पादन कर सकता है इसलिए राष्ट्रीय अर्थ व्यवस्था जनसँख्या के उपयोग पर निर्भर होती है.

स्वास्थ एवं शिक्षा 
राज्य का प्रथम कर्तव्य सभी नागरिकों को शारीरिक और मानसिकरूप रूप से स्वस्थ बनाये रखना है. इसके लिए निम्नांकित बिंदु विशेष महत्वपूर्ण माने गए हैं -
  1. प्रत्येक युगल स्वस्थ एवं सुशिक्षित होगा तथा वे दोनों सुदूर परिवारों में जन्मे होंगे. प्रत्येक परिवार के पास सम्मानपूर्वक जीवनयापन हेतु आय के साधन होंगे.परिवार का कोई भी सदस्य किसी प्रकार के नशीले द्रव्य का सेवन नहीं करेगा. 
  2. प्रत्येक गर्भवती के स्वास्थ की रक्षा संतुलित पोषण एवं चिकित्सीय सुविधाओं द्वारा सुनिश्चित होगी तथा किसी भी स्त्री को तीन से अधिक बच्चों को जन्म देने की अनुमति नहीं होगी जिनमें से दो जन्मों का अंतराल न्यूनतन तीन वर्ष होगा, 
  3. प्रत्येक युगल द्वारा अपने बच्चे के स्वास्थ एवं सम्पूर्ण विकास हेतु २५ वर्ष की आयु तक पोषण, शिक्षा एवं संस्कारण की व्यवस्था सुनिश्चित की जायेगी और उनमें किसी भी प्रकार से हीनता की भावना विकसित नहीं होने दी जायेगी. 
  4. युवाओं को अध्यात्म, भाग्य, ज्योतिष, जन्म-जन्मान्तर, निष्काम कर्म, ईश्वरीय कृपा, अपमान और स्वाभिमान के हनन पर भी  सहिष्णु बने रहने जैसे विनाशकारी सन्दर्भों से बचाकर रखा जाएगा ताकि वह एक आत्मविश्वास से भरा सक्र्तीय बुद्धिवादी नागरिक बन सके.    
इन सब के लिए बौद्धिक जनतंत्र व्यक्तिगत स्तर पर पूर्ण स्वतंत्रता के साथ-साथ सामाजिक स्तर पर पूर्ण अनुशासन लागू करते हुए समुचित एवं सभी के लिए एक समान शिक्षा पाने के अवसर, सभी को एक समान स्वस्थ सेवाएँ, तथा सभी के लिए त्वरित न्याय प्रद्दन करने के लिए कटिबद्ध है.

आय के साधन
प्रत्येक युवा को उसकी शिक्षा, रूचि और सक्षमता के आधार पर उसके सामान्य निवास के निकट ही समुचित आय के अवसर व्यवस्थित किये जायेंगे जिसके लिए केवल शहरीकरण पर जोर न दिया जाकर देश के प्रत्येक क्षेत्र का संतुलित आर्थिक विकास किया जाएगा. इसके लिए केवल चाकरी प्रदान करने की व्यवस्था न की जाकर उसे व्यवसाय, कला एवं दस्तकारी, कृषि, कुत्टर उद्योग खाद्य संस्कारण उद्योग, वैज्ञानिक एवं प्रोद्योगिकी संबंधी व्यवसाय, साहित्यिक एवं वैज्ञानिक लेखन आदि के अवसर उसी के निवास के समीप विकसित किये जायेंगे.

इसके लिए राष्ट्र में अब भी पर्याप्त संसाधन एवं संपदाएं हैं जो समाज को श्रेष्ठ और क्षुद्र भागों में विभाजित कर केवल अल्पसंख्यक श्रेष्ठ लोगों के हाथों में दे दिए गए हैं.यह अंध शहरीकरण किया जाकर सभी अवसर एवं सुविधाएँ केवल शहरों में प्रदान की जा रही हैं. बहुल जनसँख्या जो गांवों में निवास करती है सुख-सुविधाओं एवं आय के साधनों के लिए तरती छोड़ दी गयी है.  .    

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