भारत में प्रमुखतः हिन्दू और मुस्लिम दो ऐसे समुदाय निवास करते हैं जिनकी मानसिकताओं में भारी अंतराल हैं जिसके कारण इनके परस्पर सामंजस्य में बहुधा समस्याएँ उत्पन्न होती रहती हैं. इनके अतिरिक्त ईसाई धर्मावलम्बी भी भारत में बसते हैं किन्तु ये मूलतः हिन्दुओं में से परिवर्तित होने के कारण हिन्दू मानसिकता ही रखते हैं और किसी दूसरे समुदाय से टकराव की स्थिति उत्पन्न नहीं करते. अतः इनकी उपस्थिति सामाजिक सौहार्द में बाधक नहीं है.
भारत राष्ट्र की संकल्पना मूलतः देवों की थी जिसमें धर्म के आधुनिक भाव के लिए कोई स्थान नहीं था. बाद में यहाँ यहूदी आये और उन्होंने यहाँ धर्म की स्थापना की जिसे अनेक कारणों से हिन्दू धर्म कहा गया जिसमें देव जाति भी सम्मिलित हो गयी या कर ली गयी. इसी अवधि में यहाँ यवन आये जो इस्लामिक परम्पराओं के स्रोत बने जिसे बाद में एक धर्म का रूप दे दिया गया.
देव मूलतः वैज्ञानिक विचारधारा के पोषक थे और मानव सभ्यता का विकास ही उनका उद्येश्य था. यहूदी मूलतः जनसामान्य को ईश्वर के नाम से आतंकित कर उन पर मनोवैज्ञानिक शासन के मार्ग से राजनैतिक शासन कराने हेतु नियोजित थे. इसी उद्येश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने धर्म की स्थापना की और समाज को अल्पसंख्यक शासक और बहुसंख्यक शासित वर्गों में विभाजित कर दिया. शासक शासितों के शोषण से उन पर अपनी राज्य सत्ता बनाये रखते हैं. शासकों का शोषण के अतिरिक्त कोई धर्म नहीं होता. इस प्रकार जो बहुसंख्यक शोषित समाज बना उसे हिन्दू नाम दे दिया गया. देव भी हिन्दुओं में सम्मिलित हो गए अथवा कर लिए गए.
यवनों और देवों में कई मौलिक अंतर थे. जब देव बस्तियां बसाकर सुनिश्चित स्थानों पर रहने लगे थे तब भी यवन जंगली घुमक्कड़ जीवन के अभ्यस्त थे जिसमें उनके निहित स्वार्थ थे. वे देव बस्तियों में घुसकर लूट-पाट करते और देवों की अर्जित संपदा ले जंगलों में अदृश्य हो जाया करते थे. बाद में उन्होंने कुछ देव बस्तियों को अपने अधिकार में ले लिया और उन्हें अपनी बस्तियां घोषित कर दिया. देव बस्तियों में जब जनसँख्या बढ़ती तो कुछ देव निर्जन स्थलों पर नयी बस्तियां बसाते और वहीं रहने लगते. दूसरी ओर यवन बस्तियों में जनसँख्या बढ़ने से वे देव बस्तियों को बलात अपने अधिकार में ले लेते थे जिससे उन्हें देवों की संपदाओं के साथ-साथ बस्तियां भी बिना श्रम किये मिल जाती थीं. इसी क्रम में इस्लाम धर्म का उदय हुआ और इस्लाम लूट-पाट का पर्याय बना जिसे धार्मिक जेहाद का नाम दे दिया गया. भारत में मुस्लिमों का आगमन भी इसी प्रकार हुआ.
हिन्दू और मुस्लिम मानसिकताओं में ध्रुवीय अंतराल है इसलिए भारत में उनके सहजीवन परस्पर संघर्ष के रहे हैं. मुस्लिमों का मांसाहार और हिन्दुओं का शाकाहार भी उनके इस अंतराल को गहन करता रहा है. मांसाहार सामान्यतः शरीर को पुष्ट करता है, जिससे व्यक्ति में कामुकता और आक्रामकता विकसित होती हैं. शाकाहार शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार से विकास करता है जिसके कारण मांसाहार की तुलना में शरीर को उतनी पौष्टिकता प्राप्त नहीं होती. साथ ही बौद्धिक विकास से चिन्तनशीलता, और चिंतन से आपराधिक आक्रामकता का हनन होता है.
शाब्दिक दृष्टि से देखा जाये तो भी मुसलमान का अर्थ अंग्रेज़ी का muscleman है जिसका अर्थ शारीरिक रूप से बलशाली है जबकि हिन्दू शब्द hind अर्थात पिछलग्गू का द्योतक है. तदनुसार प्रत्येक हिन्दू धर्म-सम्प्रदायों, गुरुओं, साधू-संतों, जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों, ईंट-पत्थरों आदि अनेक वस्तुओं का पिछलग्गू होता है और जब तक उसे कोई आश्रय नहीं मिल जाता वह स्वयं को असहाय अनुभव करता रहता है. वर्तमान काल में जो हिन्दू आक्रामकता दिखाई देती है वह केवल मुस्लिम आक्रामकता की प्रतिक्रिया है, मौलिक रूप से आक्रामकता नहीं है.
अब चूंकि दोनों समुदायों को एक साथ ही रहना है इसलिए सामाजिक सौहार्द के लिए शासन स्तर पर ही कुछ कारगर उपाय किये जाने चाहिए अन्यथा यह अंतराल सदैव गहराता ही रहेगा और वर्ग संघर्ष होते ही रहेंगे.
समान नागरिक संहिता
नागरिक संहिता राष्ट्रीय स्तर पर सभी वर्गों के लिए एक समान निर्धारित की जानी चाहिए जिससे सामाजिक स्तर पर प्रत्येक नागरिक केवल भारतीय बने, वह हिन्दू, मुस्लिम अथवा ईसाई न रहे. इस संहिता में विवाह, पालन-पोषण, आजीविका, संपत्ति-अधिकार, आदि के विधि-विधान निर्धारित हों.
धर्मों का सार्वजनिक प्रदर्शन निषिद्ध
धर्म-सम्प्रदाय ही समाज का वर्गीकरण करते हैं जबकि ये विशुद्ध रूप में व्यक्तिगत आस्था के विषय होते हैं. इसलिए प्रत्येक नागरिक को जहां व्यक्तिगत आस्था की पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त हो वहीं इस आस्था के सार्वजनिक प्रदर्शन पर पूरी तरह प्रतिबन्ध लगा दिए जाने चाहिए. इस दृष्टि से देश में किसी मंदिर, मस्जिद अथवा गिरजाघर की कोई आवश्यकता नहीं होगी. वर्तमान के इस प्रकार के सभी स्थलों को कला और राष्ट्रीय संस्कृति के विकास केन्द्रों में परिवर्तित कर दिया जाना चाहिए.
अन्तर्जातीय विवाह
कुछ लोग हिन्दू तथा मुस्लिम सम्प्रदायों के मध्य वैवाहिक संबंधों को भी सामाजिक सौहार्द का एक माध्यम मान सकते हैं, किन्तु यह एक भ्रांत धारणा है. हिन्दू और मुस्लिम दो समान्तर किन्तु विरोधाभासी जीवन-शैलियाँ एवं विचारधाराएं हैं जिनमें वर्तमान परिस्थितियों में वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करना आने वाली पीढ़ियों के व्यक्तित्वों में विरोधाभास उत्पन्न होने की संभावना है. उपरोक्त दो माध्यमों से दोनों के मध्य कुछ सामंजस्य स्थापना के बाद ही इस प्रकार के वैवाहिक सम्बन्ध निरापद हो सकते हैं.
यह एक आदर्श समाज की कल्पना है मगर वास्तविक जीवन की अपनी बाध्यताएं और जटिलताएँ होती हैं। क्या ही अच्छा हो कि हिंदू और मुसलमान शब्दों का इस्तेमाल ही न किया जाए। मीडिया भी,अगर"एक सम्प्रदाय विशेष के लोगों" जैसी शैली का प्रयोग बंद कर सके,तो वह इस दिशा में क्रांतिकारी भूमिका निभा सकती है।
जवाब देंहटाएंकितनी जबरदस्त बात इतनी सरलता से कह दी आपने!बहुत बढ़िया लगा जी आपका ये अंदाज़!
जवाब देंहटाएंकुंवर जी,