जब में २००३ में गाँव में स्थायी रूप से रहने के उद्देश्य से आया, तब मैंने अपने बड़े भाई के साथ रहने आया था..तब मेरा कंप्यूटर आरम्भ भी नहीं हो सका और मुझे जनपद मुख्यालय बुलंदशहर जाकर रहना पड़ा. वान रहते हुए मैं गाँव में आता रहता और अपना जन संपर्क आसपास के गाँवों तक बढाता रहा.
सन २००५ में में पुनः गाँव में आया और स्वतंत्र रूप से रहने लगा और विद्युत् संकट के विरुद्ध संघर्ष आरम्भ कर दिया. इसके लिए सबसे पहले मैंने विद्युत् कनेक्शन के लिए प्रार्थना पत्र लेकर विद्युत् उपग्रह ऊंचागांव पहुंचा. वहां एक विद्युत्-कर्मी ने मुझे बताया कि वह इस कार्य में सहायता कर सकता है जिसके लिए मुझसे वैध व्यय के लिए लगभग १००० रुपये के अतिरिक्त २००० रुपये सुविधा शुल्क के रूप में देना था. जब वैध व्यय के अतिरिक्त मैंने कुछ भी देने से इंकार कर दिया तो उसने कहा कि मुझे स्वयं जहांगीराबाद स्थित कार्यालय में उपखंड अधिकारी से संपर्क करना चाहिए.
जहांगीराबाद में जाने पर एक कार्यालय सहायक ने मुझे बताया गया कि उपखंड अधिकारी जनपद मुख्यालय बुलंदशहर में रहते हैं और यदा-कदा ही कार्यालय में आते हैं. वह मेरी सहायता के लिए तत्पर था जिसके लिए उसने ३००० रुपये की मांग रखी जो मुझे अस्वीकार्य थी. मैं वापिस आ गया और अगली सुबह उपखंड अधिकारी से टेलेफोन द्वारा जहांगीराबाद में उसके मिलाने का समय पूछा तो उसके बताया कि वह जहांगीराबाद में ही है और मैं दो घंटे तक उससे मिल सकता ता. गाँव से जहांगीराबाद १२ किलोमीटर दूर है और मैं तुरंत वहां के लिए अपनी बाईसाइकिल द्वारा चल दिया और एक घंटे मैं उपखंड अधिकारी कार्यालय में पहुँच गया. वहां ज्ञात हुआ कि उपखंड अधिकारी तब तक कार्यालय में आया ही नहीं था किन्तु उसके आने की संभावना थी. दो घंटे की प्रतीक्षा के बाद वहां अधिकारी आया. मैंने उसे अपनी समस्या बतायी तो उसने मेरे आवेदन पर जूनियर इंजीनियर को अपनी टिप्पणी लिख दी और मुझे उससे मिलने को कहा.
अगले दिन जूनियर इंजीनियर ने अपनी औपचारिक टिप्पणी दे दी और मुझे उपखंड अधिकारी के पास जाने को कहा. इसके बाद मैं अनेक बार उपखंड अधिकारी कार्यालय जहांगीराबाद गया किन्तु अधिकारी को सदैव अनुपस्थित पाया जबकि प्रत्येक बार फ़ोन पर वह मुझे बताता कि वह जहांगीराबाद कार्यालय से ही बोल रहा था. मैं समझ गया कि मुझे रिश्वत न देने के कारण परेशान किया जा रहा है. इसलिए मैंने एक-एक महीने के अंतराल से क्रमशः उच्चतर अधिकारियों को पत्र लिखने आरम्भ कर दिए.किन्तु विद्युत् वितरण निगम के प्रबंध निदेशक तक से मेरे किसी पत्र का उत्तर नहीं दिया गया. इस सब में लगभग ६ महीने का समय व्यतीत हो गया.
इसके बाद मैंने सम्पूर्ण विवरण सहित एक परिवाद पत्र उत्तर प्रदेश विद्युत् नियामक आयोग को लिखा जिसका दायित्व प्रदेश में विद्युत् सेवाओं को नियमित करना है. वहां से मुझे दो महीने बाद एक पंक्ति का उत्तर मिला कि मेरा पत्र आवश्यक कार्यवाही के लिए प्रबंध निदेशक को भेज दिया गया है. प्रबंध निदेशक से अगले दो माह तक मुझे कोई कार्यवाही की जाने की सूचना नहीं मिली.तो मैंने स्वयं उसे लिखा. इसका भी कोई उत्तर नहीं दिया गया. इस सब में ४ महीने और व्यतीत हो गए. इस दौरान मेरा लेखन कार्य बंद रहा और मैं अपना समय बागवानी में लगाता रहा.
अंततः मैंने प्रबंध निदेशक तथा विद्युत् नियामक आयोग को इस लापरवाही के लिए उत्तरदायी ठहराते हुए कानूनी नोटिस दिए लिसमें दोनों के विरुद्ध न्यायालय में जाने की चेतावनी दी. इसके लगभग दो महीने बाद दो विद्युत् कर्मी, जूनियर इंजीनियर और एक नया उपखंड अधिकारी मेरे पास पहुंचे और मुझसे ८८० रुपये देने को कहा ताकि मुझे तुरंत विद्युत् कनेक्शन दिया जा सके. मेरे भुगतान की मुझे रसीद दे दी गयी और मुझे कनेक्शन दे दिया गया. गाँव के इतिहास की यह अभूतपूर्व घटना थी.
विद्युत् कनेक्शन लेने के बाद न्यून वोल्टेज की समस्या मेरे सामने खडी टी और वोल्टेज संवर्धक उपकरण होने पर भी मेरा कंप्यूटर कभी कभी ही चल पाता था. मैंने पाया कि न्यून वोल्टेज होने के अनेक कारण थे -
- गाँव में केवल २-३ वैध कनेक्शन थे, लगभग १५ कनेक्शन ऐसे थे जिनपर विद्युत् वितरण निगम ३०,००० रुपये तक कि धनराशी बकाया थी, इसके अतिरिक्त लगभग ४०० कनेक्शन अवैध रूप से चल रहे थे. इस प्रकार १०० किलोवाट के ट्रांसफार्मर पर अपरिमित भार था. गाँव वाले तथा निगम अधिकारी इस सब के प्रति पूरी तरह उदासीन थे - न कोई अधिकार थे और न कोई कर्तव्यपालन.
- ट्रांसफार्मर तथा लाइनें बहुत बुरी स्थिति में थी, लाइन में कहीं एक तार था, कहीं दो, तो कहीं तीन.तार थे. न्यूट्रल तथा अर्थ के तार पूरी तरह अनुपस्थित थे. यह लाइन ४० वर्ष पुरानी थी जिसकी कभी कोई देखरेख नहीं की गयी टी. न ही किसी गाँव वाले ने इसे ठीक रखने की मांग की थी. पूरा द्रश्य खंडहर जैसा था जिससे
इस पर मैंने उत्तर प्रदेश के राज्यपाल महोदय को एक पत्र लिखा जिसका उत्तर मिला और सम्बद्ध अधिकारियों से स्पष्टीकरण माँगा गया. पूरा अधिकारी वर्ग राज्यपाल महोदय को संतुष्ट करने में जुट गया और मुझे कोई लाभ प्रदान नहीं किया गया. इसके कुछ सने बाद राह्य्पाल महोदय की ईमेल सुविधा शासन द्वारा बंद कर दी गयी.
इसी दौरान एक पत्र मैंने उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन को लिखा हहाँ मेरा एक मित्र मुख्य अभियंता पड पर कार्यरत है. उसने मेरी सहायता की और गाँव में विद्युत् स्थिति सुधार के अनेक कार्य किये गए. अब स्थिति ठीक कही हा सकती है. किन्तु यह सब मेरे संघर्ष से न होकर मेरे निजी संपर्क के कारण हुआ है. इस से यही सिद्ध होता है कि देश के शासक-प्रशासक केवल निजी संबंधों के आधार पर ही कार्य कर रहे हैं, जन-सामान्य की समस्याओं के प्रति वे पूरी तरह उदासीन बने हुए हैं.
यह सब सार्वजनिक रूप में प्रकाशित करने का मेरा उद्देश्य अपना गौरव बढ़ाना न होकर जन-सामान्य को यह सन्देश देना है कि देश के शासक-प्रशासक किस प्रकार कार्य कर रहे हैं. अभी नक्सल हिंसा में ७६ सिपाहियों की हत्या पर कुछ लोगों ने मेरी राय जाननी चाही जिसका मेरा उतार नक्सल हिंसा के पक्ष में रहा है क्योंकि शासक-प्रशासकों को जन-समस्याओं के प्रति संवेदनशील बनने के लिए हमारे सभी प्रयास असफल हो रहे हैं.
Aapke soch ko mera salam aur har us hindustani ke soch ko salam jo is desh aur samaj ko sahi disha dene ki koshish ek asha ke liye sakaratmakta se soch raha hai.KAS HAMARE DESH KA PRDHANMANTRI BHI IS DISHA MAIN IMANDARI SE SOCHTE ?
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