गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

अपराध और चिकित्सा सेवा

मेरे गाँव की एक हरिजन कन्या का विवाह लगभग दो वर्ष पूर्व पास के ही गाँव में हुआ था. लड़का भांग आदि का नशा करता है और अनेक बार लडकी के साथ मारपीट करता रहा है. इस कारण से लडकी अधिकाँश समय गाँव में अपने माता-पिता के पास ही रही है. उसकी इच्छा नहीं कि उसे ससुराल भेजा जाए. किन्तु दोनों गावों के कुछ प्रतिष्ठित लोगों के कहने पर लडकी को ससुराल भेज दिया गया. 
MASS MURDERESS: Irma Grese listens pensively to testimony of her deeds. Woman leader of Nazi guards at Belsen camp sets record for evil. Grese was among the 44 people accused of war crimes at the Belsen Trial. She was tried over the first period of the trials (September 17 to November 17, 1945) and was represented by Major L. Cranfield. Grese and ten others (eight men and two other women; Juana Bormann and Elisabeth Volkenrath) were convicted for crimes against humanity in both Auschwitz and Belsen and then sentenced to death. As the verdicts were read, Grese was the only prisoner to remain defiant;[5] her subsequent appeal was rejected. Irma Grese is the youngest woman to die judicially under English law in the 20th century. ..... 1945 LIFE Magazine Picture, A3094ARecallThing With No Name

अभी तीन दिन पूर्व लडकी के भाई को सूचना मिली कि लडकी के साथ पुनः दुर्व्यवहार किया गया है और वह अचेत अवस्था में मरणासन्न है. भाई कुछ परिवारजनों को लेकर लडकी के पास पहुंचा और लडकी तथा उसके पति को लेकर पुलिस थाने पहुंचा और पुलिस में अपनी शिकायत की. पुलिस ने पति को हवालात में बंद कर दिया और लडकी के परिवार को लडकी की तुरंत चिकित्सा व्यवस्था का सुझाव देकर विदा कर दिया गया. 
दुखी परिवार रोगी को लेकर थाने से ६ किलोमीटर दूर स्थित ऊंचागांव राजकीय अस्पताल में पहुंचा जहाँ के चिकित्सकों ने रोगी की गंभीर अवस्था देखकर कोई प्राथमिक चिकित्सा भी नहीं दी और तुरंत ३५ किलोमीटर दूर जनपद अस्पताल बुलंदशहर ले जाने का सुझाव दे दिया. बुलंदशहर महिला अस्पताल में पहुँचाने पर वहां के चिकित्सक ने यह कहकर चिकित्सा नहीं दी कि यह पुलिस का मामला है और पुलिस सूचना के बिना कोई चिकित्सा नहीं की जा सकती. रोगी को लेकर परिवार वापस गाँव आया और इस सब में पूरा दिन तथा आधी रात लग गयी. 
अगली सुबह घायल रोगी को पुनः पुलिस के पास ले जाया गया और चिकित्सकों की राय से अवगत कराया. इस पर पुलिस निरीक्षक ने बताया कि पुलिस में काल की गयी शिकायत के आधार पर कोई आपराधिक मामला नहीं बनता है और पुलिस चिकित्सा में कोई सहायता नहीं कर सकती. रोगी की चिकित्सा किसी निजी अस्पताल में करा लेनी चाहिए. इस पर शिकायत को पुनः लिखा जाना आरम्भ किया गया तो पुलिस चौकन्नी हो गयी और पुरानी शिकायत पर ही कार्यवाही का आश्वासन दे जहांगीराबाद अस्पताल के नाम रोगी की चिकित्सा के लिए पुलिस की ओर से एक पत्र दे दिया गया. इसे स्पष्ट हो गया कि पुलिस अपराध को पंजीकृत नहीं करना चाहती. 
जहांगीराबाद अस्पताल के चिकित्सक ने बताया कि वहां कोई महिला चिकित्सक नहीं है इसलिए रोगी को कोई चिकित्सा नहीं दी जा सकती. तथापि आग्रह पर रोगी को एक इंजेक्शन लगा दिया गया और रोगी को बुलंदशहर महिला चिकित्सालय में ले जाने का सुझाव दे दिया गया. .

महिला चिकित्सालय में पहुँचने पर महिला चिकित्सक ने यह कहकर चिकित्सा और परीक्षण करने से इनकार कर दिया कि घायल के साथ कोई पुलिस कर्मी नहीं है जिसका होना परीक्षण के लिए अनिवार्य है. चिकित्सक से बुत अनुनय विनय की गयीं किन्तु वह अडिग रही. 

इस पर एक राजनेता से संपर्क किया गया जिसने स्थानीय विधायक से संपर्क किया और विधायक ने चिकित्सक को परीक्षण और चिकित्सा का निर्देश दिया. इस पर रोगी की परिक्षा की गयी किन्तु कोई चिकित्सा नहीं की गयी और उसे जनपद के पुरुष अस्पताल ले जाने का सुझाव दे दिया गया. चिकित्सक का कहना था कि महिला चिकित्सालय में महिलाओं की चिकित्सा नहीं की जाती, केवल महिला सम्बंधित रोगों की चिकित्सा की जाती है. रोगी के गुदा पर चोट की गयी है जो महिला रोग नहीं है. इसमें दूसरा दिन भी व्यतीत हो गया. अब दुखी परिवार को निजी चिकित्सा के अतिरिक्त कोई अन्य मार्गे वांछित नहीं लगा. 

5 टिप्‍पणियां:

  1. पुलिस का हवाला देकर रोगी के इलाज को दरकिनार करने वाला भी अपराधी है। उसके लिए भी सजा का प्रावधान होना चाहिए।

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  2. आज भी बहुत जगहों पर ऐसी स्थिति देखने को मिलती है .. दूसरों के मामलों पर नागरिकों की उपेक्षा ही एक बडी वजह है !!

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  3. इस देश का आम आदमी पुलिस के पास अपनी समस्या लेकर जाने से डरता है। यदि वह आम औरत हो तो यह डर और भी बढ़ जाता है। क्या पुलिस की ट्रेनिंग में यह नहीं सिखाया जाता कि पुलिस को जनता के साथ कैसे व्यवहार करना चाहिए? हमारी पुलिस अभी भी औपनिवेशिक मानसिकता से ग्रसित है। धीरे-धीरे वह आम जनता में अपना विश्वास खो चुकी है। विशेषकर ग्रामीण इलाके के लोगों के साथ पुलिस का व्यवहार और भी आपत्तिजनक होता है। देश के कई हिस्सों में इस व्यवस्था के प्रति बढ़ रहे असंतोष को देखते हुए भी इन्हें आत्ममंथन की ज़रूरत महसूस नहीं होती।

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  4. @ग्राम्या,
    आपकी टिप्पणी उ०प्र० पुलिस के उप महा निरीक्षक (प्रशिक्षण) को भेजी जा रही है.

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