शब्द युगल 'शस्त्र तथा शास्त्र' उसी तरह परस्पर सम्बद्ध है जिस प्रकार 'यज्ञ तथा याज्ञ' सम्बद्ध हैं, अर्थात पहला कार्य का किया जाना तथा दूसरा उसी से उद्भूत उत्पाद. शास्त्र शब्द के बारे में हमें निश्चित सूचना प्राचीन ग्रन्थ के नाम 'अर्थशास्त्र' से प्राप्त होती है जहां विष्णु गुप्त चाणक्य रचित ग्रन्थ को स्वयं लेखक द्वारा 'इदं अर्थशास्त्रं' कहा गया है, जिससे शास्त्र शब्द का अर्थ आधुनिक अर्थों में 'पुस्तक' अथवा 'ग्रन्थ' सिद्ध होता है.
अर्थशास्त्र में ही लेखक ने स्वयं को शास्त्रं च शास्त्रं का ज्ञाता लिखा है जो संकेत करता है कि शास्त्र शास्त्रों से बनते हैं, जिससे सिद्ध होता है कि शास्त्रीय शब्द 'शस्त्र' का अर्थ हिंदी का 'शब्द' है क्योंकि शास्त्र शब्दों से बनते हैं. अतः विष्णु गुप्त चाणक्य अर्थ शास्त्र के सन्दर्भ में शब्दों और उनके उपयोग से लिखे गए ग्रंथों के ज्ञाता थे.
आधुनिक संस्कृत के अनुसार शस्त्र का अर्थ 'हथियार' और शास्त्र का अर्थ 'ग्रन्थ' लेने से भाषा विकृति उत्पन्न होती है जो उस समय पर होनी संभव नहीं है. किन्तु शास्त्रों के अर्थ भ्रांत करने के उद्देस्ग्य से आधुनिक संस्कृत में उत्पन्न की गयी सिद्ध होती है..
पाणिनि के संस्कृत व्याकरण को कूटबद्ध करने से आज तक संस्कृत भाषा के नियम सुरक्षित हैं. पर शब्दों को नियमबद्ध नहीं किया जा सका, और कालांतर में पुजारी वर्ग ने अपने स्वार्थ सिद्ध करने के लिए शब्दों की मनमानी व्याख्याएं कर डालीं. लगभग हर एक शब्द पर अप्रासंगिक समानार्थी थोपे गए. भ्रष्ट और नीच पुजारी वर्ग के कारण संस्कृत जैसी वैज्ञानिक भाषा अपनी प्रासंगिकता खो बैठी.
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