शब्द समूह 'सनातन धर्म' आचार्य शंकर द्वारा आज से लगभग २३०० वर्ष पूर्व दिया गया था. उन्होंने इस धर्म को प्रतिपादित करके भारत के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा था. शास्त्रीय भाषा वैदिक संस्कृत तथा आधुनिक संस्कृत में इसके भिन्न अर्थ हैं.यह सब्द समूह यह भी दर्शाता है कि किस प्रकार आधुनिक संस्कृत के माध्यम से भारतवासियों को भ्रमित किया गया.
सनातन
शास्त्रीय भाषा में सनातन शब्द लैटिन भाषा के शब्द 'sanatus' से उद्भूत है जिसका अर्थ है 'उपचार करना' अथवा 'स्वस्थ बनाना' अथवा स्वास्थ. आधुनिक संस्कृत में इसका अर्थ है - 'सदा-सदा से चला आ रहा'
धर्म
वैदिक संस्कृत में 'धर्म' के तीन अर्थ पाए जाते हैं. इसका प्राचीनतम अर्थ 'सोना' अथवा 'सुलाना' है क्योंकि यह लैटिन शब्द 'dorma' से लिया गया है. इसी लिए अभी भी यात्रियों के सोने के स्थान को 'धर्मशाला अर्थात 'सोने के लिए स्थान' कहा जाता है. धर्म का दूसरा स्रोत लैटिन का ही 'derma' है जिसका हिंदी अर्थ 'त्वचा है. त्वच जीवधारियों के शरीरों का बाह्य आवरण होने के कारण धर्म का व्यापक अर्थ 'जो धारण किया गया हो' है. इससे दो अर्थ बने - भौतिक स्तर पर त्वचा तथा मानसिक स्तर पर धारणा. इस प्रकार वैदिक संस्कृत में 'धर्म' शब्द तीन अभिप्रायों में उपयोग किया गया -
जीव की सम्पदा 'त्वचा' अथवा 'धारणा',
जीव का मौलिक कर्म, तथा
जीव की अवस्था - 'सोना'.
आधुनिक संस्कृत में धर्म का अर्थ 'कर्मकांड' पूजा-पाठ, जीवन-शैली.आदि है.
सनातन धर्म
उपरोक्तानुसार 'सनातन धर्म' के वैदिक अर्थ तीन हैं -
स्वास्थ का सुलाना अथवा नष्ट करना,
स्वास्थ की धारणा, तथा
स्वस्थ त्वचा
जबकि आधुनिक संस्कृत में सनातन धर्म का तात्पर्य 'सदा-साद से चली आ रही जीवन शैली.
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