शनिवार, 13 फ़रवरी 2010

योग का रोग अथवा रोग का योग

भारत के धर्मावलम्बियों तथा अध्यात्मवादियों ने जिन वैदिक शब्दों का सर्वाधिक दुरूपयोग किया है, योग भी उनमें से एक है. योग शब्द का मूल अर्थ रोगों की चिकित्सा के लिए रसायनों का संयोग कर औषधियां तैयार करना है जो चिकित्सा क्षेत्र में आज भी प्रचलित है. किन्तु योग का अर्थ जो सर्वाधिक प्रचलित है वह है आत्मा परमात्मा के मिलन के लिए मनुष्यों को सुझाये गए अनेक उपाय जिनमें मनुष्य को कभी मुर्गा बनाया जाता है तो कभी मयूर. इस प्रकार योग द्वारा शरीर को जो भी आकृतियाँ प्रदान की जाती हों , मनुष्यों को उल्लू ही बनाया जा रहा है.

योग शब्द के इस दुरूपयोग में एक बहुत सशक्त और विशाल वर्ग सतत रूप में लगा हुआ रहता है. क्या है इसका उद्देश्य ? भारत में विगत २००० वर्षों से एक के बाद एक कुशासन स्थापित होते रहे हैं आज स्वतंत्र भारत में भी वैसा ही है. अन्यथा गुप्त वंश के शासन में सोने की चिड़िया कहलाने वाले भारत ऐसी दुर्दशा नहीं होती जैसी कि विगत २००० वर्षों में रही है.  क्शासन के विरुद्ध लोग प्रायः विद्रोह करते रहे हैं किन्तु भारत में स्वतंत्रता आन्दोलन के अतिरिक्त कभी ऐसा नहीं हुआ. इसी में योग का रहस्य छिपा हुआ है. 

लोग दो प्रकार के होते हैं - श्रमिक और बौद्धिक. बहुलांश श्रमिक अपनी आजीविका संचालन में इतने लिप्त होते हैं कि उन्हें किसी कुशासन के विरुद्ध अपना स्वर बुलंद करने का समय ही नहीं होता. विद्रोह सदैव बौद्धिक वर्ग ही करता है. इसलिए उसे उलझाने के लिए कुटिल शासकों और उनके समर्थकों ने योग शब्द का दुरूपयोग किया ताकि देश का बौद्धिक वर्ग आत्मा-परमात्मा मिलन की अनंत यात्रा पर चलता रहे और वे अपना कुशासन निर्विरोध जारी रख सकें.

शासन के इस षडयंत्र में आधुनिक युग में विवेकानंद का अभूतपूर्व योगदान रहा है जिसने पतंजलि योग सूत्र का अंग्रेजी में अनुवाद करके लोगों में योग साधनाओं के माद्यम से सिद्धियाँ प्राप्त करने का भ्रम फैलाया और देश के एक विशाल बौद्धिक वर्ग को उसमें उलझा दिया. वह सुन्दर था और वाकपटु भी. उसने अपने इन्ही गुणों का दुरूपयोग किया. यदि हम विवेकानंद के जीवन का अवलोकन करें तो पाते हैं कि जिस समय देश में स्वतंत्रता के लिए संग्राम चल रहा था वह राजस्थान में खेतड़ी के शासक के यहाँ वैभव भोग करता रहा और वहां से अमेरिका चला गया और स्त्री रमण में व्यस्त रहा. धनी और रोगी अवस्था में वहाँ से लौटने पर रामकृष्ण मिशन की स्थापना की और मृत्यु को प्राप्त हो गया. जो व्यक्ति अपने जीवन को न बचा सका वह विश्व को बचाने की बात करे तो हास्यास्पद लगता है. विवेकानंद द्वारा पतंजलि के प्रथम योगसूत्र को आधा लेकर उसका भ्रमित अनुवाद किया गया और लोगों को ब्रमित किया गया. इसका सही अनुवाद त्वचा के सौन्दर्य की रक्षा करना है.  

योग साधनों का भ्रम फैलाना भारत में एक छूत के रोग की तरह एक व्यवसाय के रूप में विकसित हो रहा है, जिससे किसी भी व्यक्ति को कभी कोई लाभ नहीं हुआ है, केवल लाभ की आशा की जाती रहती है. वस्तुतः जो लाभ प्रतीत होता है वह खुले शुद्ध वातावरण में भ्रमण करने और व्यायाम करने से होता है, किसी योग साधना से नहीं.

वस्तुतः पतंजलि के सभी योग सूत्र विविध रोगों की चिकित्साओं से सम्बंधित हैं जिन के लिए आज तक कोई प्रयास नहीं किया गया. किसी देश की दुर्दशा इससे अधिक क्या होगी कि ज्ञान उपलब्ध होने पर भी उसका सही उपयोग न किया जाकर उसे केवल भ्रमों के प्रचार प्रसार के लिए उपयोग में लिया जा रहा है.  

10 टिप्‍पणियां:

  1. मुझे भी कभी कभी कुछ ऐसा ही लगा -योग की मुद्राएँ कितनी हास्यास्पद है न ?

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  2. @arvind ji..! यहाँ भी आप सहमत से हैं..! आप को समझना इतना दुरूह सा क्यों होता जा रहा है..?

    या फिर अपना तर्क रखिये..!

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  3. "यदि हम विवेकानंद के जीवन का अवलोकन करें तो पाते हैं कि जिस समय देश में स्वतंत्रता के लिए संग्राम चल रहा था वह राजस्थान में खेतड़ी के शासक के यहाँ वैभव भोग करता रहा और वहां से अमेरिका चला गया और स्त्री रमण में व्यस्त रहा. धनी और रोगी अवस्था में वहाँ से लौटने पर रामकृष्ण मिशन की स्थापना की और मृत्यु को प्राप्त हो गया."

    आहा कितने पावन विचार हैं आप के..ऋषि राम बंसल जी..!!!

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  4. humm......... interesting...... any opinion on "My name is Chan"?? put some light on their history also .... this would somewhat clear ur intentions also .....

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  5. आप अल्प अध्ययन और अति-आत्मविश्वास के संयोग से उपजी अनर्थकारी मानसिकता से ग्रसित हैं। कुछ आरोप तो प्रलाप ही हैं।
    एक बार विवेकानन्द समग्र पढ़िए।
    मुर्गा, मयूर और उल्लू बनाने को तो उन्हों ने कभी नहीं कहा। राजयोग पर अवश्य लिखा।
    पतंजलि के प्रथम योगसूत्र के सही अनुवाद, जो आप के अनुसार त्वचा के सौन्दर्य की रक्षा से सम्बन्धित है, को देने की कृपा करें राम जी ताकि पता चले। ज्ञान को छिपा कर क्यों रखे हैं? तरुणी स्त्रियाँ भी आप के योगसूत्र से लाभांवित होंगीं। त्वचा सौन्दर्य के लिए जो अरबों रूपए पानी में बहाए जा रहे हैं,वे बच जाएँगे।

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  6. विवेकानंद से सम्बंधित इन स्थापनाओं के कोई प्रमाण भी उपलब्ध हैं?
    मेरी नज़रों में नही आए कभी..कृपया देने का कष्ट करें..अन्यथा उनसे जुड़े कई लोगों की भावनाएं आहात होगी. प्रश्न करना/निष्कर्ष निकालना कदापि गलत नही होता पर उनका आधार/शोध का परिप्रेक्ष्य रखते हुए. आशा है अन्यथा नही लीजिएगा.

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  7. बंसल जी,
    आपका यह लेख पिछले लेखों की तुलना में सौ गुना तर्कविहीन लगा। इतना प्रलाप आप कर गये और एक भी उदाहरण नहीं दिया। कम से कम इसका साहित्यिक प्रमाण तो देते कि योग का अर्थ 'रसायनों को मिलाकर औषधियाँ बनाना है।'

    पतंजलि का प्रथम सूत्र कहता है - 'योग: चित्तवृत्ति निरोध:' । मुझे इसका अर्थ इतना क्लिष्ट और रहस्यमय नहीं लगता कि इसको औषधि-निर्माण से जोड़ा जाय । हाँ, यह इसका एक अर्थ हो सकता है, इसमें शायद ही किसी को आपत्ति हो।

    गीता में योग बहुत बार आया है। गीता किसी अन्य चीज को ही योग की संज्ञा देती है-

    'योग: कर्मसु कौशलम्'

    '... समत्वं योग उच्यते'

    आशा है आप अपने कथन को सप्रमाण कहेंगे।

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  8. सर्वश्री प्रखर, गिरिजेश, लवली, अनुनाद
    पतंजलि योग का प्रथम सूत्र आप सभी ने अधूरा जाना है. इसका पूरा रूप और अनुवाद यहाँ देखिए -
    http://swastik-shubham.blogspot.com/2010/02/blog-post_08.html

    Mr Flare,
    Please be clear and unambiguous in your query.

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