रविवार, 4 अप्रैल 2010

सिकंदर का आक्रमण

प्रचलित विश्व इतिहास के अनुसार सिकंदर, जिसे यूरोपीय भाषाओँ में अलग्जेंदर कहा जाता है, मिश्र और पर्शिया को विजित करता हुआ ३२३ ईसापूर्व में भारत पहुंचा. वस्तुतः सिकंदर को भारत पर आक्रमण के लिए कृष्ण ने आमंत्रित किया था जिसके लिए संदेशवाहक के रूप में विदुर को भेजा गया था.
Alexander - Director's Cut (Full Screen Edition)

भारत के प्रवेश पर ही सिकंदर का सामना भरत ने किया था जिन्हें पुरु वंशी होने के कारण इतिहास में पोरस कहा गया है.इस युद्ध के बारे में बड़ी भ्रांतियां प्रचारित की गयी हैं - कि सिकंदर विजयी हुआ था और उसने भरत को क्षमा कर दिया था. यह सर्व विदित ई कि भारत में आगमन पर सिकंदर की सेना ने विद्रोह कर दिया था. यदि विद्रोह युद्ध से पूर्व किया गया था तो सिकंदर विजयी नहीं हो सकता था, और सिकंदर के विजयी होने बाद सेना को विद्रोह की आवश्यकता ही नहीं थी. यद्यपि सिकंदर की सेना भारतीय सेना की तुलना में अधिक अनुभवी और अस्त्र-शास्त्रों से सुसज्जित थी, किन्तु भरत को युद्ध की आशंका थी और इसके लिए पूरी तैयारियां की गयीं थीं. युद्ध के प्रथम दिन के परिणाम देखते हुए ही सिकंदर के सेना-नायकों ने और आगे युद्ध करने में अपनी असक्षमता दर्शाई थी जिसे विद्रोह कहा गया है. इस पराजय और विद्रोह के बाद ही सिकंदर ने भरत से संझौता किया था और सीमा से ही वापिस लौट जाने का वचन दिया था. युद्ध तो थम गया किन्तु सिकंदर उसी समय वापिस नहीं लौटा. कृष्ण ने उसे और उसकी सेना को दक्षिण भारत मदुरै के पास बसा दिया था.

सिकंदर की सेना में यद्यपि अनेक जातियों के सैनिक थे किन्तु मूल सेना में अधिकाँश डोरियन होने के कारण सभी को डोरियन कहा जाता था. 'डोरियन' शब्द का आधुनिक स्वरुप ;द्रविड़' है. अतः दक्षिण भारत के द्रविड़ सिकंदर के सैनिकों के रूप में भारत आये थे. यहाँ यह भी महत्वपूर्ण है कि मलयाली और कन्नड़ मूलतः द्रविड़ नहीं हैं यद्यपि इन्हें भी अब द्रविड़ ही माना जाता है.

यूरोपीय इतिहासकारों का अनुसतन करते हुए भारत के राजकीय वेतनभोगी तथाकथित इतिहासकार भी सिकंदर को 'महान' कहते हैं जब कि उसमें महानता का कोई लक्षण नहीं था. इंटरपोल के आधुनिक शोधों के अनुसार वह अत्यधिक शराबी था और मामूली की नाराजगी पर ही अपने प्रियजनों की हत्या कर देता था. उसके शरीर में पाशविक शक्ति थी जिसके कारण वह घायल अवस्था में भी युद्ध में सक्रिय रहता था. इसी पाशविकता के कारण वह युद्धों में विजयी रहा.न कि किसी मानवीय गुण के कारण. हौलीवूद से अभी बनी फिल्म के अनुसार समलैंगिक मैथुन का शौक़ीन था और उसके पुरुष प्रेमी का नाम हाइलास था जो युद्धों में भी उसका शौक पूरा करता था.

भारत में बसने के बाद उसके सैनिकों ने भारतीय स्त्रियों का अपहरण कर अपने घर बसाये जिसके लिए उन्हें क्तिष्ण का अभयदान प्राप्त ता. उसको समर्पित कर वे कुछ भी अनैतिक करने के लिए स्वतंत्र थे. इसी पड़ाव में सिकंदर ने अपनी सेना को पुनर्संगठित किया और लगभग १५ माह बाद हुए महाबारत युद्ध में 'शिखंडी' नाम से भाग लिया.समस्त आशिया का विजयी सिकंदर महाभारत में एक नगण्य योद्धा रहा, अतः भारतीय दृष्टिकोण से उसे महान नहीं कहा जा सकता.  

सिकंदर का आक्रमण

प्रचलित विश्व इतिहास के अनुसार सिकंदर, जिसे यूरोपीय भाषाओँ में अलग्जेंदर कहा जाता है, मिश्र और पर्शिया को विजित करता हुआ ३२३ ईसापूर्व में भारत पहुंचा. वस्तुतः सिकंदर को भारत पर आक्रमण के लिए कृष्ण ने आमंत्रित किया था जिसके लिए संदेशवाहक के रूप में विदुर को भेजा गया था.
Alexander - Director's Cut (Full Screen Edition)

भारत के प्रवेश पर ही सिकंदर का सामना भरत ने किया था जिन्हें पुरु वंशी होने के कारण इतिहास में पोरस कहा गया है.इस युद्ध के बारे में बड़ी भ्रांतियां प्रचारित की गयी हैं - कि सिकंदर विजयी हुआ था और उसने भरत को क्षमा कर दिया था. यह सर्व विदित ई कि भारत में आगमन पर सिकंदर की सेना ने विद्रोह कर दिया था. यदि विद्रोह युद्ध से पूर्व किया गया था तो सिकंदर विजयी नहीं हो सकता था, और सिकंदर के विजयी होने बाद सेना को विद्रोह की आवश्यकता ही नहीं थी. यद्यपि सिकंदर की सेना भारतीय सेना की तुलना में अधिक अनुभवी और अस्त्र-शास्त्रों से सुसज्जित थी, किन्तु भरत को युद्ध की आशंका थी और इसके लिए पूरी तैयारियां की गयीं थीं. युद्ध के प्रथम दिन के परिणाम देखते हुए ही सिकंदर के सेना-नायकों ने और आगे युद्ध करने में अपनी असक्षमता दर्शाई थी जिसे विद्रोह कहा गया है. इस पराजय और विद्रोह के बाद ही सिकंदर ने भरत से संझौता किया था और सीमा से ही वापिस लौट जाने का वचन दिया था. युद्ध तो थम गया किन्तु सिकंदर उसी समय वापिस नहीं लौटा. कृष्ण ने उसे और उसकी सेना को दक्षिण भारत मदुरै के पास बसा दिया था.

सिकंदर की सेना में यद्यपि अनेक जातियों के सैनिक थे किन्तु मूल सेना में अधिकाँश डोरियन होने के कारण सभी को डोरियन कहा जाता था. 'डोरियन' शब्द का आधुनिक स्वरुप ;द्रविड़' है. अतः दक्षिण भारत के द्रविड़ सिकंदर के सैनिकों के रूप में भारत आये थे. यहाँ यह भी महत्वपूर्ण है कि मलयाली और कन्नड़ मूलतः द्रविड़ नहीं हैं यद्यपि इन्हें भी अब द्रविड़ ही माना जाता है.

यूरोपीय इतिहासकारों का अनुसतन करते हुए भारत के राजकीय वेतनभोगी तथाकथित इतिहासकार भी सिकंदर को 'महान' कहते हैं जब कि उसमें महानता का कोई लक्षण नहीं था. इंटरपोल के आधुनिक शोधों के अनुसार वह अत्यधिक शराबी था और मामूली की नाराजगी पर ही अपने प्रियजनों की हत्या कर देता था. उसके शरीर में पाशविक शक्ति थी जिसके कारण वह घायल अवस्था में भी युद्ध में सक्रिय रहता था. इसी पाशविकता के कारण वह युद्धों में विजयी रहा.न कि किसी मानवीय गुण के कारण. हौलीवूद से अभी बनी फिल्म के अनुसार समलैंगिक मैथुन का शौक़ीन था और उसके पुरुष प्रेमी का नाम हाइलास था जो युद्धों में भी उसका शौक पूरा करता था.

भारत में बसने के बाद उसके सैनिकों ने भारतीय स्त्रियों का अपहरण कर अपने घर बसाये जिसके लिए उन्हें क्तिष्ण का अभयदान प्राप्त ता. उसको समर्पित कर वे कुछ भी अनैतिक करने के लिए स्वतंत्र थे. इसी पड़ाव में सिकंदर ने अपनी सेना को पुनर्संगठित किया और लगभग १५ माह बाद हुए महाबारत युद्ध में 'शिखंडी' नाम से भाग लिया.समस्त आशिया का विजयी सिकंदर महाभारत में एक नगण्य योद्धा रहा, अतः भारतीय दृष्टिकोण से उसे महान नहीं कहा जा सकता.  

कृति, कृतु

The 10th Kingdomशास्त्रीय शब्द कृति और कृतु ग्रीक भाषा के शब्दों krates तथा kratos के देवनागरी स्वरुप हैं जिनके अर्थ क्रमशः 'शासक' एवं 'शासित' हैं. तदनुसार इनके भाव निरंकुश तथा विनम्र भी लिए जाते हैं. आधुनिक संस्कृत में इनके अर्थ 'रचना' तथा 'रचनाकार' लिए गए हैं जिनके आधार पर शास्त्रों के अनुवाद करना त्रुटि है.  

कस्तूरी

The 2009 Import and Export Market for Ambergris, Castoreum, Civit, Musk, Cantharides, Bile, Glands, and Other Animal Products Used in the Preparation of ... Products in North America & the Caribbeanशास्त्रीय शब्द 'कस्तूरी' एक सुगन्धित द्रव्य का नाम है जो औषधियों और सुगंधियों में उपयोग किया जाता है तथा बीवर नामक चूहे जैसे एक जंतु से प्राप्त होता है. इस जंतु को ग्रीक भाषा में kastor तथा लैटिन भाषा में castor कहा जाता है. इसी जंतु को सुकोमल शालीन बालों से युक्त त्वचा के लिए भी जाना जाता है जिससे टोपी आदि बनायी जाती हैं. कस्तूरी जैसा ही सुगन्धित द्रव्य 'मूषक' एक विशेष मृग की नाभि में स्थित होता है.इस मृग के सींग नहीं होते और यह मध्य तथा पूर्वी एशिया में पाया जाता है.

शनिवार, 3 अप्रैल 2010

आख्या

Aquariusशास्त्रीय शब्द 'आख्या' लैटिन शब्द 'aqua' से उद्भूत है जिसका अर्थ 'पानी' है. आधुनिक संस्कृत में इसका अर्थ 'समीक्षा' लिया गया है जिससे इस आधार पर किये गए हिंदी अनुवाद पूर्णतः भ्रांत हैं.

गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

बौद्धिक अर्थव्यवस्था

बौद्धिक जनतंत्र में अर्थव्यवस्था को विशेष स्थान दिया गया है जिसका मूल बिंदु देश का सकल घरेलु उत्पाद न होकर देश के प्रत्येक नागरिक का समग्र विकास है. सभी कुछ कहीं भी करना या सबकुछ केवल शहरों में केन्द्रित करना बौद्धिक जनतंत्र के लक्ष्य के बाहर है. अतः बौद्धिक जनतंत्र आर्थिक गतिविधियों का देश में समान रूप से वितरित करता है जिसके लिए विविध गतिविधियों को विशिष्ट स्तरों और विशिष्ट केन्द्रों से संचालित करता है.  

  1. ग्राम-स्तर : कृषि, कुटीर उद्योग,
  2. विकास खंड-स्तर : सामाजिक वानिकी, कृषि विकास,
  3. क़स्बा-स्तर : उपभोक्ता-वस्तु व्यापार, कलाएँ एवं हस्तकलाएँ, सड़क परिवहन आगार,
  4. जनपद स्तर : सार्वजनिक सम्पदा विकास एवं संरक्षण,
  5. नगर : औद्योगिक इकाइयां एवं व्यापार,
  6. प्रांत-स्तर : औद्योगिक विकास, सड़क परिवहन,
  7. महानगर-स्तर : पर्यटन, विदेश व्यापार, चलचित्र, उद्योग एवं व्यवसाय कार्यालय, वायु परिवहन आगार
  8. राष्ट्र-स्तर : सम्यक विकास, वायु परिवहन, रेल परिवहन. .

बौद्धिक जनतंत्र व्यवस्था के लिए समस्त आर्थिक गतिविधियों को पांच विशिष्ट वर्गों में रखता है -
  • कृषि एवं पशुपालन,
  • विकासीय ढांचा,
  • खनिज एवं प्रसाधन उद्योग, 
  • अन्य उद्योग,
  • कुटीर उद्योग 
 इन वर्गों के उन्नयन के लिए सामान्य निदेशक बिंदु निम्नांकित हैं -
  1. भारत का विकास स्थानीय संसाधनों एवं प्रयासों पर ही आधारित होगा. विदेशी सहयोग केवल उन क्षेत्रों में ही अनुमत होगा जिन में स्थानीय संसाधनों का अभाव है. 
  2. विदेशी उद्योगों को स्थानीय उद्योगों से प्रतिस्पर्द्धा नहीं करने दी जायेगी और वे वही उत्पादन कर सकेंगे जिनका वे निर्यात कर सकें. 
  3. भारत को विदेशी उद्योगों का बाज़ार नहीं बनाने दिया जायेगा एवं अपनी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति स्थानीय उत्पादन से की जायेगी. इसके लिए आयात केवल नयी प्रोद्योगिकी, उत्पादक मशीनरी तक ही सीमित किया जायेगा. 
  4. स्थानीय उत्पादन प्राथमिक रूप में स्थानीय आवश्यकताओं की आपूर्ति के लिए होगा. मांग तथा उत्पादन में ऐसा संतुलन रखा जायेगा किन अधिक प्रतिस्पर्द्धा हो और किसी वस्तु का अभाव. निर्यात प्राथमिकता से बाहर होगा. 
  5. औद्योगिक सिद्धांत 'जो आज उपलब्ध है उसी को पर्याप्त समझना है' होगा. कल की अभिलाषाएं औद्योगिक विकास से संतुष्ट की जायेंगी. 
  6. एक राष्ट्रीय आयोग भारत के व्यवसायियों और राज्नाताओं के विदेशी संपर्कों पर निगरानी रखेगा और इनको नियमित करेगा. 
  7. राष्ट्रीय गुणवत्ता आयोग देश के उत्पादन की गुणवत्ता निर्धारित एवं नियमित करेगा और किसी को भी घटिया उत्पादन की अनुमति नहीं होगी. 
  8. यद्यपि देश के अंतर्गत सभी व्यापार नियंत्रण और कर मुक्त होंगे किन्तु इसमें मध्यस्थों की भूमिका न्यूनतम राखी जायेगी ताकि उत्पादन लागत एवं उपभोलता मूल्यों में न्यूनतन अंतर हो.