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रविवार, 2 मई 2010

मांग पूर्वाकलन एवं उत्पादन नियोजन

मानव जाति ने अपना समाजीकरण पारस्परिक सहयोग हेतु किया ताकि जंगली प्रतिस्पर्द्धा भावना को समाप्त किया जा सके. समाज बनाकर और सभ्यता विकास कर प्रतिस्पर्द्धा को अपनाना मानव जाति के लिए हानिकर एवं अवांछित है. ऐसी स्थिति तभी उत्पन्न होती है जब किसी वस्तु की मांग और आपूर्ति में असंतुलन हो, जिसे समुचित नियोजन से समाप्त किया जा सकता है. 

प्रतिस्पर्द्धाएं मानवीय ऊर्जाओं का दुरूपयोग करती हैं जिससे उत्पादन क्षमता का ह्रास होता है और मानव समाज प्रगति पथ पर आगे नहीं बढ़ सकता. इसलिए बौद्धिक जनतंत्र मानव समाज से प्रतिस्पर्द्धा को विलुप्त करने हेतु कृतसंकल्प है जिसके लिए प्रतिस्पर्द्धा के मूल कारण मांग और आपूर्ति में असंतुलन को समाप्त किया जायेगा. बौद्धिक शासन व्यवस्था में इसके हेतु एक संवैधानिक आयोग - मांग पूर्वाकलन एवं उत्पादन नियोजन आयोग, का गठन होगा जो प्रत्येक वस्तु एवं सेवा की मांगों का पूर्वाकलन कर देश में तदनुसार उत्पादन का नियोजन करता रहेगा.

उक्त आयोग शासन एवं उद्योगों के लिए एक परामर्शदाता के रूप में कार्य करेगा जिससे उत्पादन इकाइयां अपने उत्पादन नियोजित करने हेतु स्वतंत्र होंगी किन्तु उन्हें समुचित लाभ एवं प्रतिस्पर्द्धा से बचे रहने हेतु मार्गदर्शन उपलब्ध रहेगा.  किन्तु शासन नियोजित निःशुल्क सेवाएँ जैसे स्वास्थ, शिक्षा, न्याय, आदि इसी मार्गदर्शन के अनुरूप संचालित की जायेंगी ताकि इनमें प्रतिस्पर्द्धा पूरी तरह से अनुपस्थित रहे और जन-संसाधनों का समुचित उपयोग किया जा सके. यहाँ यह भी ध्यान देने योग्य है कि असंतुलन के साथ अधिकतम सकल राष्ट्रीय उत्पाद भी लाभकर होने के स्थान पर संसाधनों के दुरूपयोग होने के कारण हानिकर सिद्ध होता है.

बौद्धिक जनतंत्र में निर्यात संवर्धन को कोई महत्व नहीं दिया जाएगा, अपितु इसके स्थान पर प्रत्येक नागरिक को सभी आवश्यक वस्तुएं और सेवाएँ प्राप्त कराना शासन का लक्ष्य होगा. विदेशी व्यावसायिक घराने देश में उत्पादन केवल निर्यात हेतु ही कर सकंगे जिससे कि वे स्थानीय उद्योगों से प्रतिस्पर्द्धा न कर सकें. इसी प्रकार वस्तुओं के आयात को न्यूनतम रखा जायेगा जिसके लिए जो वस्तुएं देश में उपलब्ध है उन्ही को पर्याप्त माना जायेगा अथवा मांग के अनुसार उत्पादन किया जायेगा. सभी नियोजन तदनुसार ही होंगे. केवल तकनीकी के आयात ही सामान्यतः अनुमत होंगे ताकि उनके उपयोग से देश में आधुनिक वस्तुओं के उत्पादन किये जा सकें और लोगों को उपलब्ध कराये जा सकें.    

गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

बौद्धिक अर्थव्यवस्था

बौद्धिक जनतंत्र में अर्थव्यवस्था को विशेष स्थान दिया गया है जिसका मूल बिंदु देश का सकल घरेलु उत्पाद न होकर देश के प्रत्येक नागरिक का समग्र विकास है. सभी कुछ कहीं भी करना या सबकुछ केवल शहरों में केन्द्रित करना बौद्धिक जनतंत्र के लक्ष्य के बाहर है. अतः बौद्धिक जनतंत्र आर्थिक गतिविधियों का देश में समान रूप से वितरित करता है जिसके लिए विविध गतिविधियों को विशिष्ट स्तरों और विशिष्ट केन्द्रों से संचालित करता है.  

  1. ग्राम-स्तर : कृषि, कुटीर उद्योग,
  2. विकास खंड-स्तर : सामाजिक वानिकी, कृषि विकास,
  3. क़स्बा-स्तर : उपभोक्ता-वस्तु व्यापार, कलाएँ एवं हस्तकलाएँ, सड़क परिवहन आगार,
  4. जनपद स्तर : सार्वजनिक सम्पदा विकास एवं संरक्षण,
  5. नगर : औद्योगिक इकाइयां एवं व्यापार,
  6. प्रांत-स्तर : औद्योगिक विकास, सड़क परिवहन,
  7. महानगर-स्तर : पर्यटन, विदेश व्यापार, चलचित्र, उद्योग एवं व्यवसाय कार्यालय, वायु परिवहन आगार
  8. राष्ट्र-स्तर : सम्यक विकास, वायु परिवहन, रेल परिवहन. .

बौद्धिक जनतंत्र व्यवस्था के लिए समस्त आर्थिक गतिविधियों को पांच विशिष्ट वर्गों में रखता है -
  • कृषि एवं पशुपालन,
  • विकासीय ढांचा,
  • खनिज एवं प्रसाधन उद्योग, 
  • अन्य उद्योग,
  • कुटीर उद्योग 
 इन वर्गों के उन्नयन के लिए सामान्य निदेशक बिंदु निम्नांकित हैं -
  1. भारत का विकास स्थानीय संसाधनों एवं प्रयासों पर ही आधारित होगा. विदेशी सहयोग केवल उन क्षेत्रों में ही अनुमत होगा जिन में स्थानीय संसाधनों का अभाव है. 
  2. विदेशी उद्योगों को स्थानीय उद्योगों से प्रतिस्पर्द्धा नहीं करने दी जायेगी और वे वही उत्पादन कर सकेंगे जिनका वे निर्यात कर सकें. 
  3. भारत को विदेशी उद्योगों का बाज़ार नहीं बनाने दिया जायेगा एवं अपनी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति स्थानीय उत्पादन से की जायेगी. इसके लिए आयात केवल नयी प्रोद्योगिकी, उत्पादक मशीनरी तक ही सीमित किया जायेगा. 
  4. स्थानीय उत्पादन प्राथमिक रूप में स्थानीय आवश्यकताओं की आपूर्ति के लिए होगा. मांग तथा उत्पादन में ऐसा संतुलन रखा जायेगा किन अधिक प्रतिस्पर्द्धा हो और किसी वस्तु का अभाव. निर्यात प्राथमिकता से बाहर होगा. 
  5. औद्योगिक सिद्धांत 'जो आज उपलब्ध है उसी को पर्याप्त समझना है' होगा. कल की अभिलाषाएं औद्योगिक विकास से संतुष्ट की जायेंगी. 
  6. एक राष्ट्रीय आयोग भारत के व्यवसायियों और राज्नाताओं के विदेशी संपर्कों पर निगरानी रखेगा और इनको नियमित करेगा. 
  7. राष्ट्रीय गुणवत्ता आयोग देश के उत्पादन की गुणवत्ता निर्धारित एवं नियमित करेगा और किसी को भी घटिया उत्पादन की अनुमति नहीं होगी. 
  8. यद्यपि देश के अंतर्गत सभी व्यापार नियंत्रण और कर मुक्त होंगे किन्तु इसमें मध्यस्थों की भूमिका न्यूनतम राखी जायेगी ताकि उत्पादन लागत एवं उपभोलता मूल्यों में न्यूनतन अंतर हो.