बुधवार, 16 जून 2010

गुंडागर्दी और पुलिस की लापरवाही

अंततः विगत सप्ताह मेरे साथ वह हुआ जिसकी मुझे लम्बे समय से आशा थी. मेरे गाँव खंदोई, पुलिस थाना नर्सेना, जनपद बुलंदशहर में गुंडों का एक समूह है जो आरम्भ में तो काफी बड़ा था किन्तु अब उसके अनेक सदस्यों की हत्याओं अथवा गाँव छोड़ देने से कुछ छोटा होगया है. यह समूह चोरी, डकैती, बलात्कार, राहजनी, आदि के साथ-साथ गाँव में अपना वर्चस्व भी बनाये रखता है जिसके लिए गाँव के प्रधान पद पर भी अधिकार करने की प्रत्येक बार कोशिश करता है और इसमें दो बार सफल भी हुआ है. इस समूह को आशा थी कि सितम्बर-अक्टूबर, २०१० में होने वाले पंचायत चुनावों में भी उनका प्रत्याशी विजयी होगा और वे गाँव पर एक-क्षत्र शासन करते रहेंगे.

गाँव में मेरे सक्रिय होने और अनेक क्रांतिकारी सुधार किये जाने के कारण गाँव के अधिकाँश लोगों ने मुझसे प्रधान बनकर गाँव के सुधार के साथ-साथ गुंडागर्दी की समाप्ति का आग्रह किया. जनमत के समक्ष मुझे यह स्वीकार करना पडा किन्तु मेरी प्रथम शर्त यह है कि मैं किसी भी व्यक्ति को उसका मत पाने के लिए शराब अथवा कोई अन्य लालच नहीं दूंगा. लोगों ने यह भी स्वीकार कर लिया और वे स्वयं ही पारस्परिक चर्चाओं के माध्यम से मेरा प्रचार करने लगे. अनुमानतः गाँव के ७० प्रतिशत मतदाता मेरे पक्ष में हैं. मेरी लोकप्रियता से गुंडों में खलबली मची हुई है और वे किसी न किसी तरह मुझे गाँव से भगाने के प्रयासों में लगे हुए हैं.
 
गाँव के अधिकाँश लोग विगत ४० वर्षों से बिजली की बेधड़क चोरी कर रहे थे, जिससे बिजली उपकरण जर्जर अवस्था में थे और वोल्टेज सामान्य २३० के स्थान पर ५०-१०० रहता था. मैं लगभग ५ वर्ष पूर्व गाँव में अपने कंप्यूटर के साथ आया था और उपलब्ध वोल्टेज पर कंप्यूटर चलाया नहीं जा सकता था. इसलिए मैंने विद्युत् अधिकारियों से वोल्टेज में सुधार के साथ मुझे नियमानुसार विद्युत् कनेक्शन देने का आग्रह किया. विगत ५ वर्षों के मेरे सतत संघर्ष के बाद अब गाँव विद्युत् की स्थिति ठीक कहने योग्य है. इसी संघर्ष में अनेक विद्युत् चोरियां पकड़ी गयीं जिनके लिए गाँव वाले मुझे दोषी मानते हैं. इस पर भी मेरे आग्रहों पर १०० परिवारों ने विद्युत् के वैध कनक्शन करा लिए हैं. गुंडों को मेरे विरुद्ध दुष्प्रचार के लिए यह एक बड़ा कारण स्वतः प्राप्त हो गया है.

गुंडों ने उक्त सुधरी विद्युत् व्यवस्था को विकृत करने का प्रयास किया जिसे मैंने कठोरता से रोक दिया. इस पर वे मुझसे और भी अधिक क्रुद्ध हो गए हैं. पिछले सप्ताह मैं गाँव में एक स्थान पर बैठ था कि शराब में धुत एक गुंडे ने आकर मुझे गालियाँ देना आरम्भ कर दिया जिसका मैंने अपनी स्वाभाविक सौम्यता से प्रतिकार किया. इस पर उसने मुझे पीट-पीट कर गाँव से भगा देने की धमकी भी दी. मेरे कुछ समर्थकों के अतिरिक्त शेष गाँव चुप है, किसी का साहस नहीं है जो मेरे साथ आकर खडा हो जाए. कोई भी व्यक्ति गुंडों द्वारा अपमानित नहीं होना चाहता.

 यह समूह गाँव में की गयी अनेक हत्याओं में भी लिप्त रहा है और नित्यप्रति अवैध गतिविधियाँ करता रहता है. स्वयं के बचाव के लिए यह समूह स्थानीय पुलिस से घनिष्ठ सम्बन्ध बनाए रखता है जबकि जनसामान्य पुलिस से दूरी बनाये रखता है. पुलिस कर्मी बहुधा इस समूह के साथ शराब आदि की दावतों में सम्मिलित होते रहते हैं. यही समूह गाँव के लोगों को झूठे आरोपों में फंसाकर पुलिस को आय भी कराता रहता है. इस कारण से पुलिस इस समूह के विरुद्ध किसी शिकायत पर ध्यान नहीं देती.

गाँव में फ़ैली गुंडागर्दी और मेरे विरुद्ध किये गए उक्त दुर्व्यवहार की शिकायत मैंने नर्सेना पुलिस थाने में १२ जून को की थी, साथ ही गाँव के ७ भद्र लोगों का प्रतिनिधि भी पुलिस थाने के प्रभारी से मिला था. किन्तु आज तक पुलिस द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गयी है. ज्ञात हुआ है कि एक विधायक ने पुलिस को कार्यवाही न करने का निर्देश दिया है जिसका संरक्षण गुंडों को प्राप्त है. मेरे पारिवारिक इतिहास के कारण अनेक राजनेताओं से मेरे भी सम्बन्ध हैं किन्तु मैं उनका उपयोग अपने निजी स्वार्थों में नहीं करना चाहता.

क्या कोई पाठक मुझे सुझायेंगे कि मैं अपने आत्म-सम्मान की रक्षा करते हुए गाँव की सेवा कैसे करूं. मैं किसी भी मूल्य पर गाँव छोड़ने को तैयार नहीं हूँ. मुझे कोई भय भी नहीं है किन्तु मैं क़ानून को अपने हाथ में नहीं लेना चाहता किन्तु गुंडागर्दी की समाप्ति के लिए कृतसंकल्प हूँ.

27 टिप्‍पणियां:

  1. अफसोसजनक , यही है इस देश को मिली आजादी के असली लाभार्थी ! आप सतर्क जरूर रहिये ! उस अंधे प्रदेश में कुछ भी न्याय की उम्मीद मत रखिये !

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  2. कुल मिला कर आप मौजूदा व्यवस्था को चुनौती दे रहे हैं। इस व्यवस्था में पुलिस, गुंडे और विधायक सम्मिलित हैं। आप आगे देखेंगे तो इस के तार लखनऊ और दिल्ली तक खिंचे नजर आएँगे। व्यवस्था ने आप के विरुद्ध हिंसा का इस्तेमाल आरंभ कर दिया है। इस हिंसा का प्रतिकार करना ही पर्याप्त नहीं है। इस हिंसक गिरोह के विरुद्ध आत्मरक्षा के लिए लोगों को एकजुट भी करना होगा। हो सकता है इस तरह बने संगठन को हथियारबंद भी होना पड़ेगा। हो सकता है कल से आप को नक्सली भी कहा जाने लगे और ऐसा कह कर आप को बंद भी कर दिया जाए। पर यदि जमाना बदलना है तो यह सब करना होगा।

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  3. सच्चाई पर चलना बहुत मुश्किल होता है क्योंकि भ्रष्ट लोग ज्यादा हैं...ताकत उन्ही के पास है.....ऐसे में संगठित होना ही बेहतर होगा...कोशिश करके देखें की मीडिया इस बात को उठाए,तभी कुछ संभावना हो सकती है....

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  4. मै आपसे यही प्रार्थना करूंगा की आप इस विषय को समाचार पत्रों में ले कर जाएँ, आपके सभी ऊँची पहुँच वाले लोगो से संपर्क करे और उनसे इस विषय में हंस्तक्षेप करने के लिए कहे और इसके साथ साथ collector एवं police के SP स्तर के अधिकारी को लिखित आवेदन दे और यदि तब भी सुनवाई न हो तो उस लिखी आवेदन की प्रति को दैनिक समाचार पत्रों को भेजने में न हिचकें .

    मै दिवेदी जी के कथन "तार दिल्ली तक खींचे मिलेंगे से पूरी तरह से सहमत हूँ और इसके लिए आपको एक रक्छा समूह भी बनाना ही होगा" लेकिन मै उस समूह के लिए भी यही कहूँगा की इस समूह की भी लिखी जानकारी आपको SP Office और दैनिक पत्रों में देना चाहिए .

    मै यहाँ से ज्यादा कुछ तो नहीं कह सकता लेकिन ये अवश्य कह सकता हूँ की इस बदलाव की शुरुवात में, मै आपके साथ हूँ इश्वर आपकी रक्षा करे

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  5. बेहद अफ़सोसजनक घटनाक्रम

    ऐसे मामलों में एक ही सूत्रवाक्य मैं याद रखता हूँ कि 'अपनी सलीब अपने ही कंधों पर ले जानी पड़ती है'

    बाधाएँ सामने खड़ी हैं, झेलना तो पड़ेगा ही। हिम्मत बनाए रखें। राजनेताओं से सम्बन्ध हैं तो उपयोग करें। यह आपका निजी स्वार्थ नहीं है एक जनहित है।

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  6. सुधार और सत्य का मार्ग बहुत कठिन है। इस पर चलने की कोशिश करने वालों को मेरी शुभकामनाएँ।

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  7. " कोई भी व्यक्ति गुंडों द्वारा अपमानित नहीं होना चाहता."
    यही भावना आम आदमी को आगे आने से रोकती है .
    आपने एक धर्मयुद्ध छेड़ा है ऊपर बताये सारे मंतरों का उपयोग करें सफलता आपको अवश्य मिलेगी और इसी तरह से इस बीमारी को दूर किया जा सकता है
    everything is fare in love & war.

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  8. द्विवेदी जी की सलाह से हम भी सहमत |

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  9. यदि हो सके तो जिले के पुलिस अधीक्षक का ईमेल पता भी यहाँ लिखें ताकि ब्लोगर्स आपके समर्थन में उन्हें मेल कर सके

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  10. कष्टप्रद!!
    अपना व अपनों का ध्यान रखें।

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  11. बिल्कुल रतन जी का सुझाव मानने योग्य है. बल्कि मैं कहूंगा कि हम लोगों को इस समस्या के लिये सचिव स्तर के अधिकारी को मेल करना चाहिये...

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  12. Senior Superintendent of Police,
    bulandshahar office phone no. 05732-280705


    Superintendent of Police Bulandshahar sspbhr@up.nic.in, sspbhr_123@yahoo.co.in, sspbsr@rediffmail.com, sspbsr@yahoo.co.in

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  13. न हथियार की ज़रुरत है और न ही लड़ने की, ब्लोगेर्स में एकता की ज़रुरत है. यह फिल्म देख लें बात समझ में आ जाएगी. एकता से बड़ी कोई ताक़त नहीं. http://www.fatmiya.net/2010/05/we-must-take-lesson-from-this-movie.html

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  14. बदलाव लाना कठिन तो है लेकिन नामुमकिन नहीं. सबसे पहले तो यही कहूँगा की आप अधिक सतर्क रहिये, अपना और अपनों का ध्यान रखिये क्योंकि जिस तरह के लोग आपने बतलाये है वो चोट खाए हुए है और तिलमिला कर किसी भी घटिया हरकत पर उतर कर सकते है.
    यद्यपि कुछ सार्थक कार्यवाही होने की उम्मींद कम है लेकिन फिर भी आप अपनी तरफ से स्थानीय या राज्य प्रसाशन को लिखित रूप में भी अपनी शिकायत अवश्य भेजे.

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  15. पहले तो आप प्रधान पद के लिए अपना दावा त्याग दें -
    और यह त्याग पहले ही दिखना चाहिए था -थोड़ी देर तो हुयी है मगर अब भी
    आप इसके लिए प्रतिबद्ध हो सकते हैं -यद्यपि अब आप पर यह लंक्षण लगेगा कि
    आप दर कर भाग लिए ....
    समाज सेवा के लिए त्याग जरूरी है ....अपने .गाँव के प्रति आपका समर्पण दीखता ही है !
    अब आपको प्रधानी की क्या जरूरत है ? जीवन भर तो सरकारी सेवा में रहे !
    त्याग के आगे गुंडों की फ़ौज भी नतमस्तक हो जायेगी !

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  16. आप अपने कार्य में लगे रहें । भगवान अन्य पक्षों को भी सद्बुद्धि दे ।

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  17. सर्वप्रथम आपके साहस को प्रणाम जहाँ तक गुंडों की बात है ये समाज में वायरस जैसे होते हैं और स्थानीय पुलिस
    इनका कुछ नहीं बिगाडती आपको ऊँचे लेवल के लोंगो से संपर्क रखना होगा अपनी सुरक्षा के लिए सावधान
    और मजबूत रहना होगा . . . और हाँ हम सभी ब्लोगर भाई आपके साथ हैं . . .

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  18. हम आपके साथ हैं, जो हो सकता है, जितना हो सकता है, हम भी करेंगे.

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  19. बेहद तकलीफदेह ! मगर आप अकेले यह कार्य न करें आपको अपना समर्थन तंत्र जो भलीभांति शक्तिशाली भी हो बनाना पड़ेगा , अकेले करने का प्रयत्न करेंगे तो जीत होने की सम्भावना न के बराबर समझिएगा ! आप जैसे लोग समाज के लिए कीमती धरोहर हैं कृपया जल्द्वाजी में गलत कदम न उठायें ! आशा है बुरा नहीं मानेंगे ! मैं दिल्ली में हूँ अगर किसी प्रकार की मदद चाहिए तो निस्संकोच लिखें !
    सादर

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  20. आप सभी को धन्यवाद. मुझे प्रधान पद की ना कोई आवश्यकता है और ना अभिलाषा. किंतु गाँव के हिट में और निर्धन निस्सहाय समाज के आगृह पर मैने इसे स्वीकार किया है. इसमे बारे में भी विरोधियों द्वारा प्रयास किया जा रहा है की यह पद आरक्षित हो जाए और मैं मार्ग से हट जाऊं. राज्य की घोषित नीति के अनुसार यह पद सामान्य वर्ग में ही रखा जाना चाहिए.
    मेरा आप सभी से आग्रह है की इसे देश के समस्त प्रबुद्ध वर्ग के विरुद्ध एक षड्यंत्र मानते हुए इसके विरुद्ध एकजुट स्वर बुलंद करें. इसके लिए कुच्छ संपर्क सूत्र दे रहा हून उनका अथवा अपने निजी संपर्कों का उपयोग कर शासक-पराशासकों को सूचित करें की देश का प्रबुद्ध वर्ग उनके कुशासन के विरुद्ध एकजुट है -
    Narsena police Station Incharge 9454403155
    Circle Officer Siyana 09454401557
    SSP Bulandshahr 09454400253
    sspbhr@up.nic.in, sspbhr_123@yahoo.co.in, sspbsr@rediffmail.com, sspbsr@yahoo.co.in

    इनके अतिरिक्त आप केंद्रीय एवं राज्य सरकारों को भी अपनी प्रतिक्रियाओं से अवगत कराएँ. मैं अभी मानव अधिकार आयोग को अपनी शिकायत भेज रहा हूँ. क्योंकि मुझे मेरी इच्च्छानुसार अपने पैतृक गाँव में रहने से रोका जा रहा है जो मेरा मौलिक अधिकार है.

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  21. सब कुछ पढकर मुझे तनिक भी आश्‍चर्य नहीं हुआ। बात केवल आपकी नहीं, आप जैसे तमाम लोगों की है। सबके सब, 'निष्क्रिय सज्‍जन' बने रह कर चाहते हैं कि आप कामयाब हो जाऍं। मेरे प्रिय मित्र विजय वाते का एक शेर शायद आप पर भी लागू हो जाए -

    चाहते हैं सब के बदले ये अंधेरों का निजाम
    पर हमारे घर किसी बागी की पैदाइश न हो।

    सब मिल कर आपको बागी बनाने पर तुले हैं। कीमत आपको ही चुकानी पडेगी। तय कर लीजिए कि क्‍या करना है। आपकी मौत भी हो सकती है। मुमकिन है, आपकी मौत ही वह बदलाव लाए जिसके लिए आ जीना चाह रहे हैं।

    व्‍यक्तिगत रूप से मैं आपके साथ हूँ। किन्‍तु लिखित और मौखिक समर्थन से ऐसे मामलों मे कुछ भी नहीं होता। आपको 'जन बल' की तत्‍काल आवश्‍यकता है।

    स्‍थानीय मीडिया से सम्‍पर्क करने की कोशिश कीजिए। शायद बात बन जाए।

    आपकी सफलता के लिए हार्दिक शुभ-कामनाऍं।

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  22. @विष्णु वैरागी
    यथार्थ उक्ति के लिए धन्यवाद. उपरोक्त सभी टिप्पणियाँ मात्र औपचारिक सहानभूतियाँ सिद्ध हुई हैं. तथापि मैं अडिग रहा हून अपने संघर्ष में. तभी एक ब्लॉगर श्री जय कुमार झा : honesty project democracy से अभूतपूर्व सहायता मिली. एक संपर्क बन गया है - शत्रुओं को ध्वस्त करने के लिए जिसका उपयोग अभी किया जाना है. तथापि अड़िगता के समक्ष शत्रु घुटने टेक चुके हैं.

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  23. अपने अन्दर धधकने वाली आग में भगत सिंह की भांति स्वयं को जलाना कोई समझदारी नहीं है।
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    मैं श्री विष्णू बैरागी जी को व्यक्तिगत रूप से जानता हँू। वरिष्ठ पत्रकार हैं। मैंने चेतना समाचार-पत्र में उनके अनेक आलेख और सम्पादकीय पढे हैं और उनके जीवन बीमा के क्लाइण्ट्‌स से भी मिलता रहा हँू। विद्वान व्यक्ति हैं। रतलाम में जैसी तीखी नमकीन मिलती है, उसी प्रकार का तीखा एवं व्यंगात्मक लिखते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत की बात की जाये जो मुझे आज तक कोई उपलब्धि देखने को नहीं मिली। कागजों में पोस्टमार्टम करना और मैदान में आकर भिडना दोनों अलग-अलग बातें हैं। श्री बैरागी जी की बैबाक टिप्पणी है, लेकिन श्री बैरागीजी बहुत बडे पत्रकार हैं, आपकी ऊंची पहूँच भी हैं। चाहें तो बैठे-बैठे आपकी समस्या बडे से बडे समाचार में छपवा सकते हैं। परन्तु क्षमा करना श्री बैरागीजी आज के लोग व्यक्तिगत सम्बन्धों को केवल अपने लिये बचाकर रखते हैं, क्या आप पर भी यह बात लागू नहीं होती है।

    बहुत सारे लोगों ने बहुत सारी बातें कही हैं। मेरा भी साफ मानना है कि आपका बिना राजनैतिक तैयारी के चुनाव लडने के लिये मैदान में उतरना भूल नहीं, बल्कि मूर्खता है और आप उसी की कीमत चुका रहे हैं। यदि अपवादों को छोड दें तो आज चाहे कितने भी अच्छे व्यक्ति को चुनाव लडना हो, उसके पास बुद्धिबल के साथ-साथ धनबल, जनबल और बाहुबल जैसी आवश्यक बुराईयों का होना बहुत जरूरी हो गया है। राजनीति में भावनाओं का कोई मूल्य नहीं होता है।

    आपने लिखा है कि आपको सहयोग मिल गया है। श्री विष्णू बैरागी जी की बात पर फिर से आता हँू कि सब आपको बागी बनाने पर तुले हैं और शायद आप भी यही चाहते हैं। मैं हर मंच से बार-बार कहता रहा हँू कि भगत सिंह जैसा जज्बा तो रखो, लेकिन अपने अन्दर धधकने वाली आग में भगत सिंह की भांति स्वयं को जलाना कोई समझदारी नहीं है। इस देश में आजादी के बाद राजनैतिक, सांस्कृतिक और प्रशासनिक गन्दगी लगातार बढती जा रही है। गन्दगी के विरुद्ध सामूहिक संघर्ष की जरूरत है, न कि व्यक्तिगत रूप से शहीद होने की।

    आपका मामला मेरी ओर से मुख्यमन्त्री, उ. प्र., राज्य मानव अधिकार आयोग, उ.प्र. एवं राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के साथ-साथ चुनाव आयोग को भी भेज रहा हँू। फिर भी जमीनी हकीकत यही है कि इस देश को आप जैसे लोगों की जरूरत हैं। अतः भावनाओं को तिलांजलि देकर, हकीकत से रूबरू हों और जोश में होश नहीं खोना चाहिये। मुर्दा लोगों की भीड की ताकत के बल पर अपने आपको बलशाली समझने की भूल नहीं करें। मैं यह तो नहीं कहना चाहता कि आप मैदान से हट जायें, लेकिन फिर से कहँूगा कि बिना राजनैतिक तैयारी के राजनैतिक अखाडे में उतरना किसी भी व्यक्ति के लिये और विशेषकर जुझारू लोगों के लिये निरा मूर्खता ही है।

    शुभकामनाओं सहित।

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  24. @डॉक्टर पुरुषोत्तम लाल मीना
    यदि देश और समाज बचाना है तो चंद्रशेखर, सुभाष चंद्र बोस, गाँधी, की तरह ही अपनी देशभक्ति की आग में जलना होगा. देश-भक्ति, समाज-सुधार, भरष्टाचार-उन्मूलन केवल नारे लगाने के लिए शब्द नहीं हैं, ये सभी आग हैं जिनमें किसी ना किसी को तो कूदना ही होगा, किंतु पूरी बौद्धिकता के साथ, मात्र भावुकता पर्याप्त नहीं है. और आज मैं इसके बीच खड़ा हूँ - कोई ना कोई साथी भी मिलेगा.

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  25. वन्दे मातरम आदरणीय बड़े भाई,
    खादी और खाकी का गठजोड़ बहुत पुराना, पुलिस और बदमाशों के सम्बन्ध भी कोई नई बात नही है......... मगर ये गठजोड़ कभी भी एक सही आदमी को (जो क़ानून की समझ व् उच्चाधिकारियों से मिलकर अपनी बात रखने का हौसला रखता हो ) झुकाने मैं कामयाब नही हो सकता...... आप अपनी सभी समस्याओं को लेकर एस पी महोदय से मिलिए आपकी समस्या का समाधान अवश्य होगा, इन गुंडों की ओकात केवल निचले स्तर के पुलिस कर्मी ही होते हैं ........ किसी आला अधिकारी के तो ये सामने भी नही पड़ सकते हैं, यदि समस्या का समुचित समाधान नही होता है तो आप अन्य उच्चाधिकारियों से मिलकर अपनी बात रख सकते हैं, समाधान जरूर होगा ..... गुंडे बदमाशों मैं आत्मबल नाम की कोई चीज नही होती है.... आप डटे रहिये आपका कोई बाल भी बांका नही कर पायेगा,

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  26. At the village level have surrender your anti party.And nothing can ruin that you have they have given up.I believe in the 80% rural of my village with you.Most of the villegers are satisfy with you and your work also your behave towards the gunde .all the hooligans are terrified of this kind is too afraid to speak "said something wrong by mistake Lyrics O gel [havalat] will then be a direct result. Engineer Sshab These people can not do anything that you still need to be vigilant. Best of luck.All the socialist person support with you.

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