इस सबसे दुखी होकर जब पीछे हटने लगता हूँ तो यही जन-साधारण अपनी रक्षा और विकास की दुहाईयाँ देकर मुझे आगे कर देते हैं, क्योंकि इन्हें आशा है कि मैं ही इनके कष्टों का निवारण कर सकता हूँ और गाँव को पूरी निष्ठां और ईमानदारी के साथ विकसित कर सकता हूँ. इसलिए ये लोग मुझे ढाल तो बनाना चाहते हैं किन्तु उस ढाल के पीछे अपना सीना तान कर खड़े नहीं रखना चाहते. ये डरपोक हैं. अपने अधिकारों के लिए संघर्ष का साहस इनमें नहीं है.
देश का जन-साधारण स्वतंत्र रहकर अपने दायित्व का निर्वाह करने से बचता है, जबकि स्वतन्त्रता और दायित्व तो साथ-साथ ही चलते हैं. जिससे निष्कर्ष यह निकलता है कि ये स्वतंत्र रहने योग्य नहीं हैं. राष्ट्र और समाज के प्रति अपना दायित्व न समझने के कारण भारतीय जन-साधारण स्वतन्त्रता प्राप्ति पर उद्दंड होने की बहुत अधिक संभावना रखता है. इस कारण से स्वतन्त्रता के भारतीय अनुभवों में देश में अनुशासन की अपेक्षा उद्दंडता का बहुत अधिक प्रसार हुआ है. इस उद्दंडता के संयमन हेतु देश में कठोर न्याय व्यवस्था की अतीव आवश्यकता है जिसका भी यहाँ नितात अभाव है. ऐसी स्थिति में में कठोर, अनुशासित व्यवस्थापक ही भारतीय समाज को सद्मार्ग पर चला सकता है. इसी धरना के साथ मैं गाँव स्तर पर व्यवस्था करने के लिए तैयार हुआ हूँ.
मेरी व्यवस्था की उग्रता और व्यग्रता देखकर जन-साधारण निश्चिन्त अनुभव करता है, किन्तु इस समाज पर शासनाभिलाषी मेरे विरुद्ध कार्य करने लगे हैं, जिनमें देश की वर्त्तमान राजनैतिक व्यवस्था भी सम्मिलित है. अब समस्या यह है कि पीछे हटता हूँ तो समाज पिसता है जिससे मुझे सहानुभूति है और जिसके लिए मैं एक नयी व्यवस्था देना चाहता हूँ. आगे बढ़ता हूँ तो वर्तमान शासन मेरे विरुद्ध खडा हो जाता है जिसे मेरी उपस्थिति से खतरा है. मुझे भी इसके विरुद्ध उठ खड़ा होना होगा, किन्तु जन-साधारण मेरे इस संघर्ष में मेरा साथ नहीं देता है. इसे मुझ पर तो भरोसा है किन्तु स्वयं पर नहीं है.
ये लोग मुझे ढाल तो बनाना चाहते हैं किन्तु उस ढाल के पीछे अपना सीना तान कर खड़े नहीं रखना चाहते. ये डरपोक हैं. अपने अधिकारों के लिए संघर्ष का साहस इनमें नहीं है.
जवाब देंहटाएं@ यही तो विडंबना है इस देश के नागरिकों के साथ
आभार इस आलेख का.
जवाब देंहटाएंबिना अपेक्षा कार्य करते जाइए, इसके सिवाय कोई चारा नहीं है। क्योंकि समाज आज अपने सुखों के छिनने से चिंतित है, वे आपका साथ नहीं देगा।
जवाब देंहटाएंएक हद तक आप की बात सही है। लेकिन गांवों में जो दबे कुचले लोग हैं, वे ही आप के साथ खड़े हो सकते हैं। लेकिन आप को पहले उन्हें यह विश्वास दिलाना होगा कि यदि वे सब एक साथ खड़े हो जाएँ तो व्यवस्था का मुकाबला कर सकते हैं।
जवाब देंहटाएंआपका संघर्ष वन्दनीय है। आपका रास्ता मुश्किल अवश्य है लेकिन मंजिल असम्भव नहीं है, अपनी हिम्मत बनाये रखें… समय लग सकता है लेकिन जैसे-जैसे लोगों को समझ में आता जायेगा, आपके पीछे कारवां बनने लगेगा… तब तक संघर्ष अवश्यम्भावी है।
जवाब देंहटाएंआपको नमन…