गाँव में रहकर मैं कुछ ऐसे बच्चों का मार्गदर्शन भी करता हूँ जिनके माता-पिता उनकी शिक्षा के प्रति गंभीर प्रतीत होते हैं. मेरे संपर्क में आने वाले इस प्रकार के बच्चों में अधिकाँश बच्चे अंग्रेज़ी माध्यम विद्यालयों में शिक्षा पा रहे होते हैं. इससे मैं यह निष्कर्ष निकालता हूँ कि शिक्षा के प्रति गंभीर सभी माता-पिता अपने बच्चों को अंग्रेज़ी माध्यम विद्यालयों में शिक्षा प्रदान कराना चाहते हैं. इनमें से भी अधिकाँश वे होते हैं जो अभी या कभी राजकीय वेतनभोगी रहे हैं, क्योंकि देश का यही मध्यम वर्ग अंग्रेज़ी माध्यम शिक्षा का आर्थिक भार सहन करने में समर्थ है.
इस प्रकार के अनुभवों से कुछ शिक्षाप्रद तथ्य मेरे हाथ लगे हैं -
- शिक्षा में माता-पिता की गंभीरता केवल आर्थिक भार सहन करने की क्षमता होती है, ना कि बच्चों को मार्ग दर्शन देने की क्षमता.
- माता-पिता की गंभीरता यह अर्थ कदापि नहीं है कि बच्चे भी अपनी शिक्षा में गंभीर हों. अतः माता-पिता पर आर्थिक भार बच्चों की अच्छी शिक्षा में निश्चित रूप से परिवर्तित नहीं होता.
- अंग्रेज़ी माध्यम शिक्षा के अत्यधिक महंगी होने का यह कदापि अर्थ नहीं है कि विद्यालय बच्चों को अच्छी शिक्षा प्रदान करने में रूचि रखते हैं अथवा वे इसमें समर्थ होते हैं. किन्तु निश्चित रूप से इनमें शिक्षा प्रदान करने का आडम्बर उच्च स्तर का होता है.
- अंग्रेज़ी माध्यम विद्यालयों में अंग्रेज़ी के पाठ्यक्रम ऐसे होते हैं जिन्हें ९० प्रतिशत बच्चे समझ ही नहीं सकते. ऐसे अनेक विद्यालयों में अंग्रेज़ी के अध्यापक भी पाठ्यक्रम को समझने में असमर्थ होते हैं. इन कारणों से बच्चों को अंग्रेज़ी पढ़ने की मात्र औपचारिकता पूरी की जाती है जिसके लिए उनकी पुस्तकों में केवल चिन्हित अंशों को रटाने की परम्परा है. इस कारण से इन विद्यालयों के ९० प्रतिशत बच्चों का अंग्रेज़ी भाषा ज्ञान लगभग शून्यस्थ ही रहता है जिसके कारण वे प्रायः विद्यालय अथवा शिक्षा का परित्याग करते रहते हैं.
- ऐसे विद्यालयों में अन्य विषयों की शिक्षा भी अंग्रेज़ी माध्यम से होती है. अतः ९० प्रतिशत बच्चे इन विषयों के प्रश्नों को भी समजने में असमर्थ रहते हैं इसलिए समुचित उत्तर भी नहीं दे पाते. इसके कारण भी बच्चे प्रायः विद्यालय अथवा शिक्षा का परित्याग करते रहते हैं.
एक अन्य बच्ची कक्षा ९ की है जो आरम्भ से ही अंग्रेज़ी माध्यम विद्यालय में पढ़ती रही है. उसे कभी भी अंग्रेज़ी-हिंदी अनुवाद तथा अंग्रेज़ी व्याकरण नहीं पढाई गयी इसलिए उसका अंग्रेज़ी ज्ञान शून्यस्थ है जिसके कारण वह गणित के प्रश्नों को भी नहीं समझ सकती. तथापि कक्षा ८ की परीक्षा में उसने ७० प्रतिशत अंक प्राप्त किये थे. माता-पिता को बच्ची के अच्छे अंकों पर बहुत गर्व है. मेरे समक्ष वह अंग्रेज़ी की पुस्तक खोलने से भी कतराती है. इस भय के कारण उसका स्वास्थ भी खराब है.
आईये सुनें ... अमृत वाणी ।
जवाब देंहटाएंआचार्य जी
अंग्रेजी माध्यम ने सिर्फ और सिर्फ भ्रष्ट और तीकरमी लोगों को पैदा करने का काम किया है क्योकि अंग्रेजी का आधार और चरित्र ही ऐसा है ,भारत में सरकारी व्यवस्था में अंग्रेजी की प्राथमिकता ने और हिंदी के प्रचार प्रसार के ढोंग ने स्थिति को अंग्रेजों का गुलाम बना दिया है और शिक्षा माफिया उसके एजेंट बन कर लोगों को चूस रहें हैं | इस देश की सरकार तो शिक्षा के विकाश के नाम पर कुछ भी ईमानदारी से नहीं करना चाहती है |
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