श्री जगदीश गाँधी |
डॉ जगदीश गाँधी लखनऊ नगर के सुप्रसिद्ध एवं कर्मठ शिक्षाविद हैं. नगर का सर्वश्रेष्ठ विद्यालय 'सिटी मोंटेसरी स्कूल' उनकी कर्मठता का जीवंत प्रतीक है. आज ही उनका एक पत्र प्राप्त हुआ है जिसके साथ उन्होंने अपना एक सुविचारित आलेख 'परमात्मा की इच्छाओं को ही अपनी इच्छाएँ बनाएं' भी प्रकाशनार्थ संलग्न किया है. यद्यपि मैं आलेख में उल्लिखित उनके अनेक दृष्टिकोणों से सहमत नहीं हूँ, तथापि उनका आलेख इतना विचारोत्तेजक है कि उस की अवहेलना नहीं की जा सकती. साथ ही उनके विचारों को बिना अपनी टिप्पणी के प्रकाशित करना भी मेरे लिए संभव नहीं है. आलेख में जो विचारबिन्दु उन्होंने प्रस्तुत किये हैं, उनका विरोध किया जाना भी उतना ही तर्क विसंगत है जितना कि उनकी अवहेलना करना. अतः, उन पर वृहत विचार विमर्श की आवश्यकता है. इसी आशय से में उनके आलेख को यहाँ दो भागों में बिन्दुवार प्रस्तुत कर रहा हूँ, जिनपर विचार विमर्श हेतु मेरी टिप्पणियां भी संलग्न हैं.
प्रस्तुत है इस श्रंखला का भाग एक -
परमात्मा की इच्छाओं को ही अपनी इच्छाएँ बनाएं
(१) परमात्मा की इच्छाओं को ही अपनी इच्छाएं बनाएं : -
हमें परमात्मा की इच्छाओं को ही अपनी इच्छा बनाने की कोशिश करनी चाहिए. रावण ने अपनी भौतिक इच्छाओं की पूर्ती के लिए जीवन-पर्यंत पूजा-पाठ किया और अंत में विनाश को प्राप्त हुआ. राम ने परमात्मा की इच्छा को अपनी इच्छा बनाकर जीवन जिया और वे राजा राम से मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्रीराम बन गए. हमारा मानना है कि समाज सेवा के प्रत्येक कार्य को भगवन का कार्य मानकर करना ही जीवन जीने की श्रेष्ठ कला है. नौकरी या व्यवसाय के द्वारा ही आत्मा का विकास किया जा सकता है. जूनियर मार्टिन लूथर किंग ने अपने एक भाषण में बहुत ही प्रेरणादायी बात कही, "अगर किसी को सड़क साफ़ करने का काम दिया जाए तो सफाई ऐसी करनी चाहिए जैसे महान चित्रकार माइकल अन्जेलो पेंटिंग कर रहा हो, जैसे विश्वविख्यात संगीतकार बीथोविन संगीत रचना में जुटे हों या शेक्सपिअर कोई कविता लिख रहे हों". काम कोई हो उसे ईश्वर की भक्ति और समाज सेवा की भावना के साथ करने से खुशी मिलती है और विनम्रता हासिल होती है. इसलिए हमें अपने प्रत्येक कार्य को पूरे मनोयोग तथा उत्साह से करना चाहिए.
मेरी टिप्पणी :
परमात्मा एक कल्पना मात्र है, जिसका उद्द्येश्य भोली-भाली मानवता को उसके नाम पर आतंकित कर उसका शोषण और उसपर शासन करना है. मानवता का इतिहास यही सिद्ध करता है. रावण वंश एक दानव वंश था जिसके दस सदस्य भारत में आ बसे थे और यहाँ नारियों का उत्पीडन कर रहे थे. उनके vanshaj ही उसे एक विद्वान् बता रहे हैं, जो एक भ्रान्ति है. राम वस्तुतः महान पुरुष थे जिन्होंने अपना जीवन लोक कल्याण को समर्पित किया हुआ था. मानवता के शत्रुओं ने उनकी हत्या की थी. श्री गाँधी के अन्य विचार सराहनीय एवं अनुकरणीय हैं.
(२) हम तो एक मात्र कर्म करने के लिए उत्तरदायी हैं : -
अपने सकारात्मक विचारों तथा ऊर्जा को ईमानदारी से और बिना थके हुए समाज क़ी भलाई के कार्यों में लगाना चाहिए. इस प्रयास से अपरिमित सफलता हमारे कदमों में होगी. पवित्र गीता की सीख है कि "हम अपने कार्यों के परिणाम का निर्णय करने वाले कौन हैं? यह तो भगवान् का कार्यक्षेत्र है. हम तो एक मात्र कर्म करने के लिए उत्तरदायी हैं.
मेरी टिप्पणी :
गीता निश्चित रूप से महान ज्ञान का स्रोत है. किन्तु isakee भाषा वैदिक संस्कृत है जिसके बारे में किसी को भी पूर्ण ज्ञान नहीं है. इतना सुनिश्चित है कि वैदिक संस्कृत आधुनिक संस्कृत से sarvatha भिन्न भाषा है जिसके sabdaarth भी sarvathaa भिन्न हैं. श्री अरविन्द तथा मेरे शोधों के अनुसार इस भाषा के शब्दार्थ तत्कालीन विकसित भाषाओं लैटिन तथा ग्रीक शब्दार्थों से अनुप्रेरित हैं. अतः गीता का ज्ञान अभी अज्ञात है.
हम ही कर्म करते हैं, और उसे लक्ष्य के अनुसार सफलता के लिए ही करते हैं, किन्तु परिणाम कर्म निष्पादन की श्रेष्ठता, सामाजिक एवं प्राकृतिक परिस्थितियों से निर्धारित होते हैं. इसलिए ये पूरी तरह कर्ता के अधीन नहीं होते.
(३) हमारी संस्कृति, सभ्यता तथा संविधान विश्व के सभी देशों में अनूठा है : -
हमारा प्राव्हीन ज्ञान एक अनूठा संसाधन है, क्योंकि उसमें लगभग पांच हज़ार वर्षों की सभ्यता का भण्डार है. राष्ट्रीय कल्याण तथा विश्व के मानचित्र पर देश के लिए एक सही स्थान बनाने के लिए इस संपदा का लाभ उठाना जरूरी है. हमारी संस्कृति, सभ्यता तथा संविधान विश्व के सभी देशों में अनूठा है. भारत की असली पहचान उसका आध्यात्मिक ज्ञान है. भारत को विश्व का आध्यात्मिक नेतृत्वा के लिए आगे आना चाहिए.
मेरी टिप्पणी :
भारत में कोई संस्कृति न होकर केवल विकृतिया हैं, जिनको समाज कंटकों ने अपने निहित स्वार्थों के पोषण और निरीह जनमानस के शोषण के लिए समाज में स्थापित किया है. जो कर्मशील सभ्यता यहाँ राम आदि ने विकसित की थी उसे लगभग १६०० वर्षों की गुलामी ने पूरी तरह नष्ट-भृष्ट कर दिया है. अब समाज में केवल बुद्धिहीनता व्याप्त है और धर्म इसका सतत पोषण करते रहे हैं. जो मानवता बिना किसी प्रतिरोध के १६०० वर्ष गुलाम रही हो, जिसपर चन्द चोर-लुटेरे शासन करने में सफल रहे हों, उसे अपनी संस्कृति, आचरण और सभ्यता पर पुनः विचार करना चाहिए और उसमें आमूल -चूल परिवर्तन करने चाहिए.
भारत की जनता लम्बी गुलामी के कारण अभी भी लोकतंत्र के योग्य नहीं है. इस कारण से स्वतन्त्रता के बाद भी यहाँ कुशल शासन व्यवस्था स्थापित न होकर केवल चोर-लुटेरों के शासन स्थापित होते रहे हैं. सामाजिक विसंगतियां, घोर भृष्टाचार, चारित्रिक पतन आदि विकृतियाँ जिस संविधान के अंतर्गत विकसित हो रही हों, वह संविधान कचरे के ढेर में फैंक दिया जाना चाहिए.
(४) ज्ञान हमको महान बनाता है : -
हमें किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति में सफल होने के लिए आदमी उत्साह और तथा विफलताओं का सामना करने और उनसे सीखने के साहस की आवश्यकता होती है. अध्ययन से स्रजनात्मकता आती है. स्रजनात्मकता विचारों को आगे बढाती है. विचारों से ज्ञानवर्धन होता है और हमको महान बनाता है.
मेरी टिप्पणी :
श्री गाँधी के उपरोक्त विचार सराहनीय हैं, विशेष रूप से 'लक्ष्य की प्राप्ति में सफल होने के लिए ...' जो गीता के ज्ञान को खुली चुनौती देते हैं.
(५) विश्व एकता की शिक्षा की इस युग में सर्वाधिक आवश्यकता है : -
विश्व किसी व्यक्ति, संगठन और दल कि तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है. पारिवारिक एकता विश्व एकता की आधारशिला है. इस युग में विश्व एकता की सर्वाधिक आवश्यकता है. विश्व की एक सशक्त न्यायपूर्ण व्यवस्था तभी बनेगी जब प्रत्येक महिला और पुरुष अपनी बेहतरीन योग्यताओं और क्षमताओं के साथ योगदान देगा.
मेरी टिप्पणी :
मैं श्री जगदीश गाँधी के इस विचार से पूर्णतः सहमत हूँ.
मैं, राम बंसल |
(६) भारत ही विश्व में शांति स्थापित करेगा : -
एक देश केवल कुछ लोगों के महान होने से महान नहीं बनता, बल्कि इसलिए महान बनता है कि उस देश में हर कोई महान होता है. हमारे देश के सौ करोड़ प्रज्वलित मस्तिष्कों की शक्ति, इस धरती के नीचे, धरती के ऊपर और धरती पर स्थित संसाधनों की शक्ति से अपेक्षाकृत कहीं ज्यादा शक्तिशाली है. इसलिए भारत ही विश्व में शांति स्थापित करेगा.
मेरी टिप्पणी :
निश्चित रूप से मानव मस्तिष्क की शक्ति विश्व के अन्य सभी संसाधनों से अधिक शक्तिशाली होती है. किन्तु भारत की इस शक्ति का उपयोग केवल विदेशों में ही हो रही है जहां भारतीय सस्ते मजदूरों के रूप में प्रसिद्ध हैं क्योंकि वर्तमान भारतीय व्यवस्था में उनके लिए कोई स्थान नहीं है. इसलिए विश्व में भारत को कोई सम्मानित स्थान प्राप्त नहीं है और नहीं हम सुधार के लिए कुछ कर रहे हैं.
..... शेष भाग दो में.