लगभग ३५०० की जनसँख्या वाले मेरे गाँव खंदोई में केवल ५-६ व्यक्ति समाज-कंटक कहे जा सकते हैं, किन्तु ये ५-६ ही सर्व व्यापक प्रतीत होते हैं. मूल रूप में इन का कार्य दूसरे लोगों की विवशताओं और निर्बलताओं का लाभ उठाते हुए उनका आर्थिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक शोषण करना है. इनकी विशेषता यह है कि ये रोज शाम को शराब पीते हैं जब कि इनमें से कोई भी इतना संपन्न नहीं है कि स्वयं के धन से शराब पी सके या दूसरों को पिला सके. इसके लिए ये गाँव के लोगों में झगड़े-फसाद कराते हैं, और उसके बाद एक का पक्ष लेकर उसके धन से शराब पीते हैं.
इनकी शराबखोरी के लिए आय का दूसरा स्रोत वे लोग बनते हैं जो स्वयं अपराध करते हैं. इनके अपराध प्रकाश में आने से इन्हें रक्षा की आवश्यकता होती है जो इन्हें समाज कंटकों द्वारा सहर्ष प्रदान की जाती है. इस रक्षा के बदले अपराधी इनके लिए शराब आदि की व्यवस्था करते हैं. यद्यपि ये सभी मामलों में अपराधी को बचा नहीं पाते हैं किन्तु बचाए रखने का आश्वासन देकर और उसकी पुलिस से मध्यस्थता करते हुए अधिकाधिक लम्बे समय तक उसके धन से शराब पीते रहते हैं. इन्हीं के आश्रय पर गाँव में शराब विक्रय के अवैध केंद्र बने हुए हैं. उदाहरण के लिए गाँव में अभी हाल में हुए बलात्कार के मामले में उसकी पुलिस में शिकायत होने पर भी ये समाज-कंटक उस अपराधी को पुलिस से सुरक्षा का आश्वासन देते रहे और इस प्र्ताक्रिया में उसके २५,००० रुपये व्यय कराकर उसे स्वयं पुलिस के हवाले कर दिया, जिसके विरुद्ध समुचित कार्यवाही हुई.
समाज कंटकों की आय का तीसरा स्रोत राजनैतिक सत्ताधारी हैं जो चुनाव के दिनों में जन-साधारण के मत पाने के लिए इनकी सहायता माँगते हैं और उसके बदले इन्हें धन देते हैं. बाद में ये राजनेता ही इनकी पुलिस और न्याय व्यवस्था से रक्षा करते हैं. इन सत्ताधारियों से संपर्क बनाए रखने के लिए ये स्वयं भी गाँव की राजनैतिक सत्ता हथियाने का प्रयास करते हैं जिसमें सम्बंधित राजनेता भी इनकी सहायता करते हैं. इस सत्ता को हथियाने के लिए ये लोग समाज में जातीय, धार्मिक, साम्प्रदायिक आदि विष घोलते हैं, लोगों में परस्पर मतभेद कराते हैं और उन्हें भ्रमित करके उनके मत पाकर राजनैतिक सत्ता हथियाते हैं. इस सत्ता के माध्यम से ये सार्वजनिक धन का दुरूपयोग करते हुए वैभवशाली जीवन जीते हैं.
इनकी आय का चौथा स्रोत पुलिस है जिससे ये घनिष्ठता बनाए रखते हैं जब कि जन-साधारण पुलिस से दूर रहना पसंद करता है. जब भी किसी जन-साधारण को पुलिस की सहायता की आवश्यकता होती है, ये लोग उस व्यक्ति की पुलिस के साथ मध्यस्थता करते हैं और पुलिस को उस व्यक्ति से धन दिलाते हैं, जिसमें इनका भी हिस्सा होता है. चूंकि ये लोग पुलिस को आय के मुख्य स्रोत हैं, पुलिस भी इन्हें महत्व देती है और इनसे संपर्क बनाए रखती है.
अभी आगामी ग्राम पंचायत चुनाव के लिए पुलिस कुछ तथाकथित समाज-कंटकों के विरुद्ध सदा के तरह कार्यवाही कर रही है जिसके लिए पुलिस इन्हीं समाज-कंटकों के साथ मिलकर सूची बना रही है. इस सूची में इनके नाम सम्मिलित नहीं किये जा रहे किन्तु अनेक सम्मानित लोग समाज-कंटकों के रूप में सूचीबद्ध किये गए हैं. इनमें से जिनको पुलिस कार्यवाही से बचना होता है वे इन्हीं समाज-कंटकों की सहायता माँगते हैं जिसके बदले इन्हें असली समाज कंटकों को शराब आदि पिलानी होती है. प्रत्येक चुनाव प्रक्रिया में ऐसा ही होता रहा है. सूचनार्थ बता दूं कि इस बार इन समाज-कंटकों ने मुझे पुलिस द्वारा आतंकवादी घोषित करने का प्रयास किया है जिसका मैं डटकर मुकाबला करूंगा.
ये समाज-कंटक स्वयं भी अनेक प्रकार के अपराध करते रहते हैं. इनमें से अनेक को हत्या, बलात्कार, आदि अपराधों के लिए न्यायालयों से दंड मिल चुके हैं किन्तु देश की न्याय प्रक्रिया के मंद और लचर होने के कारण ये दीर्घ काल तक जमानत पर छूटे रहते हैं. इनके अनेक परिवार वाले जघन्य अपराधों के मामलों में सम्मिलित होने के दण्डित हुए हैं किन्तु जमानत पर रहते हुए मृत्यु को प्राप्त हो गए हैं. इसी प्रकार अब भी इनमें से प्रत्येक के विरुद्ध न्यायालयों में मुकदमे चल रहे हैं किन्तु इन्हें आशा है कि इनके जीवन काल में इन्हें कोई दंड नहीं दिया जा सकेगा. इसी आशा में ये अब भी निर्भीक रहकर अपराधिक गतिविधियों में लिप्त रहते हैं.
शर्मनाक है इस देश की व्यवस्था और खासकर निचले स्तर के पुलिस वालों में फैला भ्रष्टाचार तथा नैतिक पतन ...
जवाब देंहटाएं"इन्हें आशा है कि इनके जीवन काल में इन्हें कोई दंड नहीं दिया जा सकेगा. इसी आशा में ये अब भी निर्भीक रहकर अपराधिक गतिविधियों में लिप्त रहते हैं"
जवाब देंहटाएंआशा ही नहीं इन्हे पूरा विश्वास है व्यवस्था में।
कांटे को कांटे से ही निकालना पड़ता है । इनके पीड़ितो को संगठित करें ।