शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

हमारी परिस्थितियां और उनका प्रभाव

व्यक्ति की परिस्थितियां उसके वश में नहीं होतीं अपितु इनका निर्माण समाज की दीर्घकालिक स्थिति पर निर्भर करता है. तथापि प्रत्येक व्यक्ति अपनी परिस्थितियों से प्रभावित होता है और इन की अवहेलना नहीं कर सकता. किन्तु यह व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह परिस्थितियों को किस प्रकार अपनाता है जिसके दो तरीके हैं.

जन साधारण परिस्थितियों के समक्ष समर्पण कर देते हैं जिसके फलस्वरूप उनका अपने व्यवहार पर कोई नियंत्रण नहीं रह जाता और यह पूरी तरह परिस्थितियों के अधीन होता है. ऐसी स्थिति में व्यक्ति का परिस्थितियों से कोई विरोध नहीं रहता और व्यक्ति का जीवन सरल एवं सहज कहा जा सकता है. परिस्थितियों की इसी अधीनता को ही व्यक्ति का भाग्य आदि कह दिया जाता है. तथापि इस स्थिति में व्यक्ति परिस्थितियों से पराजित हुआ अनुभव करता है और उसे आत्म-संतुष्टि प्राप्त नहीं होती.

कुछ व्यक्ति परिस्थितियों के समक्ष न तो स्वयं आत्म-समर्पण करते हैं और न ही परिस्थितियों को अपने वश में कर सकते हैं. ये व्यक्ति परिस्थितियों का स्वहित में उपयोग करते हैं. यह परिस्थितियों पर विजय तो नहीं होती किन्तु इसे व्यक्ति का परिस्थितियों की अधीन होना भी नहीं कहा जा सकता. यह व्यक्ति द्वारा परिस्थितियों का सदुपयोग कहा जाता है.

प्रत्येक परिस्थिति को व्यक्ति द्वारा दो प्रकार से देखा जा सकता है - एक विवशता के रूप में तथा दूसरे एक अवसर के रूप में. पारिस्थितिक विवशता स्वीकार करने पर व्यक्ति परिस्थितियों के अधीन होता है जो व्यक्ति की परिस्थितियों के समक्ष पराजय होती है. यह जीवन का एक यथार्थ है, इसके साथ ही जीवन का एक यथार्थ यह भी होता है कि प्रत्येक परिस्थिति व्यक्ति को एक अवसर प्रदान करती है, उसका उपयोग कर उससे कुछ शिक्षा गृहण करते हुए आगे बढ़ने के लिए. इसे एक उदाहरण से स्पष्ट किया जा सकता है.
Extraordinary Circumstances: The Journey of a Corporate Whistleblower

अभी हाल ही में मेरे गाँव के एक गुंडे ने गाँव वालों की दृष्टि में मेरा सम्मान कम करने के उद्येश्य से अचानक मुझे गालियाँ देकर अपमानित किया और इस प्रकार मेरे समक्ष एक अप्रत्याशित परिस्थिति उत्पन्न कर दी. मैं न तो गलियों का उत्तर गालियों से देने में सामर्थ हूँ और न ही इसके लिए हिंसा कर सकता हूँ. मैंने उक्त घटना की रिपोर्ट पुलिस को की तो गुंडे ने पुलिस पर राजनैतिक दवाब डलवा कर कार्यवाही रुकवा दी. मैंने इस का विवरण अपने ब्लॉग पर लिख दिया. अनेक लोगों ने मेरे प्रति सहानुभूति दर्शाई और एक मित्र ने एक उच्च स्तरीय संगठन की सहायता ली जिसके सदस्यों में पुलिस के एक उच्च अधिकारी भी हैं. उन्होंने तुरंत स्थानीय पुलिस को मेरी रक्षा करते हुए गुंडे के विरुद्ध कठोर कार्यवाही का निर्देश दिया. पुलिस द्वारा ऐसा ही किया गया और गाँव में मेरा सम्मान और अधिक बढ़ गया. इस प्रकार मेरे विरुद्ध गुंडे का दुर्व्यवहार मेरे लिए एक सुअवसर सिद्ध हुआ. इसके विपरीत यदि मैं अपने अपमान को चुपचाप सह लेता तो शनैः-शनैः गाँव में मेरा सम्मान समाप्त हो जाता.

2 टिप्‍पणियां:

  1. sach kaha paristhitiyon se har nahi manana chahiye we to hame rasta dikhati hai haushala rkh kar age barhane ka pryash karana chahiye kabhi n kabhi paristhitiyan aap ke mafik hongi hi .
    arganikbhagyoday.blogspot.com

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  2. अवसर का सदुपयोग तो हर व्यक्ति को सत्य,न्याय,देशभक्ति व ईमानदारी को मजबूत करने के लिए हर-हाल में निडर होकर करना ही चाहिए |

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