प्रचलित जानकारी के अनुसार कृष्ण की शिक्षा-दीक्षा संदीपनी नामक आश्रम में हुई, किन्तु यह कहीं उल्लेख नहीं मिलता कि यह कब हुई क्योंकि वह तो ज्ञात कथाओं में सभी समय खेलकूद और षड्यंत्रों में लिप्त रहता हुआ पाया जाता है. उसके गुरुजनों के नामों के बारे में भी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है. इस विषय में जो जानकारी मुझे उपलब्ध हुई है वह इस प्रकार है.
कृष्ण के बालपन के समय ही विशेषज्ञों का एक दल प्लेटो की अकादेमी से आकर आज श्रीलंका कहे जाने वाले द्वीप पर ठहरा जो उस समय निर्जन था. यही स्थान कृष्ण की शिक्षा-दीक्षा का संदीपनी आश्रम था. यह दल कृष्ण को बचपन से ही छल-कपट के तौर-तरीके सिखाता था जिससे कि वह अत्यधिक कुशल छलिया बन सके. इसी कारण से अनेक स्थानों पर कृष्ण को छलिया कहा गया है. कृष्ण का सबसे शक्तिशाली शास्त्र उसका सुदर्शन चक्र था जो उसके सीधे हाथ की तर्ज़नी उंगली में बंधा एक चाकू था. चाकू शब्द चक्र का ही सरल रूप है.
इस चाकू के उपयोग से कृष्ण अपने मित्र और शत्रुओं के अंडकोष काट दिया करता था. शास्त्रों में इस क्रिया को 'वध' कहा गया है तथा जिसका भ्रमित हिंदी अर्थ हत्या लिया जाता है. इसका संकेत इस तथ्य से भी मिलता है कि लोकभाषा में पशुओं के अंडकोष काटकर उन्हें नपुंसक बनाने के लिए 'वधिया करना' कहा जाता है. महाभारत में 'वध' शब्द का उपयोग प्रायः उन्ही प्रसंगों में है जो कृष्ण से सम्बंधित हैं.
कृष्ण ने अपने यदु वंश के अपने सभी मित्रों को इस क्रिया से नपुंसक बना दिया था ताकि उनकी कामुक पत्नियाँ विवश होकर कृष्ण की प्रेयसी अथवा दीवानी बन कर रहें.जिन्हें गोपियाँ कहा जाता है. राधा के साथ किया गया उसका प्रेम तथा बाद में परित्याग का छल भी इसी के अंतर्गत किया गया. भारतीय जन-मन में इस छल को प्रेम के रूप में ठूंसा गया है तथा कृष्ण-भक्ति में अंधे व्यक्ति इस की प्रशंसा करते हैं तथापि अपनी पुत्रियों अथवा बहुओं को ऐसा प्रेम करने से दूर रखते हैं. संस्कृत के एक बहु-प्रतिष्ठित ग्रन्थ 'गीत गोविन्द' में राधा-कृष्ण प्रेम को महिमा मंडित किया गया है जिसमें कृष्ण मिलन के समय राधा की जंघाओं की कामुक हलचल भी वर्णित की गयी है. विश्व की किसी अन्य संस्कृति में पर-स्त्री गमन को इस प्रकार महिमा-मंडित नहीं किया गया.
उसने अपने शत्रुओं के वध किये अथवा इसका प्रयास किया ताकि वे अपना शेष जीवन दुखों में व्यतीत करने को विवश हों. इस प्रकार कृष्ण बचपन से ही एक निष्ठुर 'पर-संतापी' (saddist ) के रूप में प्रशिक्षित किया गया और उसका यह प्रशिक्षण पूरी तरह सफल सिद्ध हुआ.
वध करने की प्रक्रिया के अतिरिक्त भी कृष्ण को सभी प्रकार के शारीरिक तथा मानसिक छल करने के लिए प्रशिक्षित किया गया जो उसके जीवन चरित में सर्वत्र स्पष्ट दिखाई देते हैं. इन छलों में स्वयं को बार बार दिव्य घोषित करना भी था जो वह प्रायः किया करता था. इसके विपरीत भारत में प्रचलित अन्य किसी दिव्य विभूति, जैसे राम, ने कभी स्वयं को दिय घोषित नहीं किया.
कृष्ण का एक परम मित्र सुदामा कहा जाता है जो उसका गुणवाचक नाम है. सुदामा शब्द लैटिन के शब्द 'sodoma से उद्भव हुआ है जिसका अर्थ 'समलैंगिक मैथुन'' है जो बाइबिल में उल्लिखित एक नगर सोडोम के नागरिकों में प्रचलित थी. बाइबिल के अनुसार यह नगर लोगों के इसी दोष के कारण नष्ट हो गया. इससे यह भी स्पष्ट है कि कृष्ण भी समलैंगिक मैथुन का अभ्यस्त था. .
कल्पना का अतिरेक आप की बुद्धि को भ्रष्ट कर चुका है। ग्रंथों, परम्पराओं, पुरातात्विक प्रमाणों और शास्त्रों के आधार पर कुछ नया लाएँ तो अच्छा हो। दूर की कौड़ी भिड़ाते समय आप यह भूल गए हैं कि जयदेव ने बहुत बाद में गीत गोविन्द रचा। राधा, गोपी वगैरह बहुत बाद की परिकल्पनाएँ हैं। सुदामा और सोडोमी तो हद ही है।
जवाब देंहटाएंइस तरह की उड़ानों से बँचें तो अच्छा हो।
छान्दोग्य उपनिषद में वर्णित घोर आंगिरस के शिष्य देवकी पुत्र कृष्ण के बारे में क्या कहेंगे ?
I think you are trying to make some valid points. I am carefully fallowing your observations. Interesting!
जवाब देंहटाएंअफीम का सेवन बंद कर दीजियेगा तो आपका भी भला हो और आपके परिवार का भी
जवाब देंहटाएंऊल जलूल पोस्ट लिख कर अपने साथ साथ दूसरों का समय क्यों जाया कर रहे हैं आप? ऐसा करने के बजाय आप अपने समय का कुछ सदुपयोग करेंगे तो वह आपके लिये ही लाभदायक होगा।
जवाब देंहटाएंभक्ति प्रदूषित भ्रमों का कोई उपचार मेरे पास नहीं है. विगत २००० वर्षों की गुलामी ने इस देश के जनमानस को इतना भ्रष्ट कर दिया है की कोई सच्ची बात सुनने का साहस ही नहीं रह गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअश्लील और तर्कविहीन टिप्पणियों को मैं इस संलेख से मिटा सकता हूँ किंतु उन्हें केवल इस लिए सॅंजो रहा हूँ ताकि भविष्य जान सके कि लोगों की मनोदशा कितनी निर्लज्ज है.
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