बौद्धिक जनतंत्र जन-शिक्षा को जन-स्वास्थ के बाद सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानता है, और इसके लिए समुचित व्यवस्था करता है. इन व्यवस्थाओं के पीछे लक्ष्य है - सभी को निह्शुक एवं एक-सम्मान शिक्षा पाने के अवसर प्रदान करना. लोग इसका पूरा लाभ उठाएं, इसके लिए शिक्षा की अह्वेलना करने वालों को मताधिकार से वंचित रखने का दंड.
बौद्धिक जनतंत्र शिक्षा के व्यवसायीकरण का घोर विरोधी है क्योंकि इसके माध्यम से देश का धनिक वर्ग ही शिक्षा गृहण कर पाता है और आगे बढ़ता रहता है, जबकि निर्धन-पिछड़ा वर्ग और अधिक पीछे की ओर धकेला जाता रहता है. इस प्रकार देश में अमीर-गरीब की खाई और अधिक गहरी होती जाती है जो सामाजिक कटुता और अपराधों का कारण बनाती है. यही भारत के तथाकथित जनतंत्र में किया जा रहा है.
समाज के प्रत्येक सदस्य को शिक्षा पाने के समान अवसर उपलब्ध कराने के लिए उच्चतम स्तर तक की शिक्षा जनता के लिए निःशुल्क व्यवस्था करना बौद्धिक जनतंत्र का दायित्व है. इसके लिए कक्षा ८ तक की शिक्षा प्रत्येक ग्राम स्तर पर, कक्षा १२ तक की शिक्षा ३ किलोमीटर के अंतर्गत, तथा स्नातकोत्तर शिक्षा प्रत्येक विकास खंड स्तर पर उपलब्ध होगी, इसी प्रकार व्यावसायिक एवं तकनीकी शिक्षाओं के डिप्लोमा तक के स्तर के संस्थानं प्रत्येक जनपद मुख्यालय पर उपलब्ध होंगे. इससे उच्चतर शिक्षा के केंद्र विश्वविद्यालयों में होंगे जो ग्रामांचलों एवं उपनगरों में स्थापित किये जायेंगे त्ताकी छात्रों को प्राकृतिक वातावरण में शिक्षा पाने के अवसर प्राप्त हों.
बौद्धिक जनतंत्र समाज के किसी भी वर्ग के लिए शिक्षा के क्षेत्र में आरक्षण का पक्षधर नहीं है. किसी भी वर्ग को शिक्षा पाने में कठिनाई इसलिए नहीं होगी क्योंकि समाज के प्रत्येक वर्ग को रोजगार और आय के समुचित अवसर प्रदान करना भी बौद्धिक जनतंत्र का निर्धारित दायित्व है ताकि सभी सम्मानपूर्वक जीवनयापन कर सकें. इसमें इतना संशोधन अवश्य किया जा सकता है कि जो शिक्षाएं राष्ट्रीय उत्पादकता के लिए अनिवार्य हैं. उनमें छात्रों की रूचि बनाए रखने के लिए निःशुल्क हॉस्टल आदि की सुविधाएं प्रदान की जा सकती हैं, किन्तु ये सभी वर्गों को एक समान प्रदान की जायेंगी.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
केवल प्रासंगिक टिप्पणी करें, यही आपका बौद्धिक प्रतिबिंब होंगी