बुधवार, 17 मार्च 2010

मरियम के मकबरे का छल

आगरा के निकट सिकन्दरा में अकबर के मकबरे के सामने सड़क के दूसरी ओर कुछ आगे एक मकबरा और है जिसे 'मरियम का मकबरा' कहा जाता है. इस मकबरे के प्रवेश द्वार के निकट भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा एक बोर्ड लगाया हुआ है जिसमें बताया गया है कि 'मरियम' अकबर की पत्नी जोधाबाई की ही उपाधि थी और इस प्रकार इस मकबरे को जोधाबाई का मकबरा सिद्ध किया गया है. भारत के अकबर कालीन इतिहास का पूरा लेखा-जोखा उपलब्ध है किन्तु उसमें ऐसा कोई उल्लेख नहीं है कि जोधाबाई को कबी मरियम भी कहा गया था. यदि ऐसा कोई प्रमाणित सूत्र उपलब्ध हो तो मेरा भारत के प्रतिष्ठित इतिहासकारों से निवेदन है कि वे उसे प्रकाश में लायें.

मेरी दृष्टि में पुरातत्व सर्वेक्षण जैसा छल अकबर के मकबरे के बारे में कर रा है, मरियम के मकबरे में उससे कहीं अधिक घिनोना छल कर रहा है. भारत के तथाकथित इतिहासकार जीसस तथा मरियम को भारत के इतिहास के पात्र नहीं मानते, इसलिए सदा-सदा से जाने गए 'मरियम के मकबरे को जोधाबाई का मकबरा कहा जा रहा है. मैंने अपने इस संलेख के एक आलेख में जीसस और मरियम को अपने ऐतिहासिक पात्र कहा है, और यह मकबरा मेरे इतिहास की पुष्टि करता है. इसके समर्थन में अनेक तर्क उपस्थित हैं जिनकी चर्चा यहाँ की जा रही है.

अकबर के मकबरे के सामने सड़क के दूसरी ओर का विशाल क्षेत्र इसाई समुदाय की संपत्ति है, जिसपर एक चर्च, एक स्कूल तथा अनेक आवास बने हैं. इन्ही के मध्य उक्त मरियम का मकबरा है. भारत में जहाँ कहीं भी प्राचीन भवनों एवं स्थलों पर मुग़ल शासन काल में इस्लामी तख्तियां लगाई गयीं, उन सब को मुस्लिमों के अधिकार में दे दिया गया था, फलस्वरूप, तःमहल प्रांगण के अनेक भवन, फतहपुर सीकरी के भवन, तथा आगरा के अनेक ऐतिहासिक भवनों पर मुसलामानों का अधिकार है. अकबर के तथाकथित मकबरे पर भी मुस्लिम अधिकार बना हुआ है. इस सबके रहते हुए भी मरियम के मकबरे पर कोई मुस्लिम अधिकार नहीं है और इसके ईसाई संपत्ति के मद्य होने से सिद्ध होता है कि यह मकबरा किसी ऐसी स्त्री का है जिसका सम्बन्ध ईसाई धर्म से है. इस कारण से मुग़ल साम्राज्य काल में भी इसे इस्लाम से सम्बंधित नहीं कहा गया और इस पर अधिकार नहीं किया गया. इससे स्पष्ट है कि यह मकबरा जोधाबाई का न होकर जीसस की बहिन मरियम का है.

मरियम के मकबरे का आतंरिक अभिकल्प (ऊपर का चित्र) अन्य किसी भी मकबरे से भिन्न है और यह पशिमी बंगाल में स्थित विष्णुपुर में बने प्राचीन कालीन महलों (नीचे का चित्र) से मेल खाता है. मेरे द्वारा भारत के शोधित इतिहास में महाभारत युद्ध के पश्चात जब देवों की संख्या क्षीण हो गयी थी तब विष्णु (लक्ष्मण) ने मरियम से विवाह किया था जिसने चन्द्रगुप्त को जन्म दिया था. इस युद्ध में पांडव पक्ष का  नीतिकार कृष्ण था और कौरव पक्ष के नीतिकार शकुनी के छद्म रूप में स्वयं विष्णु थे. महाभारत युद्ध के बाद कृष्ण और सिकंदर के आग्रह पर महा पद्मानंद को भारत का सम्राट बनाया गया था.

महाभारत की पराजय का बदला लेने के लिए विष्णु ने अपना नाम विष्णुगुप्त चाणक्य रखा और जीसस ने अपना नाम चित्रगुप्त रखा और भारत को महा पद्मानंद के शासन से मुक्त कराने का बीड़ा उठाया जिसमें वे सफल रहे और चन्द्रगुप्त को भारत का सम्राट बनाया गया. यहीं से गुप्त वंश के शासन का आरम्भ हुआ और भारत विश्व प्रसिद्द 'सोने की चिडिया' कहलाया.

अतः उक्त मकबरा वास्तविक मरियम का ही मकबरा है, जो जीसस की बहिन, विष्णु की पत्नी, एवं चन्द्र गुप्त की माँ थीं. लक्ष्मी, दुर्गा एवं काली इनके अन्य रूप थे जिनकी चर्चा प्रसंगानुसार की जायेगी.      

मंगलवार, 16 मार्च 2010

राजनीति में शैक्षिक योग्यता का विरोध

उत्तर प्रदेश की वर्तमान मुख्य मंत्री महोदया ने अभी कुछ दिन पूर्व एक घोषणा की थी कि प्रदेश के आगामी ग्राम प्रधान चुनावों में कक्षा १० उत्तीर्ण व्यक्ति ही प्रधान पड के प्रत्याशी बन सकेंगे. साथ ही ग्राम पंचायत सदस्यता के प्रत्याशियों के लिए कक्षा ८ उत्तीर्ण होना अनिवार्य होगा. यह एक साहसिक कदम था जो भारत की राजनीति में शिक्षा के प्रवेश से शोधन का शुभारम्भ होता. किन्तु भारत के प्रबुद्धजन इस घोषणा से उत्पन्न आश्चर्य और प्रसन्नता को आत्मसात भी नहीं कर पाए थे कि अगले ही दिन उद्घोषणा द्वारा उक्त शक्षिक अनिवार्यता को रद्द कर दिया गया. जिससे यह स्पश हो गया कि भारतीय राजनीति में शक्षा का कोई महत्व नहीं है.

उपलब्ध सूचनाओं के आधार पर ज्ञात हुआ है कि उक्त घोषणा का रद्द किया जाना मुख्य मंत्री महोदया के समर्थकों के आग्रह पर हुआ जो विधान सभा के सदस्य हैं और अनेक निरक्षर हैं. यहाँ यह भी बतादूँ कि मेरे गाँव खंदोई के प्रधान, मेरे विकास खंड ऊंचागांव के प्रमुख, तथा बुलंदशहर से मेरे संसद सदस्य सभी निरक्षर हैं, जो भारतीय राजनीति का प्रतिबिम्ब है. इससे मैं अतीव शर्मसार हूँ. मुख्य मंत्री महोदया की इस विषयक प्रथम घोषणा से मैं अत्यधिक प्रसन्न हुआ था.

ग्राम प्रधान भारतील शासन व्यवस्था का नीचे से प्रथम स्तर का संवैधानिक पड है इसके लिए शैक्षिक योग्यता की अनिवार्यता का दूरगामी परिणाम यह होता कि एक न एक दिन उच्चतम स्तर तक के सभी राजनैतिक पदों के लिए शैक्षिक याग्यता अनिवार्य कर दी जाती जिससे भारत की राजनीति में गुणात्मक सुधार होना सुनिश्चित था. किन्तु इसके आरम्भ पर ही कुठाराघात कर दिया गया ताकि देश निरक्षरों के शासन में ही पिसता रहे.   

अवतार और लेखक

हिंदी भाषा का दुर्भाग्य है कि इसमें सभी भावों के लिए प्रथक शब्दों का विकास नहीं किया गया है, जबकि भाषा के आदि पुरुषों ने वैदिक संस्कृत में शब्द विकास के अभूतपूर्व प्रयास किये थे. आधुनिक संस्कृत में वैदिक शब्दों के अर्थ विकृत किये जाने और हिंदी विकास का आधार आधुनिक संस्कृत होने के कारण हिंदी उन शब्दों का भी समावेश नहीं किया जा सका जो हमारे आदि पुरुषों ने हमारे लिए विकसित किये थे.

हिंदी के शब्द 'लेखक' का अर्थ 'लिखने का कार्य करने वाला व्यक्ति है, हो इस प्रकार के सभी व्यक्तियों के लिए उपयोग किया जाता है, जबकि यह कार्य दो भिन्न प्रकारों का होता है और दोनों में बहुत गंभीर अंतर होता है. प्रकृति के अध्ययन, वैज्ञानिक शोधों एवं प्रयोगों, गहन चिंतन, आदि के माध्यम से विकसित ज्ञान को वर्तमान और भावी पीढ़ियों हेतु लिखना एक दुष्कर प्रक्रिया है जो विरले ही कर सकते हैं. दूसरे प्रकार का लेखन कार्य उपलब्ध ज्ञान को अपने शब्दों में लिखना होता है. किसी अन्य व्यक्ति द्वारा बोले गए शब्दों को लिखने वाले व्यक्ति को भी हिंदी में लेखक ही कहा जाता है.

वैदिक संस्कृत में शोधित एवं विकसित किये गए ज्ञान के अंकन करने वाले व्यक्ति को 'अवतार' कहा गया है, जिसका अर्थ आधुनिक संस्कृत में विकृत कर दिया गया और शब्द हिंदी में उपयोग किये जाने से वंचित हो गया. दूसरी ओर ज्ञानपरक लेखन करने वाले व्यक्ति के लिए उपयुक्त शब्द का अभाव उत्पन्न हो गया.इस आलेख में हम हिंदी के विस्तार एवं इस विषय पर लेखन की सुविधा के लिए अवतार शब्द का वही अर्थ लेंगे जो वैदिक संस्कृत में था, अर्थात 'ज्ञानपरक लेखक'.

समस्त मनाब जाति लेखन कार्य करने में सरलता से सक्षम हो सकती है किन्तु उसे अवतरण कार्य में सक्षम करना लगभग असंभव ही है. अवतरण कार्य केवल 'महामानव' ही कर सकते हैं. दूसरे शब्दों में अवतरण कार्य करने वाले ही महामानव बनाने की संभावना रखते हैं. इसके लिए उन्हें लेखन के विषय पर गहन अध्ययन, चिंतन एवं मनन करना होता है जिसका कष्ट सभी व्यक्ति नहीं करते क्योंकि मानव जाति स्वभावतः 'सुविधावादी' है. महामानव सुविधावादी न होकर संकल्प्वादी उत्प्रेरक होता है और वही मानव जाति को आगे ले जाने की सक्षमता रखता है. 

आतुर

What Do Authors Do?शास्त्रीय उपयोग में लिया गया शब्द 'आतुर' लैटिन भाषा के शब्द 'autor' से उद्भूत है जिसका अर्थ 'अधिकृत ज्ञान के आधार पर लेखन कार्य करने वाला व्यक्ति' है जिसे हिंदी में सामान्यतः 'लेखक' कहा जाता है, किन्तु किसी भी प्रकार का लेखन कार्य करने वाले व्यक्ति को भी लेखक कहा जा सकता है. वस्तुतः हिंदी में 'अधिकृत ज्ञान के आधार पर लेखन करने वाले व्यक्ति को 'आतुर' कहा जाना चाहिए. अतः शास्त्रों में जिन व्यक्तियों को आतुर कहा गया है, वे सभी उच्च कोटि के लेखक थे.
लैटिन के शब्द 'औटर' से ही आधुनिक अंग्रेज़ी शब्द 'author' बना है जिसका अर्थ 'writer' से भिन्न होता है.

चर, चरित, चरित्र

Soldier of Loveभारतीयों वेदों और शास्त्रों में उपयुक्त शब्द चर, चरित और चरित्र परस्पर सम्बंधित हैं और लैटिन भाषा के शब्दों cars, caritas, से उद्भूत हैं जिनके अर्थ क्रमशः .'प्रिय' एवं 'प्रेम' हैं. इन्ही से फ्रांसीसी भाषा का शब्द चरित्रे बना है जिसका अर्थ 'परोपकार' है जो प्रेम से ही उत्पन्न होता है. अतः शास्त्रीय शब्द चर का अर्थ 'प्रिय', तथा चरित का अर्थ 'प्रेम' हैं. चरित्र शब्द क्रिया शब्द है जिसका अर्थ 'प्रेम करना' है.

रविवार, 14 मार्च 2010

अकबर के मकबरे का छल

आगरा से लगभग ८ किलीमीटर की दूरी पर एक ऐतिहासिक स्थल है 'सिकन्दरा', जहां एक विशाल प्रांगण में अति भव्य भवन स्थित है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा इसे अकबर के मकबरे के नाम से प्रचारित किया जाता रहा है. इस के केन्द्रीय भवन में एक कब्र बनी है जिसपर तैनात एक मुस्लिम अपनी चन्दा वसूली करता रहता है. इसी भवन के एक बरामदे में दो कब्रें और बनी हैं जिन्हें अलबर की पुत्रियों की कब्रे कहा जाता है. इसी भवन के चारों ओर भव्य बरामदे हैंजिनकी भूमि खोखली है अर्थात नीचे भी कक्ष बने हैं. यह खोखलापन पदचापों की प्रतिध्वनियों से स्पष्ट हो जाता है. 

इस प्रांगन का मुख्य द्वार स्वस्तिक चिन्हों से सुशोभित है और अनेक सह-भवनों के पत्थरों पर अनेक पशु, पक्षी, वस्तु आदि के चित्र अंकित हैं. मैं लगभग पांच वर्ष पूर्व वहाँ गया था और समस्त प्रांगण की भव्यता एवं चित्रकारी से ऐसा प्रतीत नहीं होता कि इस का सम्बन्ध किसी मुस्लिम से है, विशेषकर सर्वाधिक विलासी अकबर से. मैंने इस बारे में वहा तैनात पुरातत्व अधिकारी से बातचीत की.
 
मेरा पहला प्रश्न था कि अकबर का मकबरा किसने बनवाया, उसका पुत्र तो ऐसा कार्य कर नहीं सकता क्योंकि उसने तो अकबर से विद्रोह कर सत्ता हथियाती थी. इसका उत्तर जो मुझे दिया गया वह आश्चर्य काकित करने वाला है. उत्तर था - 'अकबर ने अपनी मृत्यु से पूर्व अपने लिए यह मकबरा बनवाया था.

मेरा दूसरा प्रश्न था कि एक कट्टर मुस्लिम के मकबरे पर स्वस्तिक चिन्ह और जीवों के चित्रों के अंकन का क्या रहस्य है? इसका उत्तर मिला कि अकबर सभी धर्मों का सम्मान करता था. इस पर मैंने पूछा कि इस सम्पूर्ण प्रांगण में मुझे कोई मुस्लिम प्रतीक दिखाइए, और मुझे इसका लोई उत्तर नहीं दिया गया. वस्तुतः संपूर्ण प्रांगण में कोई इस्लामिक चिन्ह उपस्थित नहीं है.

मेरा तीसरा प्रश्न था कि ज्ञात इतिहास के अनुसार अकबर निःसंतान था और किसी सूफी की कृपादृष्टि से ही उसकी पत्नी के गर्भ से एक पुत्र का जन्म हुआ था. (वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ऐसी कतिप का अर्थ मैथुन क्रिया ही होता है, जो अकबर के विरुद्ध विद्रोह का भी कारण हो सकता है.) अतः अकबर की कोई पुत्री थी ही नहीं पुत्रियों की कब्र कैसे बन गयीं. उपस्थित अधिकारी के पास इसका भी कोई उत्तर नहीं था.

इस सब का अर्थ यही है कि उक्त भवन अकबर का मकबरा नहीं है और न ही इसे भारत पर मुस्लिम शासन की अवधि में निर्मित किया गया. स्वस्तिक चिन्ह इसे देव जाति द्वारा निर्मित भवन सिद्ध करता है. राम की पत्नी का वास्तविक नाम 'स्वस्तिका' था  इसी आधार पर स्वस्तिक शब्द का अर्थ 'स्वास्थ' लिया जाता है क्योंकि उनके मुख लेखन स्वास्थ संबंधी है. देवों द्वारा भारत के विकास के समय लिखे गए अधिकाँश शास्त्र स्त्रियों द्वारा ही लिखे गए थे. अतः उक्त भवन राम की पत्नी स्वस्तिका का स्मारक है. इसी का एक अन्य प्रमाण इसी संलेख पर अगले आलेख में पढ़िए. .