कृष्ण और यवनों द्वारा छल-कपट अपनाते हुए देवों की एक-एक करके हत्या की जा रही थी, जिनमें ब्रह्मा (राम), कीचक, कंस, जरासंध, आदि सम्मिलित थे. इससे देवों की संख्या निरंतर कम हो रही थी. विष्णु उस समय तक अविवाहित थे, इसलिए वंश वृद्धि के प्रयोजन हेतु उन्होंने मरियम के साथ विवाह किया, जिसके कारण वे विष्णुप्रिया कहलाने लगीं. वे दूध की तरह गोरी थीं इसलिए उन्हें लक्ष्मी अर्थात दूध जैसी (lactum = दूध) कहा जाने लगा और उनके पति विष्णु लक्ष्मण के नाम से भी जाने जाते थे.
देवी लक्ष्मी अत्यंत बलशाली थीं और युद्ध कला में पारंगत, इसलिए विष्णु शत्रु विनाश के लिए भी उनका उपयोग किया करते थे. अपने दुर्गा और काली के छद्म रूपों में भी वे शत्रुओं का विनाश करती रहती थीं. उस समय देवों की संख्या अल्प थी इसलिए प्रत्येक जीवित देव को शत्रुओं में भ्रम और भय फैलाने के लिए अनेक रूप धारण करने होते थे ताकि शत्रुओं को उनकी अल्प संख्या का बोध न हो सके. देवी लक्ष्मी भी इसी कारण से कभी दुर्गा तो कभी काली का रूप धारण किया करती थीं. विष्णु से विवाह के बाद ही विष्णुप्रिया लक्ष्मी ने चन्द्र गुप्त मोर्य को जन्म दिया था, जो गुप्त वंश के प्रथम सम्राट बने थे.
अल्प संख्यक देवों की सुरक्षा के लिए भी उनका छद्म रूपों में रहना आवश्यक था. भरत छद्म रूप धारण करने और इसके लिए साधन निर्माण में निपुण थे. उन्होंने स्वयं भी नौ रूप धारण किये थे.
जीसस अत्यंत मेधावी व्यक्ति थे किन्तु उनमे शारीरिक बल का अभाव था. उधर यवन उन्हें पकड़ने के प्रयासों में लगे रहते थे. इसलिए देवों को उनकी सुरक्षा की विशेष चिंता रहती थी. यवनों के भारत में बसने से पूर्व वे किसी भी स्थान पर एक रात्री से अधिक नहीं ठहरते थे जिसके कारण वे अपने शोध और लेखन कार्य नहीं कर पाते थे. उन्हें गुप्त रूप में एक स्थान पर रखने के लिए भरत ने उन्हें गणेश जी का छद्म रूप प्रदान किया.
गणेश जी का रूप प्रदान करने के लिए अगर की नरम काष्ठ से हाथी की सूंड सहित एक मुखौटा बनाया गया जिससे जीसस के सिर और मुख को आवृत किया गया. इसके बाद वे एक स्थान पर रहकर लेखन कार्य करते रहते थे. जीसस को अनेक नामों से भी जाना जाता था जिनमें श्री, प्रथम, गणेश, सृष्टा आदि प्रमुख थे. भाई बहेन गणेश तथा लक्ष्मी की प्रायः एक साथ पूजा अर्चना की जाती है.
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सोमवार, 12 अप्रैल 2010
विष्णु-मरियम विवाह और जीसस का गणेश रूप
कृष्ण और यवनों द्वारा छल-कपट अपनाते हुए देवों की एक-एक करके हत्या की जा रही थी, जिनमें ब्रह्मा (राम), कीचक, कंस, जरासंध, आदि सम्मिलित थे. इससे देवों की संख्या निरंतर कम हो रही थी. विष्णु उस समय तक अविवाहित थे, इसलिए वंश वृद्धि के प्रयोजन हेतु उन्होंने मरियम के साथ विवाह किया, जिसके कारण वे विष्णुप्रिया कहलाने लगीं. वे दूध की तरह गोरी थीं इसलिए उन्हें लक्ष्मी अर्थात दूध जैसी (lactum = दूध) कहा जाने लगा और उनके पति विष्णु लक्ष्मण के नाम से भी जाने जाते थे.
देवी लक्ष्मी अत्यंत बलशाली थीं और युद्ध कला में पारंगत, इसलिए विष्णु शत्रु विनाश के लिए भी उनका उपयोग किया करते थे. अपने दुर्गा और काली के छद्म रूपों में भी वे शत्रुओं का विनाश करती रहती थीं. उस समय देवों की संख्या अल्प थी इसलिए प्रत्येक जीवित देव को शत्रुओं में भ्रम और भय फैलाने के लिए अनेक रूप धारण करने होते थे ताकि शत्रुओं को उनकी अल्प संख्या का बोध न हो सके. देवी लक्ष्मी भी इसी कारण से कभी दुर्गा तो कभी काली का रूप धारण किया करती थीं. विष्णु से विवाह के बाद ही विष्णुप्रिया लक्ष्मी ने चन्द्र गुप्त मोर्य को जन्म दिया था, जो गुप्त वंश के प्रथम सम्राट बने थे.
अल्प संख्यक देवों की सुरक्षा के लिए भी उनका छद्म रूपों में रहना आवश्यक था. भरत छद्म रूप धारण करने और इसके लिए साधन निर्माण में निपुण थे. उन्होंने स्वयं भी नौ रूप धारण किये थे.
जीसस अत्यंत मेधावी व्यक्ति थे किन्तु उनमे शारीरिक बल का अभाव था. उधर यवन उन्हें पकड़ने के प्रयासों में लगे रहते थे. इसलिए देवों को उनकी सुरक्षा की विशेष चिंता रहती थी. यवनों के भारत में बसने से पूर्व वे किसी भी स्थान पर एक रात्री से अधिक नहीं ठहरते थे जिसके कारण वे अपने शोध और लेखन कार्य नहीं कर पाते थे. उन्हें गुप्त रूप में एक स्थान पर रखने के लिए भरत ने उन्हें गणेश जी का छद्म रूप प्रदान किया.
गणेश जी का रूप प्रदान करने के लिए अगर की नरम काष्ठ से हाथी की सूंड सहित एक मुखौटा बनाया गया जिससे जीसस के सिर और मुख को आवृत किया गया. इसके बाद वे एक स्थान पर रहकर लेखन कार्य करते रहते थे. जीसस को अनेक नामों से भी जाना जाता था जिनमें श्री, प्रथम, गणेश, सृष्टा आदि प्रमुख थे. भाई बहेन गणेश तथा लक्ष्मी की प्रायः एक साथ पूजा अर्चना की जाती है.
देवी लक्ष्मी अत्यंत बलशाली थीं और युद्ध कला में पारंगत, इसलिए विष्णु शत्रु विनाश के लिए भी उनका उपयोग किया करते थे. अपने दुर्गा और काली के छद्म रूपों में भी वे शत्रुओं का विनाश करती रहती थीं. उस समय देवों की संख्या अल्प थी इसलिए प्रत्येक जीवित देव को शत्रुओं में भ्रम और भय फैलाने के लिए अनेक रूप धारण करने होते थे ताकि शत्रुओं को उनकी अल्प संख्या का बोध न हो सके. देवी लक्ष्मी भी इसी कारण से कभी दुर्गा तो कभी काली का रूप धारण किया करती थीं. विष्णु से विवाह के बाद ही विष्णुप्रिया लक्ष्मी ने चन्द्र गुप्त मोर्य को जन्म दिया था, जो गुप्त वंश के प्रथम सम्राट बने थे.
अल्प संख्यक देवों की सुरक्षा के लिए भी उनका छद्म रूपों में रहना आवश्यक था. भरत छद्म रूप धारण करने और इसके लिए साधन निर्माण में निपुण थे. उन्होंने स्वयं भी नौ रूप धारण किये थे.
जीसस अत्यंत मेधावी व्यक्ति थे किन्तु उनमे शारीरिक बल का अभाव था. उधर यवन उन्हें पकड़ने के प्रयासों में लगे रहते थे. इसलिए देवों को उनकी सुरक्षा की विशेष चिंता रहती थी. यवनों के भारत में बसने से पूर्व वे किसी भी स्थान पर एक रात्री से अधिक नहीं ठहरते थे जिसके कारण वे अपने शोध और लेखन कार्य नहीं कर पाते थे. उन्हें गुप्त रूप में एक स्थान पर रखने के लिए भरत ने उन्हें गणेश जी का छद्म रूप प्रदान किया.
गणेश जी का रूप प्रदान करने के लिए अगर की नरम काष्ठ से हाथी की सूंड सहित एक मुखौटा बनाया गया जिससे जीसस के सिर और मुख को आवृत किया गया. इसके बाद वे एक स्थान पर रहकर लेखन कार्य करते रहते थे. जीसस को अनेक नामों से भी जाना जाता था जिनमें श्री, प्रथम, गणेश, सृष्टा आदि प्रमुख थे. भाई बहेन गणेश तथा लक्ष्मी की प्रायः एक साथ पूजा अर्चना की जाती है.
बुधवार, 17 मार्च 2010
मरियम के मकबरे का छल
आगरा के निकट सिकन्दरा में अकबर के मकबरे के सामने सड़क के दूसरी ओर कुछ आगे एक मकबरा और है जिसे 'मरियम का मकबरा' कहा जाता है. इस मकबरे के प्रवेश द्वार के निकट भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा एक बोर्ड लगाया हुआ है जिसमें बताया गया है कि 'मरियम' अकबर की पत्नी जोधाबाई की ही उपाधि थी और इस प्रकार इस मकबरे को जोधाबाई का मकबरा सिद्ध किया गया है. भारत के अकबर कालीन इतिहास का पूरा लेखा-जोखा उपलब्ध है किन्तु उसमें ऐसा कोई उल्लेख नहीं है कि जोधाबाई को कबी मरियम भी कहा गया था. यदि ऐसा कोई प्रमाणित सूत्र उपलब्ध हो तो मेरा भारत के प्रतिष्ठित इतिहासकारों से निवेदन है कि वे उसे प्रकाश में लायें.
मेरी दृष्टि में पुरातत्व सर्वेक्षण जैसा छल अकबर के मकबरे के बारे में कर रा है, मरियम के मकबरे में उससे कहीं अधिक घिनोना छल कर रहा है. भारत के तथाकथित इतिहासकार जीसस तथा मरियम को भारत के इतिहास के पात्र नहीं मानते, इसलिए सदा-सदा से जाने गए 'मरियम के मकबरे को जोधाबाई का मकबरा कहा जा रहा है. मैंने अपने इस संलेख के एक आलेख में जीसस और मरियम को अपने ऐतिहासिक पात्र कहा है, और यह मकबरा मेरे इतिहास की पुष्टि करता है. इसके समर्थन में अनेक तर्क उपस्थित हैं जिनकी चर्चा यहाँ की जा रही है.
अकबर के मकबरे के सामने सड़क के दूसरी ओर का विशाल क्षेत्र इसाई समुदाय की संपत्ति है, जिसपर एक चर्च, एक स्कूल तथा अनेक आवास बने हैं. इन्ही के मध्य उक्त मरियम का मकबरा है. भारत में जहाँ कहीं भी प्राचीन भवनों एवं स्थलों पर मुग़ल शासन काल में इस्लामी तख्तियां लगाई गयीं, उन सब को मुस्लिमों के अधिकार में दे दिया गया था, फलस्वरूप, तःमहल प्रांगण के अनेक भवन, फतहपुर सीकरी के भवन, तथा आगरा के अनेक ऐतिहासिक भवनों पर मुसलामानों का अधिकार है. अकबर के तथाकथित मकबरे पर भी मुस्लिम अधिकार बना हुआ है. इस सबके रहते हुए भी मरियम के मकबरे पर कोई मुस्लिम अधिकार नहीं है और इसके ईसाई संपत्ति के मद्य होने से सिद्ध होता है कि यह मकबरा किसी ऐसी स्त्री का है जिसका सम्बन्ध ईसाई धर्म से है. इस कारण से मुग़ल साम्राज्य काल में भी इसे इस्लाम से सम्बंधित नहीं कहा गया और इस पर अधिकार नहीं किया गया. इससे स्पष्ट है कि यह मकबरा जोधाबाई का न होकर जीसस की बहिन मरियम का है.
मरियम के मकबरे का आतंरिक अभिकल्प (ऊपर का चित्र) अन्य किसी भी मकबरे से भिन्न है और यह पशिमी बंगाल में स्थित विष्णुपुर में बने प्राचीन कालीन महलों (नीचे का चित्र) से मेल खाता है. मेरे द्वारा भारत के शोधित इतिहास में महाभारत युद्ध के पश्चात जब देवों की संख्या क्षीण हो गयी थी तब विष्णु (लक्ष्मण) ने मरियम से विवाह किया था जिसने चन्द्रगुप्त को जन्म दिया था. इस युद्ध में पांडव पक्ष का नीतिकार कृष्ण था और कौरव पक्ष के नीतिकार शकुनी के छद्म रूप में स्वयं विष्णु थे. महाभारत युद्ध के बाद कृष्ण और सिकंदर के आग्रह पर महा पद्मानंद को भारत का सम्राट बनाया गया था.
महाभारत की पराजय का बदला लेने के लिए विष्णु ने अपना नाम विष्णुगुप्त चाणक्य रखा और जीसस ने अपना नाम चित्रगुप्त रखा और भारत को महा पद्मानंद के शासन से मुक्त कराने का बीड़ा उठाया जिसमें वे सफल रहे और चन्द्रगुप्त को भारत का सम्राट बनाया गया. यहीं से गुप्त वंश के शासन का आरम्भ हुआ और भारत विश्व प्रसिद्द 'सोने की चिडिया' कहलाया.
अतः उक्त मकबरा वास्तविक मरियम का ही मकबरा है, जो जीसस की बहिन, विष्णु की पत्नी, एवं चन्द्र गुप्त की माँ थीं. लक्ष्मी, दुर्गा एवं काली इनके अन्य रूप थे जिनकी चर्चा प्रसंगानुसार की जायेगी.
मेरी दृष्टि में पुरातत्व सर्वेक्षण जैसा छल अकबर के मकबरे के बारे में कर रा है, मरियम के मकबरे में उससे कहीं अधिक घिनोना छल कर रहा है. भारत के तथाकथित इतिहासकार जीसस तथा मरियम को भारत के इतिहास के पात्र नहीं मानते, इसलिए सदा-सदा से जाने गए 'मरियम के मकबरे को जोधाबाई का मकबरा कहा जा रहा है. मैंने अपने इस संलेख के एक आलेख में जीसस और मरियम को अपने ऐतिहासिक पात्र कहा है, और यह मकबरा मेरे इतिहास की पुष्टि करता है. इसके समर्थन में अनेक तर्क उपस्थित हैं जिनकी चर्चा यहाँ की जा रही है.
अकबर के मकबरे के सामने सड़क के दूसरी ओर का विशाल क्षेत्र इसाई समुदाय की संपत्ति है, जिसपर एक चर्च, एक स्कूल तथा अनेक आवास बने हैं. इन्ही के मध्य उक्त मरियम का मकबरा है. भारत में जहाँ कहीं भी प्राचीन भवनों एवं स्थलों पर मुग़ल शासन काल में इस्लामी तख्तियां लगाई गयीं, उन सब को मुस्लिमों के अधिकार में दे दिया गया था, फलस्वरूप, तःमहल प्रांगण के अनेक भवन, फतहपुर सीकरी के भवन, तथा आगरा के अनेक ऐतिहासिक भवनों पर मुसलामानों का अधिकार है. अकबर के तथाकथित मकबरे पर भी मुस्लिम अधिकार बना हुआ है. इस सबके रहते हुए भी मरियम के मकबरे पर कोई मुस्लिम अधिकार नहीं है और इसके ईसाई संपत्ति के मद्य होने से सिद्ध होता है कि यह मकबरा किसी ऐसी स्त्री का है जिसका सम्बन्ध ईसाई धर्म से है. इस कारण से मुग़ल साम्राज्य काल में भी इसे इस्लाम से सम्बंधित नहीं कहा गया और इस पर अधिकार नहीं किया गया. इससे स्पष्ट है कि यह मकबरा जोधाबाई का न होकर जीसस की बहिन मरियम का है.
मरियम के मकबरे का आतंरिक अभिकल्प (ऊपर का चित्र) अन्य किसी भी मकबरे से भिन्न है और यह पशिमी बंगाल में स्थित विष्णुपुर में बने प्राचीन कालीन महलों (नीचे का चित्र) से मेल खाता है. मेरे द्वारा भारत के शोधित इतिहास में महाभारत युद्ध के पश्चात जब देवों की संख्या क्षीण हो गयी थी तब विष्णु (लक्ष्मण) ने मरियम से विवाह किया था जिसने चन्द्रगुप्त को जन्म दिया था. इस युद्ध में पांडव पक्ष का नीतिकार कृष्ण था और कौरव पक्ष के नीतिकार शकुनी के छद्म रूप में स्वयं विष्णु थे. महाभारत युद्ध के बाद कृष्ण और सिकंदर के आग्रह पर महा पद्मानंद को भारत का सम्राट बनाया गया था.
महाभारत की पराजय का बदला लेने के लिए विष्णु ने अपना नाम विष्णुगुप्त चाणक्य रखा और जीसस ने अपना नाम चित्रगुप्त रखा और भारत को महा पद्मानंद के शासन से मुक्त कराने का बीड़ा उठाया जिसमें वे सफल रहे और चन्द्रगुप्त को भारत का सम्राट बनाया गया. यहीं से गुप्त वंश के शासन का आरम्भ हुआ और भारत विश्व प्रसिद्द 'सोने की चिडिया' कहलाया.
अतः उक्त मकबरा वास्तविक मरियम का ही मकबरा है, जो जीसस की बहिन, विष्णु की पत्नी, एवं चन्द्र गुप्त की माँ थीं. लक्ष्मी, दुर्गा एवं काली इनके अन्य रूप थे जिनकी चर्चा प्रसंगानुसार की जायेगी.
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