गुरुवार, 31 दिसंबर 2009

बौद्धिक जनतंत्र में भूमि प्रबंधन


उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार मनुष्य जाति भूमि का केवल ३ प्रतिशत भाग बस्तियों के लिए उपयोग करती है, इस पर भी विश्व में लगभग ३० प्रतिशत जनसँख्या घरविहीन है. अमेरिका में भी अधिकाँश वृद्ध जन घरविहीन होने के कारण अपनी कारों में रात्रि व्यतीत करते हैं. भारत के शहरी क्षेत्रों में ग्रामीण क्षेत्रों से आजीविका के लिए आये अधिकाँश व्यक्ति घर-विहीन होते हैं तथा ५० प्रतिशत घर कहे जाने वाले घरों में अत्यधिक छोटे होने के कारण प्राकृत प्रकाश एवं वायु प्रवाह संभव नहीं होता. तकनीकी स्तर पर इन्हें रहने योग्य घर नहीं कहा जा सकता. ग्रामीण क्षेत्रों में भी अधिकाँश घर घर कहे जाने योग्य नहीं होते.

मनुष्यों के निवास हेतु घरों की इस विकराल समस्या का एकमात्र कारण है भूमि पर व्यक्तिगत स्वामित्व. देश के कुछ लोगों ने भूमि को येन-केन-प्रकारेण अपने स्वामित्व में लेकर उसका मूल्य इतना अधिक बढ़ा दिया है कि जन-साधारण भू स्वामित्व प्राप्त करने का स्वप्न भी नहीं देख सकता. इस भूमि-हीनता का सर्वाधिक दुष्प्रभाव लोगों में राष्ट्रीयता की भावना का अभाव है. इस देश की विशाल भूमि पर जिन्हें सुईं की नोंक के बराबर भी भूमि प्राप्त नहीं है, उनमें राष्ट्रीयता की भावना की कल्पना भी नहीं की जा सकती.

बौद्धिक जनतंत्र में देश में भूमि पर व्यक्तिगत स्वामित्व की समाप्ति का प्रावधान है ताकि यह प्राकृत संपदा भी जल तथा वायु की भांति सार्वजानिक हो. अतः देश की समस्त भूमि राष्ट्र के स्वामित्व में रहेगी तथा प्रत्येक नागरिक परिवार को अपना घर बनाने के लिए एक निःशुल्क भूखंड प्रदान किया जाएगा जिसका माप सभी परिवारों के लिए एक समान होगा तथा जिसकी स्थिति परिवार की इच्छानुसार उपलब्ध होने पर होगी. इस भूखंड को परिवार कभी भी एक स्थान से दूसरे स्थान पर बदल सकेगा. यदि कोई परिवार घर बनने के लिए एक से अधिक भूखंड चाहता है तो उसे अतिरिक्त भूखंड किराए पर दिया जायेगा. यह किराया बस्ती की जनसंख्या के अनुसार चार चार वर्गों में पूर्व-निर्धारित रहेगा - ग्रामीण, उप-नगरीय, नगरीय तथा विशाल-नगरीय. ग्रामीण क्षेत्रों में किराया न्यूनतम तथा विशाल-नगरीय क्षेत्रों में किराया अधिकतम रहेगा.

घर हेतु भूमि के अतिरिक्त प्रत्येक नागरिक कृषि, खनन, उद्योग तथा व्यवसाय हेतु भूमि अपने वांछित स्थान पर किराए पर ले सकेगा. इनमें कृषि भूमि का किराया न्यूनतम तथा क्रमानुसार व्यावसायिक भूमि का किराया सर्वाधिक होगा जिसके निर्धारण में ग्रामीण, उप-नगरीय, नगरीय तथा विशाल-नगरीय क्षेत्रों पर भी विचार होगा. इस प्रकार घर हेतु भूमि के अतिरिक्त भूमि के किरायों की दरें १६ होंगी. यह भूमि भी किरायेदार द्वारा कभी भी लौटाई जा सकती है. सभी बस्तियों में स्थान-स्थान पर राष्ट्र की संपदा के रूप में वन क्षेत्र पूर्व-निर्धारित होंगे. इन सब उपयोगों के अतिरिक्त शेष भूमि पर वन लगाए जायेंगे. सभी वन क्षेत्र राष्ट्र की संपदा के रूप में निजी व्यक्तियों अथवा संगठनों द्वारा प्रबंधित होंगे.   

सोमवार, 28 दिसंबर 2009

बौद्धिक जनतंत्र में राज्यकर्मी


बौद्धिक जनतंत्र में राज्यकर्मी जनता के सच्चे सेवक बना दिए जाते हैं - उनपर नियंत्रण से. इसके लिए विविध प्रावधान निम्नांकित हैं -

१. मताधिकार
राज्यकर्मी शासन-प्रशासन का अभिन्न अंग होने के कारण देश की सरकार चलाने वाले होते हैं, इसलिए इन्हें शासन में किसी अन्य अधिकार की आवश्यकता नहीं होती. इसलिए बौद्धिक जनतंत्र में राज्यकर्मिओं को कोई मताधिकार नहीं होता. इस अधिकार को न दिए जाने का एक अन्य कारण हमारे जनतंत्र के अनुभव हैं जिनमें पाया गया है कि प्रत्येक सरकार सबसे अधिक राज्य्कर्मिओन को प्रसन्न करने के प्रयास करती है - उनके मत प्राप्त करने के लिए तथा उन्हें प्रसन्न रखकर अपने भृष्ट आचरण में उनका सहयोग लेने के लिए. इन दृष्टियों से सरकारें रज्य्कर्मिओन के वेतन और सुख-सुविधाओं में अत्यधिक वृद्धि करती रहती हैं. साथ ही उनके कार्यों में दक्षता लाने का कोई प्रयास नहीं करतीं. यहाँ तक कि राज्य्कर्मिओन के भृष्ट होने पर भी उनकी सभी प्रकार से रक्षा की जाती है ताकि वे प्रसन्न रहें और अपना समर्थन सत्तासीन राजनेताओं को दें. मताधिकार न होने से राज्यकर्मिओं पर कड़ा नियंत्रण रखा जा सकेगा जिससे उनकी कार्य दक्षता बढ़ेगी और वे जनता के लिए अधिक उपयोगी होंगे.

२ वेतन एवं सुख-सुविधाएँ
राज्यकर्मी संयुक्त रूप में राष्ट्र की प्रति व्यक्ति औसत आय के लिए जिम्मेदार तथा उत्तरदायी होते हैं. इसलिए बौद्धिक जनतंत्र में उनके औसत वेतन एवं अन्य सभी सुख-सुविधाएं देश की प्रति परिवार औसत आय के समान रखने का प्रावधान किया गया है. इसका लाभ यह होगा कि प्रत्येक राज्यकर्मी जनता की औसत आय में वृद्धि करने के लिए उत्सुक बना रहेगा. जनतंत्र में इनके वेतन मान देश की औसत आय से २० गुणित तक बढ़ा दिए जाने पर यह वर्ग देश का सर्वाधिक धनाढ्य वर्ग बन गया है तथा कार्य-कौशल पर कोई ध्यान नहीं देता.

३. पद का दुरूपयोग
राज्यकर्मी संयुक्त रूप में देश का प्रशासन चलाने वाले होते हैं.जो एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय कार्य है. ऐसा पद पाकर उसका दुरूपयोग करना बौद्धिक जनतंत्र में राष्ट्रद्रोह माना गया है जिसके लिए मृत्युदंड का प्रावधान किया गया गया है. इससे प्रावधान से राज्यकर्मिओं को भृष्ट होने से बचाया जा सकेगा जिससे वे जनता की सेवा में निष्ठापूर्वक लगे रहेंगे.

४. वेतनों का अंतर
वेतन व्यक्ति के जीवन-यापन का साधन होता है तथा जीवन यापन की आवश्यकताएं सभी व्यक्तिओं की लगभग एक समान होती हैं. इस दृष्टि से बौद्धिक जनतंत्र के अंतर्गत राज्यकर्मिओं के अधिकतम और न्यूनतम वेतनमानों में केवल २० प्रतिशत के अंतर का प्रावधान किया गया है. यहाँ यह भी जाना जाए कि उच्च पदासीन व्यक्तियों के अधिकार अन्य से बहुत अधिक होते हैं जो उच्च शिक्षा पाकर उच्च पद पाने के लिए पर्याप्त कारण होते हैं. जनतंत्र में यह अंतर दस गुणित हो गया है जो सामाजिक सौहार्द के लिए व्यवधान बन गया है.

५. संगठन एवं हड़ताल के अधिकार
जनतंत्र का अनुभव हमें दर्शाता है कि राज्यकर्मी अपने संगठन बनाने के अधिकार का दुरूपयोग करते हैं तथा सदैव हड़ताल आदि पर जाने के लिए तैयार रहते हैं जिससे उनके कार्यकौशल पर बुरा प्रभाव पड़ता है और वे जनसेवा से विमुख रहते हैं. इन कारणों से बौद्धिक जनतंत्र में राज्य्कर्मिओन को संगठन बनाने और हड़ताल आदि पर जाने के अधिकार नहीं दिए गए है. यदि किसी कर्मी को राज्य के लिए कार्य करने से नीतिगत अथवा किसी अन्य कारण से असंतुष्टि होती है तो वह त्यागपत्र देकर मुक्त हो सकता है अन्यथा उसे अपना नियमाधीन कार्य निष्ठापूर्वक करते रहना चाहिए.  

शुक्रवार, 25 दिसंबर 2009

महेश्वर का जन्म

महेश्वर के बड़े होने पर भी राम को युवराज बनाये जाने का कारण उनके जन्म की जटिलता थी जिसका उस समय तक महेश्वर को ज्ञान नहीं था.


शकुंतला एक अति सुंदर युवती थी और उसके सौन्दर्य कि ख्याति दूर दूर तक फ़ैल रही थी. उधर, भरत के पश्चिमी भू-क्षेत्र पर अनेक बाहरी लोगों ने अपना अधिकार कर वहां के भोले-भले लोगों को अपने अधीन कर लिया था, जिनमें से एक राज्य का राजकुमार दुष्यंत था. दुष्यंत ने भी शकुंतला के बारे में सूना था और उसमें शकुंतला के यौवन भोग की इच्छा जागी. वह सूर्यवातार का वेश धारण कर शकुंतला के पास पहुंचा और उसे अपने मोहजाल में फंसा लिया. दोनों ऊर्जावान युवा थे इसलिए प्रेमालाप में शकुन्तला गर्भवती हो गयी. जब दुष्यंत को इसकी सूचना दी गयी तो उसने शकुंतला को पहचानने से इंकार  कर दिया. शकुंतला का जीवन बर्बादी के कगार पर आ पहुंचा.

शकुंतला एक देवकुल कि कन्या थी और उसकी लाज तथा जीवन की रक्षा करना देव समाज के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया. अतः गुरुजनों के आग्रह पर उस समय तक युवा और अविवाहित दशरथ ने शकुंतला से विवाह कर लिया. कुछ गोपनीयता के उद्देश्य से शकुंतला का नाम कौशल्या कर दिया गया. इस प्रकार दशरथ कि प्रथम पत्नी कौशल्या बनी. उचित समय आने पर कौशल्या ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम महेश्वर रखा गया. कौशल्या के ही दूसरे पुत्र का नाम ब्रह्मा रखा गया जो सौम्य स्वभाव के कारण अत्यधिक लोकप्रिय बने. इसके विपरीत महेश्वर अति क्रोधी स्वभाव के थे और अपने शारीरिक बल का भरपूर प्रदर्शन तथा उपयोग करते थे.  .

महेश्वर का जन्म

महेश्वर के बड़े होने पर भी राम को युवराज बनाये जाने का कारण उनके जन्म की जटिलता थी जिसका उस समय तक महेश्वर को ज्ञान नहीं था.


शकुंतला एक अति सुंदर युवती थी और उसके सौन्दर्य कि ख्याति दूर दूर तक फ़ैल रही थी. उधर, भरत के पश्चिमी भू-क्षेत्र पर अनेक बाहरी लोगों ने अपना अधिकार कर वहां के भोले-भले लोगों को अपने अधीन कर लिया था, जिनमें से एक राज्य का राजकुमार दुष्यंत था. दुष्यंत ने भी शकुंतला के बारे में सूना था और उसमें शकुंतला के यौवन भोग की इच्छा जागी. वह सूर्यवातार का वेश धारण कर शकुंतला के पास पहुंचा और उसे अपने मोहजाल में फंसा लिया. दोनों ऊर्जावान युवा थे इसलिए प्रेमालाप में शकुन्तला गर्भवती हो गयी. जब दुष्यंत को इसकी सूचना दी गयी तो उसने शकुंतला को पहचानने से इंकार  कर दिया. शकुंतला का जीवन बर्बादी के कगार पर आ पहुंचा.

शकुंतला एक देवकुल कि कन्या थी और उसकी लाज तथा जीवन की रक्षा करना देव समाज के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया. अतः गुरुजनों के आग्रह पर उस समय तक युवा और अविवाहित दशरथ ने शकुंतला से विवाह कर लिया. कुछ गोपनीयता के उद्देश्य से शकुंतला का नाम कौशल्या कर दिया गया. इस प्रकार दशरथ कि प्रथम पत्नी कौशल्या बनी. उचित समय आने पर कौशल्या ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम महेश्वर रखा गया. कौशल्या के ही दूसरे पुत्र का नाम ब्रह्मा रखा गया जो सौम्य स्वभाव के कारण अत्यधिक लोकप्रिय बने. इसके विपरीत महेश्वर अति क्रोधी स्वभाव के थे और अपने शारीरिक बल का भरपूर प्रदर्शन तथा उपयोग करते थे.  .

बुधवार, 23 दिसंबर 2009

बौद्धिक जनतंत्र की प्रमुख अवधारनाएं


बौद्धिक जनतंत्र अर्थात जनतंत्र में बौद्धिक तत्वों का समावेश जिसका अर्थ है शासन में बुद्धिमान लोगों का वर्चस्व जिससे कि शासन और प्रशासन में कौशल दिखाई दे जिसका सीधा लाभ देश के लोगों को हो. इस नव-विकसित तंत्र कि प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं.-
  1. सभी वयस्क नागरिकों को सामान मताधिकार के स्थान पर उनके मताधिकार का मान उनकी शिक्षा तथा अनुभव के अनुसार.
  2. २५ वर्ष से कम तथा ७० वर्ष से अधिक आयु के नागरिकों, सरकारी कर्मियों, निरक्षर नागरिकों, न्यायलय द्वारा अपराधी तथा बुद्धिहीन घोषित व्यक्तियों को कोई मताधिकार नहीं. 
  3. परिवार नियोजन अनिवार्य, दो से अधिक अच्छे उत्पन्न करने पर माता-पिटा के मताधिकार समाप्त.
  4. प्रत्येक मतदाता को तीन प्रत्याशियों को प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय वरीयता मत प्रदान करने का प्रावधान. ५० प्रतिशत से अधिक मत पाने वाला प्रत्याशी विजयी घोषित होगा जिसके लिए सर्व प्रथम प्रतम वरीयता मतों कि गिनती होगी. इसके आधार पर परिणाम निर्धारित न होने पर द्वितीय वरीयता मत भी गिने जायेंगे, इससे भी परिणाम निर्धारित न होने पर तृतीय वरीयता मतों कि गिनती होगी.
  5. देश में शासन का मुख्य दायित्व राष्ट्राद्यक्ष को जिसका चुनाव नागरिकों द्वारा सीधे किया जायेगा.
  6. देश में केवल केन्द्रीय सरकार को विधान निर्माण का अधिकार होगा, इसके लिए देश में राज्यों का संघीय ढांचा समाप्त तथा प्रांतीय सरकारें केन्द्रीय विधानों के अंतर्गत स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल केवल नियम बना सकेंगी.
  7. देश में शिक्षा पूरी तरह निःशुल्क तथा सबको एक सामान शिक्षा पाने के अवसर. इसके लिए निजी क्षेत्र में कोई शिक्षा संस्थान नहीं.
  8. पूरे देश में ग्राम स्तर तक निःशुल्क स्वास्थ एवं चिकित्सा सेवाएँ.
  9. न्याय व्यवस्था पूरी तरह निःशुल्क एवं प्रत्येक वाद का निर्णय ३ माह के अन्दर अनिवार्य.
  10. किसी न्यायाधीश के निर्णय का उच्च न्यायलय द्वारा उलटा जाने पर न्यायाधीश न्याय हेतु योग्य घोषित एवं उसकी सेवा समाप्त. 
  11. ७० वर्ष से अधिक आयु के प्रत्येक नागरिक को जीवन यापन हेतु पेंशन. विकलांगों के अतिरिक्त किसी भी वर्ग को कोई पेंशन अथवा अन्य निःशुल्क कल्याणकारी योजना नहीं. 
  12. राजकीय कर्मियों के औसत वेतन मान देश कि प्रति-परिवार औसत आय के समान. अधिकतम तथा न्यूनतम वेतन में केवल २० प्रतिशत का अंतर. 
  13. राजकीय पद का दुरूपयोग राष्ट्रद्रोह जिसके लिए मृत्युदंड का प्रावधान. 
  14. ग्राम स्तर तक राज्य कर्मियों कि नियुक्ति जिनका दायित्व नागरिकों को सभी राजकीय सेवाएँ वहीँ उपलब्ध कराना जिससे किसी भी नागरिक को राजकीय कार्यालयों में जाने कि आवश्यकता न हो.
  15. भूमि पर व्यक्तिगत स्वामित्व समाप्त तथा प्रत्येक नागरिक को उसकी इच्छानुसार उपयोग के लिए भूमि लीज पर उपलब्ध होगी. इसके अतिरिक्त प्रत्येक परिवार को वांछित स्थान पर आवास हेतु एक समान निःशुल्क भूमि का प्रावधान. 
उक्त प्रावधानों में से प्रत्येक के कारणों तथा प्रभावों की विस्तृत चर्चा इस संलेख पर आगे के आलेखों में की जाएगी. 

मंगलवार, 22 दिसंबर 2009

भारत की प्रथम राज्य व्यवस्था

 जब देवों ने भारत भूमि को अपना घर बनाया था उस समय उनकी शासन करने की कोई अभिलाषा नहीं थी. वे बस यही चाहते थे कि यहाँ की समतल एवं उर्वरक भूमि मानवता के विकास के लिए हो क्योंकि इतनी विशाल समतल एवं सजल भूमि उन्हें अन्यत्र नहीं पाई थी. इसलिए उन्होंने बिना कोई राज्य-व्यवस्था स्थापित किये ही विकास कार्य आरम्भ कर दिए.

उनके विकास से प्रभावित होकर अनेक जातियों ने इस भूमि पर अपना अधिकार चाह जिसके लिए सबसे पहले यहाँ यहूदी आये और इश्वर, धर्म आदि के नाम पर लोगों को पथ्भ्रिष्ट करने लगे ताकि उनपर शासन करना सरल हो. इसका देवों द्वारा विरोध किये जाने पर संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गयी, जिससे निपटने के लिए उन्हें अपनी राज्य-व्यवस्था कि अनिवार्यता अनुभव हुई और उन्होंने इसका निर्णय लिया.


यहूदियों का प्रथम मुख्यालय दक्षिण भारत के मदुरै में था जिसका सीधा मुकाबला करने के लिए उन्होंने अपनी राज्य व्यवस्था के मुख्यालय के लिए दक्षिण भारत में ही एक नया नगर बसाया और उसे अपने प्रसिद्द विद्वान् अत्री के सम्मान में 'आत्रेयपाद' नाम दिया जिसे आज हैदराबाद कहा जाता है. हैदराबाद की चारमीनार नगर एवं राज्य कि स्थापना के अवसर पर बनायी गयी थी.

ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश्वर के पिताश्री दशरथ को राज्याध्यक्ष बनाया गया. यहाँ यह भी ध्यान दिया जाये कि इन तीनों भाइयों को बाद के लिखे झूंठे ग्रन्थ 'वाल्मीकि रामायण' में राम, लक्ष्मण तथा भरत कहा गया है जो इनके गुणात्मक नाम थे. उस समय गुणात्मक नामों का प्रचालन था जो व्यक्तियों के कर्मों के अनुसार निर्धारित किये जाते थे और इनको वास्तविक नामों से अधिक महत्व दिया जाता था ताकि लोग सत्कर्म करने के लिए उत्साहित हों.

राज्य व्यवस्था में ब्रह्मा को युवराज घोषित किया गया जिसपर भरत ने घोर आपत्ति की क्योंकि वे आयु में सबसे बड़े थे और युवराज बनाने के अधिकारी थे. इस आपत्ति के कारण राज्य को तीन भागों में बांटा गया तथा तीनों भाइयों को भागों का उप-राज्याध्यक्ष बनाया गया. तदनुसार ब्रह्मा को पूर्वी क्षेत्र का प्रबंध सौंपा गया और उनका मुख्यालय वर्तमान के म्यांमार क्षेत्र में, जिसका नाम अभी कुछ समय पहले तक ब्रह्मा ही था, प्रजा नामक स्थान में रखा गया जिसके कारण ब्रह्मा को प्रजापति भी कहा जाने लगा..

मध्य क्षेत्र का कार्यभार विष्णु को दिया गया जिसका मुख्यालय वर्तमान के पश्चिमी बंगाल में स्थित विष्णुपुर को बनाया गया. उसी समय बनाये गए महल विष्णुपुर में आज भी विद्यमान हैं. पूर्वी क्षेत्र भरत के अधीन दिया गया जिसका मुख्यालय वर्तमान राजस्थान के राजगढ़ को बनाया गया. राजगढ़ का विशाल किला खँडहर अवस्था में आज भी विद्यमान है.