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सोमवार, 8 मार्च 2010

भारत में व्यावसायिक शिक्षा - राष्ट्रद्रोह

भारत में व्यावसायिक शिक्षा का वाणिज्यीकरण कर दिया गया है - धन्य हैं अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह जो प्रत्येक कार्य को एक व्यवसाय मानते हैं और उसके दूरगामी अर्थशास्त्रीय पक्ष की अवहेलना करने में सिद्ध-हस्त हैं. इन्गीनिअरिंग, चिकित्सा, प्रबंधन, आदि क्षेत्रों की शिक्षा प्रदान करने में बहुत अधिक लागत की आवश्यकता होती है, किन्तु इन शिक्षाओं पर ही देश का वर्तमान और भविष्य टिका होता है, और इन पर देश द्वारा किया गया व्यय शीघ्र ही विकास के माध्यम से वापिस प्राप्त हो जाता है. किन्तु यह मामूली सा गणित देश के जाने-माने अर्थशास्त्रियों की समझ में नहीं आया और वे इनका वाणिज्यीकरण कर बैठे.

प्रत्येक व्यवसाय का एकमात्र लक्ष्य पूंजी निवेश कर शीघ्रातिशीघ्र लाभ कमाना होता है, दूरगामी लाभकर परिणामों के लिए सामयिक हानि उठाना व्यवसाय में स्वीकार्य नहीं होता, विशेषकर भारत में जहां नीतियों के निर्धारण क्षुद्र स्वार्थों की आपूर्ति हेतु किये जाते हैं और कभी भी उनमें परिवर्तन किये जा सकते हैं. शिक्षा वाणिज्य न होकर एक सेवा होती है और इसका दूरगामी परिणाम राष्ट्र का विकास होता है. इससे तुरंत लाभ कमाना राष्ट्रद्रोह के सम्कक्स है जो भारत के राजनेताओं ने विगत १०-१५ वर्षों में किया है.

व्यवसायिक शिक्षा के वाणिज्यीकरण के जो परिणाम हमारे सामने हैं, आइये उनपर एक दृष्टि डालें -
  • शिक्षा के स्तर में भारी गिरावट आयी है क्योंकि व्यवसायी इन शिक्षाओं के लिए अपेक्षित निवेश न करके न्यूनतम निवेश से काम चला रहे हैं. इन्गीनिअरिंग और चिकित्सा के क्षेत्रों में प्रयोगशालाओं का अत्यधिक महत्व होता है और उनके किये भारी निवेश की आवश्यकता होती है जो निजी व्यवसायी कदापि नहीं कर सकते. इन क्षेत्रों के शिक्षक भी अति मेधावी, शिक्षित एवं अनुभवी होने चाहिए और ऐसे विद्वान् सस्ते नहीं मिलते, जबकि निजी व्यवसायी सस्ते शिक्षकों से अपना व्यवसाय चला रहे हैं. उदाहरण के लिए भारतीय प्रबंधन संस्थानों में लगभग डेढ़ लाख रुपये प्रतिमाह वेतन पाने वाले प्रवक्ता सप्ताह में केवल दो घंटे पढ़ाते हैं, जबकि निजी प्रबंधन संस्थानों के प्रवक्ता १५-२० हज़ार रुपये के मासिक मासिक वेतन पर सप्ताह में न्यूनतम २४ घंटे अध्यापन कार्य कर रहे हैं. 
  • व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त करना भारतीय सासन-प्रशासन ने इतना महंगा बना दिया है कि इस क्षेत्र के व्यवसाय में भारी लाभ कमाने की संभावनाएं हैं, जिसके कारण वाणिज्यीकरण के बाद व्यावसायिक शिक्षा संस्थानों ली संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है. देश को जहाँ केवल ५०,००० अभियंताओं की प्रति वर्ष आवश्यकता होती है, वहां इस समय ३,००,००० अभियंता बनाए जा रहे हैं. स्पष्ट है कि इनको अपेक्षित शिक्षा न दी जाकर केवल कागजी उपाधियाँ वितरित की जा रही हैं. देश का शासन प्रशासन इस अनावश्यक अप्रत्याशित वृद्धि के प्रति व्यक्तिगत स्वार्थों के कारण अंधा बना हुआ है. इससे उच्च शिक्षा प्राप्त बेरोजगारों की संख्या में भी अप्रत्याशित वृद्धि हो रही है. अनेक व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त युवा छोटे-छोटे विद्यालयों में शिक्षक पदों पर अथवा अन्य तुच्छ कार्य करने के लिए विवश हैं. 
  • व्यावसायिक शिक्षा के वाणिज्यीकरण का सर्वाधिक दुष्प्रभाव मध्यमवर्गीय लोगों की अर्थ-व्यवस्था पर पड़ा है. उचक वर्गीय लोगों की तरह ये लोग भी अपने बच्चों को उच्च शिक्षा प्रदान करने की ललक में निजी क्षेत्र के व्यावसायिक शिक्षा संस्थानों के शिकार बन रहे हैं और अपनी कठोर परिश्रम की कमाई इन शिक्षा संस्थानों को प्रदान कर रहे हैं और आशा करते हैं कि उनके बच्चे व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त कर उन्हें देश के उच्च वर्ग में सम्मिलित कर देंगे. किन्तु परिणाम इसके विपरीत ही प्राप्त हो रहे हैं. जीवन भर की कमाई इन शिक्षा संस्थानों को अर्पित करने के बाद जब उनके बच्चों को अपेक्षित रोजगार प्राप्त नहीं होते तो वे माध्यम वर्गीय से भी नीचे की ओर खिसक जाते हैं. इस स्थिति से अनेकानेक परिवार बर्बादी के कगार पर खड़े हैं. 
इस प्रकार भारत के शासक-प्रशासक वर्ग ने माध्यम वर्गीय लोगों की कमाई पर अपनी जेबें भारी हैं और निजी व्यवसायियों को लाभ पहुँचाया है. साथ ही देश के करोड़ों युवाओं को निराशाओं के अंधकूप में धकेला है, प्रत्येक दृष्टि से यह राष्ट्र के भविष्य के साथ खिलवाड़ है और खुला राष्ट्रद्रोह है.

बुधवार, 23 दिसंबर 2009

बौद्धिक जनतंत्र की प्रमुख अवधारनाएं


बौद्धिक जनतंत्र अर्थात जनतंत्र में बौद्धिक तत्वों का समावेश जिसका अर्थ है शासन में बुद्धिमान लोगों का वर्चस्व जिससे कि शासन और प्रशासन में कौशल दिखाई दे जिसका सीधा लाभ देश के लोगों को हो. इस नव-विकसित तंत्र कि प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं.-
  1. सभी वयस्क नागरिकों को सामान मताधिकार के स्थान पर उनके मताधिकार का मान उनकी शिक्षा तथा अनुभव के अनुसार.
  2. २५ वर्ष से कम तथा ७० वर्ष से अधिक आयु के नागरिकों, सरकारी कर्मियों, निरक्षर नागरिकों, न्यायलय द्वारा अपराधी तथा बुद्धिहीन घोषित व्यक्तियों को कोई मताधिकार नहीं. 
  3. परिवार नियोजन अनिवार्य, दो से अधिक अच्छे उत्पन्न करने पर माता-पिटा के मताधिकार समाप्त.
  4. प्रत्येक मतदाता को तीन प्रत्याशियों को प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय वरीयता मत प्रदान करने का प्रावधान. ५० प्रतिशत से अधिक मत पाने वाला प्रत्याशी विजयी घोषित होगा जिसके लिए सर्व प्रथम प्रतम वरीयता मतों कि गिनती होगी. इसके आधार पर परिणाम निर्धारित न होने पर द्वितीय वरीयता मत भी गिने जायेंगे, इससे भी परिणाम निर्धारित न होने पर तृतीय वरीयता मतों कि गिनती होगी.
  5. देश में शासन का मुख्य दायित्व राष्ट्राद्यक्ष को जिसका चुनाव नागरिकों द्वारा सीधे किया जायेगा.
  6. देश में केवल केन्द्रीय सरकार को विधान निर्माण का अधिकार होगा, इसके लिए देश में राज्यों का संघीय ढांचा समाप्त तथा प्रांतीय सरकारें केन्द्रीय विधानों के अंतर्गत स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल केवल नियम बना सकेंगी.
  7. देश में शिक्षा पूरी तरह निःशुल्क तथा सबको एक सामान शिक्षा पाने के अवसर. इसके लिए निजी क्षेत्र में कोई शिक्षा संस्थान नहीं.
  8. पूरे देश में ग्राम स्तर तक निःशुल्क स्वास्थ एवं चिकित्सा सेवाएँ.
  9. न्याय व्यवस्था पूरी तरह निःशुल्क एवं प्रत्येक वाद का निर्णय ३ माह के अन्दर अनिवार्य.
  10. किसी न्यायाधीश के निर्णय का उच्च न्यायलय द्वारा उलटा जाने पर न्यायाधीश न्याय हेतु योग्य घोषित एवं उसकी सेवा समाप्त. 
  11. ७० वर्ष से अधिक आयु के प्रत्येक नागरिक को जीवन यापन हेतु पेंशन. विकलांगों के अतिरिक्त किसी भी वर्ग को कोई पेंशन अथवा अन्य निःशुल्क कल्याणकारी योजना नहीं. 
  12. राजकीय कर्मियों के औसत वेतन मान देश कि प्रति-परिवार औसत आय के समान. अधिकतम तथा न्यूनतम वेतन में केवल २० प्रतिशत का अंतर. 
  13. राजकीय पद का दुरूपयोग राष्ट्रद्रोह जिसके लिए मृत्युदंड का प्रावधान. 
  14. ग्राम स्तर तक राज्य कर्मियों कि नियुक्ति जिनका दायित्व नागरिकों को सभी राजकीय सेवाएँ वहीँ उपलब्ध कराना जिससे किसी भी नागरिक को राजकीय कार्यालयों में जाने कि आवश्यकता न हो.
  15. भूमि पर व्यक्तिगत स्वामित्व समाप्त तथा प्रत्येक नागरिक को उसकी इच्छानुसार उपयोग के लिए भूमि लीज पर उपलब्ध होगी. इसके अतिरिक्त प्रत्येक परिवार को वांछित स्थान पर आवास हेतु एक समान निःशुल्क भूमि का प्रावधान. 
उक्त प्रावधानों में से प्रत्येक के कारणों तथा प्रभावों की विस्तृत चर्चा इस संलेख पर आगे के आलेखों में की जाएगी.