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शनिवार, 7 जून 2014

उत्तर प्रदेश की आवश्यकता - कुशल नेतृत्व

उत्तर प्रदेश में लम्बे समय से ऐसे कुशल नेतृत्व का अभाव रहा है जो प्रदेश के लोगों के विकास की आवश्यकताओं और दिशा को समझ सके। श्री चन्द्र भान गुप्त के बाद के सभी मुख्य मंत्री वैभव भोग, स्वयं के परिवार अथवा ग्राम की प्रगति अथवा अपना समय व्यतीत करते रहने में रूचि रखते रहे हैं। इसके कारण पर्याप्त साधन संपन्न होने पर भी प्रदेश देश के पिछड़े राज्यों में गिना जाता रहा है।

गुरुवार, 31 दिसंबर 2009

बौद्धिक जनतंत्र में भूमि प्रबंधन


उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार मनुष्य जाति भूमि का केवल ३ प्रतिशत भाग बस्तियों के लिए उपयोग करती है, इस पर भी विश्व में लगभग ३० प्रतिशत जनसँख्या घरविहीन है. अमेरिका में भी अधिकाँश वृद्ध जन घरविहीन होने के कारण अपनी कारों में रात्रि व्यतीत करते हैं. भारत के शहरी क्षेत्रों में ग्रामीण क्षेत्रों से आजीविका के लिए आये अधिकाँश व्यक्ति घर-विहीन होते हैं तथा ५० प्रतिशत घर कहे जाने वाले घरों में अत्यधिक छोटे होने के कारण प्राकृत प्रकाश एवं वायु प्रवाह संभव नहीं होता. तकनीकी स्तर पर इन्हें रहने योग्य घर नहीं कहा जा सकता. ग्रामीण क्षेत्रों में भी अधिकाँश घर घर कहे जाने योग्य नहीं होते.

मनुष्यों के निवास हेतु घरों की इस विकराल समस्या का एकमात्र कारण है भूमि पर व्यक्तिगत स्वामित्व. देश के कुछ लोगों ने भूमि को येन-केन-प्रकारेण अपने स्वामित्व में लेकर उसका मूल्य इतना अधिक बढ़ा दिया है कि जन-साधारण भू स्वामित्व प्राप्त करने का स्वप्न भी नहीं देख सकता. इस भूमि-हीनता का सर्वाधिक दुष्प्रभाव लोगों में राष्ट्रीयता की भावना का अभाव है. इस देश की विशाल भूमि पर जिन्हें सुईं की नोंक के बराबर भी भूमि प्राप्त नहीं है, उनमें राष्ट्रीयता की भावना की कल्पना भी नहीं की जा सकती.

बौद्धिक जनतंत्र में देश में भूमि पर व्यक्तिगत स्वामित्व की समाप्ति का प्रावधान है ताकि यह प्राकृत संपदा भी जल तथा वायु की भांति सार्वजानिक हो. अतः देश की समस्त भूमि राष्ट्र के स्वामित्व में रहेगी तथा प्रत्येक नागरिक परिवार को अपना घर बनाने के लिए एक निःशुल्क भूखंड प्रदान किया जाएगा जिसका माप सभी परिवारों के लिए एक समान होगा तथा जिसकी स्थिति परिवार की इच्छानुसार उपलब्ध होने पर होगी. इस भूखंड को परिवार कभी भी एक स्थान से दूसरे स्थान पर बदल सकेगा. यदि कोई परिवार घर बनने के लिए एक से अधिक भूखंड चाहता है तो उसे अतिरिक्त भूखंड किराए पर दिया जायेगा. यह किराया बस्ती की जनसंख्या के अनुसार चार चार वर्गों में पूर्व-निर्धारित रहेगा - ग्रामीण, उप-नगरीय, नगरीय तथा विशाल-नगरीय. ग्रामीण क्षेत्रों में किराया न्यूनतम तथा विशाल-नगरीय क्षेत्रों में किराया अधिकतम रहेगा.

घर हेतु भूमि के अतिरिक्त प्रत्येक नागरिक कृषि, खनन, उद्योग तथा व्यवसाय हेतु भूमि अपने वांछित स्थान पर किराए पर ले सकेगा. इनमें कृषि भूमि का किराया न्यूनतम तथा क्रमानुसार व्यावसायिक भूमि का किराया सर्वाधिक होगा जिसके निर्धारण में ग्रामीण, उप-नगरीय, नगरीय तथा विशाल-नगरीय क्षेत्रों पर भी विचार होगा. इस प्रकार घर हेतु भूमि के अतिरिक्त भूमि के किरायों की दरें १६ होंगी. यह भूमि भी किरायेदार द्वारा कभी भी लौटाई जा सकती है. सभी बस्तियों में स्थान-स्थान पर राष्ट्र की संपदा के रूप में वन क्षेत्र पूर्व-निर्धारित होंगे. इन सब उपयोगों के अतिरिक्त शेष भूमि पर वन लगाए जायेंगे. सभी वन क्षेत्र राष्ट्र की संपदा के रूप में निजी व्यक्तियों अथवा संगठनों द्वारा प्रबंधित होंगे.