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सोमवार, 28 दिसंबर 2009

बौद्धिक जनतंत्र में राज्यकर्मी


बौद्धिक जनतंत्र में राज्यकर्मी जनता के सच्चे सेवक बना दिए जाते हैं - उनपर नियंत्रण से. इसके लिए विविध प्रावधान निम्नांकित हैं -

१. मताधिकार
राज्यकर्मी शासन-प्रशासन का अभिन्न अंग होने के कारण देश की सरकार चलाने वाले होते हैं, इसलिए इन्हें शासन में किसी अन्य अधिकार की आवश्यकता नहीं होती. इसलिए बौद्धिक जनतंत्र में राज्यकर्मिओं को कोई मताधिकार नहीं होता. इस अधिकार को न दिए जाने का एक अन्य कारण हमारे जनतंत्र के अनुभव हैं जिनमें पाया गया है कि प्रत्येक सरकार सबसे अधिक राज्य्कर्मिओन को प्रसन्न करने के प्रयास करती है - उनके मत प्राप्त करने के लिए तथा उन्हें प्रसन्न रखकर अपने भृष्ट आचरण में उनका सहयोग लेने के लिए. इन दृष्टियों से सरकारें रज्य्कर्मिओन के वेतन और सुख-सुविधाओं में अत्यधिक वृद्धि करती रहती हैं. साथ ही उनके कार्यों में दक्षता लाने का कोई प्रयास नहीं करतीं. यहाँ तक कि राज्य्कर्मिओन के भृष्ट होने पर भी उनकी सभी प्रकार से रक्षा की जाती है ताकि वे प्रसन्न रहें और अपना समर्थन सत्तासीन राजनेताओं को दें. मताधिकार न होने से राज्यकर्मिओं पर कड़ा नियंत्रण रखा जा सकेगा जिससे उनकी कार्य दक्षता बढ़ेगी और वे जनता के लिए अधिक उपयोगी होंगे.

२ वेतन एवं सुख-सुविधाएँ
राज्यकर्मी संयुक्त रूप में राष्ट्र की प्रति व्यक्ति औसत आय के लिए जिम्मेदार तथा उत्तरदायी होते हैं. इसलिए बौद्धिक जनतंत्र में उनके औसत वेतन एवं अन्य सभी सुख-सुविधाएं देश की प्रति परिवार औसत आय के समान रखने का प्रावधान किया गया है. इसका लाभ यह होगा कि प्रत्येक राज्यकर्मी जनता की औसत आय में वृद्धि करने के लिए उत्सुक बना रहेगा. जनतंत्र में इनके वेतन मान देश की औसत आय से २० गुणित तक बढ़ा दिए जाने पर यह वर्ग देश का सर्वाधिक धनाढ्य वर्ग बन गया है तथा कार्य-कौशल पर कोई ध्यान नहीं देता.

३. पद का दुरूपयोग
राज्यकर्मी संयुक्त रूप में देश का प्रशासन चलाने वाले होते हैं.जो एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय कार्य है. ऐसा पद पाकर उसका दुरूपयोग करना बौद्धिक जनतंत्र में राष्ट्रद्रोह माना गया है जिसके लिए मृत्युदंड का प्रावधान किया गया गया है. इससे प्रावधान से राज्यकर्मिओं को भृष्ट होने से बचाया जा सकेगा जिससे वे जनता की सेवा में निष्ठापूर्वक लगे रहेंगे.

४. वेतनों का अंतर
वेतन व्यक्ति के जीवन-यापन का साधन होता है तथा जीवन यापन की आवश्यकताएं सभी व्यक्तिओं की लगभग एक समान होती हैं. इस दृष्टि से बौद्धिक जनतंत्र के अंतर्गत राज्यकर्मिओं के अधिकतम और न्यूनतम वेतनमानों में केवल २० प्रतिशत के अंतर का प्रावधान किया गया है. यहाँ यह भी जाना जाए कि उच्च पदासीन व्यक्तियों के अधिकार अन्य से बहुत अधिक होते हैं जो उच्च शिक्षा पाकर उच्च पद पाने के लिए पर्याप्त कारण होते हैं. जनतंत्र में यह अंतर दस गुणित हो गया है जो सामाजिक सौहार्द के लिए व्यवधान बन गया है.

५. संगठन एवं हड़ताल के अधिकार
जनतंत्र का अनुभव हमें दर्शाता है कि राज्यकर्मी अपने संगठन बनाने के अधिकार का दुरूपयोग करते हैं तथा सदैव हड़ताल आदि पर जाने के लिए तैयार रहते हैं जिससे उनके कार्यकौशल पर बुरा प्रभाव पड़ता है और वे जनसेवा से विमुख रहते हैं. इन कारणों से बौद्धिक जनतंत्र में राज्य्कर्मिओन को संगठन बनाने और हड़ताल आदि पर जाने के अधिकार नहीं दिए गए है. यदि किसी कर्मी को राज्य के लिए कार्य करने से नीतिगत अथवा किसी अन्य कारण से असंतुष्टि होती है तो वह त्यागपत्र देकर मुक्त हो सकता है अन्यथा उसे अपना नियमाधीन कार्य निष्ठापूर्वक करते रहना चाहिए.