- सभी वयस्क नागरिकों को सामान मताधिकार के स्थान पर उनके मताधिकार का मान उनकी शिक्षा तथा अनुभव के अनुसार.
- २५ वर्ष से कम तथा ७० वर्ष से अधिक आयु के नागरिकों, सरकारी कर्मियों, निरक्षर नागरिकों, न्यायलय द्वारा अपराधी तथा बुद्धिहीन घोषित व्यक्तियों को कोई मताधिकार नहीं.
- परिवार नियोजन अनिवार्य, दो से अधिक अच्छे उत्पन्न करने पर माता-पिटा के मताधिकार समाप्त.
- प्रत्येक मतदाता को तीन प्रत्याशियों को प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय वरीयता मत प्रदान करने का प्रावधान. ५० प्रतिशत से अधिक मत पाने वाला प्रत्याशी विजयी घोषित होगा जिसके लिए सर्व प्रथम प्रतम वरीयता मतों कि गिनती होगी. इसके आधार पर परिणाम निर्धारित न होने पर द्वितीय वरीयता मत भी गिने जायेंगे, इससे भी परिणाम निर्धारित न होने पर तृतीय वरीयता मतों कि गिनती होगी.
- देश में शासन का मुख्य दायित्व राष्ट्राद्यक्ष को जिसका चुनाव नागरिकों द्वारा सीधे किया जायेगा.
- देश में केवल केन्द्रीय सरकार को विधान निर्माण का अधिकार होगा, इसके लिए देश में राज्यों का संघीय ढांचा समाप्त तथा प्रांतीय सरकारें केन्द्रीय विधानों के अंतर्गत स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल केवल नियम बना सकेंगी.
- देश में शिक्षा पूरी तरह निःशुल्क तथा सबको एक सामान शिक्षा पाने के अवसर. इसके लिए निजी क्षेत्र में कोई शिक्षा संस्थान नहीं.
- पूरे देश में ग्राम स्तर तक निःशुल्क स्वास्थ एवं चिकित्सा सेवाएँ.
- न्याय व्यवस्था पूरी तरह निःशुल्क एवं प्रत्येक वाद का निर्णय ३ माह के अन्दर अनिवार्य.
- किसी न्यायाधीश के निर्णय का उच्च न्यायलय द्वारा उलटा जाने पर न्यायाधीश न्याय हेतु योग्य घोषित एवं उसकी सेवा समाप्त.
- ७० वर्ष से अधिक आयु के प्रत्येक नागरिक को जीवन यापन हेतु पेंशन. विकलांगों के अतिरिक्त किसी भी वर्ग को कोई पेंशन अथवा अन्य निःशुल्क कल्याणकारी योजना नहीं.
- राजकीय कर्मियों के औसत वेतन मान देश कि प्रति-परिवार औसत आय के समान. अधिकतम तथा न्यूनतम वेतन में केवल २० प्रतिशत का अंतर.
- राजकीय पद का दुरूपयोग राष्ट्रद्रोह जिसके लिए मृत्युदंड का प्रावधान.
- ग्राम स्तर तक राज्य कर्मियों कि नियुक्ति जिनका दायित्व नागरिकों को सभी राजकीय सेवाएँ वहीँ उपलब्ध कराना जिससे किसी भी नागरिक को राजकीय कार्यालयों में जाने कि आवश्यकता न हो.
- भूमि पर व्यक्तिगत स्वामित्व समाप्त तथा प्रत्येक नागरिक को उसकी इच्छानुसार उपयोग के लिए भूमि लीज पर उपलब्ध होगी. इसके अतिरिक्त प्रत्येक परिवार को वांछित स्थान पर आवास हेतु एक समान निःशुल्क भूमि का प्रावधान.
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बुधवार, 23 दिसंबर 2009
बौद्धिक जनतंत्र की प्रमुख अवधारनाएं
बौद्धिक जनतंत्र अर्थात जनतंत्र में बौद्धिक तत्वों का समावेश जिसका अर्थ है शासन में बुद्धिमान लोगों का वर्चस्व जिससे कि शासन और प्रशासन में कौशल दिखाई दे जिसका सीधा लाभ देश के लोगों को हो. इस नव-विकसित तंत्र कि प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं.-
रविवार, 20 दिसंबर 2009
पृष्ठभूमि
मेरे बचपन में पिताजी ने एक कहानी सुनायी थी जो प्रसंगवश स्मृति-पटल पर उभर रही है -
यही कथा सच्चाई है आज के भारत के लोगों की जिन्हें स्वतंत्रता, लोकतंत्र और मताधिकार प्रदान किये गए हैं और जो उनके दास-संस्कारीय बंधनों के कारण उनके उपयोग में नहीं आकर उपरोक्त कैदियों के भोजन की तरह व्यर्थ जा रहे हैं और वे उसी प्रकार के शोषण और दमन का शिकार हो रहे हैं जैसे कि मुग़ल तथा अँगरेज़ शासनों में हो रहे थे.
"उपरोक्त कथा में आगे चलकर एक देव कारागार में आया और उसने उन सब कैदियों को एक मंत्र दिया. मंत्र का उपयोग करने से उनका भोजन व्यथ न जाकर उनकी उदर-पूर्ति करने लगा और वे खुशहाल हो गए, जबकि उनकी कोहनियों पर बंधी शलाखें यथावत बंधीं थीं."
आज भारतवासियों को एक ऐसे ही मंत्र कि आवश्यकता है ताकि उनके इतिहास-जनित संस्कारों के रहते हुए भी वे अपनी स्वतंत्रता, लोकतंत्र और मताधिकार का सदुपयोग कर सकें और खुशहाल जीवन जी सकें. आइये देखें क्या था वह देव-दत्त मंत्र जिसके उपयोग से कैदी अपने भोजन का सदुपयोग कर सके.
पिताजी ने आगे बताया था, "देव ने उनसे कहा कि वे अपने हाथों से भोजन ग्रासों को अपने-अपने मुख में ले जाने का प्रयास न करके एक दूसरे के मुख में डालें, जिसमें उन्हें कोई कठिनाई नहीं होगी. केवल आवश्यकता होगी आपसी सहयोग और विश्वास की."
कथा का यह मंत्र सार्वभौमिक और सार्वकालिक है किन्तु आज भारतवासियों को केवल परस्पर सहयोग एवं विश्वास ही पर्याप्त नहीं है, उनकी आवश्यकता है एक ऐसे शासन तंत्र की जिसका दुरूपयोग न हो सके तथा जो लोगों को उनकी मौलिक आवश्यकताओं - स्वास्थ, शिक्षा और न्याय के साथ-साथ सम्मानपूर्वक जीवन यापन का अवसर प्रदान कर सके.
लोगों का पेट केवल स्वतंत्रता, लोकतंत्र और मताधिकार से नहीं भर सकता, न ही इनके दुरूपयोग से उनको सम्मान प्राप्त होता है. हाँ, इनसे वे भ्रमित अवश्य रहते हैं की उन्हें एक अनोखा ऐसा अधिकार मिला है जो पहले कभी नहीं मिला था. लोग स्वयं यह नहीं जानते की उन्हें वास्तव में क्या चाहिए ताकि वे एक संपन्न जीवन जी सकें. इसके लिए आवश्यकता है की देश का बौद्धिक वर्ग उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कोई मन्त्र आविष्कृत करे और उन्हें प्रदान करे.
इस संलेख के अधिष्ठाता ने इस विषय पर लगभग २० वर्ष गहन अध्ययन एवं चिंतन किया है जिसका परिणाम है एक नविन शासन प्रणाली 'बौद्धिक लोकतंत्र' जो वर्त्तमान लोकतंत्र से बहुत अधिक भिन्न नहीं है किन्तु जिसके माध्यम से देश का शासन देश के बौद्धिक वर्ग के हाथों में चला जायेगा जो लोगों को खुशहाली प्रदान कर सकेंगे.
इस संलेख की श्रंखलाओं में इसी नवीन शासन प्रणाली को उद्घाटित किया जायेगा ताकि देश का प्रबुद्ध वर्ग उसपर विचार कर सके, आवश्यकतानुसार उसमें संशोधन कर सके तथा देश पर उसे लागू कर सके.
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