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शुक्रवार, 25 दिसंबर 2009

महेश्वर का जन्म

महेश्वर के बड़े होने पर भी राम को युवराज बनाये जाने का कारण उनके जन्म की जटिलता थी जिसका उस समय तक महेश्वर को ज्ञान नहीं था.


शकुंतला एक अति सुंदर युवती थी और उसके सौन्दर्य कि ख्याति दूर दूर तक फ़ैल रही थी. उधर, भरत के पश्चिमी भू-क्षेत्र पर अनेक बाहरी लोगों ने अपना अधिकार कर वहां के भोले-भले लोगों को अपने अधीन कर लिया था, जिनमें से एक राज्य का राजकुमार दुष्यंत था. दुष्यंत ने भी शकुंतला के बारे में सूना था और उसमें शकुंतला के यौवन भोग की इच्छा जागी. वह सूर्यवातार का वेश धारण कर शकुंतला के पास पहुंचा और उसे अपने मोहजाल में फंसा लिया. दोनों ऊर्जावान युवा थे इसलिए प्रेमालाप में शकुन्तला गर्भवती हो गयी. जब दुष्यंत को इसकी सूचना दी गयी तो उसने शकुंतला को पहचानने से इंकार  कर दिया. शकुंतला का जीवन बर्बादी के कगार पर आ पहुंचा.

शकुंतला एक देवकुल कि कन्या थी और उसकी लाज तथा जीवन की रक्षा करना देव समाज के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया. अतः गुरुजनों के आग्रह पर उस समय तक युवा और अविवाहित दशरथ ने शकुंतला से विवाह कर लिया. कुछ गोपनीयता के उद्देश्य से शकुंतला का नाम कौशल्या कर दिया गया. इस प्रकार दशरथ कि प्रथम पत्नी कौशल्या बनी. उचित समय आने पर कौशल्या ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम महेश्वर रखा गया. कौशल्या के ही दूसरे पुत्र का नाम ब्रह्मा रखा गया जो सौम्य स्वभाव के कारण अत्यधिक लोकप्रिय बने. इसके विपरीत महेश्वर अति क्रोधी स्वभाव के थे और अपने शारीरिक बल का भरपूर प्रदर्शन तथा उपयोग करते थे.  .

महेश्वर का जन्म

महेश्वर के बड़े होने पर भी राम को युवराज बनाये जाने का कारण उनके जन्म की जटिलता थी जिसका उस समय तक महेश्वर को ज्ञान नहीं था.


शकुंतला एक अति सुंदर युवती थी और उसके सौन्दर्य कि ख्याति दूर दूर तक फ़ैल रही थी. उधर, भरत के पश्चिमी भू-क्षेत्र पर अनेक बाहरी लोगों ने अपना अधिकार कर वहां के भोले-भले लोगों को अपने अधीन कर लिया था, जिनमें से एक राज्य का राजकुमार दुष्यंत था. दुष्यंत ने भी शकुंतला के बारे में सूना था और उसमें शकुंतला के यौवन भोग की इच्छा जागी. वह सूर्यवातार का वेश धारण कर शकुंतला के पास पहुंचा और उसे अपने मोहजाल में फंसा लिया. दोनों ऊर्जावान युवा थे इसलिए प्रेमालाप में शकुन्तला गर्भवती हो गयी. जब दुष्यंत को इसकी सूचना दी गयी तो उसने शकुंतला को पहचानने से इंकार  कर दिया. शकुंतला का जीवन बर्बादी के कगार पर आ पहुंचा.

शकुंतला एक देवकुल कि कन्या थी और उसकी लाज तथा जीवन की रक्षा करना देव समाज के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया. अतः गुरुजनों के आग्रह पर उस समय तक युवा और अविवाहित दशरथ ने शकुंतला से विवाह कर लिया. कुछ गोपनीयता के उद्देश्य से शकुंतला का नाम कौशल्या कर दिया गया. इस प्रकार दशरथ कि प्रथम पत्नी कौशल्या बनी. उचित समय आने पर कौशल्या ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम महेश्वर रखा गया. कौशल्या के ही दूसरे पुत्र का नाम ब्रह्मा रखा गया जो सौम्य स्वभाव के कारण अत्यधिक लोकप्रिय बने. इसके विपरीत महेश्वर अति क्रोधी स्वभाव के थे और अपने शारीरिक बल का भरपूर प्रदर्शन तथा उपयोग करते थे.  .

मंगलवार, 22 दिसंबर 2009

भारत की प्रथम राज्य व्यवस्था

 जब देवों ने भारत भूमि को अपना घर बनाया था उस समय उनकी शासन करने की कोई अभिलाषा नहीं थी. वे बस यही चाहते थे कि यहाँ की समतल एवं उर्वरक भूमि मानवता के विकास के लिए हो क्योंकि इतनी विशाल समतल एवं सजल भूमि उन्हें अन्यत्र नहीं पाई थी. इसलिए उन्होंने बिना कोई राज्य-व्यवस्था स्थापित किये ही विकास कार्य आरम्भ कर दिए.

उनके विकास से प्रभावित होकर अनेक जातियों ने इस भूमि पर अपना अधिकार चाह जिसके लिए सबसे पहले यहाँ यहूदी आये और इश्वर, धर्म आदि के नाम पर लोगों को पथ्भ्रिष्ट करने लगे ताकि उनपर शासन करना सरल हो. इसका देवों द्वारा विरोध किये जाने पर संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गयी, जिससे निपटने के लिए उन्हें अपनी राज्य-व्यवस्था कि अनिवार्यता अनुभव हुई और उन्होंने इसका निर्णय लिया.


यहूदियों का प्रथम मुख्यालय दक्षिण भारत के मदुरै में था जिसका सीधा मुकाबला करने के लिए उन्होंने अपनी राज्य व्यवस्था के मुख्यालय के लिए दक्षिण भारत में ही एक नया नगर बसाया और उसे अपने प्रसिद्द विद्वान् अत्री के सम्मान में 'आत्रेयपाद' नाम दिया जिसे आज हैदराबाद कहा जाता है. हैदराबाद की चारमीनार नगर एवं राज्य कि स्थापना के अवसर पर बनायी गयी थी.

ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश्वर के पिताश्री दशरथ को राज्याध्यक्ष बनाया गया. यहाँ यह भी ध्यान दिया जाये कि इन तीनों भाइयों को बाद के लिखे झूंठे ग्रन्थ 'वाल्मीकि रामायण' में राम, लक्ष्मण तथा भरत कहा गया है जो इनके गुणात्मक नाम थे. उस समय गुणात्मक नामों का प्रचालन था जो व्यक्तियों के कर्मों के अनुसार निर्धारित किये जाते थे और इनको वास्तविक नामों से अधिक महत्व दिया जाता था ताकि लोग सत्कर्म करने के लिए उत्साहित हों.

राज्य व्यवस्था में ब्रह्मा को युवराज घोषित किया गया जिसपर भरत ने घोर आपत्ति की क्योंकि वे आयु में सबसे बड़े थे और युवराज बनाने के अधिकारी थे. इस आपत्ति के कारण राज्य को तीन भागों में बांटा गया तथा तीनों भाइयों को भागों का उप-राज्याध्यक्ष बनाया गया. तदनुसार ब्रह्मा को पूर्वी क्षेत्र का प्रबंध सौंपा गया और उनका मुख्यालय वर्तमान के म्यांमार क्षेत्र में, जिसका नाम अभी कुछ समय पहले तक ब्रह्मा ही था, प्रजा नामक स्थान में रखा गया जिसके कारण ब्रह्मा को प्रजापति भी कहा जाने लगा..

मध्य क्षेत्र का कार्यभार विष्णु को दिया गया जिसका मुख्यालय वर्तमान के पश्चिमी बंगाल में स्थित विष्णुपुर को बनाया गया. उसी समय बनाये गए महल विष्णुपुर में आज भी विद्यमान हैं. पूर्वी क्षेत्र भरत के अधीन दिया गया जिसका मुख्यालय वर्तमान राजस्थान के राजगढ़ को बनाया गया. राजगढ़ का विशाल किला खँडहर अवस्था में आज भी विद्यमान है.

भारत की प्रथम राज्य व्यवस्था

 जब देवों ने भारत भूमि को अपना घर बनाया था उस समय उनकी शासन करने की कोई अभिलाषा नहीं थी. वे बस यही चाहते थे कि यहाँ की समतल एवं उर्वरक भूमि मानवता के विकास के लिए हो क्योंकि इतनी विशाल समतल एवं सजल भूमि उन्हें अन्यत्र नहीं पाई थी. इसलिए उन्होंने बिना कोई राज्य-व्यवस्था स्थापित किये ही विकास कार्य आरम्भ कर दिए.

उनके विकास से प्रभावित होकर अनेक जातियों ने इस भूमि पर अपना अधिकार चाह जिसके लिए सबसे पहले यहाँ यहूदी आये और इश्वर, धर्म आदि के नाम पर लोगों को पथ्भ्रिष्ट करने लगे ताकि उनपर शासन करना सरल हो. इसका देवों द्वारा विरोध किये जाने पर संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गयी, जिससे निपटने के लिए उन्हें अपनी राज्य-व्यवस्था कि अनिवार्यता अनुभव हुई और उन्होंने इसका निर्णय लिया.


यहूदियों का प्रथम मुख्यालय दक्षिण भारत के मदुरै में था जिसका सीधा मुकाबला करने के लिए उन्होंने अपनी राज्य व्यवस्था के मुख्यालय के लिए दक्षिण भारत में ही एक नया नगर बसाया और उसे अपने प्रसिद्द विद्वान् अत्री के सम्मान में 'आत्रेयपाद' नाम दिया जिसे आज हैदराबाद कहा जाता है. हैदराबाद की चारमीनार नगर एवं राज्य कि स्थापना के अवसर पर बनायी गयी थी.

ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश्वर के पिताश्री दशरथ को राज्याध्यक्ष बनाया गया. यहाँ यह भी ध्यान दिया जाये कि इन तीनों भाइयों को बाद के लिखे झूंठे ग्रन्थ 'वाल्मीकि रामायण' में राम, लक्ष्मण तथा भरत कहा गया है जो इनके गुणात्मक नाम थे. उस समय गुणात्मक नामों का प्रचालन था जो व्यक्तियों के कर्मों के अनुसार निर्धारित किये जाते थे और इनको वास्तविक नामों से अधिक महत्व दिया जाता था ताकि लोग सत्कर्म करने के लिए उत्साहित हों.

राज्य व्यवस्था में ब्रह्मा को युवराज घोषित किया गया जिसपर भरत ने घोर आपत्ति की क्योंकि वे आयु में सबसे बड़े थे और युवराज बनाने के अधिकारी थे. इस आपत्ति के कारण राज्य को तीन भागों में बांटा गया तथा तीनों भाइयों को भागों का उप-राज्याध्यक्ष बनाया गया. तदनुसार ब्रह्मा को पूर्वी क्षेत्र का प्रबंध सौंपा गया और उनका मुख्यालय वर्तमान के म्यांमार क्षेत्र में, जिसका नाम अभी कुछ समय पहले तक ब्रह्मा ही था, प्रजा नामक स्थान में रखा गया जिसके कारण ब्रह्मा को प्रजापति भी कहा जाने लगा..

मध्य क्षेत्र का कार्यभार विष्णु को दिया गया जिसका मुख्यालय वर्तमान के पश्चिमी बंगाल में स्थित विष्णुपुर को बनाया गया. उसी समय बनाये गए महल विष्णुपुर में आज भी विद्यमान हैं. पूर्वी क्षेत्र भरत के अधीन दिया गया जिसका मुख्यालय वर्तमान राजस्थान के राजगढ़ को बनाया गया. राजगढ़ का विशाल किला खँडहर अवस्था में आज भी विद्यमान है.

मंगलवार, 15 दिसंबर 2009

भारत निर्माण का आरम्भ

इस संलेख के कथानकों का काल यह मानकर निर्धारित किया गया है कि सिकंदर का भारत पर आक्रमण ३२३ ईसापूर्व में हुआ जिसे आज विश्व स्तर पर सत्य माना जाता है.

अब से लगभग २,35० वर्ष पहले आज थाईलैंड कही जाने वाली भूमि पर एक परिवार था 'पुरु' नाम का. इस परिवार के तीन पुत्रों - ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश्वर ने आज के विएतनाम से अफगानिस्तान तक कि भूमि पर एक देश के निर्माण कि ठानी जो तब छुटपुट जंगली बस्तियों के अतिरिक्त जंगलों से भरी थी. हिमालय से सागर तक बहने वाली नदियाँ क्षेत्र को हरा-भरा रखने के लिए पर्याप्त जल प्रदान कर रही थीं और मानव बस्तियों के लिए अनुकूल जलवायु एवं पर्यावरण प्रदान कर रही थीं.

पुरु परिवार शिक्षित था और अपने क्षेत्र में सभ्यता का विकास करने में लगा था. अपने अनुभवों को भावी पीढ़ियों के लिए लिखते रहना इसकी परंपरा थी. इसी आलेखन को बाद में वेदों का नाम दिया गया. भारत कि मुख्य भूमि पर आकर इस परिवार ने एक नयी भाषा का विकास आरम्भ किया जिसे 'देवनागरी' नाम दिया गया. उस समय भाषा तथा लिपि एक ही नाम से जानी जाती थीं. इसके बाद वेदों को भी इसी भाषा में लिखा गया. यहीं इस परिवार का सम्बन्ध स्थानीय व्यक्ति 'विश्वामित्र' से बना जो भ्रमणकारी थे और जनसेवा उनका व्रत था.

तीनों भाइयों में सबसे बड़े महेश्वर थे जो एक विशालकाय योद्धा थे इसलिए क्षेत्र कि रक्षा का दायित्व इन्हें सोंपा गया. ब्रह्मा सृजन कार्य करते थे और मानवोपयोगी घर, बर्तन तथा अन्य वस्तुएं बनाने में लगे रहते थे. इनका स्वभाव अत्यधिक सौम्य था तथा लोगों के दुःख दर्दों को दूर करने का प्रयास करते थे जिसके कारन सर्वाधिक लोकप्रिय थे. स्वभाव में साम्यता के कारण विश्वामित्र इनके घनिष्ठ मित्र बन गए. विष्णु बुद्धिवादी थे और परिस्थिति तथा समयानुकूल योजना बनाने में लगे रहते थे. तीनो समाज को देने में लगे रहने के कारण लोग इन्हें 'देव' कहते थे.

उधर आज इजराएल कहे जाने वाले क्षेत्र पर एक बाहरी जंगली जाति ने अपना शाषन स्थापित कर लिया था जिससे स्थानीय जनता दुखी थी जिसके आक्रोश का स्वर एक स्थानीय किशोर 'क्रिस्तोफेर' ने बुलंद करना आरम्भ किया. इस आक्रोश के दमन के लिए क्रिस्तोफेर पर अवैध संतान होने का आरोप लगाकर उसे क्रॉस पर यातना देते हुए मृत्यु दण्ड का प्रयास किया गया. हताहत किशोर के शरीर का औषधीय लेपन से गुप्त रूप में उपचार किया गया जिससे बालक कि जान बच गयी. इस किशोर की बड़ी बहिन मरियम उसे साथ लेकर गुप्त रूप से भारत आ गयी और देवों के साथ इस नव निर्माण कार्य में जुट गयी. गुप्त रहने के लिए भाई-बहिन नौका परिचालन का कार्य करते थे. क्रिस्तोफेर विष्णु के परम मित्र और सहयोगी बने.

उसी समय ग्रीस के अथेन्स नगर में एक सभ्यता का विकास किया जा रहा था जिसके अंतर्गत नगर में विश्व की प्रथम जनतांत्रिक शाषन व्यवस्ता स्थापित की गयी. इस नगर राज्य को एक्रोपोलिस कहा जाता था जो चरों और से जंगली जातियों से घिरा था. मसदोनिया के जंगली शाषक फिलिप ने नगर राज्य पर आक्रमण किया और सभ्य नागरिकों को वहां से खदेड़ दिया. इनके शीर्ष विद्वान् सुकरात को विषपान करा मृत्युदंड दे दिया गया. नगर के लोग छिपकर भागते हुए भारत पहुंचे और देवों में मिल गए. इन्होने भारत में आगरा और आसपास के क्षेत्रों को विकसित किया. यहाँ ये लोग अक्रोपोल होने के कारण अग्रवाल कहलाये.

इस प्रकार स्थानीय लोगों के साथ मिलकर एक बड़ा समूह भारत निर्माण के कार्य में जुट गया. नयी-नयी बस्तियां बनाने लगीं, भोजन के उत्पादन के लिए कृषि विकसित की जाने लगी.    

भारत निर्माण का आरम्भ

इस संलेख के कथानकों का काल यह मानकर निर्धारित किया गया है कि सिकंदर का भारत पर आक्रमण ३२३ ईसापूर्व में हुआ जिसे आज विश्व स्तर पर सत्य माना जाता है.

अब से लगभग २,35० वर्ष पहले आज थाईलैंड कही जाने वाली भूमि पर एक परिवार था 'पुरु' नाम का. इस परिवार के तीन पुत्रों - ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश्वर ने आज के विएतनाम से अफगानिस्तान तक कि भूमि पर एक देश के निर्माण कि ठानी जो तब छुटपुट जंगली बस्तियों के अतिरिक्त जंगलों से भरी थी. हिमालय से सागर तक बहने वाली नदियाँ क्षेत्र को हरा-भरा रखने के लिए पर्याप्त जल प्रदान कर रही थीं और मानव बस्तियों के लिए अनुकूल जलवायु एवं पर्यावरण प्रदान कर रही थीं.

पुरु परिवार शिक्षित था और अपने क्षेत्र में सभ्यता का विकास करने में लगा था. अपने अनुभवों को भावी पीढ़ियों के लिए लिखते रहना इसकी परंपरा थी. इसी आलेखन को बाद में वेदों का नाम दिया गया. भारत कि मुख्य भूमि पर आकर इस परिवार ने एक नयी भाषा का विकास आरम्भ किया जिसे 'देवनागरी' नाम दिया गया. उस समय भाषा तथा लिपि एक ही नाम से जानी जाती थीं. इसके बाद वेदों को भी इसी भाषा में लिखा गया. यहीं इस परिवार का सम्बन्ध स्थानीय व्यक्ति 'विश्वामित्र' से बना जो भ्रमणकारी थे और जनसेवा उनका व्रत था.

तीनों भाइयों में सबसे बड़े महेश्वर थे जो एक विशालकाय योद्धा थे इसलिए क्षेत्र कि रक्षा का दायित्व इन्हें सोंपा गया. ब्रह्मा सृजन कार्य करते थे और मानवोपयोगी घर, बर्तन तथा अन्य वस्तुएं बनाने में लगे रहते थे. इनका स्वभाव अत्यधिक सौम्य था तथा लोगों के दुःख दर्दों को दूर करने का प्रयास करते थे जिसके कारन सर्वाधिक लोकप्रिय थे. स्वभाव में साम्यता के कारण विश्वामित्र इनके घनिष्ठ मित्र बन गए. विष्णु बुद्धिवादी थे और परिस्थिति तथा समयानुकूल योजना बनाने में लगे रहते थे. तीनो समाज को देने में लगे रहने के कारण लोग इन्हें 'देव' कहते थे.

उधर आज इजराएल कहे जाने वाले क्षेत्र पर एक बाहरी जंगली जाति ने अपना शाषन स्थापित कर लिया था जिससे स्थानीय जनता दुखी थी जिसके आक्रोश का स्वर एक स्थानीय किशोर 'क्रिस्तोफेर' ने बुलंद करना आरम्भ किया. इस आक्रोश के दमन के लिए क्रिस्तोफेर पर अवैध संतान होने का आरोप लगाकर उसे क्रॉस पर यातना देते हुए मृत्यु दण्ड का प्रयास किया गया. हताहत किशोर के शरीर का औषधीय लेपन से गुप्त रूप में उपचार किया गया जिससे बालक कि जान बच गयी. इस किशोर की बड़ी बहिन मरियम उसे साथ लेकर गुप्त रूप से भारत आ गयी और देवों के साथ इस नव निर्माण कार्य में जुट गयी. गुप्त रहने के लिए भाई-बहिन नौका परिचालन का कार्य करते थे. क्रिस्तोफेर विष्णु के परम मित्र और सहयोगी बने.

उसी समय ग्रीस के अथेन्स नगर में एक सभ्यता का विकास किया जा रहा था जिसके अंतर्गत नगर में विश्व की प्रथम जनतांत्रिक शाषन व्यवस्ता स्थापित की गयी. इस नगर राज्य को एक्रोपोलिस कहा जाता था जो चरों और से जंगली जातियों से घिरा था. मसदोनिया के जंगली शाषक फिलिप ने नगर राज्य पर आक्रमण किया और सभ्य नागरिकों को वहां से खदेड़ दिया. इनके शीर्ष विद्वान् सुकरात को विषपान करा मृत्युदंड दे दिया गया. नगर के लोग छिपकर भागते हुए भारत पहुंचे और देवों में मिल गए. इन्होने भारत में आगरा और आसपास के क्षेत्रों को विकसित किया. यहाँ ये लोग अक्रोपोल होने के कारण अग्रवाल कहलाये.

इस प्रकार स्थानीय लोगों के साथ मिलकर एक बड़ा समूह भारत निर्माण के कार्य में जुट गया. नयी-नयी बस्तियां बनाने लगीं, भोजन के उत्पादन के लिए कृषि विकसित की जाने लगी.