बौद्धिक जनतंत्र सभी वयस्क नागरिकों को एक समान मताधिकार नहीं देता अपितु यह अधिकार नागरिकों की शैक्षिक योग्यता एवं अनुभव पर निर्भर करता है. इस विषय में सर्व प्रथम हम उन वर्गों का उल्लेख करते हैं जिन्हें बौद्धिक जनतंत्र कोई मताधिकार नहीं देता.
मताधिकार से वंचित वर्ग
१. २५ वर्ष से कम आयु के नागरिक
भारत में कुछ समय पहले तक मताधिकार की न्यूनतम सीमा २१ वर्ष थी और पुरुष विवाह की न्यूनतम सीमा थी १८ वर्ष. विश्वनाथ प्रताप सिंह ने प्रधानमंत्री बनने पर मताधिकार की न्यूनतम आयु सीमा १८ वर्ष कर दी क्योंकि १८ वर्ष के बालक को राष्ट्रीय दायित्व निर्वाह के योग्य समझा गया. इसके साथ ही २१ वर्ष के बालक को व्यक्तिगत दायित्व निर्वाह के अयोग्य माना गया और विवाह की न्यूनतम सीमा २१ वर्ष कर दी गयी. ऐसा है स्वतंत्र भारत की राजनीती का खेल जिसमें १८ से २१ वर्ष आयु वर्ग को व्यक्तिगत दायित्व के योग्य और राष्ट्रीय दायित्व के योग्य बना दिया गया, क्योंकि राष्ट्रीय दायित्व के निर्वाह की किसी को कोई चिंता नहीं है. इस परिपेक्ष्य में बौद्धिक जनतंत्र में मताधिकार की न्यूनतम सीमा २५ वर्ष निर्धारित की गयी है क्योंकि राष्ट्रीय दायित्व को व्यक्तिगत दायित्व से कहीं अधिक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है जिसके निर्वाह के लिए मताधिकारी का परिपक्व होना अनिवार्य है.
२. ७० वर्ष से अधिक आयु के नागरिक
बौद्धिक जनतंत्र ७० वर्ष से अधिक आयु के प्रत्येक नागरिक के ससम्मान जीवनयापन का दायित्व अपने ऊपर लेता है जिसके ऐसे सभी नागरिकों को एक समान सम्मानजनक पेंशन प्रदान की जायेगी. राजनेताओं को इस वर्ग के नागरिकों के मत पाने की लालसा से मुक्त करने के लिए बौद्धिक जनतंत्र इस वर्ग को कोई मताधिकार नहीं देता. स्वतंत्र भारत का स्पष्ट अनुभव है कि राजनेता मतों के लोभ में वर्गों को अनुचित लाभ प्रदान करने से नहीं चूकते.
३. अशिक्षित व्यक्ति
आधुनिक युग में किसी व्यक्ति का अशिक्षित होना शर्मनाक है - व्यक्तियों तथा शासन व्यवस्था दोनों के लिए. व्यक्ति का अशिक्षित होना सिद्ध करता है कि व्यक्ति अपने, समाज के तथा राष्ट्र के प्रति संवेदनशील नहीं है और न ही इसके योग्य है. भारत में न्यूनतम सुप्रमाणित शिक्षा हाईस्कूल अथवा कक्षा दस है. इससे कम शिक्षित व्यक्ति को अशिक्षित वर्ग में रखते हुए बौद्धिक जनतंत्र ऐसे किसी नागरिक को मताधिकार नहीं देता.
४. अपराधी व्यक्ति
बौद्धिक जनतंत्र समाज एवं राजनीति के शोधन के लिए अपराधियों को जनतांत्रिक प्रक्रिया से दूर रखने के उद्देश्य से ऐसे किसी व्यक्ति को मताधिकार नहीं देता जो किसी न्यायालय द्वारा अपराधी घोषित किया जा चुका है जब तक कि वह उच्चतर न्यायालय द्वारा आरोप से मुक्त नहीं कर दिया जाता. अपराधों की रोकथाम तथा राजनीति में अपराधियों की घुसपैठ रोकने के लिए यह आवश्यक समझा गया है.
५. राज्यकर्मी
राज्यकर्मी शासन-प्रशासन का अंग होने के कारण सत्ता में भागीदार होते हैं और राज्य से वेतन पाते हैं. स्वतंत्र भारत में यही वर्ग राजनेताओं की सर्वाधिक अनुकम्पा का पात्र बना रहा है क्योंकि प्रत्येक राजनेता इस वर्ग के मत पाने के लिए इन्हें प्रसन्न करता रहता है क्योंकि ये संगठित होते हैं तथा जनमत को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं. इन दोनों दृष्टियों से बौद्धिक जनतंत्र राज्यकर्मियों को मताधिकार प्रदान नहीं करता.
६. मानसिक रोगी
मानसिक रोगी उचित-अनुचित का निर्णय करने में असक्षम होता है इसलिए राष्ट्र के प्रति अपने दायित्व को भी नहीं समझ सकता. इसलिए बौद्धिक जनतंत्र में ऐसे प्रमाणित व्यक्तियों को मताधिकार से वंचित रखने का प्रावधान है.
७. तीन अथवा अधिक संतान उत्पन्न करने वाले युगल
भारत की अनेक समस्याओं में से सर्वाधिक विकराल समस्या निरंतर बढ़ती हुई जनसँख्या है. यक प्राकृत तथा कृत्रिम दोनों कारणों से बढ़ रही है. ध्यान देने योग्य कृत्रिम कारण यह है कि कुछ जातियां तथा वर्ग जनतंत्र में राजनैतिक सत्ता हथियाने के लिए अपने मतों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ा रही हैं और इस कारण से इन्हें अधिकाधिक राजनैतिक शक्ति एवं संरक्षण प्राप्त होने लगा है. अत्यधिक जनसंख्या देश के विकास को भी दुष्प्रभावित कर रही है. इस समस्या के निदान के लिए बौद्धिक जनतंत्र ऐसे प्रत्येक युगल को मताधिकार से वंचित करता है जो ३ या अधिक संतानों को उत्पन्न करता है.
८. भिक्षु
भिक्षा मांगकर जीवन यापन करने वाले व्यक्ति समाज के लिए अभिशाप होते हैं तथा बौद्धिक जनतंत्र उन्हें किसी सामाजिक अथवा राष्ट्रीय दायित्व निर्वाह के योग्य नहीं मानता. साधू, सन्यासी, संत, भिखारी, पुजारी, धर्म-प्रचारी, आदि को इसी वर्ग में रखा गया है.
मत-मान
इसके बाद हम आते हैं शिक्षा एवं अनुभव के आधार पर मताधिकार प्रदान करने के प्रावधान पर. बौद्धिक जनतंत्र शिक्षित व्यक्तियों को तीन वर्गों में रखता है - हाईस्कूल तथा इंटर शिक्षित अथवा समकक्ष, स्नातक तथा स्नातकोत्तर शिक्षित अथवा समकक्ष, एवं व्यावसायिक रूप से शिक्षित अथवा समकक्ष. अनुभव के आधार पर २५-४५ आयु वर्ग तथा ४६-७० आयु वर्ग. बौद्धिक जनतंत्र इन वर्गों को निम्न प्रकार से अंक निर्धारित करता है -
हाईस्कूल तथा इंटर शिक्षित अथवा समकक्ष : ०.५ अंक,
स्नातक तथा स्नातकोत्तर शिक्षित अथवा समकक्ष : १.० अंक,
व्यावसायिक रूप से शिक्षित अथवा समकक्ष : १.५ अंक,
२५-४५ आयु वर्ग : ०.५ अंक, तथा
४६-७० आयु वर्ग : १.० अंक
इस प्रकार प्रत्येक मताधिकारी को १, १.५, २ अथवा २.५ अंक प्राप्त होते हैं जो उसके मत का मान होगा. बौद्धिक जनतांत्रिक चनाव प्रक्रिया में प्रत्याशियों को प्राप्त मतों में उनके प्रत्येक मतदाता के मत में इस मान का गुणन किया जाकर ही उन्हें प्राप्त मतों की गणना की जायेगी. इस प्रावधान से शिक्षा को बढ़ावा मिलाने के साथ-साथ शासन संचालन में बौद्धिक गुणता का बीजारोपण होगा जिससे देश को अच्छे व्यक्तियों की सरकार प्राप्त होगी.
इस सबका स्पष्ट उद्देश्य यह है कि बौद्धिक जन्तर में सरकार चुने जाने की प्रक्रिया जनतंत्र की तरह केवल संख्या-आधारित न रहकर गुण-आधारित होगी. यही इस देश की समस्याओं के समाधान का मार्ग है.
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शुक्रवार, 1 जनवरी 2010
सोमवार, 28 दिसंबर 2009
बौद्धिक जनतंत्र में राज्यकर्मी
बौद्धिक जनतंत्र में राज्यकर्मी जनता के सच्चे सेवक बना दिए जाते हैं - उनपर नियंत्रण से. इसके लिए विविध प्रावधान निम्नांकित हैं -
१. मताधिकार
राज्यकर्मी शासन-प्रशासन का अभिन्न अंग होने के कारण देश की सरकार चलाने वाले होते हैं, इसलिए इन्हें शासन में किसी अन्य अधिकार की आवश्यकता नहीं होती. इसलिए बौद्धिक जनतंत्र में राज्यकर्मिओं को कोई मताधिकार नहीं होता. इस अधिकार को न दिए जाने का एक अन्य कारण हमारे जनतंत्र के अनुभव हैं जिनमें पाया गया है कि प्रत्येक सरकार सबसे अधिक राज्य्कर्मिओन को प्रसन्न करने के प्रयास करती है - उनके मत प्राप्त करने के लिए तथा उन्हें प्रसन्न रखकर अपने भृष्ट आचरण में उनका सहयोग लेने के लिए. इन दृष्टियों से सरकारें रज्य्कर्मिओन के वेतन और सुख-सुविधाओं में अत्यधिक वृद्धि करती रहती हैं. साथ ही उनके कार्यों में दक्षता लाने का कोई प्रयास नहीं करतीं. यहाँ तक कि राज्य्कर्मिओन के भृष्ट होने पर भी उनकी सभी प्रकार से रक्षा की जाती है ताकि वे प्रसन्न रहें और अपना समर्थन सत्तासीन राजनेताओं को दें. मताधिकार न होने से राज्यकर्मिओं पर कड़ा नियंत्रण रखा जा सकेगा जिससे उनकी कार्य दक्षता बढ़ेगी और वे जनता के लिए अधिक उपयोगी होंगे.
२ वेतन एवं सुख-सुविधाएँ
राज्यकर्मी संयुक्त रूप में राष्ट्र की प्रति व्यक्ति औसत आय के लिए जिम्मेदार तथा उत्तरदायी होते हैं. इसलिए बौद्धिक जनतंत्र में उनके औसत वेतन एवं अन्य सभी सुख-सुविधाएं देश की प्रति परिवार औसत आय के समान रखने का प्रावधान किया गया है. इसका लाभ यह होगा कि प्रत्येक राज्यकर्मी जनता की औसत आय में वृद्धि करने के लिए उत्सुक बना रहेगा. जनतंत्र में इनके वेतन मान देश की औसत आय से २० गुणित तक बढ़ा दिए जाने पर यह वर्ग देश का सर्वाधिक धनाढ्य वर्ग बन गया है तथा कार्य-कौशल पर कोई ध्यान नहीं देता.
३. पद का दुरूपयोग
राज्यकर्मी संयुक्त रूप में देश का प्रशासन चलाने वाले होते हैं.जो एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय कार्य है. ऐसा पद पाकर उसका दुरूपयोग करना बौद्धिक जनतंत्र में राष्ट्रद्रोह माना गया है जिसके लिए मृत्युदंड का प्रावधान किया गया गया है. इससे प्रावधान से राज्यकर्मिओं को भृष्ट होने से बचाया जा सकेगा जिससे वे जनता की सेवा में निष्ठापूर्वक लगे रहेंगे.
४. वेतनों का अंतर
वेतन व्यक्ति के जीवन-यापन का साधन होता है तथा जीवन यापन की आवश्यकताएं सभी व्यक्तिओं की लगभग एक समान होती हैं. इस दृष्टि से बौद्धिक जनतंत्र के अंतर्गत राज्यकर्मिओं के अधिकतम और न्यूनतम वेतनमानों में केवल २० प्रतिशत के अंतर का प्रावधान किया गया है. यहाँ यह भी जाना जाए कि उच्च पदासीन व्यक्तियों के अधिकार अन्य से बहुत अधिक होते हैं जो उच्च शिक्षा पाकर उच्च पद पाने के लिए पर्याप्त कारण होते हैं. जनतंत्र में यह अंतर दस गुणित हो गया है जो सामाजिक सौहार्द के लिए व्यवधान बन गया है.
५. संगठन एवं हड़ताल के अधिकार
जनतंत्र का अनुभव हमें दर्शाता है कि राज्यकर्मी अपने संगठन बनाने के अधिकार का दुरूपयोग करते हैं तथा सदैव हड़ताल आदि पर जाने के लिए तैयार रहते हैं जिससे उनके कार्यकौशल पर बुरा प्रभाव पड़ता है और वे जनसेवा से विमुख रहते हैं. इन कारणों से बौद्धिक जनतंत्र में राज्य्कर्मिओन को संगठन बनाने और हड़ताल आदि पर जाने के अधिकार नहीं दिए गए है. यदि किसी कर्मी को राज्य के लिए कार्य करने से नीतिगत अथवा किसी अन्य कारण से असंतुष्टि होती है तो वह त्यागपत्र देकर मुक्त हो सकता है अन्यथा उसे अपना नियमाधीन कार्य निष्ठापूर्वक करते रहना चाहिए.
१. मताधिकार
राज्यकर्मी शासन-प्रशासन का अभिन्न अंग होने के कारण देश की सरकार चलाने वाले होते हैं, इसलिए इन्हें शासन में किसी अन्य अधिकार की आवश्यकता नहीं होती. इसलिए बौद्धिक जनतंत्र में राज्यकर्मिओं को कोई मताधिकार नहीं होता. इस अधिकार को न दिए जाने का एक अन्य कारण हमारे जनतंत्र के अनुभव हैं जिनमें पाया गया है कि प्रत्येक सरकार सबसे अधिक राज्य्कर्मिओन को प्रसन्न करने के प्रयास करती है - उनके मत प्राप्त करने के लिए तथा उन्हें प्रसन्न रखकर अपने भृष्ट आचरण में उनका सहयोग लेने के लिए. इन दृष्टियों से सरकारें रज्य्कर्मिओन के वेतन और सुख-सुविधाओं में अत्यधिक वृद्धि करती रहती हैं. साथ ही उनके कार्यों में दक्षता लाने का कोई प्रयास नहीं करतीं. यहाँ तक कि राज्य्कर्मिओन के भृष्ट होने पर भी उनकी सभी प्रकार से रक्षा की जाती है ताकि वे प्रसन्न रहें और अपना समर्थन सत्तासीन राजनेताओं को दें. मताधिकार न होने से राज्यकर्मिओं पर कड़ा नियंत्रण रखा जा सकेगा जिससे उनकी कार्य दक्षता बढ़ेगी और वे जनता के लिए अधिक उपयोगी होंगे.
२ वेतन एवं सुख-सुविधाएँ
राज्यकर्मी संयुक्त रूप में राष्ट्र की प्रति व्यक्ति औसत आय के लिए जिम्मेदार तथा उत्तरदायी होते हैं. इसलिए बौद्धिक जनतंत्र में उनके औसत वेतन एवं अन्य सभी सुख-सुविधाएं देश की प्रति परिवार औसत आय के समान रखने का प्रावधान किया गया है. इसका लाभ यह होगा कि प्रत्येक राज्यकर्मी जनता की औसत आय में वृद्धि करने के लिए उत्सुक बना रहेगा. जनतंत्र में इनके वेतन मान देश की औसत आय से २० गुणित तक बढ़ा दिए जाने पर यह वर्ग देश का सर्वाधिक धनाढ्य वर्ग बन गया है तथा कार्य-कौशल पर कोई ध्यान नहीं देता.
३. पद का दुरूपयोग
राज्यकर्मी संयुक्त रूप में देश का प्रशासन चलाने वाले होते हैं.जो एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय कार्य है. ऐसा पद पाकर उसका दुरूपयोग करना बौद्धिक जनतंत्र में राष्ट्रद्रोह माना गया है जिसके लिए मृत्युदंड का प्रावधान किया गया गया है. इससे प्रावधान से राज्यकर्मिओं को भृष्ट होने से बचाया जा सकेगा जिससे वे जनता की सेवा में निष्ठापूर्वक लगे रहेंगे.
४. वेतनों का अंतर
वेतन व्यक्ति के जीवन-यापन का साधन होता है तथा जीवन यापन की आवश्यकताएं सभी व्यक्तिओं की लगभग एक समान होती हैं. इस दृष्टि से बौद्धिक जनतंत्र के अंतर्गत राज्यकर्मिओं के अधिकतम और न्यूनतम वेतनमानों में केवल २० प्रतिशत के अंतर का प्रावधान किया गया है. यहाँ यह भी जाना जाए कि उच्च पदासीन व्यक्तियों के अधिकार अन्य से बहुत अधिक होते हैं जो उच्च शिक्षा पाकर उच्च पद पाने के लिए पर्याप्त कारण होते हैं. जनतंत्र में यह अंतर दस गुणित हो गया है जो सामाजिक सौहार्द के लिए व्यवधान बन गया है.
५. संगठन एवं हड़ताल के अधिकार
जनतंत्र का अनुभव हमें दर्शाता है कि राज्यकर्मी अपने संगठन बनाने के अधिकार का दुरूपयोग करते हैं तथा सदैव हड़ताल आदि पर जाने के लिए तैयार रहते हैं जिससे उनके कार्यकौशल पर बुरा प्रभाव पड़ता है और वे जनसेवा से विमुख रहते हैं. इन कारणों से बौद्धिक जनतंत्र में राज्य्कर्मिओन को संगठन बनाने और हड़ताल आदि पर जाने के अधिकार नहीं दिए गए है. यदि किसी कर्मी को राज्य के लिए कार्य करने से नीतिगत अथवा किसी अन्य कारण से असंतुष्टि होती है तो वह त्यागपत्र देकर मुक्त हो सकता है अन्यथा उसे अपना नियमाधीन कार्य निष्ठापूर्वक करते रहना चाहिए.
लेबल:
पद का दुरूपयोग,
मताधिकार,
वेतनमान,
संगठन और हड़ताल
बुधवार, 23 दिसंबर 2009
बौद्धिक जनतंत्र की प्रमुख अवधारनाएं
बौद्धिक जनतंत्र अर्थात जनतंत्र में बौद्धिक तत्वों का समावेश जिसका अर्थ है शासन में बुद्धिमान लोगों का वर्चस्व जिससे कि शासन और प्रशासन में कौशल दिखाई दे जिसका सीधा लाभ देश के लोगों को हो. इस नव-विकसित तंत्र कि प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं.-
- सभी वयस्क नागरिकों को सामान मताधिकार के स्थान पर उनके मताधिकार का मान उनकी शिक्षा तथा अनुभव के अनुसार.
- २५ वर्ष से कम तथा ७० वर्ष से अधिक आयु के नागरिकों, सरकारी कर्मियों, निरक्षर नागरिकों, न्यायलय द्वारा अपराधी तथा बुद्धिहीन घोषित व्यक्तियों को कोई मताधिकार नहीं.
- परिवार नियोजन अनिवार्य, दो से अधिक अच्छे उत्पन्न करने पर माता-पिटा के मताधिकार समाप्त.
- प्रत्येक मतदाता को तीन प्रत्याशियों को प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय वरीयता मत प्रदान करने का प्रावधान. ५० प्रतिशत से अधिक मत पाने वाला प्रत्याशी विजयी घोषित होगा जिसके लिए सर्व प्रथम प्रतम वरीयता मतों कि गिनती होगी. इसके आधार पर परिणाम निर्धारित न होने पर द्वितीय वरीयता मत भी गिने जायेंगे, इससे भी परिणाम निर्धारित न होने पर तृतीय वरीयता मतों कि गिनती होगी.
- देश में शासन का मुख्य दायित्व राष्ट्राद्यक्ष को जिसका चुनाव नागरिकों द्वारा सीधे किया जायेगा.
- देश में केवल केन्द्रीय सरकार को विधान निर्माण का अधिकार होगा, इसके लिए देश में राज्यों का संघीय ढांचा समाप्त तथा प्रांतीय सरकारें केन्द्रीय विधानों के अंतर्गत स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल केवल नियम बना सकेंगी.
- देश में शिक्षा पूरी तरह निःशुल्क तथा सबको एक सामान शिक्षा पाने के अवसर. इसके लिए निजी क्षेत्र में कोई शिक्षा संस्थान नहीं.
- पूरे देश में ग्राम स्तर तक निःशुल्क स्वास्थ एवं चिकित्सा सेवाएँ.
- न्याय व्यवस्था पूरी तरह निःशुल्क एवं प्रत्येक वाद का निर्णय ३ माह के अन्दर अनिवार्य.
- किसी न्यायाधीश के निर्णय का उच्च न्यायलय द्वारा उलटा जाने पर न्यायाधीश न्याय हेतु योग्य घोषित एवं उसकी सेवा समाप्त.
- ७० वर्ष से अधिक आयु के प्रत्येक नागरिक को जीवन यापन हेतु पेंशन. विकलांगों के अतिरिक्त किसी भी वर्ग को कोई पेंशन अथवा अन्य निःशुल्क कल्याणकारी योजना नहीं.
- राजकीय कर्मियों के औसत वेतन मान देश कि प्रति-परिवार औसत आय के समान. अधिकतम तथा न्यूनतम वेतन में केवल २० प्रतिशत का अंतर.
- राजकीय पद का दुरूपयोग राष्ट्रद्रोह जिसके लिए मृत्युदंड का प्रावधान.
- ग्राम स्तर तक राज्य कर्मियों कि नियुक्ति जिनका दायित्व नागरिकों को सभी राजकीय सेवाएँ वहीँ उपलब्ध कराना जिससे किसी भी नागरिक को राजकीय कार्यालयों में जाने कि आवश्यकता न हो.
- भूमि पर व्यक्तिगत स्वामित्व समाप्त तथा प्रत्येक नागरिक को उसकी इच्छानुसार उपयोग के लिए भूमि लीज पर उपलब्ध होगी. इसके अतिरिक्त प्रत्येक परिवार को वांछित स्थान पर आवास हेतु एक समान निःशुल्क भूमि का प्रावधान.
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