शुक्रवार, 27 अगस्त 2010

समाज-कंटकों की अर्थ व्यवस्था

लगभग ३५०० की जनसँख्या वाले मेरे गाँव खंदोई में केवल ५-६ व्यक्ति समाज-कंटक कहे जा सकते हैं, किन्तु ये ५-६ ही सर्व व्यापक प्रतीत होते हैं. मूल रूप में इन का कार्य दूसरे लोगों की विवशताओं और निर्बलताओं  का लाभ उठाते हुए उनका आर्थिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक शोषण करना है. इनकी विशेषता यह है कि ये रोज शाम को शराब पीते हैं जब कि इनमें से कोई भी इतना संपन्न नहीं है कि स्वयं के धन से शराब पी सके या दूसरों को पिला सके. इसके लिए ये गाँव के लोगों में झगड़े-फसाद कराते हैं, और उसके बाद एक का पक्ष लेकर उसके धन से शराब पीते हैं.

इनकी शराबखोरी के लिए आय का दूसरा स्रोत वे लोग बनते हैं जो स्वयं अपराध करते हैं. इनके अपराध प्रकाश में आने से इन्हें रक्षा की आवश्यकता होती है जो इन्हें समाज कंटकों द्वारा सहर्ष प्रदान की जाती है. इस रक्षा के बदले अपराधी इनके लिए शराब आदि की व्यवस्था करते हैं. यद्यपि ये सभी मामलों में अपराधी को बचा नहीं पाते हैं किन्तु बचाए रखने का आश्वासन देकर और उसकी पुलिस से मध्यस्थता करते हुए अधिकाधिक लम्बे समय तक उसके धन से शराब पीते रहते हैं. इन्हीं के आश्रय पर गाँव में शराब विक्रय के अवैध केंद्र बने हुए हैं. उदाहरण के लिए गाँव में अभी हाल में हुए बलात्कार के मामले में उसकी पुलिस में शिकायत होने पर भी ये समाज-कंटक उस अपराधी को पुलिस से सुरक्षा का आश्वासन देते रहे और इस प्र्ताक्रिया में उसके २५,००० रुपये व्यय कराकर उसे स्वयं पुलिस के हवाले कर दिया, जिसके विरुद्ध समुचित कार्यवाही हुई.

समाज कंटकों की आय का तीसरा स्रोत राजनैतिक सत्ताधारी हैं जो चुनाव के दिनों में जन-साधारण के मत पाने के लिए इनकी सहायता माँगते हैं और उसके बदले इन्हें धन देते हैं. बाद में ये राजनेता ही इनकी पुलिस और न्याय व्यवस्था से रक्षा करते हैं. इन सत्ताधारियों से संपर्क बनाए रखने के लिए ये स्वयं भी गाँव की राजनैतिक सत्ता हथियाने का प्रयास करते हैं जिसमें सम्बंधित राजनेता भी इनकी सहायता करते हैं. इस सत्ता को हथियाने के लिए ये लोग समाज में जातीय, धार्मिक, साम्प्रदायिक आदि विष घोलते हैं, लोगों में परस्पर मतभेद कराते हैं और उन्हें भ्रमित करके उनके मत पाकर राजनैतिक सत्ता हथियाते हैं. इस सत्ता के माध्यम से ये सार्वजनिक धन का दुरूपयोग करते हुए वैभवशाली जीवन जीते हैं.  

इनकी आय का चौथा स्रोत पुलिस है जिससे ये घनिष्ठता बनाए रखते हैं जब कि जन-साधारण पुलिस से दूर रहना पसंद करता है. जब भी किसी जन-साधारण को पुलिस की सहायता की आवश्यकता होती है, ये लोग उस व्यक्ति की पुलिस के साथ मध्यस्थता करते हैं और पुलिस को उस व्यक्ति से धन दिलाते हैं, जिसमें इनका भी हिस्सा होता है. चूंकि ये लोग पुलिस को आय के मुख्य स्रोत हैं, पुलिस भी इन्हें महत्व देती है और इनसे संपर्क बनाए रखती है.

अभी आगामी ग्राम पंचायत चुनाव के लिए पुलिस कुछ तथाकथित समाज-कंटकों के विरुद्ध सदा के तरह कार्यवाही कर रही है जिसके लिए पुलिस इन्हीं समाज-कंटकों के साथ मिलकर सूची बना रही है. इस सूची में इनके नाम सम्मिलित नहीं किये जा रहे किन्तु अनेक सम्मानित लोग समाज-कंटकों के रूप में सूचीबद्ध किये गए हैं. इनमें से जिनको पुलिस कार्यवाही से बचना होता है वे इन्हीं समाज-कंटकों की सहायता माँगते हैं जिसके बदले इन्हें असली समाज कंटकों को शराब आदि पिलानी होती है.  प्रत्येक चुनाव प्रक्रिया में ऐसा ही होता रहा है. सूचनार्थ बता दूं कि इस बार इन समाज-कंटकों ने मुझे पुलिस द्वारा आतंकवादी घोषित करने का प्रयास किया है जिसका मैं डटकर मुकाबला करूंगा.
Crime and Punishment

ये समाज-कंटक स्वयं भी अनेक प्रकार के अपराध करते रहते हैं. इनमें से अनेक को हत्या, बलात्कार, आदि अपराधों के लिए न्यायालयों से दंड मिल चुके हैं किन्तु देश की न्याय प्रक्रिया के मंद और लचर होने के कारण ये दीर्घ काल तक जमानत पर छूटे रहते हैं. इनके अनेक परिवार वाले जघन्य अपराधों के मामलों में सम्मिलित होने के दण्डित हुए हैं किन्तु जमानत पर रहते हुए मृत्यु को प्राप्त हो गए हैं. इसी प्रकार अब भी इनमें से प्रत्येक के विरुद्ध न्यायालयों में मुकदमे चल रहे हैं किन्तु इन्हें आशा है कि इनके जीवन काल में इन्हें कोई दंड नहीं दिया जा सकेगा. इसी आशा में ये अब भी निर्भीक रहकर अपराधिक गतिविधियों में लिप्त रहते हैं.  

गुरुवार, 26 अगस्त 2010

हमारी सर्वोत्तम संपदा - वर्तमान ज्ञान

विगत सप्ताह एक दुर्घटना हुई - गाँव में एक व्यक्ति ने एक निर्दोष महिला के साथ बलात्कार किया और मामला मेरे समक्ष पहुंचा, आरोपित व्यक्ति को दंड दिलवाने के लिए. यह तीक्ष्ण चर्चाओं का विषय बना क्योंकि आरोपित व्यक्ति ने कभी कोई दुष्कर्म नहीं किया था और उसकी छबि एक सज्जन व्यक्ति की थी. विविध स्थानों पर गहन चर्चाओं और तर्क-वितर्कों से यह सिद्ध हुआ कि आरोपित व्यक्ति ने अपराध किया था जो उसने स्वयं भी स्वीकारा. इस कारण से उस व्यक्ति को दंड दिया जाना अपरिहार्य था. तथापि अपराधी के भी कुछ समर्थक बने रहे जो उसे दंड प्रक्रिया से बचाना चाहते थे, केवल इस आधार पर कि आरोपित व्यक्ति के भूत काल के चरित्र के कारण इस प्रकरण में कभी कुछ नए तथ्य उभर कर सामने आ सकते हैं जिनके कारण उसका निर्दोष होना संभव हो सकता है. इन समर्थकों ने पीड़ित महिला की व्यथा-कथा पर कोई ध्यान नहीं दिया. मेरा स्पष्ट एवं दृढ मत यह था कि इस प्रकरण में हमारा वर्तमान ज्ञान ही हमारे अगले कदम का आधार होना चाहिए और इसे भविष्य के किसी संभावित ज्ञान के लिए टाला नहीं जा सकता.

इस बारे में मेरा तर्क यह भी था कि भविष्य में हमें यह भी ज्ञात हो सकता है कि आरोपित व्यक्ति ने पहले भी अनेक अपराध किये थे जिनपर अभी तक पर्दा पडा हुआ है, और जिनके लिए उसे और भी अधिक दंड दिया जाने की आवश्यकता हो सकती है. इस कारण से भविष्य के संभावित ज्ञान के लिए वर्तमान ज्ञान की अवहेलना नहीं की जा सकती. यही प्रकरण इस आलेख का आधार है ताकि इस विषय की अच्छी तरह समीक्षा हो.

यद्यपि ज्ञान सर्वदा संवर्धित होता रहता है, तथापि प्रत्येक सामयिक बिंदु पर तत्कालीन ज्ञान ही मनुष्य जाति की सर्वोत्तम संपदा होती है. इस प्रकार भविष्य में संभावित ज्ञान के लिए वर्तमान ज्ञान की अवहेलना कदापि नहीं की जा सकती. किन्तु इसका अर्थ यह भी नहीं है कि वर्तमान ज्ञान को ही अंतिम मान कर इसे संवर्धित करने के प्रयास न किये जाएँ, अथवा बिना किसी सार्थक पुष्टि के किसी भी सूचना को वर्तमान ज्ञान मान लिया जाए और उसी के आधार पर निर्णय लिए जाएँ. वस्तुतः निर्णय से पूर्व प्रत्येक सम्बंधित सूचना को पुष्ट कर लिया जाना चाहिए.

आइये समय के तीन चरणों - भूत, वर्तमान, भविष्य - की दृष्टि से वर्तमान ज्ञान के महत्व को परखते हैं. वर्तमान में हम और हमारा वर्तमान ज्ञान हमारे भूत के उत्पाद होते हैं. भूत काल में जो कुछ भी हुआ, उससे हम विकसित हुए हैं - अपने अनुभवों द्वारा. इस प्रकार अपने भूत से हम अपना समग्र वर्तमान पाते हैं - जिसके प्रमुख तत्व हमारा अस्तित्व और हमारा ज्ञान होते हैं., बस यही महत्व है हमारे भूत का, इसके अतिरिक्त कुछ अन्य नहीं. हमारा वर्तमान - अस्तित्व और ज्ञान, हमारे उस भविष्य की आधारशिला बनता है जिसमें हमारी सभी अभिलाषाएं, आकांक्षाएं, योजनाएं, आदि समाहित होती हैं. अतः हमारा भविष्य ही हमारे जीवन का लक्ष्य होता है जिसकी प्राप्ति के लिए हमें अपने वर्तमान से संबल प्राप्त होता है. इसलिए वर्तमान अस्तित्व और ज्ञान की किसी प्रकार से भी अवहेलना हमारे भविष्य को दुष्प्रभावित करती है और हम अपने लक्ष्य की प्राप्ति में असफल रहते हैं. इस कारण से हमारी सर्वोत्तम संपदा हमारा वर्तमान है जिसमें हमारा ज्ञान भी सम्मिलित होता है.

हाँ, इतना अवश्य है कि हमें प्रत्येक विषय पर सदैव और अधिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए मुक्त ही नहीं जिज्ञासु भी होना चाहिए और उस समय पर अपने कार्य-कलाप तदनुसार ही निर्धारित करने चाहिए. इस प्रकार के किसी संभावित ज्ञान के लिए हम अपने वर्तमान कार्य-कलापों के निर्धारण में कोई स्थान नहीं दे सकते. इसे केवल अप्रत्याशित ज्ञान के वर्ग में रखा जा सकता है जिसके लिए उसी समय कार्यवाही की जा सकती है, अभी कुछ नहीं. क्योंकि जो अप्रत्याशित है, उसके लिए कुछ नहीं किया जा सकता क्योंकि यह कुछ भी हो सकता है.

विगत एक दशक से वैधानिक प्रक्रिया में मृत्यु दंड दिए जाने का विरोध किया जा रहा है जिसका आधार यह है कि भविष्य में कभी आरोपित व्यक्ति निर्दोष सिद्ध हो सकता है और ऐसी स्थिति में मृत्यु दंड को निरस्त नहीं किया जा सकेगा जो एक अन्याय होगा. मैं इसका प्रबल विरोधी हूँ, क्योंकि ऐसी संभावनाएं तो हमें जीवन के किसी भी क्षेत्र में कोई भी निर्णय लेने में बाधाएं खडी कर देंगी और समस्त मानव जीवन दूभर हो जाएगा. सभी समय सशक्त सुविचारित निर्णय ही तो मानव का प्रबल सकारात्मक गुण है जिसे सतत पुष्ट किया जाना चाहिए. इसे निर्बल करना मानवता के लिए घातक हो सकता है.  
Angel of Death Row: My Life as a Death Penalty Defense Lawyer

अतः, हम भविष्य में क्या होंगे अथवा उस समय हमारा ज्ञान क्या होगा, उसके लिए हम कदापि अपने वर्तमान ज्ञान की अवहेलना नहीं कर सकते क्यों कि यही तो हमारे भविष्य के ज्ञान की आधारशिला है और आधारशिला की अवहेलना कर हम भवन का निर्माण नहीं कर सकते.

रविवार, 22 अगस्त 2010

बौद्धिक हलचल

एक ओर भारत के राजनैतिक अपराधी अपने अधिकारों का दुरूपयोग करते हुए देश के सघन शहरों से लेकर सुदूर ग्रामों तक आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को प्रोत्साहित कर रहे हैं ताकि लोग आक्रांत रहते हुए उनकी शरण पाने हेतु लालायित रहें, तो दूसरी ओर देश के चुनिन्दा बुद्धिजीवी अल्प संख्या में होने पर भी देश में सकारात्मक परिवर्तन लाने के प्रयास कर रहे हैं. आज २२ अगस्त २०१० को इन बुद्धिजीवियों ने दिल्ली में लोदी मार्ग स्थित इंडिया इंटरनेशनल सेण्टर के एक कक्ष में इंडिया रिजुवेनेशन इनिशिएटिव के तत्वाधान में विचार विमर्श किया जो उनकी २३वीन बैठक थी. इस बैठक की विशेषता यह रही कि एक ओर राष्ट्रीय स्तर पर भृष्टाचार उन्मूलन हेतु संकल्पित भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा एवं अन्य वर्गों के अनेकानेक सेवारत और सेवानिवृत अधिकारी उपस्थित थे तो दूसरी ओर जन-सामान्य के स्तर पर कार्य करने वाले अनेक समर्पित बुद्धिजीवी भी वहां उपस्थित थे. इन दोनों वर्गों की उपस्थिति स्पष्ट संकेत देती है कि परिवर्तन के प्रयास ग्राम स्तर से लेकर राष्ट्र स्तर तक किये जा रहे हैं.

राष्ट्र स्तर पर सक्रिय उक्त बुद्धिजीवियों में सर्वश्री विजय शंकर पाण्डेय, सुनील कुमार, जाविद चौधरी (सभी आई ए एस), श्री बी. आर. लाल (आई पी एस), सहित एक दर्ज़न सज्जन उपस्थित थे. जिन सज्जनों की उपस्थिति अपेक्षित थी उनमें सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत मुख्य न्यायाधीश श्री आर सी लाहोटी, और उत्तर प्रदेश पुलिस के उप महा निरीक्षक (प्रशिक्षण) थे जो कुछ विशेष परिस्थितियों के कारण उपस्थित न हो सके.  

ग्राम से जनपद स्तर पर कार्य करने वालों में मैं स्वयं, इटावा के श्री महेश मानव, राजस्थान के विधायक श्री सुखराम कोली, आदि ने भाग लिया. दोनों वर्गों के समन्वय का श्रेय ओनेस्टी  प्रोजेक्ट के श्री जय कुमार झा को जाता है. श्री महेश मानव अनेक वर्षों से इस कार्य में लगे हैं और देश भर में समधर्मियों से मिलकर देश में एक सर्वव्यापक आन्दोलन की रचना कर रहे हैं. श्री सुखराम कोली विधायक होते हुए भी अपनी सरलता और सहजता के साथ जन सामान्य के हितों के लिए समर्पित हैं. वे यात्राओं के लिए जन साधारण की तरह सार्वजनिक वाहनों का उपयोग करते हैं, और अपनी सुख सुविधा के लिए सार्वजनिक धन के उपयोग से बचे ही रहते हैं.

इंडिया रिजुवेनेशन इनिशिएटिव ने स्विस बैंकों में जमा देश के १,४५६ बिलियन डॉलर को देश में वापिस लाने हेतु एक अभियान चला रखा है जिसको अनेक समाचार पत्रों और ब्लोगों पर प्रकाशित किया गया है. यह धन देश के कुल विदेशी ऋण का लगभग ७ गुणित है तथा इसके देश में ही उपयोग किये जाने से भारत में विश्व स्तर के साधन बड़ी सुगमता से विकसित किये जा सकते हैं जिससे भारत तुरंत विकसित देशों की श्रेणी में पहुँच सकता है.  
Fighting Corruption in Developing Countries: Strategies and Analysis

धरा स्तर पर कार्य करने वाले बुद्धिजीवियों ने अपनी कठिनाइयाँ बताते हुए उनसे अपने सतत संघर्षों के संकल्प व्यक्त किये. उच्च स्तर पर कार्यरत बुद्धिजीवियों ने धरा स्तर पर कार्य करने वाले लोगों को अपने पूरे सहयोग का आश्वासन देते हुए उनका उत्साह बढाया. वस्तुतः धरा स्तर पर कार्य करना अधिक दुष्कर है क्यों कि अधिकाँश भृष्ट अधिकारी और राजनेता उनके कार्यों में बाधाएं खडी करते रहते हैं.      

समाज का जातीय विभाजन

भारत में एक विशिष्ट वर्ग है जो सबसे पहले लोगों को नष्ट करता है, सफल न होने पर उन्हें भृष्ट करता है, भृष्ट न कर सकने पर उनकी चापलूसी करता है, और इसमें भी सफल न होने पर उन्हें स्वयं का अंग घोषित कर देता है. इसी वर्ग ने लोगों को भृष्ट करने के लिए उनमें जातीय विष फैलाया - व्यवसायों को जातियों से सम्बद्ध कहकर. तदनुसार, जिसने कभी एक बार किसी विवशता में कोई तुच्छ कार्य कर लिया, उसकी सन्ततियां सदा-सदा के लिए शुद्र ही रहेंगी चाहे वे कितने भी महान कार्य क्यों न करें. चूंकि यह वर्ग सुविधा-संपन्न होने के कारण समाज का अगुआ बना इसलिए जातीय आधार पर इसकी सन्ततियां भी समाज की अगुआ ही बनी रहीं चाहे वे कितने भी घृणित कार्य क्यों न करें.

एक उदाहरण देखिये - विष्णुगुप्त चाणक्य एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें कोई पराजित नहीं कर सका. इन्हीं से भारत में गुप्त वंश का आरंभ हुआ. एक विशेष प्रयोजन के लिए इन्होने एक छद्म रूप धारण किया था - ब्राह्मण का, अर्थात एक सृजनकर्ता का. उस समय तक भारतीय समाज का जातीय विभाजन नहीं हुआ था. इसलिए विष्णुगुप्त की कोई जाति नहीं थी. वे युगपुरुष थे.

उक्त विशिष्ट वर्ग ने समाज के जातीय विभाजन के लिए एक सुप्रसिद्ध देव्ग्रंथ 'मनुस्मृति' के भृष्ट अनुवाद और भाष्य आदि प्रकाशित कर तत्कालीन व्यवसायों को जातियां बना दिया और निर्धारित कर दिया कि जो व्यक्ति जो व्यवसाय कर रहा है उसकी सन्ततियां भी वही व्यवसाय करती रहेंगी. चूंकि यह वर्ग छल-कपट के माध्यम से वैभवशाली जीवन जी रहा था, इसलिए इसने स्वयं के लिए इसे ही व्यवसाय बना लिया. धर्म, ईश्वर, आदि के नाम पर ज्योतिष, भूत-प्रेत, जन्म-जन्मान्तर, आदि अनेक मनगढ़ंत छल-कपट पूर्ण सिद्धांतों का प्रतिपादन किया और इन्हीं के माध्यम से समाज को भ्रमित करने को अपना व्यवसाय बना लिया. इसी वर्ग ने विष्णुगुप्त चाणक्य को ब्राह्मण घोषित किया हुआ है.

जातीय विभाजन का यह घृणित कार्य गुप्त वंश के शासन के बाद किया गया जब भारत अनेक छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित हो गया था और यह वर्ग सर्वव्यापक राजगुरु पद पर प्रतिष्ठित हो चुका था. इसी समय आधुनिक संस्कृत का विकास किया गया जिसमें वैदिक संस्कृत की शब्दावली का उपयोग तो किया गया किन्तु उनके अर्थ विपरीत कर प्रकाशित दिए गए. तदनुसार वैदिक ग्रंथों के अनुवाद भी भृष्ट कर दिए गए और उनके माध्यम से धर्म, ईश्वर, ज्योतिष, आदि शब्दों के प्रदूषित अर्थ और भाव प्रकाशित कर समाज के जातीय विभाजन को बहुविध पुष्ट किया गया.

उक्त पुष्टि और समाज पर उक्त वर्ग के अंकुश बने रहने के कारण भारतीय समाज का जातीय विभाजन आज तक यथावत चल रहा है, इस विभाजन का सातत्व बनाये रखने के लिए जाति के अंतर्गत ही विवाह की प्रथा बनायी गयी. इससे समाज में लगी  जातीय दीवारें नित्यप्रति पुष्ट होती रहती हैं.

आरम्भ में केवल चार जातियां बनायी गयीं जिन्हें वर्ण कहा गया. उसके बाद वर्णों में जातियां और उपजातियां बनायी जाती रही हैं. इसे व्यक्त करने के लिए कहा गया है -
'ज्यों केले के पात में, पात पात में पात, त्यों हिन्दुओं की जात में जात जात में जात'

स्वतन्त्रता के बाद स्थापित तथाकथित जनतंत्र में यह जातीय विभाजन विष का कार्य कर रहा है. चूंकि प्रत्येक व्यक्ति अपनी जाति से ही अटूट रूप से जुदा है, इसलिए वह जनतांत्रिक चुनावों में भी जाति को ही आधार बनाता है, प्रत्याशियों की सुयोग्यता पर कोई विचार नहीं किया जाता. इस कारण भारत की राजनैतिक सत्ता उन लोगों के हाथों में खिसकती जा रही है जो संतान उत्पादन में अग्रणी और शिक्षा आदि में पिछड़े हुए हैं. जाति, धर्म, लिंग आदि के आधार पर विविध प्रकार के आरक्षण जातीय विष को और भी अधिक तीक्ष्णता प्रदान कर रहे हैं. अपने पारस्परिक संयोग से जातीय विभाजन और आरक्षण नित्यप्रति पुष्ट होते जा रहे हैं.
The Population Explosion

भारत में जनसँख्या विस्फोट भी इसी जातीय विभाजन का परिणाम है. इसके कारण अनेक जातियां अपनी-अपनी जनसँख्या में केवल इसलिए अत्यधिक वृद्धि कर रहें हैं ताकि एक दिन देश की राजनैतिक सत्ता उनके पास सदा-सदा बनी रहे. यदि स्थिति इसी दिशा में आगे बढ़ती रही तो भारत विनाश अवश्यम्भावी है.      

मंगलवार, 17 अगस्त 2010

एक और बलात्कार प्रयास और मेरे विरुद्ध षड्यंत्र

मेरे गाँव में एक गेंग है जो राहजनी, लूटपाट, चोरी, डकैती, बलात्कार आदि में शामिल रहता है. जिनका मैं डटकर मुकाबला करता रहता हूँ जिनके विवरण इस संलेख में प्रकाशित हैं. यह गेंग स्थानीय पुलिस से भी सान्थ्गान्थ रखता है जिससे पुलिस इन्हें कुछ संरक्षण भी प्रदान करती है. इसी श्रंखला में कल एक नयी घटना घटी जिसकी दूरगामी परिणाम होंगे.

एक ब्रह्मण स्त्री अपने खेत पर कर लेने गयी थी. चारे का गट्ठर उठवाने के लिए उसने एक व्यक्ति से सहायता माँगी जो पास के खेत में सिंचाई कर रहा था. उसने स्त्री की सहायता करने के स्तन पर उसे पास के गन्ने के खेत में खींच लिया और उसके साथ बलात्कार का प्रयास किया. स्त्री के शोर मचने पर, उस व्यक्ति ने स्त्री का गला घोटकर हत्या का प्रयास किया. विवश स्त्री ने अपने एक मात्र पुत्र की कसम खाकर अपराधी को विश्वास दिलाया कि वह इस घटना के बारे में किसी को कुछ नहीं बताएगी जिस पर उसे छोड़ दिया गया. छूटने के स्त्री घर आयी और अपने पारिवारिक लोगों को घटना की जानकारी दी. यह अपराधी भी उक्त गेंग के एक परिवार से ही है.

इस घटना की चर्चा पूरे गाँव में होने पर गेंग के कुछ सदस्य समझौते का प्रस्ताव लेकर स्त्री के परिवार जनों से मिले जो सभी उस व्यक्ति की आपराधिक वृत्ति स्वीकार करते रहे किन्तु उसे सामाजिक दंड देकर क्षमा करने की मांग करते रहे. स्त्री के विरोध करने पर भी परिवारजनों ने उनका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया किन्तु लगभग ३ घंटे प्रतीक्षा करने पर भी प्रस्ताव के कार्यान्वयन के लिए कोई आगे नहीं आया और शाम के चार बज गए.

उक्त घटनाक्रम के दौरान मैं गाँव से बाहर था और मेरे ४बजे वापिस लौटने पर वह स्त्री और गाँव की अनेक स्त्रियों ने मुझसे न्यायपूर्वक हस्तक्षेप की अश्रुपूर्ण मांग की. उन्होंने मुझे यह भी बताया कि उनका समझौते का प्रस्ताव स्वीकार होने पर भी वे आगे नहीं आये हैं. अतः पुलिस में रिपोर्ट करना ही आवश्यक है. अतः पुलिस में रिपोर्ट की गयी और पुलिस ने पूछताछ के लिए आरोपी व्यक्ति को बुलवाया किन्तु गेंग ने उसे छिपा दिया. पुलिस द्वारा स्त्री का चिकित्सीय परीक्षण भी करा लिया गया है. किन्तु अभी प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर अपराधी के विरुद्ध मुकदमा दर्ज नहीं किया है. इस विलंब के लिए पुलिस को कुछ रिश्वत भी दी गयी है.

गेंग ने उस अपराधी को छिपा रखा है और पुलिस को पूछताछ भी नहीं करने दे रहा है. साथ ही गेंग ने मेरे विरुद्ध भी षड्यंत्र रचना आरम्भ कर दिया है जिसके अंतर्गत उक्त अपराधी की पत्नी को तैयार किया गया है जो मुझ पर बलात्कार का आरोप लगाएगी और उसकी रिपोर्ट पुलिस में करेगी. इस व्यवस्था के लिए गेंग के सदस्यों ने चंदा देकर कुछ धन भी एकत्र किया है. यह स्त्री भी दुश्चरित्र है और गेंग के सदस्यों के विलास का साधन है. 
The Offence


इस गेंग के दो प्रमुख सदस्य हैं - इकपाल सिंह और हरिराज सिंह. दोनों गाँव के प्रधान रह चुके हैं और हरिराज आगामी चुनाव में भी प्रत्याशी होने का इच्छुक है. इकपाल सिंह सहकारी विभाग में नियुक्त था और वहां से आर्थिक अनियमितता के कारण सेवामुक्त किया गया था. साथ ही उसके विरुद्ध सहकारी विभाग की एक भारी धनराशी बकाया है. इसे चुकता करने से बचने के लिए इसने अपनी पूरी भूमि बेच दी है और उस धन से अपने पुत्रों के नाम भूमि खरीद ली है. बकाया राशि की वसूली के लिए उस पर मुकदमा चल रहा है जिसमें वह उपस्थित नहीं होता है. न्यायालय से जारी वारंट स्थानीय पुलिस के पास अनेक वर्षों से पड़े हैं जो रिश्वत लेकर इकपाल का गाँव में उपलब्ध न होना दर्शा देती है, जब कि वह नियमित रूप से गाँव में ही रहता है और पुलिस से निकट संपर्क भी बनाए रहता है.   .

शनिवार, 14 अगस्त 2010

भृष्टाचार उन्मूलन

वर्तमान में अथवा भूतकाल में अनेक उच्च एवं प्रतिष्ठित पदों पर आसीन व्यक्ति एवं उनके संगठन भारत में फैले उच्च स्तरीय भृष्टाचार से दुखी हैं और इसके उन्मूलन हेतु कार्य कर रहे हैं. यह सही है कि उच्च स्तर पर हो रहा भृष्टाचार ही निम्नतम स्तर तक पहुंचा है क्योंकि भृष्टाचार सदैव उच्च स्तर से नीचे की ओर उत्प्रेरित होता है, न कि निम्न स्तर से उच्च स्तर की ओर. इस प्रकार यदि उच्च स्तरीय भृष्टाचार समाप्त हो जाता है तो निम्नस्तरीय भृष्टाचार भी एक दिन स्वतः समाप्त हो जाएगा. किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि निम्न स्तरीय भृष्टाचार को यथावत स्वीकार किया जाता रहे अथवा इसे प्रोन्नत किया जाता रहे, और इसके उन्मूलन की तभी आशा की जाये जब उच्च-स्तरीय भृष्टाचार समाप्त हो जायेगा.

भृष्टाचार भारतीय जन-मानस की रग-रग में रच-बस गया है, किसी दुल्हन की हथेलियों पर लगी मेहंदी की तरह, जिसे तुरंत समाप्त नहीं किया जा सकता. इसकी समाप्ति के लिए दीर्घ-कालिक सतत प्रयास करने होंगे, प्रत्येक स्तर पर. यह भी सही है कि निम्न स्तर पर भृष्टाचार समाप्ति के प्रयास प्रायः निष्फल अथवा अस्थायी होते हैं. किन्तु निम्न स्तर पर भृष्टाचार उन्मूलन के प्रयास एक जन-आन्दोलन को प्रेरित करते हैं, जो क्षमता उच्च स्तर पर भृष्टाचार उन्मूलन के प्रयासों में नहीं होती. ये प्रयास अधिकाँश में न्यायालयी संघर्षों द्वारा किये जाते हैं.

भृष्टाचार  उन्मूलन के लिए यह आवश्यक है कि भृष्ट लोगों के मानस में भय व्याप्त हो जिसकी सामर्थ्य जन-आन्दोलन में होती है  जो निम्न-स्तरीय संघर्षों से उत्प्रेरित होते हैं. किन्तु निम्न-स्तरीय भृष्टाचार उन्मूलन के प्रयास कालजयी नहीं होते, इसलिए  उच्च स्तर पर भृष्टाचार उन्मूलन के बिना स्थायी नहीं हो सकते. इस प्रकार भृष्टाचार उन्मूलन के प्रयास दोनों स्तरों पर किये जाने चाहिए. इसके लिए सूत्र यह है कि जो जहां है, वहीं भृष्टाचार पर प्रहार करे और सतत करता रहे.

निम्न स्तर पर भृष्टाचार उन्मूलन में सबसे बड़ी बाधा यह है कि जन-मानस ने इसे जीवन-शैली के रूप में स्वीकार कर लिया है और वह इसके विरुद्ध स्वर बुलंद कर जन-संघर्ष के लिए तैयार नहीं है. यहाँ तक कि जो भी इसके लिए छुट-पुट प्रयास किये जाते हैं, स्वयं जन-मानस ही उनकी अवहेलना करता है, तथा यदा-कदा अपनी स्वीकार्य जीवन-शैली बनाए रखने के लिए ऐसे संघर्षों के विरुद्ध कार्य भी करता है. इस अवहेलना और विरोध के कारण निम्न-स्तरीय संघर्ष दीघ-जीवी सिद्ध नहीं होते. साथ ही साधनहीनता के कारण इनका दमन भी सरल होता है. इन्हें बनाए रखने के लिए उच्च स्तरीय सहयोग आवश्यक होता है.
Mass Psychology (Penguin Modern Classics Translated Texts)

इस चर्चा से जो कार्य-शैली प्रभावी प्रतीत होती है, उसके विविध आयाम निम्नांकित हैं -

  • उच्च स्तर पर भृष्टाचार उन्मूलन के प्रयास अवश्य हों और इसके लिए व्यापक संगठनात्मक ढांचा विकसित किया जाये.
  • निम्न स्तर पर भी भृष्टाचार उन्मूलन के प्रयास हों, जिनके माध्यम से जन-मानस में संशोधन हो, और जन-संघर्ष उत्प्रेरित किये जाएँ. इसके लिए निम् स्तर पर भी स्थानीय संगठन बनें. 
  • निम्न स्तरीय प्रयासों को सतत बनाए रखने के लिए उच्च स्तर से सहयोग और संरक्षण प्रदान किया जाए. 
  • उच्च स्तरीय प्रयासों के लिए जहां कहीं जन-आन्दोलन की आवश्यकता हो, निम्न स्तरीय जन संघर्ष इनमें यथाशक्ति सहयोग प्रदान करें.  
इस प्रकार भृष्टाचार उन्मूलन के लिए शक्ति और जन-चेतना दोनों के समन्वय की आवश्यकता है जो क्रमशः उच्च और निम्न स्तरों पर उपलब्ध होते हैं, अतः उच्च एवं निम्न दोनों स्तरों पर प्रयासों का महत्व है और दोनों में सहयोग अपरिहार्य है.