विगत सप्ताह एक दुर्घटना हुई - गाँव में एक व्यक्ति ने एक निर्दोष महिला के साथ बलात्कार किया और मामला मेरे समक्ष पहुंचा, आरोपित व्यक्ति को दंड दिलवाने के लिए. यह तीक्ष्ण चर्चाओं का विषय बना क्योंकि आरोपित व्यक्ति ने कभी कोई दुष्कर्म नहीं किया था और उसकी छबि एक सज्जन व्यक्ति की थी. विविध स्थानों पर गहन चर्चाओं और तर्क-वितर्कों से यह सिद्ध हुआ कि आरोपित व्यक्ति ने अपराध किया था जो उसने स्वयं भी स्वीकारा. इस कारण से उस व्यक्ति को दंड दिया जाना अपरिहार्य था. तथापि अपराधी के भी कुछ समर्थक बने रहे जो उसे दंड प्रक्रिया से बचाना चाहते थे, केवल इस आधार पर कि आरोपित व्यक्ति के भूत काल के चरित्र के कारण इस प्रकरण में कभी कुछ नए तथ्य उभर कर सामने आ सकते हैं जिनके कारण उसका निर्दोष होना संभव हो सकता है. इन समर्थकों ने पीड़ित महिला की व्यथा-कथा पर कोई ध्यान नहीं दिया. मेरा स्पष्ट एवं दृढ मत यह था कि इस प्रकरण में हमारा वर्तमान ज्ञान ही हमारे अगले कदम का आधार होना चाहिए और इसे भविष्य के किसी संभावित ज्ञान के लिए टाला नहीं जा सकता.
इस बारे में मेरा तर्क यह भी था कि भविष्य में हमें यह भी ज्ञात हो सकता है कि आरोपित व्यक्ति ने पहले भी अनेक अपराध किये थे जिनपर अभी तक पर्दा पडा हुआ है, और जिनके लिए उसे और भी अधिक दंड दिया जाने की आवश्यकता हो सकती है. इस कारण से भविष्य के संभावित ज्ञान के लिए वर्तमान ज्ञान की अवहेलना नहीं की जा सकती. यही प्रकरण इस आलेख का आधार है ताकि इस विषय की अच्छी तरह समीक्षा हो.
यद्यपि ज्ञान सर्वदा संवर्धित होता रहता है, तथापि प्रत्येक सामयिक बिंदु पर तत्कालीन ज्ञान ही मनुष्य जाति की सर्वोत्तम संपदा होती है. इस प्रकार भविष्य में संभावित ज्ञान के लिए वर्तमान ज्ञान की अवहेलना कदापि नहीं की जा सकती. किन्तु इसका अर्थ यह भी नहीं है कि वर्तमान ज्ञान को ही अंतिम मान कर इसे संवर्धित करने के प्रयास न किये जाएँ, अथवा बिना किसी सार्थक पुष्टि के किसी भी सूचना को वर्तमान ज्ञान मान लिया जाए और उसी के आधार पर निर्णय लिए जाएँ. वस्तुतः निर्णय से पूर्व प्रत्येक सम्बंधित सूचना को पुष्ट कर लिया जाना चाहिए.
आइये समय के तीन चरणों - भूत, वर्तमान, भविष्य - की दृष्टि से वर्तमान ज्ञान के महत्व को परखते हैं. वर्तमान में हम और हमारा वर्तमान ज्ञान हमारे भूत के उत्पाद होते हैं. भूत काल में जो कुछ भी हुआ, उससे हम विकसित हुए हैं - अपने अनुभवों द्वारा. इस प्रकार अपने भूत से हम अपना समग्र वर्तमान पाते हैं - जिसके प्रमुख तत्व हमारा अस्तित्व और हमारा ज्ञान होते हैं., बस यही महत्व है हमारे भूत का, इसके अतिरिक्त कुछ अन्य नहीं. हमारा वर्तमान - अस्तित्व और ज्ञान, हमारे उस भविष्य की आधारशिला बनता है जिसमें हमारी सभी अभिलाषाएं, आकांक्षाएं, योजनाएं, आदि समाहित होती हैं. अतः हमारा भविष्य ही हमारे जीवन का लक्ष्य होता है जिसकी प्राप्ति के लिए हमें अपने वर्तमान से संबल प्राप्त होता है. इसलिए वर्तमान अस्तित्व और ज्ञान की किसी प्रकार से भी अवहेलना हमारे भविष्य को दुष्प्रभावित करती है और हम अपने लक्ष्य की प्राप्ति में असफल रहते हैं. इस कारण से हमारी सर्वोत्तम संपदा हमारा वर्तमान है जिसमें हमारा ज्ञान भी सम्मिलित होता है.
हाँ, इतना अवश्य है कि हमें प्रत्येक विषय पर सदैव और अधिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए मुक्त ही नहीं जिज्ञासु भी होना चाहिए और उस समय पर अपने कार्य-कलाप तदनुसार ही निर्धारित करने चाहिए. इस प्रकार के किसी संभावित ज्ञान के लिए हम अपने वर्तमान कार्य-कलापों के निर्धारण में कोई स्थान नहीं दे सकते. इसे केवल अप्रत्याशित ज्ञान के वर्ग में रखा जा सकता है जिसके लिए उसी समय कार्यवाही की जा सकती है, अभी कुछ नहीं. क्योंकि जो अप्रत्याशित है, उसके लिए कुछ नहीं किया जा सकता क्योंकि यह कुछ भी हो सकता है.
विगत एक दशक से वैधानिक प्रक्रिया में मृत्यु दंड दिए जाने का विरोध किया जा रहा है जिसका आधार यह है कि भविष्य में कभी आरोपित व्यक्ति निर्दोष सिद्ध हो सकता है और ऐसी स्थिति में मृत्यु दंड को निरस्त नहीं किया जा सकेगा जो एक अन्याय होगा. मैं इसका प्रबल विरोधी हूँ, क्योंकि ऐसी संभावनाएं तो हमें जीवन के किसी भी क्षेत्र में कोई भी निर्णय लेने में बाधाएं खडी कर देंगी और समस्त मानव जीवन दूभर हो जाएगा. सभी समय सशक्त सुविचारित निर्णय ही तो मानव का प्रबल सकारात्मक गुण है जिसे सतत पुष्ट किया जाना चाहिए. इसे निर्बल करना मानवता के लिए घातक हो सकता है.
अतः, हम भविष्य में क्या होंगे अथवा उस समय हमारा ज्ञान क्या होगा, उसके लिए हम कदापि अपने वर्तमान ज्ञान की अवहेलना नहीं कर सकते क्यों कि यही तो हमारे भविष्य के ज्ञान की आधारशिला है और आधारशिला की अवहेलना कर हम भवन का निर्माण नहीं कर सकते.
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गुरुवार, 26 अगस्त 2010
मंगलवार, 17 अगस्त 2010
एक और बलात्कार प्रयास और मेरे विरुद्ध षड्यंत्र
मेरे गाँव में एक गेंग है जो राहजनी, लूटपाट, चोरी, डकैती, बलात्कार आदि में शामिल रहता है. जिनका मैं डटकर मुकाबला करता रहता हूँ जिनके विवरण इस संलेख में प्रकाशित हैं. यह गेंग स्थानीय पुलिस से भी सान्थ्गान्थ रखता है जिससे पुलिस इन्हें कुछ संरक्षण भी प्रदान करती है. इसी श्रंखला में कल एक नयी घटना घटी जिसकी दूरगामी परिणाम होंगे.
एक ब्रह्मण स्त्री अपने खेत पर कर लेने गयी थी. चारे का गट्ठर उठवाने के लिए उसने एक व्यक्ति से सहायता माँगी जो पास के खेत में सिंचाई कर रहा था. उसने स्त्री की सहायता करने के स्तन पर उसे पास के गन्ने के खेत में खींच लिया और उसके साथ बलात्कार का प्रयास किया. स्त्री के शोर मचने पर, उस व्यक्ति ने स्त्री का गला घोटकर हत्या का प्रयास किया. विवश स्त्री ने अपने एक मात्र पुत्र की कसम खाकर अपराधी को विश्वास दिलाया कि वह इस घटना के बारे में किसी को कुछ नहीं बताएगी जिस पर उसे छोड़ दिया गया. छूटने के स्त्री घर आयी और अपने पारिवारिक लोगों को घटना की जानकारी दी. यह अपराधी भी उक्त गेंग के एक परिवार से ही है.
इस घटना की चर्चा पूरे गाँव में होने पर गेंग के कुछ सदस्य समझौते का प्रस्ताव लेकर स्त्री के परिवार जनों से मिले जो सभी उस व्यक्ति की आपराधिक वृत्ति स्वीकार करते रहे किन्तु उसे सामाजिक दंड देकर क्षमा करने की मांग करते रहे. स्त्री के विरोध करने पर भी परिवारजनों ने उनका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया किन्तु लगभग ३ घंटे प्रतीक्षा करने पर भी प्रस्ताव के कार्यान्वयन के लिए कोई आगे नहीं आया और शाम के चार बज गए.
उक्त घटनाक्रम के दौरान मैं गाँव से बाहर था और मेरे ४बजे वापिस लौटने पर वह स्त्री और गाँव की अनेक स्त्रियों ने मुझसे न्यायपूर्वक हस्तक्षेप की अश्रुपूर्ण मांग की. उन्होंने मुझे यह भी बताया कि उनका समझौते का प्रस्ताव स्वीकार होने पर भी वे आगे नहीं आये हैं. अतः पुलिस में रिपोर्ट करना ही आवश्यक है. अतः पुलिस में रिपोर्ट की गयी और पुलिस ने पूछताछ के लिए आरोपी व्यक्ति को बुलवाया किन्तु गेंग ने उसे छिपा दिया. पुलिस द्वारा स्त्री का चिकित्सीय परीक्षण भी करा लिया गया है. किन्तु अभी प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर अपराधी के विरुद्ध मुकदमा दर्ज नहीं किया है. इस विलंब के लिए पुलिस को कुछ रिश्वत भी दी गयी है.
गेंग ने उस अपराधी को छिपा रखा है और पुलिस को पूछताछ भी नहीं करने दे रहा है. साथ ही गेंग ने मेरे विरुद्ध भी षड्यंत्र रचना आरम्भ कर दिया है जिसके अंतर्गत उक्त अपराधी की पत्नी को तैयार किया गया है जो मुझ पर बलात्कार का आरोप लगाएगी और उसकी रिपोर्ट पुलिस में करेगी. इस व्यवस्था के लिए गेंग के सदस्यों ने चंदा देकर कुछ धन भी एकत्र किया है. यह स्त्री भी दुश्चरित्र है और गेंग के सदस्यों के विलास का साधन है.
इस गेंग के दो प्रमुख सदस्य हैं - इकपाल सिंह और हरिराज सिंह. दोनों गाँव के प्रधान रह चुके हैं और हरिराज आगामी चुनाव में भी प्रत्याशी होने का इच्छुक है. इकपाल सिंह सहकारी विभाग में नियुक्त था और वहां से आर्थिक अनियमितता के कारण सेवामुक्त किया गया था. साथ ही उसके विरुद्ध सहकारी विभाग की एक भारी धनराशी बकाया है. इसे चुकता करने से बचने के लिए इसने अपनी पूरी भूमि बेच दी है और उस धन से अपने पुत्रों के नाम भूमि खरीद ली है. बकाया राशि की वसूली के लिए उस पर मुकदमा चल रहा है जिसमें वह उपस्थित नहीं होता है. न्यायालय से जारी वारंट स्थानीय पुलिस के पास अनेक वर्षों से पड़े हैं जो रिश्वत लेकर इकपाल का गाँव में उपलब्ध न होना दर्शा देती है, जब कि वह नियमित रूप से गाँव में ही रहता है और पुलिस से निकट संपर्क भी बनाए रहता है. .
एक ब्रह्मण स्त्री अपने खेत पर कर लेने गयी थी. चारे का गट्ठर उठवाने के लिए उसने एक व्यक्ति से सहायता माँगी जो पास के खेत में सिंचाई कर रहा था. उसने स्त्री की सहायता करने के स्तन पर उसे पास के गन्ने के खेत में खींच लिया और उसके साथ बलात्कार का प्रयास किया. स्त्री के शोर मचने पर, उस व्यक्ति ने स्त्री का गला घोटकर हत्या का प्रयास किया. विवश स्त्री ने अपने एक मात्र पुत्र की कसम खाकर अपराधी को विश्वास दिलाया कि वह इस घटना के बारे में किसी को कुछ नहीं बताएगी जिस पर उसे छोड़ दिया गया. छूटने के स्त्री घर आयी और अपने पारिवारिक लोगों को घटना की जानकारी दी. यह अपराधी भी उक्त गेंग के एक परिवार से ही है.
इस घटना की चर्चा पूरे गाँव में होने पर गेंग के कुछ सदस्य समझौते का प्रस्ताव लेकर स्त्री के परिवार जनों से मिले जो सभी उस व्यक्ति की आपराधिक वृत्ति स्वीकार करते रहे किन्तु उसे सामाजिक दंड देकर क्षमा करने की मांग करते रहे. स्त्री के विरोध करने पर भी परिवारजनों ने उनका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया किन्तु लगभग ३ घंटे प्रतीक्षा करने पर भी प्रस्ताव के कार्यान्वयन के लिए कोई आगे नहीं आया और शाम के चार बज गए.
उक्त घटनाक्रम के दौरान मैं गाँव से बाहर था और मेरे ४बजे वापिस लौटने पर वह स्त्री और गाँव की अनेक स्त्रियों ने मुझसे न्यायपूर्वक हस्तक्षेप की अश्रुपूर्ण मांग की. उन्होंने मुझे यह भी बताया कि उनका समझौते का प्रस्ताव स्वीकार होने पर भी वे आगे नहीं आये हैं. अतः पुलिस में रिपोर्ट करना ही आवश्यक है. अतः पुलिस में रिपोर्ट की गयी और पुलिस ने पूछताछ के लिए आरोपी व्यक्ति को बुलवाया किन्तु गेंग ने उसे छिपा दिया. पुलिस द्वारा स्त्री का चिकित्सीय परीक्षण भी करा लिया गया है. किन्तु अभी प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर अपराधी के विरुद्ध मुकदमा दर्ज नहीं किया है. इस विलंब के लिए पुलिस को कुछ रिश्वत भी दी गयी है.
गेंग ने उस अपराधी को छिपा रखा है और पुलिस को पूछताछ भी नहीं करने दे रहा है. साथ ही गेंग ने मेरे विरुद्ध भी षड्यंत्र रचना आरम्भ कर दिया है जिसके अंतर्गत उक्त अपराधी की पत्नी को तैयार किया गया है जो मुझ पर बलात्कार का आरोप लगाएगी और उसकी रिपोर्ट पुलिस में करेगी. इस व्यवस्था के लिए गेंग के सदस्यों ने चंदा देकर कुछ धन भी एकत्र किया है. यह स्त्री भी दुश्चरित्र है और गेंग के सदस्यों के विलास का साधन है.
इस गेंग के दो प्रमुख सदस्य हैं - इकपाल सिंह और हरिराज सिंह. दोनों गाँव के प्रधान रह चुके हैं और हरिराज आगामी चुनाव में भी प्रत्याशी होने का इच्छुक है. इकपाल सिंह सहकारी विभाग में नियुक्त था और वहां से आर्थिक अनियमितता के कारण सेवामुक्त किया गया था. साथ ही उसके विरुद्ध सहकारी विभाग की एक भारी धनराशी बकाया है. इसे चुकता करने से बचने के लिए इसने अपनी पूरी भूमि बेच दी है और उस धन से अपने पुत्रों के नाम भूमि खरीद ली है. बकाया राशि की वसूली के लिए उस पर मुकदमा चल रहा है जिसमें वह उपस्थित नहीं होता है. न्यायालय से जारी वारंट स्थानीय पुलिस के पास अनेक वर्षों से पड़े हैं जो रिश्वत लेकर इकपाल का गाँव में उपलब्ध न होना दर्शा देती है, जब कि वह नियमित रूप से गाँव में ही रहता है और पुलिस से निकट संपर्क भी बनाए रहता है. .
गुरुवार, 1 अप्रैल 2010
बलात्कार का विरोध
सन २००८ के अंत में एक सुबह मुझे ज्ञात हुआ कि गाँव के दो या तीन युवाओं ने एक अविवाहित मुस्लिम १४ वर्षीय बालिका के साथ बलात्कार किया है और अपराधियों के परिवार वाले बालिका के पिता को पुलिस में शिकायत करने से रोक रहे हैं. सभी गाँव वाले तमाशा देख रहे हैं किन्तु कोई भी दुखी मुस्लिम परिवार की सहायता के लिए आगे नहीं आया है. मेरे गाँव में रहते हुए ऐसा हो तो मुझे लगा कि मेरी उपस्थिति महत्वहीन ही नहीं धिक्कारे जाने योग्य है.
मैं दुकी परिवार के घर गया तो देखा कि वहां भीड़ जमा है और अधिकाँश व्यक्ति घटनाक्रम का बखान करते हुए आपना मनोरंजन कर रहे हैं, कुछ को परिवार से सहानुभूति है किन्तु अपराधियों के विरुद्ध पुलिस में शिकायत करने का साहस नहीं बटोर पा रहे हैं. अपराधियों में से एक युवा का बड़ा भाई अनेक हत्याएं कर चुका है, एक हत्या के लिए उसे आजीवन कारावास का दंड भी मिला है किन्तु वह दंड के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील कर जमानत पाकर गाँव में रह रहा है और अपराधों में लिप्त है. उसके विरुद्ध दंड का न्याय होने में कई दशाब्दी लगने की संभावना है, अतः वह निश्चिन्त है. उसी के बल पर छोटा भाई भी अपराधों की ओर बढ़ रहा है. गाँव वाले दोनों भाइयों से भयभीत हैं. यही भारतीय मानसिकता है.
मैंने लडकी के पिता से आग्रह किया कि वह मेरे साथ पुलिस थाने चल कर अपनी शिकायत करे, जिसके लिए वह, उसकी पत्नी, तथा अन्य परिवारजन तैयार हो गए. पुलिस शिकायत मेरे द्वारा ही लिखी जानी थी इसलिए मैंने लडकी से सबकुछ सच-सच बताने को कहा. उसके द्वारा बताया गया घटनाक्रम इस प्रकार है.
लडकी के माता पिता एक गन्ने के खेत में पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था के लिए किसान की फसल काटने में सहायता कर रहे थे. लडकी को बाद में उसी खेत पर भैंसा बुग्गी ले कर पहुंचना था. जब यथा समय लडकी खेत पर नहीं पहुँची तो उसका भाई उसकी खोज के लिए घर गया और पाया कि घर पर न तो लडकी थी और न ही भैंसा-बुग्गी. खेत को वापिस जाते समय खोजने पर उसे भैंसा बुग्गी एक अन्य गन्ने के खेत के पास खडी मिली किन्तु लडकी वहां नहीं थी. वह भैंसा-बुग्गी लेकर माता-पिता के पास पहुंचा और इस बारे मैं उन्हें बताया.
लडकी की माँ लडकी को खोजने चली तो दूसरे गन्ने के खेत से लडकी और दो युवाओं को निकलते देखा. लडकी रो रही थी. लड़कों में से एक भारतीय सेना में सिपाही है और दूसरा आवारा बेरोजगार. उसने माँ को बताया कि ये लड़के उसे डराकर खेत में ले गए थे और दोनों ने उसके साथ बलात्कार किया था. माँ को देखकर दोनों लड़के भाग गए. वह लडकी को लेकर घर आ गयी जहाँ धीरे-धीरे भीड़ एकत्र हो गयी.
हम पुलिस थाने पहुंचे और अपनी ओर से घटना का विवरण दिया. थानाधिकारी ने जांच-पड़ताल कर आगे कार्यवाही और अगले दिन लडकी को चिकित्सीय परीक्षण हेतु जनपद मुख्यालय भेजने का आश्वासन दे दिया. हम सब वापिस चले आये.
अगले दिन प्रातः ही लडकी तथा उसके माता-पिता थाने पहुंचे किन्तु पुलिस निरीक्षक उनसे बार-बार पूछताछ करता रहा किन्तु कोई कार्यवाही नहीं की और न ही उनकी शिकायत पंजीकृत की. शाम को वे वापिस घर आ गए और मुझे पुलिस की लापरवाही के बारे में बताया. मैंने अगली सुबह उनके साथ जाने का आश्वासन दिया.
रात्रि में लगभग १० बजे जब मैं सो चुका था, गाँव के एक व्यक्ति ने मुझे जगाया और बताया, "बलात्कार में शामिल एक युवा कुख्यात अपराधी का भाई है और वह आपसे बहुत नाराज है और आपके विरुद्ध कुछ भी कर सकता है. इसलिए इस बारे में शांत बैठ जाना ही आपके हित में है." यह व्यक्ति भी अपराधियों के परिवार का है और उसे अपराधियों ने ही भेजा था.
मैंने उसे बता दिया कि मैं सुबह थाने जाऊँगा और इस अपराध को पंजीकृत करूँगा. जिस किसी जो भी करना हो वह करे, मैं मुकाबला करने के लिए तैयार हूँ. वह निराश होकर चला गया.
अगली सुबह मैं लडकी और उसके परिवार के साथ पुलिस थाने पहुंचा. पुलिस निरीक्षक ने मुझे भी टालने का प्रयास किया तो मैंने उसे बताया कि यदि उसने तुरंत पंजीकरण नहीं किया तो मैं लडकी और उसके परिवार सहित पुलिस अधीक्षक के पास चला जाऊंगा. इस पर वह सहम गया और उसने तुरंत केस पंजीकृत करने का आश्वासन दिया. इस पर भी वह मामले को दो घंटे तक टलाता रहा. ज्ञात हुआ कि अपराधियों ने उससे सांठ-गाँठ कर ली थी और वे थाने पहुँचाने वाले थे. उन्ही की प्रतीक्षा के लिए वह हमें टलाता रहा. किन्तु वहां अपराधी पक्ष से कोई नहीं आया, और केस पंजीकृत हो गया और लडकी को चिकित्सीय परीक्षण हेतु भेज दिया गया.
चिकित्सीय परीक्षण में लडकी का यौन शोषण सिद्ध हो गया. इसके बाद अपराधी पक्ष की ओर से समझौते के निवेदन आने लगे. मैं इसके लिए तैयार नहीं था किन्तु लडकी ले परिवार की निर्धनता और केस को लम्बे समय तक न लड़ पाने की स्थिति से परिचित था, इसलिए यह मामला लडकी के परिवार पर ही छोड़ दिया. सामाजिक दवाब में आकर वे समझौते के लिए तैयार हो गए और कुछ आर्थिक सहायता के बदले केस वापिस ले लिया गया.
इस घटनाक्रम से गाँव वालों को मुझ पर विश्वास हो गया कि मैं प्रत्येल संकट में निर्भयतापूर्वक उनकी सहायता कर पाने में सक्षम हूँ. .
मैं दुकी परिवार के घर गया तो देखा कि वहां भीड़ जमा है और अधिकाँश व्यक्ति घटनाक्रम का बखान करते हुए आपना मनोरंजन कर रहे हैं, कुछ को परिवार से सहानुभूति है किन्तु अपराधियों के विरुद्ध पुलिस में शिकायत करने का साहस नहीं बटोर पा रहे हैं. अपराधियों में से एक युवा का बड़ा भाई अनेक हत्याएं कर चुका है, एक हत्या के लिए उसे आजीवन कारावास का दंड भी मिला है किन्तु वह दंड के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील कर जमानत पाकर गाँव में रह रहा है और अपराधों में लिप्त है. उसके विरुद्ध दंड का न्याय होने में कई दशाब्दी लगने की संभावना है, अतः वह निश्चिन्त है. उसी के बल पर छोटा भाई भी अपराधों की ओर बढ़ रहा है. गाँव वाले दोनों भाइयों से भयभीत हैं. यही भारतीय मानसिकता है.
मैंने लडकी के पिता से आग्रह किया कि वह मेरे साथ पुलिस थाने चल कर अपनी शिकायत करे, जिसके लिए वह, उसकी पत्नी, तथा अन्य परिवारजन तैयार हो गए. पुलिस शिकायत मेरे द्वारा ही लिखी जानी थी इसलिए मैंने लडकी से सबकुछ सच-सच बताने को कहा. उसके द्वारा बताया गया घटनाक्रम इस प्रकार है.
लडकी के माता पिता एक गन्ने के खेत में पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था के लिए किसान की फसल काटने में सहायता कर रहे थे. लडकी को बाद में उसी खेत पर भैंसा बुग्गी ले कर पहुंचना था. जब यथा समय लडकी खेत पर नहीं पहुँची तो उसका भाई उसकी खोज के लिए घर गया और पाया कि घर पर न तो लडकी थी और न ही भैंसा-बुग्गी. खेत को वापिस जाते समय खोजने पर उसे भैंसा बुग्गी एक अन्य गन्ने के खेत के पास खडी मिली किन्तु लडकी वहां नहीं थी. वह भैंसा-बुग्गी लेकर माता-पिता के पास पहुंचा और इस बारे मैं उन्हें बताया.
लडकी की माँ लडकी को खोजने चली तो दूसरे गन्ने के खेत से लडकी और दो युवाओं को निकलते देखा. लडकी रो रही थी. लड़कों में से एक भारतीय सेना में सिपाही है और दूसरा आवारा बेरोजगार. उसने माँ को बताया कि ये लड़के उसे डराकर खेत में ले गए थे और दोनों ने उसके साथ बलात्कार किया था. माँ को देखकर दोनों लड़के भाग गए. वह लडकी को लेकर घर आ गयी जहाँ धीरे-धीरे भीड़ एकत्र हो गयी.
हम पुलिस थाने पहुंचे और अपनी ओर से घटना का विवरण दिया. थानाधिकारी ने जांच-पड़ताल कर आगे कार्यवाही और अगले दिन लडकी को चिकित्सीय परीक्षण हेतु जनपद मुख्यालय भेजने का आश्वासन दे दिया. हम सब वापिस चले आये.
अगले दिन प्रातः ही लडकी तथा उसके माता-पिता थाने पहुंचे किन्तु पुलिस निरीक्षक उनसे बार-बार पूछताछ करता रहा किन्तु कोई कार्यवाही नहीं की और न ही उनकी शिकायत पंजीकृत की. शाम को वे वापिस घर आ गए और मुझे पुलिस की लापरवाही के बारे में बताया. मैंने अगली सुबह उनके साथ जाने का आश्वासन दिया.
रात्रि में लगभग १० बजे जब मैं सो चुका था, गाँव के एक व्यक्ति ने मुझे जगाया और बताया, "बलात्कार में शामिल एक युवा कुख्यात अपराधी का भाई है और वह आपसे बहुत नाराज है और आपके विरुद्ध कुछ भी कर सकता है. इसलिए इस बारे में शांत बैठ जाना ही आपके हित में है." यह व्यक्ति भी अपराधियों के परिवार का है और उसे अपराधियों ने ही भेजा था.
मैंने उसे बता दिया कि मैं सुबह थाने जाऊँगा और इस अपराध को पंजीकृत करूँगा. जिस किसी जो भी करना हो वह करे, मैं मुकाबला करने के लिए तैयार हूँ. वह निराश होकर चला गया.
अगली सुबह मैं लडकी और उसके परिवार के साथ पुलिस थाने पहुंचा. पुलिस निरीक्षक ने मुझे भी टालने का प्रयास किया तो मैंने उसे बताया कि यदि उसने तुरंत पंजीकरण नहीं किया तो मैं लडकी और उसके परिवार सहित पुलिस अधीक्षक के पास चला जाऊंगा. इस पर वह सहम गया और उसने तुरंत केस पंजीकृत करने का आश्वासन दिया. इस पर भी वह मामले को दो घंटे तक टलाता रहा. ज्ञात हुआ कि अपराधियों ने उससे सांठ-गाँठ कर ली थी और वे थाने पहुँचाने वाले थे. उन्ही की प्रतीक्षा के लिए वह हमें टलाता रहा. किन्तु वहां अपराधी पक्ष से कोई नहीं आया, और केस पंजीकृत हो गया और लडकी को चिकित्सीय परीक्षण हेतु भेज दिया गया.
चिकित्सीय परीक्षण में लडकी का यौन शोषण सिद्ध हो गया. इसके बाद अपराधी पक्ष की ओर से समझौते के निवेदन आने लगे. मैं इसके लिए तैयार नहीं था किन्तु लडकी ले परिवार की निर्धनता और केस को लम्बे समय तक न लड़ पाने की स्थिति से परिचित था, इसलिए यह मामला लडकी के परिवार पर ही छोड़ दिया. सामाजिक दवाब में आकर वे समझौते के लिए तैयार हो गए और कुछ आर्थिक सहायता के बदले केस वापिस ले लिया गया.
इस घटनाक्रम से गाँव वालों को मुझ पर विश्वास हो गया कि मैं प्रत्येल संकट में निर्भयतापूर्वक उनकी सहायता कर पाने में सक्षम हूँ. .
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