सोमवार, 19 जुलाई 2010

जातीय विष का प्रत्युत्तर

निर्धन लोगों को शुद्ध पेय जल उपलब्ध करने के लिए राज्य की ओर से उनकी बस्तियों में हैण्ड-पम्प लगाये जाते हैं. यह एक सामाजिक रूप से उपयोगी कार्य है जिसकी सराहना की जानी चाहिए. मेरे गाँव में भी अनेक हैण्ड-पम्प लगाये गए हैं, जिनमें से अनेक पम्पों का सामान चोरी कर लिया गया है. यह कार्य किसी आर्थिक लाभ के लिए न किया जाकर शराबियों द्वारा शराब पीने के लिए किया जाता है.

जिस समय ग्रीष्म ऋतू अपने भीषणतम रूप में थी एक निर्धन बस्ती का हैण्ड-पम्प ख़राब हो गया जिस पर लगभग ३० परिवारों का जीवन निर्भर है. जब मैं इसे ठीक करने के लिए जल निगम के कार्यालय को जा रहा था तो मुझे ज्ञात हुआ कि गाँव के तीन अन्य हैण्ड-पम्प भी वर्षों से ख़राब पड़े हैं जिनपर निर्धन लोग निर्भर करते हैं जो उन्हें ठीक करने में असमर्थ रहते हैं. अतः मैंने चारों पम्पों को ठीक करने का प्रयास किया. राज्य कार्यालय ने मुझे सूचित किया कि उक्त पम्पों को ठीक करने के लिए सरकार के पास धन उपलब्ध नहीं है.

लगभग ६ माह बाद उक्त पम्पों को ठीक करने के लिए धन उपलब्ध हुआ और तीन हैण्ड-पम्प ठीक स्थिति में वांछित स्थलों पर लगा दिए गए. चौथा हैण्ड-पम्प गाँव के एक मुख्य मार्ग पर था जिसका उपयोग उस मार्ग के यात्रियों द्वारा किया जाता था. पम्प ठीक करने वाला दल ने जब इस पर कार्य आरम्भ किया तो कुछ धनाढ्य लोगों ने इस पम्प को इसके मूल स्थल से दूर एक व्यक्ति के व्यक्तिगत स्थान पर लगाने के लिए दल को बहला फुसला कर राजी कर लिया जो अवैध था.

नवीन स्थल पर कार्य चल ही रहा था कि मुझे इसका ज्ञान हो गया और मैंने इसकी अवैधता पर बल देते हुए कार्य को रुकवा दिया. इस पर मुझे ज्ञात हुआ कि इस पम्प के विस्थापन में एक विशेष जाति के लोग रूचि ले रहे थे, जिनमें मेरे अनेक सहयोगी भी सम्मिलित थे. मेरे विरोध करने पर मुझ पर एक जाति विशेष का विरोध करने का आरोप लगाया गया और लोगों को जातीय आधार पर एक सूत्र में बांधने का प्रयास किया गया.

इसी जाति के मेरे सहयोगी मुझे गाँव के प्रधान पद पर देखना चाहते हैं किन्तु इस घटना से सिद्ध हुआ कि ये लोग मेरा अनुचित लाभ उठाते हुए अपनी जाति के हितों का अनुचित पोषण करना चाहते हैं जिससे अन्य जातियों के हितों का हनन होना स्वाभाविक है. उक्त पम्प के विस्थापन को मेरे विरुद्ध जातीय विष फ़ैलाने का साधन बनाया गया ताकि मेरे सहयोगी ही मेरे विरुद्ध होकर शत्रु पक्ष में सम्मिलित हो जाएँ.

गाँव में जातीय विष फ़ैलाने के प्रयास सदैव किये जाते रहे हैं, जिसमें गाँव में मेरी जाति का केवल एक परिवार होने के कारण मेरे परिवार की अवहेलना होनी स्वाभाविक है. किन्तु मेरे पिताजी ने सदैव इस विष का डट कर सामना किया था जिसके कारण वे तीन पंचवर्षीय सत्रों में गाँव के प्रधान रहे, और एक सत्र में मेरे ताऊजी प्रधान रहे. अब मेरे इस क्षेत्र में आने पर मेरे विरुद्ध भी जातीय विष को उभारा गया.
Caste, Society and Politics in India from the Eighteenth Century to the Modern Age (The New Cambridge History of India)

मैंने पूरी दृढ़ता से पम्प के अवैध विस्थापन का ही विरोध नहीं किया, जातीय आधार पर संगठित होने वाले अपने सहयोगियों का भी मुकाबला किया जिसके लिए मैंने प्रधान पद के लिए अपनी दावेदारी भी ठुकरा दी. अंततः जातीय एकता विखंडित हुई और मेरे सहयोगी अपनी भूल स्वीकारते हुए पुनः मेरे पक्ष में आ गए. यदि मैं दृढ़ता न दर्शाता तो यह निश्चित था कि पूरा गान जातीय आधार पर विघटित हो जाता जिसमें मेरे लिए कोई स्थान नहीं होता. मेरी दृढ़ता से मेरी शक्ति सम्वधित हुई है.

जीवन में खेलों की भूमिका

खेल आधुनिक जीवन के सुसंगठित व्यावसायिक अंग बन गए हैं जबकि इनका व्यवसायीकरण स्वयं इनके और खिलाड़ियों के अस्तित्व के लिए घातक बनता जा रहा है. तथापि कुछ चतुर व्यक्तियों को खेलों की चिंता के सापेक्ष अपने व्यावसायिक लाभों की अधिक चिंता रहती है और वे इस बारे में लोगों को भ्रमित कर उन्हें खेल देखने के लिए आकर्षित करते रहे है. इससे खेल अपने वास्तविक एवं प्राकृत उपयोग से दूर होते जा रहे हैं. वस्तुतः खेलों के दो प्राकृत उपयोग हैं - कौशल विकास और स्वास्थ लाभ.

कौशल विकास 
प्रत्येक जीव में एक अंतर्चेतना खेल-खेल में शिक्षा-दीक्षा गृहण करना है जिसके कारण प्रत्येक जीव जन्म से ही खेलों में रमने लगता है और उन्हीं के माध्यम से अपनी जीवनोपयोगी विद्याएँ गृहण करता है और उनका अभ्यास करता रहता है. अतः खेल जीवनोपयोगी विद्याएँ सीखने के प्राकृत माध्यम होते हैं. इसी कारण प्रत्येक खेल खिलाड़ी में किसी कौशल का विकास करता है, जो केवल खेल में ही उपयोगी न होकर जीवन में उपयोगी होता है. इसके विपरीत, प्रत्येक कौशल के विकास हेतु किसी खेल की आवश्यकता होती है. खेल जीवन में वैज्ञानिकों के प्रयोगों की तरह होते हैं जो वस्तुस्थिति से हटकर प्रयोगशालाओं में परीक्षित किये जाते हैं और सफल सिद्ध होने पर उनके सार्थक उपयोग किये जाते हैं.

खेलों द्वारा विकसित कौशल को केवल खेल के लिए उपयोग करना खेलों के प्राकृत उपयोगों के विरुद्ध है, जिसके कारण पेशेवर खिलाड़ी समाज के ऊपर निरर्थक भार होते हैं, जैसे कोई वैज्ञानिक जीवन भर प्रयोगशाला में निरर्थक प्रयोग करता रहे. खेल प्रत्येक जीव के लिए सार्थक कौशल विकसित करने के माध्यम होते हैं और इनका उपयोग इसी उद्येश्य से किया जाना चाहिए.

स्वास्थ लाभ
खेलों का दूसरा लाभ खिलाड़ियों को व्यायाम द्वारा स्वास्थ लाभ प्रदान करना है. चूंकि स्वास्थ सभी के लिए सर्वाधिक महत्व रखता है, इसलिए प्रत्येक जीव को खिलाड़ी होना चाहिए. वस्तुतः ऐसा होता भी है, अधिकाँश जीव स्वास्थ लाभ के लिए अपनी इच्छानुसार खेल खेलते है भले ही वे औपचारिक खेल न माने जाते हों.

इन प्राकृत उपयोगों के लिए खेल जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका रखते हैं. किन्तु खेल केवल औपचारिक नियमन और नामकरण वाले ही नहीं होते. बच्चे की किलकारी भी उसके लिए एक खेल होता है जो वह अपना हर्ष प्रकट करने के लिए उपयोग में लाता है. इससे उसके स्वर तंत्र का अभ्यास होता है और वह सीखता है कि किलकारी सभी के लिए आनंददायक होती है. इसी से वह अपनी किलकारियों में विविधता लाकर उनके विविध उपयोगों की खोज भी करता है.
Poleish Sports Standard Game Set with Soft Surface Spike

आधुनिक खेल व्यवसाय मनुष्य जाति को खेल खेलते रहने से दूर ले जाते हुए दूसरों को खेलते हुए देखने के लिए उकसाते रहते हैं जिससे लोग स्वयं खेल खेलने से दूर होते जा रहे हैं और स्वयं कौशल विकास से वंचित रहने के कारण जीवन में असफल होते हैं.

शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

वर्य, वरीय

It's Okay To Be Differentवेदों और शास्त्रों में पाए गए वर्य तथा वरीय शब्द लैटिन भाषा के शब्द  variorum  से उद्भूत हैं जिसका अर्थ 'भिन्न' है न कि 'इच्छित अथवा वांछित' जैसा कि आधुनिक संस्कृत में माना गया है. अतः आधुनिक संस्कृत के आधार पर किये गए उक्त ग्रंथों के अनुवाद भ्रामक हैं.

अक्ष, अक्षर

वेदों और शास्त्रों में पाया जाने वाला शब्द 'अक्ष' लैटिन भाषा के शब्द  actus  का प्रतिरूप है जिसका अर्थ 'कार्य करना', और यही अर्थ वेदों आदि के अनुवाद हेतु उपयोग में लिया जाना चाहिए.
Doers of the Word: Putting Your Faith Into Practice

'अक्ष' शब्द से ही उद्भूत है शास्त्रीय शब्द  'अक्षर' जो लैटिन भाषा के शब्द  actuaris  से बना है तथा जिसका अर्थ 'कार्य' करने वाला अर्थात कर्ता' है. आधुनिक संस्कृत में लिया गया इसका अर्थ 'वर्णमाला का एक ध्वनि प्रतीक शात्रीय अनुवाद के अनुकूल नहीं है.

रविवार, 11 जुलाई 2010

भारत समाधान का सूत्रपात

मेरी शिक्षा, अनुभव, निष्ठां और चिंतन के कारण और मेरे गाँव में सामाजिक रूप में सक्रिय होने से गाँव के ही नहीं आसपास के अनेक गाँवों के लोग मेरे पास अपनी समस्याएँ लेकर मेरे परामर्श और सहायता की आशा लेकर आते रहते हैं और मैं यथा-संभव उन्हें संतुष्ट करने के प्रयास भी करता रहा हूँ. मुझे गाँव का प्रधान बनने के लोगों के प्रयास भी इन्ही कारणों से किये गए हैं जिसके लिए मैं सहमत हो गया हूँ.

अभी मैं एक व्यक्ति के रूप में हूँ जिसके कारण मैं लोगों को परामर्श तो दे पाता हूँ किन्तु किसी कार्यालय में जाकर उनकी सहायता नहीं कर सकता, जिसकी आवश्यकता मुझे तथा अन्य लोगों को अनुभव होती रहती है. इसके लिए मुझे एक संगठन की आवश्यकता है. इसी उद्येश्य से मैंने लोगों की समस्याओं के निदान हेतु स्थानीय स्तर पर 'भारत समाधान संघ' नामक संगठन की स्थापना का मन बनाया है जिसकी वैधानिक औपचारिकताएं अभी पूरी की जानी हैं.

'भारत समाधान संघ' कोई जन-संगठन न होकर अभी केवल बुलंदशहर जनपद के बौद्धिक लोगों का संगठन होगा जो अपने सामाजिक दायित्वों के निर्वाह करने एवं ग्रामीण लोगों की समस्याएँ हल करने के लिए प्रयास करेंगे. इसका मुख्यालय मेरा गाँव खंदोई रहेगा. इस संगठन को अन्य राष्ट्रीय स्तर के संगठनों से लग्नित कर दिया जाएगा ताकि बड़ी समस्याओं के लिए उनकी सहायता ली जा सके और उनके लक्ष्यों और संदेशों को जन साधारण तक पहुँचाया जा सके. भारत समाधान मुख्यतः जन-साधारण के शोषण और भृष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष करेगा.
The Impossible Patriotism Project

'भारत समाधान संघ' के माध्यम से मैं अपने समाज और राष्ट्र की स्थिति सुधारने में अपना और अपने सहधर्मियों का योगदान समर्पित कर सकूंगा, जो राष्ट्रीय चेतना का उत्प्रेरक सिद्ध हो सकता है और भारतीय जनतंत्र के स्थान पर बौद्धिक जनतंत्र की स्थापना में अपना योगदान दे सकता है. आप सभी का यथा संभव नैतिक सहयोग प्रार्थनीय है. इस संघ का ईमेल पता यह है -
bharat.samadhan@gmail.com

शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

हम किधर जा रहे हैं

विगत लगभग एक माह में मेरे गाँव में कुछ घटनाएँ हुईं जो हमारे चारों ओर घट रही अनेक घटनाओं जैसी ही हैं किन्तु इनसे हमें स्पष्ट संकेत मलते हैं कि हम भारतवासी इस समय किधर जा रहे हैं, और इस मार्ग पर चलते हुए हमारा भविष्य क्या होगा. 

अधिकार और चोरी 
गाँव के एक वयोवृद्ध किसान अपने खेत की सिंचाई के लिए अपना ट्यूबवेल चला रहे थे जो ४४० वोल्ट पर चलता है. अचानक एक ११००० वोल्ट की लाइन का एक तार टूटा और ट्यूबवेल की ४०० वोल्ट लाइन पर आ पड़ा. मोटर को ११००० वोल्ट प्राप्त होने पर उसकी ध्वनि बदली तो किसान मोटर बंद करने के लिए स्टार्टर की ओर भागे. जैसे ही उन्होंने उसे छुआ, उनके शरीर में विद्युत् धारा प्रवाहित हुई, और वे ट्यूबवेल के कुए में गिर गए. वहां उनका एक पैर और एक हाथ कट गया. कुछ समय बाद उनका मृत शरीर कुए से निकाला गया. उनका शरीर और कपडे बुरी तरह झुलसे हुए थे.

मैंने उनके पुत्र को बताया कि मृत्यु विद्युत् प्रशासन की लापरवाहियों से हुई है इसलिए उन्हें इसकी पुलिस में रिपोर्ट करनी चाहिए जिससे उन्हें ५ लाख रुपये तक की क्षतिपूर्ति हो सकेगी. किन्तु मेरा सुझाव यह कहकर नकार दिया गया कि उनकी आय बहुत है इसलिए वे किसी क्षतिपूर्ति की मांग नहीं करेंगे. शव का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

क्षतिपूर्ति किसान का अधिकार था किन्तु इसे प्राप्त करने के लिए कुछ संघर्ष करना पड़ता, जिससे बचा गया. यही परिवार घर में उपयोग के लिए बिजली की चोरी करता है जिसका बिल केवल १३२ रुपये प्रति माह देना पड़ता जिसे बचने के लिए चोरी की जा रही है. विचार कीजिये कि एक ओर ५ लाख रुपये को इसलिए ठुकराया गया कि घर में आय की कोई कमी नहीं है. दूसरी ओर रुपये ४.५० की प्रतिदिन चोरी की जा रही है. अब क्या हो नैतिकता का मूल्य, हमारी दृष्टि में.

एक प्रसिद्ध कथावत है - व्यक्ति को अधिकार भीख में नहीं मिलते, इन्हें आगे बढ़कर पाया जाता है. दूसरे शब्दों में प्रत्येक व्यक्ति को अपने अधिकारों के लिए भी संघर्ष करने की आवश्यकता होती है. जो लोग संघर्ष नहीं करते वे अपने अधिकारों से वंचित ही रह जाते हैं. इससे उनकी उपलब्धियां अल्प हो जाती हैं जिसके कारण वे जीवन को अभावग्रस्त अनुभव करते हैं और आत्म संतुष्ट नहीं हो पाते. इस अभाव की आपूर्ति के लिए वे छल-कपट का मार्ग अपनाते हैं जिससे समाज में विकृतियाँ उत्पन्न करते हैं. भारत के जन साधारण की मानसिकता की वर्तमान स्थिति ऐसी ही है जो उपरोक्त उदाहरण से स्पष्ट है.

शराबी का पतन 
गाँव का एक सतीश नामक हृष्ट-पुष्ट युवा था बहुत परिश्रमी. मजदूरी करके परिवार का लालन-पालन करता था बड़ी खुशी के साथ. सन २००५ में गाँव में पंचायत प्रधान का चुनाव हुआ. चुनाव जीतने के लिए एक प्रत्याशी ने पूरे गाँव के शराबियों को इच्छानुसार पीने की दावतें दीन लगभग एक महीन तक, जिनमें लगभग १ लाख रूपया व्यय हुआ. उक्त युवा प्रत्याशी का मित्र था इसलिए दावतों में उसने भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया. इसके बाद अन्य तथाकथित जनतांत्रिक चुनाव हुए और उनमें भी जी भर के शराब की दावतें हुईं. परिणामस्वरूप उक्त युवा सुबह से शाम तक पीने वाला शराबी बन गया. मुफ्त की शराब न मिलने पर उसने अपनी कमाई से शराब पीनी आरम्भ कर दी जिससे परिवार का लालन-पालन दूभर हो गया और घर में नित्य प्रति कलह होने लगी.

अभी कुछ दिन पूर्व, सतीश नशे में धुत अपने घर की छत पर सोया और रात्री में नीचे गिर गया. पत्नी उससे नाराज थी ही इसलिए उसने उसकी कोई परवाह नहीं की और वह रात भर वहीं पड़ा रहा. सुबह पत्नी उठी और वर्तमान ग्राम प्रधान, जिसने शराब पिलाकर पड़ प्राप्त किया था, के पास गयी और उससे उसके मित्र की हालत देखने को कहा. सतीश की गर्दन टूट चुकी थी और वह बेहोश था. उसे तुरंत दिल्ली अस्पताल भेजा गया. राजकीय अस्पताल में चिकित्सा पर लगभग ५०,००० रुपये व्यय करने के बाद अब सतीश गाँव में आ गया है. किन्तु उसके शरीर का नीचे का आधा भाग मृत है जिसके कारण वह केवल पड़े रहने में ही समर्थ है - जीवन की प्रत्येक कार्य के लिए पराश्रित. उसके तीन छोटे-छोटे बच्चे हैं, परिवार भूमिहीन है इसलिए अब आय का कोई साधन नहीं है. उसकी पत्नी की मजदूरी करके बच्चे पालना विवशता है किन्तु ऐसा करते हुए वह सतीश की देखभाल नहीं कर सकती. इस प्रकार भारत के तथाकथित जनतंत्र ने पूरे परिवार को बर्बाद कर दिया है.

गुंडे के पिता की मृत्यु
अभी कुछ दिन पूर्व एक गुंडे ने मेरे साथ दुर्व्यवहार किया था जिसका दंड उसे पुलिस द्वारा दिया गया. दंड देने की प्रक्रिया को विलंबित और सुकोमल करने के लिए पुलिस ने उसके परिवार से ३२,००० रुपये की रिश्वत ली तथापि उसे दंड भी पर्याप्त दिया गया. मामला अब न्यायालय में है.

उक्त गुंडे का पिता एक सज्जन एवं परिश्रमी लगभग ५० वर्षीय किसान था तथापि पुत्र मोह में गुंडागर्दी का समर्थन करता था. वह अपने पुत्र के अपराध के कारण उक्त धन और अपमान की क्षति को सहन नहीं कर सका और पुलिस कार्यवाही के दो दिन बाद ह्रदय गति रुक जाने से मृत्यु को प्राप्त हो गया. इस प्रकार गुंडे के दंड में पिता की मृत्यु भी सम्मिलित हो गयी.

जब हम अपनों के दोषों की अवहेलना करने लगते हैं तो दोष में वृद्धि होती रहती है जो एक दिन विनाशकारी सिद्ध होती है.