९ अगस्त १९४२ को गांधीजी के आह्वान 'अंग्रेजो भारत छोडो' की चिंगारी गाँव खंदोई भी पहुँची. खंदोई के नौजवानों में भी अंग्रेज़ी सरकार की दमनकारी नीतियों के प्रति आक्रोश था. महात्मा गाँधी के आह्वान पर महाशय करन लाल जी के नेतृत्व में दर्ज़नों नौजवानों ने एकत्र होकर अंग्रेज़ी सरकार के विरुद्ध संघर्ष की योजना बनायी. अंग्रेज़ी सरकार के सिंचाई कार्यालय (चरौरा कोठी) जिसमे अँगरेज़ अधिकारी किसानों के मुकदमे सुनते थे, खंदोई के नौजवानों ने इसी दफ्तर को नष्ट करने की योजना बनायी.
२१ अगस्त १९४२ की रात्री को खंदोई के लोगों जिनमें सर्वश्री राम चन्द्र सिंह, गिरवर प्रसाद शर्मा, नन्द राम गुप्ता, नेकलाल, आदि के साथ एक बच्चा खचेडू सिंह भी श्री करन लाल जी के नेतृत्व में जंगल (खेतों) के रास्ते होते हुए पडौस के गाँव भगवन्तपुर पहुंचे और वहां से मिट्टी के तेल का कनस्तर लेकर रात्री में ही चरौरा कोठी पहुँच गए. कुछ लोगों ने टेलीफोन के तार काट दिए तथा दफ्तर को चारों ओर से घेर कर उसमें आग लगा दी. थोड़ी ही देर में दफ्तर जल कर राख हो गया. आग लगाने की खबर भी पूरे क्षेत्र में आग की तरह फ़ैल गयी. आग लगाने वाले आज़ादी के दीवाने भूमिगत हो गए.
तत्कालीन कलेक्टर हार्डी इतने क्रोधित हुए कि खंदोई में भारी फ़ोर्स के साथ आ धमके तथा गाँव के लोगों पर अत्याचार शुरू कर दिए. कलेक्टर हार्डी ने पूरे गाँव को आग के हवाले करने तक का फरमान सुना दिया. लेकिन संघर्ष शील जनता के सामने उन्हें हाथ खींचना पडा. दर्जनों लोगों को जेल में डाल दिया गया. कलेक्टर हार्डी ने तत्कालीन जज श्री डी पद्मनाभन को श्री करन लाल को फांसी दिए जाने का आदेश दे दिया. इस पर जज महोदय श्री पद्मनाभन, जो क्रांतिकारियों के प्रति सहानुभूति रखते थे, ने वकील के माध्यम से श्री करन लाल को सन्देश भिजवा दिया कि वे तब तक अदालत में हाजिर न हों जब तक कि हार्डी बुलंदशहर कि कलेक्टर रहे अन्यथा फांसी दिया जाना नहीं टाला जा सकेगा.
हार्डी के बुलंदशहर से तबादले के बाद श्री करन लाल जी अदालत में हाजिर हुए जिसपर उन्हें कारागार भेज दिया गया. कुल मिलकर उन्हें ३ वर्ष से अधिक की सजा मिली थी. गाँव के अन्य लोगों को भी सजाएं मिलीं.
देश के शहीदों, संघर्ष करने वालों तथा आजादी के दीवानों के जज्बात तथा देश के नौजवानों जैसे सरदार भगत सिंह, चन्द्र शेखर आज़ाद, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान आदि की कुर्बानी तथा महात्मा गाँधी के नेतृत्व से १५ अगस्त १९४७ को देश के लोगों आज़ादी की सांस ली. गाँव खंदोई के लोगों को भी आज़ादी के साथ बहुत राहत मिली. कुछ समय बाद आज्ज़दी के लिए संघर्ष करने वालों को 'स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी' का दर्ज़ा दिया गया एवं सरकार द्वारा उन्हें पेंशन भी दी गयी. खंदोई के २6 लोग भी इस सूची में स्थान पा सके. आज़ादी के संघर्ष में लगभग ४० लोगों ने हिस्सा लिया था, किन्तु आज़ादी से पहले मृत्यु अथवा ३ माह से कम की सजा के कारण उन्हें उस सूची में स्थान नहीं मिल पाया.
१९३६ में गठित किसानों का महत्वपूर्ण संगठन 'किसान सभा' आज़ादी के संघर्ष की कथा तिथियों के अनुसार कार्यक्रमों का आयोजन करता रहा है जिसमें देश को आर्थिक आजादी दिलाने का संकल्प भी लिया जाता है. क्षेत्रीय स्तर पर, खंदोई के लोगों द्वारा आजादी के लिए संघर्ष को याद करने के लिए २१ अगस्त (चरौरा कोठी काण्ड) को भी कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता रहा है जिसमें आज के नौजवानों को देश प्रेम के लिए प्रेरित करने, आज़ादी के महत्व को समझाने तथा अधूरी आजादी को पूरा करने का आह्वान किया जाता है. इन कार्यक्रमों में चरौरा कोठी काण्ड के सैनानियों को श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है.
अब खंदोई के सभी स्वतन्त्रता सैनानियों का स्वर्गवास हो चुका है. उनके संघर्ष को जीवंत बनाए रखने के लिए, ग्रामवासियों ने पश्चिमी प्रवेश मार्ग पर एक भव्य 'स्वतन्त्रता सेनानी द्वार' के निर्माण का संकल्प लिया है. जिसके पास ही तालाब का सौन्दर्यकरण, वृहत वृक्षारोपण, तथा मनोरंजन पार्क का निर्माण भी किया जाएगा.
२१ अगस्त १९४२ की रात्री को खंदोई के लोगों जिनमें सर्वश्री राम चन्द्र सिंह, गिरवर प्रसाद शर्मा, नन्द राम गुप्ता, नेकलाल, आदि के साथ एक बच्चा खचेडू सिंह भी श्री करन लाल जी के नेतृत्व में जंगल (खेतों) के रास्ते होते हुए पडौस के गाँव भगवन्तपुर पहुंचे और वहां से मिट्टी के तेल का कनस्तर लेकर रात्री में ही चरौरा कोठी पहुँच गए. कुछ लोगों ने टेलीफोन के तार काट दिए तथा दफ्तर को चारों ओर से घेर कर उसमें आग लगा दी. थोड़ी ही देर में दफ्तर जल कर राख हो गया. आग लगाने की खबर भी पूरे क्षेत्र में आग की तरह फ़ैल गयी. आग लगाने वाले आज़ादी के दीवाने भूमिगत हो गए.
तत्कालीन कलेक्टर हार्डी इतने क्रोधित हुए कि खंदोई में भारी फ़ोर्स के साथ आ धमके तथा गाँव के लोगों पर अत्याचार शुरू कर दिए. कलेक्टर हार्डी ने पूरे गाँव को आग के हवाले करने तक का फरमान सुना दिया. लेकिन संघर्ष शील जनता के सामने उन्हें हाथ खींचना पडा. दर्जनों लोगों को जेल में डाल दिया गया. कलेक्टर हार्डी ने तत्कालीन जज श्री डी पद्मनाभन को श्री करन लाल को फांसी दिए जाने का आदेश दे दिया. इस पर जज महोदय श्री पद्मनाभन, जो क्रांतिकारियों के प्रति सहानुभूति रखते थे, ने वकील के माध्यम से श्री करन लाल को सन्देश भिजवा दिया कि वे तब तक अदालत में हाजिर न हों जब तक कि हार्डी बुलंदशहर कि कलेक्टर रहे अन्यथा फांसी दिया जाना नहीं टाला जा सकेगा.
हार्डी के बुलंदशहर से तबादले के बाद श्री करन लाल जी अदालत में हाजिर हुए जिसपर उन्हें कारागार भेज दिया गया. कुल मिलकर उन्हें ३ वर्ष से अधिक की सजा मिली थी. गाँव के अन्य लोगों को भी सजाएं मिलीं.
देश के शहीदों, संघर्ष करने वालों तथा आजादी के दीवानों के जज्बात तथा देश के नौजवानों जैसे सरदार भगत सिंह, चन्द्र शेखर आज़ाद, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान आदि की कुर्बानी तथा महात्मा गाँधी के नेतृत्व से १५ अगस्त १९४७ को देश के लोगों आज़ादी की सांस ली. गाँव खंदोई के लोगों को भी आज़ादी के साथ बहुत राहत मिली. कुछ समय बाद आज्ज़दी के लिए संघर्ष करने वालों को 'स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी' का दर्ज़ा दिया गया एवं सरकार द्वारा उन्हें पेंशन भी दी गयी. खंदोई के २6 लोग भी इस सूची में स्थान पा सके. आज़ादी के संघर्ष में लगभग ४० लोगों ने हिस्सा लिया था, किन्तु आज़ादी से पहले मृत्यु अथवा ३ माह से कम की सजा के कारण उन्हें उस सूची में स्थान नहीं मिल पाया.
अब खंदोई के सभी स्वतन्त्रता सैनानियों का स्वर्गवास हो चुका है. उनके संघर्ष को जीवंत बनाए रखने के लिए, ग्रामवासियों ने पश्चिमी प्रवेश मार्ग पर एक भव्य 'स्वतन्त्रता सेनानी द्वार' के निर्माण का संकल्प लिया है. जिसके पास ही तालाब का सौन्दर्यकरण, वृहत वृक्षारोपण, तथा मनोरंजन पार्क का निर्माण भी किया जाएगा.