मंगलवार, 11 मई 2010

यथार्थ चिन्तन और कल्पना

पहले चिंतन के बारे में कुछ चिंतन. प्रत्येक मनुष्य अपनी प्राकृत अंतर्चेतना के अधीन अपने अनुभवों से प्राप्त सूचनाओं को अपनी स्मृति में संग्रहीत करता है. ये सूचनाएं व्यक्ति की पारिस्थितिकी से पांच संग्राहकों - आँखें, कान, नासिका, जिह्वा और त्वचा, द्वारा क्रमशः दृश्य, ध्वनि, गंध, स्वाद और स्पर्श के रूप में होती हैं.

सूचनाएं आरम्भ में अव्यवस्थित अवस्था में होती हैं जिनके उपयोग में असुविधा होना संभव होता है. इसलिए इन सूचनाओं को मस्तिष्क द्वारा व्यवस्थित और अंतर्लाग्नित किया जाता है. इस प्रकार व्यवस्थित और अंतर्लाग्नित सूचनाएं ही मनष्य का ज्ञान कहलाती हैं. ज्ञान को कैसे, कब और कहाँ उपयोग में लिया जाये यह मनुष्य की बुद्धि का कार्य होता है और इस समन्वय को मनुष्य का बोध कहा जाता है. ज्ञान को बोध में संपरिवर्तित करना ही चिंतन कहा जाता है. इस प्रकार चिंतन स्मृति में संग्रहीत सूचनाओं का उपयोग है, जिस में स्मृति का महत्वपूर्ण योगदान होता है. 
The Innovator's Toolkit: 50+ Techniques for Predictable and Sustainable Organic Growth 
चिंतन दो प्रकार का हो सकता है - यथार्थपरक और कल्पनापरक. पहले से ही परस्पर लग्नित सूचनाओं के उपयोग को यथार्थपरक चिंतन कहा जाता है क्योंकि यह पूर्वानुभावों पर आधारित होता है. इन्ही पूर्वानुभवों के कारण ही सूचनाएं पहले से ही लग्नित होती हैं. किन्तु कल्पनाशील व्यक्ति उन सूचनाओं को भी समन्वित करने के प्रयास करते हैं जो पूर्वानुभावों के आधार पर लग्नित नहीं होती हैं. इस कार्य में व्यक्ति की रचनाधर्मिता क्रियाशील होती है जिससे वह ऐसी बात कहता अथवा ऐसा कर्म करता है जिसका अनुभव किसी ने कभी पहले किया ही न हो. इसे व्यक्ति का नवाचार भी कहा जाता है.      

सोमवार, 10 मई 2010

रोग प्रवंचन उपाय

रोगों की रोकथाम उनकी चिकित्सा की तुलना में सस्ती और अति लाभकर सिद्ध होती है. इसलिए बौद्धिक जनतंत्र में रोगों की रोक्थाम्म पर विशेष बल है. इसके निम्नांकित उपाय प्रस्तावित हैं -

नशीले द्रव्यों पर पूर्ण प्रतिबन्ध
लोगों में मानसिक रोगों की उत्पत्ति में नशीले द्रव्यों जैसे तम्बाकू, शराब, अफीम, गांजा, भांग आदि का प्रमुख योगदान होता है. इनके उपयोग से व्यक्तिगत और सामाजिक अर्थव्यवस्था दुष्प्रभावित होती है जिससे रोगों की समुचित चिकित्सा भी संभव नहीं हो पाती. इसलिए बौद्धिक जनतंत्र इस प्रकार के सभी द्रव्यों के उत्पादन एवं वितरण पर पूर्ण प्रतिबन्ध की व्यवस्था है. स्त्रियों पर अत्याचार भी इसी प्रकार के द्रयों के सेवन के कारण होते हैं. इसका उल्लंघन देशद्रोह माना जायेगा जिसके लिए मृत्यु दंड का प्रावधान है.

कुछ लोगों के लिए स्वास्थ कारणों से इनके सेवन को आवश्यक माना जाता हैं किन्तु बौद्धिक जनतंत्र ऐसे लोगों को रियायत देकर पूरे समाज को दूषित होने का खतरा नहीं उठता और ऐसे लोगों को भी इसकी अनुमति नहीं दी जायेगी.

सामाजिक वानिकी एवं पर्यावरण संरक्षण
देश भर में भूमि तल पर स्वस्थ पर्यावरण के निर्माण के लिए बौद्धिक जनतंत्र सभी नदी-नालों, सड़को, रेल पटरियों के किनारों पर वृक्ष उगाने के लिए कृत-संकल्प है. इससे देश की अर्थ व्यवस्था पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ेगा. इसके अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति के लिए न्यूनतम एक वृक्ष लगाये जाने का लक्ष्य है.

इससे भीषण गर्मी और शीत का शमन होगा जो अधिकाँश रोगों के कारण होते हैं. इस योजना के क्रियान्वयन में वनस्पति के चुनाव पर विशेष ध्यान दिया जायेगा क्योंकि देश के शत्रु  इस भूमि पर अनेक हानिकर पेड़-पौधे उगाते रहे हैं जो बिना किसी शोध के आज भी प्रचलित हैं. एक सामान्य नियम यह है कि भारत की जलवायु के अनुकूल वे वृक्ष हैं जिनकी पत्तियां चिकनी तथा पतली होती हैं.

प्रदूषण की रोकथाम के लिए औद्योगिक प्रदूषक द्रव्यों को उनके उद्गम पर ही उपचारित किया जाएगा और उनका नदी नालों में डालना पूर्ण प्रतिबंधित होगा.

परिवार नियोजन
स्त्री जाति के स्वास्थ पर उनके ऊपर बारम्बार मातृत्व का भार एक बड़ा कारण होता है. इसी से बच्चों का स्वास्थ भी दुष्प्रभावित होता है. देश में सीमित जनसँख्या का ही उपयोग एवं पोषण किया जा सकता है, इसलिए भी जनसँख्या का नियंत्रण अनिवार्य है. वर्तमान में जनतांत्रिक प्रावधानों के अंतर्गत राजनैतिक सत्ता हथियाने के उद्येश्य से अनेक जातियां और वर्ग अपनी जनसंख्याओं में अप्रत्याशित वृद्धि कर रहे हैं. इसलिए बौद्धिक जनतंत्र में तीन से अधिक बच्चे उत्पन्न करने वाले युगलों को सदैव के लिए मताधिकार से वंचित कर दिया जायेगा, और चौथे, पांचवे, आदि बच्चों के मताधिकार की न्यूनतम आयु सामान्य मताधिकार आयु २५ वर्ष के स्थान पर क्रमशः ३०, ३५, आदि वर्ष निर्धारित होगी. यह प्रावधान सभी पर लागू होगा और जाति, धर्म,क्षेत्र आदि का कोई इचार नहीं किया जाएगा.

भोजन और पोषण
भारत में शक्कर और सब्जियों के उत्पादन और खपत पर विशेष शोधों की आवश्यकता है क्योंकि अधिकाँश रोग इन्ही के माध्यम से पनप रहे हैं. शीरा युक्त शक्कर जैसे गुड, आदि शरीर में बड़ी शीघ्रता से सड़ने लगते हैं और रोग उत्पन्न करने लगते हैं. वैसे भी मनुष्य को शुद्द शक्कर खाने की कोई आवश्यकता नहीं होती क्योंकि इसकी पर्याप्त मात्रा फलों और अन्नों से प्राकृत रूप में उपलब्ध हो जाती है.

अनेक सब्जियां जैसे लौकी, तोरई आदि पोषण विहीन होती हैं जिनका भारत में बहुत प्रचलन है. इनकी खपत से लोगों को दालों के प्रति रुझान कम होता है जो संतुलित पोषण के लिए अनिवार्य होती हैं. नाईटशेड परिवार की अनेक सब्जियां जैसे आलू, बैंगन, टमाटर, आदि पर शोध किये जाने की आवश्यकता है क्योंकि इनके गुण धर्म मानावानुकूल होने की संभावना अल्प है.

देश में फलों की खपत विश्व की तुलना में बहुत कम है जिससे भी स्वास्थ दुष्प्रभावित होता है. इसलिए बौद्धिक जनतंत्र देश में फलों के उत्पादन और खपत को प्रोत्साहित करेगा.

स्वच्छता
स्वच्छता स्वास्थ का पर्याय होती है जबकि के जनजीवन में अनेक प्रकार की गंदगियाँ और गंदे व्यवहार व्याप्त हैं. मेले आदि पर नदी स्नान छूट की बीमारियों के प्रसार का प्रमुख कारण है जो इस देश की संस्कृति में समाहित है. छोटे-छोटे घरों में पशुपालन के कारण पशुओं के मॉल मूत्र घर में रहने वाले पुरुषों, बच्चों और स्त्रियों में अनेक प्रकार के रोगों को जन्म देते हैं.

बंद स्थान में स्नान करना स्वास्थ के लिए अनेक प्रकार से लाभकर होता है - शरीर के गुप्तांगों की सफाई, नदी स्नान की वर्जना, खुले वातावरण के तापमान से रक्षा आदि.

पीने का पानी, जो अभी तक स्वच्छ रूप में देश की बड़ी जनसँख्या को उपलब्ध नहीं कराया गया है, रोगों का प्रमुख जन्मदाता रहा है. अतः प्रत्येक व्यक्ति को स्वच्छ जल उपलब्ध कराना बौद्धिक जनतंत्र की प्राथमिकता है.     

जनगणना और मतदाता सूची के छिद्र

भारत की वर्तमान जनसँख्या लगभग १,२००,०००,००० कही जाती है. किन्तु इस बारे में जो अव्यवस्था मेरे गाँव के रूप में दिखाई देती है वही सर्वत्र व्याप्त है. मेरे गाँव में इस समय लगभग १,७०० मतदाता हैं किन्तु इनमें से लगभग ३०० ऐसे मतदाता हैं जो गाँव से बाहर रहते हैं और गाँव में विशेष अवसरों पर ही आते हैं. ऐसे व्यक्ति अन्यत्र अपने व्यवसाय अथवा सेवा कार्य करते हैं, इन्होने अपने स्थायी निवास भी वहीं बना लिए हैं, वहीं इनके राशन कार्ड आदि बने हुए हैं और वहां की मतदाता सूचियों में भी इनके नाम सम्मिलित हैं. लिन्तु ये नहीं चाहते कि इनके नाम गाँव की मतदाता सूची से निकाले जाएँ और न ही शासन की ओर से इस बारे में कोई कार्यवाही की जाती है. प्रत्येक चुनाव से पूर्व मतदाता सूचियों के जो संशोधन किये जाते हैं उनमें नए नाम तो जोड़े जाते हैं किन्तु कोई पुराना नाम नहीं निकाला जाता. इस प्रकार गाँव में लगभग २० प्रतिशत अनधिकृत मतदाता हैं, जिसे राष्ट्र स्तर पर भी सत्य माना जा सकता है.
Votes and Violence: Electoral Competition and Ethnic Riots in India 
अभी उत्तर प्रदेश के पंचायती चुनाव होने हैं जिसके लिए राज्य चुनाव आयोग ने मतदाता सूची पुनार्वीक्सन के आदेश दिए हैं. मैंने राज्य चुनाव आयुक्त को गाँव की सूची से ऐसे मतदाताओं के नाम कटे जाने का आग्रह किया है जिनके माम अन्यत्र की मतदाता सूचियों में भी सम्मिलित हैं. किन्तु इस बारे में न तो मुझे कोई उत्तर दिया गया है और न ही मतदाता सूची संशोधकों को समुचित आदेश दिए गए हैं.  

यहाँ यह भी ध्यान देने योग्य तथ्य है कि राज्य चुनाव आयोग तथा भारत के मुख्य चुनाव आयोग अपनी-अपनी प्रथक मतदाता सूचियों का निर्माण एवं उनका संशोधन करते हैं जब कि दोनों के मानदंड एक समान हैं और प्रथक मतदाता सूचियों का कोई औचित्य नहीं है. तथापि इस कार्य में बार-बार सार्वजनिक धान का दुरूपयोग किया जा रहा है.
Various Census of India 
जो स्थिति मतदाता सूची की है वही स्थिति जनगणना की भी है. गाँव की जनसँख्या ३५०० के लगबग कही जाती है किन्तु इनमें से लगभग ६०० व्यक्ति बाहर रहते हैं और उनके नाम उनके वर्तमान निवास स्थानों की जनगणना में भी निश्चित रूप से सम्मिलित होंगे.

यह  सब दर्शाता है कि हमारी कार्य प्रणाली और संस्कृति कैसी है और हम व्यक्तिगत, सम्माजिक और मानसिक रूप में कितने स्वस्थ हैं. अधिकतम लाभ पाने की लालसा हमारी संस्कृति बन गयी है इसका परिणाम चाहे कुछ भी हो.  

निम्ब

Auraशास्त्रों में 'निम्ब' शब्द लैटिन के शब्द  nimbus  से बनाया गया है जिसका अर्थ 'बादल' अथवा किसी महान व्यक्ति का 'आभामंडल' है. आधुनिक संस्कृत में इसका अर्थ 'नीम का वृक्ष' है जिसका शास्त्रीय मंतव्य से कोई सम्बन्ध नहीं है.   

महाभारत युद्ध

वस्तुतः महाभारत युद्ध विश्व का प्रथम विश्व-युद्ध था किन्तु भारतीय इतिहासकारों द्वारा इसे सही रूप में प्रस्तुत न किये जाने के कारण विश्व इतिहास इसे विश्व यूद्ध की मान्यता प्रदान नहीं करता है. महाभारत ग्रन्थ के अनुवादों में हुई त्रुटियों के कारण इस युद्ध के स्थान और समय में गंभीर भ्रांतियां उत्पन्न हुई हैं जिसके कारण विश्व इतिहास में इस युद्ध का कोई विवरण नहीं दिया जाता है. इसके पात्रों, काल और स्थल के बारे में मैंने जो शोध किये हैं, उनके परिणाम निम्नांकित हैं -

महाभारत के प्रमुख पात्र 
महाभारत ग्रन्थ के वास्तविक नायक राम हैं जिन्हें ब्रह्मा भी कहा जाता था. किन्तु ग्रन्थ के मूल पथ में जहां-जहां राम शब्द आया है, हिंदी अनुवाद में उसे बलराम, परशुराम आदि कर दिया गया है जिससे राम को ग्रन्थ से पूरी तरह अनुपस्थित किया गया है.  किन्तु राम की हत्या महाभारत युद्ध के पूर्व ही कर दी गयी थी.

ग्रन्थ में कृष्ण खलनायक की भूमिका में है किन्तु उसकी भूमिका व्यापक सिद्ध करने के लिए अनेक शब्दों, जैसे श्याम, गोपाल, वासुदेव, माधव, हृषिकेश, जनार्दन, देवकीनंदन, आदि, को कृष्ण के अन्य नाम कह दिया गया है, जब कि इनमें से अनेक के तात्पर्य अन्य हैं.  राम और कृष्ण की समकालीनता एक अन्य प्रमाण मैं पहले ही दे चुका हूँ.

महाभारत युद्ध में सिकंदर ने भाग लिया था जिसे महाभारत ग्रन्थ में शिखंडी कहा गया है. इस के अतिरिक्त महाभारत ग्रन्थ में सेल्युकस का नाम हेल्युकस लिखा गया है जैसे कि सिन्धु को इंडस अथवा हिन्दू कहा जाता है.  कृष्ण के आमंत्रण पर सिकंदर  द्वारा भारत पर आक्रमण और पराजय के बाद सिकंदर ने समझौता कर लिया था, किन्तु कृष्ण ने उसे और उसकी सेना को दक्षिण भारत में बसा दिया गया था जिससे कि वे आगामी युद्ध की तैयारी कर सकें. १५ माह की तैयारी के पश्चात महाभारत युद्ध हुआ. इसीलिये विश्व इतिहास में सिकंदर का भारत में ठहराव १८ माह कहा गया है. 

युद्ध से पूर्व कृष्ण द्वारा देव योद्धाओं जैसे जरासंध, कंस, कीचक, आदि की हत्या छल-कपट से करा दी थी इसलिए वे स्वयं युद्ध करने में असमर्थ थे. इसलिए देव प्रमुख विष्णु ने भारत की यवनों से रक्षा के लिए सिकंदर द्वारा पराजित आर्यणाम के सम्राट डरायस-2 (दुर्योदन) आमंत्रित किया और शकुनि के छद्मरूप में उसक नीतिकार बने रहे. यही भारत में आर्यों का आगमन था.

काल निर्णय
यदि विश्व इतिहास में माना गया सिकंदर के भारत पर आक्रमण का काल सही माना जाये तो महाभारत युद्ध ३२२ ईसापूर्व में हुआ. मुझे अभी इसकी पुष्टि हेतु कोई सूत्र प्राप्त नहीं हुआ है, इसलिए मैं अभी इस बारे में अपनी ओर से कुछ नहीं कह सकता.

युद्ध स्थल
प्रचारित मान्यता के अनुसार महाभारत युद्ध कुरुक्षेत्र में हुआ जो मुझे सही प्रतीत नहीं हुआ. इस बारे में मैंने कुरुक्षेत्र विश्व विद्यालय के इतिहास और इंडोलोजी विभाग के विद्वानों के मत जानने चाहे जिनके अनुसार कुरुक्षेत्र में की गयी अनेक खुदाइयों पर भी उस क्षेत्र में युद्ध के कोई प्रमाण प्राप्त नहीं हुए हैं. मेरे द्वारा सरस्वती नदी के मार्ग और अवशेषों के अन्वेषण हेतु  की गयी  पदयात्राओं  के दौरान मुझे अजमेर रेलवे स्टेशन के लगभग २ किलोमीटर उत्तर में उपस्थित जलधारा के दूसरे किनारे पर एक विशाल मैदान दिखाई दिया. वस्तुतः यह जलधारा ही सरस्वती नदी का एक अवशेष है. इस मैदान में महाबारत युद्ध क्षेत्र के अनेक लक्षण उपलब्ध हैं, विशेषकर युद्ध का अवलोकन करने का स्थान जो एक समीपस्थ पर्वत शिखर पर बना है. इस बारे में अभी अनुसंधान चल रहा है, विशेषकर महाभारत ग्रन्थ में इस स्थान के सन्दर्भ के बारे में.     

महाभारत युद्ध

वस्तुतः महाभारत युद्ध विश्व का प्रथम विश्व-युद्ध था किन्तु भारतीय इतिहासकारों द्वारा इसे सही रूप में प्रस्तुत न किये जाने के कारण विश्व इतिहास इसे विश्व यूद्ध की मान्यता प्रदान नहीं करता है. महाभारत ग्रन्थ के अनुवादों में हुई त्रुटियों के कारण इस युद्ध के स्थान और समय में गंभीर भ्रांतियां उत्पन्न हुई हैं जिसके कारण विश्व इतिहास में इस युद्ध का कोई विवरण नहीं दिया जाता है. इसके पात्रों, काल और स्थल के बारे में मैंने जो शोध किये हैं, उनके परिणाम निम्नांकित हैं -

महाभारत के प्रमुख पात्र 
महाभारत ग्रन्थ के वास्तविक नायक राम हैं जिन्हें ब्रह्मा भी कहा जाता था. किन्तु ग्रन्थ के मूल पथ में जहां-जहां राम शब्द आया है, हिंदी अनुवाद में उसे बलराम, परशुराम आदि कर दिया गया है जिससे राम को ग्रन्थ से पूरी तरह अनुपस्थित किया गया है.  किन्तु राम की हत्या महाभारत युद्ध के पूर्व ही कर दी गयी थी.

ग्रन्थ में कृष्ण खलनायक की भूमिका में है किन्तु उसकी भूमिका व्यापक सिद्ध करने के लिए अनेक शब्दों, जैसे श्याम, गोपाल, वासुदेव, माधव, हृषिकेश, जनार्दन, देवकीनंदन, आदि, को कृष्ण के अन्य नाम कह दिया गया है, जब कि इनमें से अनेक के तात्पर्य अन्य हैं.  राम और कृष्ण की समकालीनता एक अन्य प्रमाण मैं पहले ही दे चुका हूँ.

महाभारत युद्ध में सिकंदर ने भाग लिया था जिसे महाभारत ग्रन्थ में शिखंडी कहा गया है. इस के अतिरिक्त महाभारत ग्रन्थ में सेल्युकस का नाम हेल्युकस लिखा गया है जैसे कि सिन्धु को इंडस अथवा हिन्दू कहा जाता है.  कृष्ण के आमंत्रण पर सिकंदर  द्वारा भारत पर आक्रमण और पराजय के बाद सिकंदर ने समझौता कर लिया था, किन्तु कृष्ण ने उसे और उसकी सेना को दक्षिण भारत में बसा दिया गया था जिससे कि वे आगामी युद्ध की तैयारी कर सकें. १५ माह की तैयारी के पश्चात महाभारत युद्ध हुआ. इसीलिये विश्व इतिहास में सिकंदर का भारत में ठहराव १८ माह कहा गया है. 

युद्ध से पूर्व कृष्ण द्वारा देव योद्धाओं जैसे जरासंध, कंस, कीचक, आदि की हत्या छल-कपट से करा दी थी इसलिए वे स्वयं युद्ध करने में असमर्थ थे. इसलिए देव प्रमुख विष्णु ने भारत की यवनों से रक्षा के लिए सिकंदर द्वारा पराजित आर्यणाम के सम्राट डरायस-2 (दुर्योदन) आमंत्रित किया और शकुनि के छद्मरूप में उसक नीतिकार बने रहे. यही भारत में आर्यों का आगमन था.

काल निर्णय
यदि विश्व इतिहास में माना गया सिकंदर के भारत पर आक्रमण का काल सही माना जाये तो महाभारत युद्ध ३२२ ईसापूर्व में हुआ. मुझे अभी इसकी पुष्टि हेतु कोई सूत्र प्राप्त नहीं हुआ है, इसलिए मैं अभी इस बारे में अपनी ओर से कुछ नहीं कह सकता.

युद्ध स्थल
प्रचारित मान्यता के अनुसार महाभारत युद्ध कुरुक्षेत्र में हुआ जो मुझे सही प्रतीत नहीं हुआ. इस बारे में मैंने कुरुक्षेत्र विश्व विद्यालय के इतिहास और इंडोलोजी विभाग के विद्वानों के मत जानने चाहे जिनके अनुसार कुरुक्षेत्र में की गयी अनेक खुदाइयों पर भी उस क्षेत्र में युद्ध के कोई प्रमाण प्राप्त नहीं हुए हैं. मेरे द्वारा सरस्वती नदी के मार्ग और अवशेषों के अन्वेषण हेतु  की गयी  पदयात्राओं  के दौरान मुझे अजमेर रेलवे स्टेशन के लगभग २ किलोमीटर उत्तर में उपस्थित जलधारा के दूसरे किनारे पर एक विशाल मैदान दिखाई दिया. वस्तुतः यह जलधारा ही सरस्वती नदी का एक अवशेष है. इस मैदान में महाबारत युद्ध क्षेत्र के अनेक लक्षण उपलब्ध हैं, विशेषकर युद्ध का अवलोकन करने का स्थान जो एक समीपस्थ पर्वत शिखर पर बना है. इस बारे में अभी अनुसंधान चल रहा है, विशेषकर महाभारत ग्रन्थ में इस स्थान के सन्दर्भ के बारे में.