मेरे गाँव की एक हरिजन कन्या का विवाह लगभग दो वर्ष पूर्व पास के ही गाँव में हुआ था. लड़का भांग आदि का नशा करता है और अनेक बार लडकी के साथ मारपीट करता रहा है. इस कारण से लडकी अधिकाँश समय गाँव में अपने माता-पिता के पास ही रही है. उसकी इच्छा नहीं कि उसे ससुराल भेजा जाए. किन्तु दोनों गावों के कुछ प्रतिष्ठित लोगों के कहने पर लडकी को ससुराल भेज दिया गया.
अभी तीन दिन पूर्व लडकी के भाई को सूचना मिली कि लडकी के साथ पुनः दुर्व्यवहार किया गया है और वह अचेत अवस्था में मरणासन्न है. भाई कुछ परिवारजनों को लेकर लडकी के पास पहुंचा और लडकी तथा उसके पति को लेकर पुलिस थाने पहुंचा और पुलिस में अपनी शिकायत की. पुलिस ने पति को हवालात में बंद कर दिया और लडकी के परिवार को लडकी की तुरंत चिकित्सा व्यवस्था का सुझाव देकर विदा कर दिया गया.
दुखी परिवार रोगी को लेकर थाने से ६ किलोमीटर दूर स्थित ऊंचागांव राजकीय अस्पताल में पहुंचा जहाँ के चिकित्सकों ने रोगी की गंभीर अवस्था देखकर कोई प्राथमिक चिकित्सा भी नहीं दी और तुरंत ३५ किलोमीटर दूर जनपद अस्पताल बुलंदशहर ले जाने का सुझाव दे दिया. बुलंदशहर महिला अस्पताल में पहुँचाने पर वहां के चिकित्सक ने यह कहकर चिकित्सा नहीं दी कि यह पुलिस का मामला है और पुलिस सूचना के बिना कोई चिकित्सा नहीं की जा सकती. रोगी को लेकर परिवार वापस गाँव आया और इस सब में पूरा दिन तथा आधी रात लग गयी.
अगली सुबह घायल रोगी को पुनः पुलिस के पास ले जाया गया और चिकित्सकों की राय से अवगत कराया. इस पर पुलिस निरीक्षक ने बताया कि पुलिस में काल की गयी शिकायत के आधार पर कोई आपराधिक मामला नहीं बनता है और पुलिस चिकित्सा में कोई सहायता नहीं कर सकती. रोगी की चिकित्सा किसी निजी अस्पताल में करा लेनी चाहिए. इस पर शिकायत को पुनः लिखा जाना आरम्भ किया गया तो पुलिस चौकन्नी हो गयी और पुरानी शिकायत पर ही कार्यवाही का आश्वासन दे जहांगीराबाद अस्पताल के नाम रोगी की चिकित्सा के लिए पुलिस की ओर से एक पत्र दे दिया गया. इसे स्पष्ट हो गया कि पुलिस अपराध को पंजीकृत नहीं करना चाहती.
जहांगीराबाद अस्पताल के चिकित्सक ने बताया कि वहां कोई महिला चिकित्सक नहीं है इसलिए रोगी को कोई चिकित्सा नहीं दी जा सकती. तथापि आग्रह पर रोगी को एक इंजेक्शन लगा दिया गया और रोगी को बुलंदशहर महिला चिकित्सालय में ले जाने का सुझाव दे दिया गया. .
महिला चिकित्सालय में पहुँचने पर महिला चिकित्सक ने यह कहकर चिकित्सा और परीक्षण करने से इनकार कर दिया कि घायल के साथ कोई पुलिस कर्मी नहीं है जिसका होना परीक्षण के लिए अनिवार्य है. चिकित्सक से बुत अनुनय विनय की गयीं किन्तु वह अडिग रही.
इस पर एक राजनेता से संपर्क किया गया जिसने स्थानीय विधायक से संपर्क किया और विधायक ने चिकित्सक को परीक्षण और चिकित्सा का निर्देश दिया. इस पर रोगी की परिक्षा की गयी किन्तु कोई चिकित्सा नहीं की गयी और उसे जनपद के पुरुष अस्पताल ले जाने का सुझाव दे दिया गया. चिकित्सक का कहना था कि महिला चिकित्सालय में महिलाओं की चिकित्सा नहीं की जाती, केवल महिला सम्बंधित रोगों की चिकित्सा की जाती है. रोगी के गुदा पर चोट की गयी है जो महिला रोग नहीं है. इसमें दूसरा दिन भी व्यतीत हो गया. अब दुखी परिवार को निजी चिकित्सा के अतिरिक्त कोई अन्य मार्गे वांछित नहीं लगा.
गुरुवार, 1 अप्रैल 2010
बलात्कार का विरोध
सन २००८ के अंत में एक सुबह मुझे ज्ञात हुआ कि गाँव के दो या तीन युवाओं ने एक अविवाहित मुस्लिम १४ वर्षीय बालिका के साथ बलात्कार किया है और अपराधियों के परिवार वाले बालिका के पिता को पुलिस में शिकायत करने से रोक रहे हैं. सभी गाँव वाले तमाशा देख रहे हैं किन्तु कोई भी दुखी मुस्लिम परिवार की सहायता के लिए आगे नहीं आया है. मेरे गाँव में रहते हुए ऐसा हो तो मुझे लगा कि मेरी उपस्थिति महत्वहीन ही नहीं धिक्कारे जाने योग्य है.
मैं दुकी परिवार के घर गया तो देखा कि वहां भीड़ जमा है और अधिकाँश व्यक्ति घटनाक्रम का बखान करते हुए आपना मनोरंजन कर रहे हैं, कुछ को परिवार से सहानुभूति है किन्तु अपराधियों के विरुद्ध पुलिस में शिकायत करने का साहस नहीं बटोर पा रहे हैं. अपराधियों में से एक युवा का बड़ा भाई अनेक हत्याएं कर चुका है, एक हत्या के लिए उसे आजीवन कारावास का दंड भी मिला है किन्तु वह दंड के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील कर जमानत पाकर गाँव में रह रहा है और अपराधों में लिप्त है. उसके विरुद्ध दंड का न्याय होने में कई दशाब्दी लगने की संभावना है, अतः वह निश्चिन्त है. उसी के बल पर छोटा भाई भी अपराधों की ओर बढ़ रहा है. गाँव वाले दोनों भाइयों से भयभीत हैं. यही भारतीय मानसिकता है.
मैंने लडकी के पिता से आग्रह किया कि वह मेरे साथ पुलिस थाने चल कर अपनी शिकायत करे, जिसके लिए वह, उसकी पत्नी, तथा अन्य परिवारजन तैयार हो गए. पुलिस शिकायत मेरे द्वारा ही लिखी जानी थी इसलिए मैंने लडकी से सबकुछ सच-सच बताने को कहा. उसके द्वारा बताया गया घटनाक्रम इस प्रकार है.
लडकी के माता पिता एक गन्ने के खेत में पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था के लिए किसान की फसल काटने में सहायता कर रहे थे. लडकी को बाद में उसी खेत पर भैंसा बुग्गी ले कर पहुंचना था. जब यथा समय लडकी खेत पर नहीं पहुँची तो उसका भाई उसकी खोज के लिए घर गया और पाया कि घर पर न तो लडकी थी और न ही भैंसा-बुग्गी. खेत को वापिस जाते समय खोजने पर उसे भैंसा बुग्गी एक अन्य गन्ने के खेत के पास खडी मिली किन्तु लडकी वहां नहीं थी. वह भैंसा-बुग्गी लेकर माता-पिता के पास पहुंचा और इस बारे मैं उन्हें बताया.
लडकी की माँ लडकी को खोजने चली तो दूसरे गन्ने के खेत से लडकी और दो युवाओं को निकलते देखा. लडकी रो रही थी. लड़कों में से एक भारतीय सेना में सिपाही है और दूसरा आवारा बेरोजगार. उसने माँ को बताया कि ये लड़के उसे डराकर खेत में ले गए थे और दोनों ने उसके साथ बलात्कार किया था. माँ को देखकर दोनों लड़के भाग गए. वह लडकी को लेकर घर आ गयी जहाँ धीरे-धीरे भीड़ एकत्र हो गयी.
हम पुलिस थाने पहुंचे और अपनी ओर से घटना का विवरण दिया. थानाधिकारी ने जांच-पड़ताल कर आगे कार्यवाही और अगले दिन लडकी को चिकित्सीय परीक्षण हेतु जनपद मुख्यालय भेजने का आश्वासन दे दिया. हम सब वापिस चले आये.
अगले दिन प्रातः ही लडकी तथा उसके माता-पिता थाने पहुंचे किन्तु पुलिस निरीक्षक उनसे बार-बार पूछताछ करता रहा किन्तु कोई कार्यवाही नहीं की और न ही उनकी शिकायत पंजीकृत की. शाम को वे वापिस घर आ गए और मुझे पुलिस की लापरवाही के बारे में बताया. मैंने अगली सुबह उनके साथ जाने का आश्वासन दिया.
रात्रि में लगभग १० बजे जब मैं सो चुका था, गाँव के एक व्यक्ति ने मुझे जगाया और बताया, "बलात्कार में शामिल एक युवा कुख्यात अपराधी का भाई है और वह आपसे बहुत नाराज है और आपके विरुद्ध कुछ भी कर सकता है. इसलिए इस बारे में शांत बैठ जाना ही आपके हित में है." यह व्यक्ति भी अपराधियों के परिवार का है और उसे अपराधियों ने ही भेजा था.
मैंने उसे बता दिया कि मैं सुबह थाने जाऊँगा और इस अपराध को पंजीकृत करूँगा. जिस किसी जो भी करना हो वह करे, मैं मुकाबला करने के लिए तैयार हूँ. वह निराश होकर चला गया.
अगली सुबह मैं लडकी और उसके परिवार के साथ पुलिस थाने पहुंचा. पुलिस निरीक्षक ने मुझे भी टालने का प्रयास किया तो मैंने उसे बताया कि यदि उसने तुरंत पंजीकरण नहीं किया तो मैं लडकी और उसके परिवार सहित पुलिस अधीक्षक के पास चला जाऊंगा. इस पर वह सहम गया और उसने तुरंत केस पंजीकृत करने का आश्वासन दिया. इस पर भी वह मामले को दो घंटे तक टलाता रहा. ज्ञात हुआ कि अपराधियों ने उससे सांठ-गाँठ कर ली थी और वे थाने पहुँचाने वाले थे. उन्ही की प्रतीक्षा के लिए वह हमें टलाता रहा. किन्तु वहां अपराधी पक्ष से कोई नहीं आया, और केस पंजीकृत हो गया और लडकी को चिकित्सीय परीक्षण हेतु भेज दिया गया.
चिकित्सीय परीक्षण में लडकी का यौन शोषण सिद्ध हो गया. इसके बाद अपराधी पक्ष की ओर से समझौते के निवेदन आने लगे. मैं इसके लिए तैयार नहीं था किन्तु लडकी ले परिवार की निर्धनता और केस को लम्बे समय तक न लड़ पाने की स्थिति से परिचित था, इसलिए यह मामला लडकी के परिवार पर ही छोड़ दिया. सामाजिक दवाब में आकर वे समझौते के लिए तैयार हो गए और कुछ आर्थिक सहायता के बदले केस वापिस ले लिया गया.
इस घटनाक्रम से गाँव वालों को मुझ पर विश्वास हो गया कि मैं प्रत्येल संकट में निर्भयतापूर्वक उनकी सहायता कर पाने में सक्षम हूँ. .
मैं दुकी परिवार के घर गया तो देखा कि वहां भीड़ जमा है और अधिकाँश व्यक्ति घटनाक्रम का बखान करते हुए आपना मनोरंजन कर रहे हैं, कुछ को परिवार से सहानुभूति है किन्तु अपराधियों के विरुद्ध पुलिस में शिकायत करने का साहस नहीं बटोर पा रहे हैं. अपराधियों में से एक युवा का बड़ा भाई अनेक हत्याएं कर चुका है, एक हत्या के लिए उसे आजीवन कारावास का दंड भी मिला है किन्तु वह दंड के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील कर जमानत पाकर गाँव में रह रहा है और अपराधों में लिप्त है. उसके विरुद्ध दंड का न्याय होने में कई दशाब्दी लगने की संभावना है, अतः वह निश्चिन्त है. उसी के बल पर छोटा भाई भी अपराधों की ओर बढ़ रहा है. गाँव वाले दोनों भाइयों से भयभीत हैं. यही भारतीय मानसिकता है.
मैंने लडकी के पिता से आग्रह किया कि वह मेरे साथ पुलिस थाने चल कर अपनी शिकायत करे, जिसके लिए वह, उसकी पत्नी, तथा अन्य परिवारजन तैयार हो गए. पुलिस शिकायत मेरे द्वारा ही लिखी जानी थी इसलिए मैंने लडकी से सबकुछ सच-सच बताने को कहा. उसके द्वारा बताया गया घटनाक्रम इस प्रकार है.
लडकी के माता पिता एक गन्ने के खेत में पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था के लिए किसान की फसल काटने में सहायता कर रहे थे. लडकी को बाद में उसी खेत पर भैंसा बुग्गी ले कर पहुंचना था. जब यथा समय लडकी खेत पर नहीं पहुँची तो उसका भाई उसकी खोज के लिए घर गया और पाया कि घर पर न तो लडकी थी और न ही भैंसा-बुग्गी. खेत को वापिस जाते समय खोजने पर उसे भैंसा बुग्गी एक अन्य गन्ने के खेत के पास खडी मिली किन्तु लडकी वहां नहीं थी. वह भैंसा-बुग्गी लेकर माता-पिता के पास पहुंचा और इस बारे मैं उन्हें बताया.
लडकी की माँ लडकी को खोजने चली तो दूसरे गन्ने के खेत से लडकी और दो युवाओं को निकलते देखा. लडकी रो रही थी. लड़कों में से एक भारतीय सेना में सिपाही है और दूसरा आवारा बेरोजगार. उसने माँ को बताया कि ये लड़के उसे डराकर खेत में ले गए थे और दोनों ने उसके साथ बलात्कार किया था. माँ को देखकर दोनों लड़के भाग गए. वह लडकी को लेकर घर आ गयी जहाँ धीरे-धीरे भीड़ एकत्र हो गयी.
हम पुलिस थाने पहुंचे और अपनी ओर से घटना का विवरण दिया. थानाधिकारी ने जांच-पड़ताल कर आगे कार्यवाही और अगले दिन लडकी को चिकित्सीय परीक्षण हेतु जनपद मुख्यालय भेजने का आश्वासन दे दिया. हम सब वापिस चले आये.
अगले दिन प्रातः ही लडकी तथा उसके माता-पिता थाने पहुंचे किन्तु पुलिस निरीक्षक उनसे बार-बार पूछताछ करता रहा किन्तु कोई कार्यवाही नहीं की और न ही उनकी शिकायत पंजीकृत की. शाम को वे वापिस घर आ गए और मुझे पुलिस की लापरवाही के बारे में बताया. मैंने अगली सुबह उनके साथ जाने का आश्वासन दिया.
रात्रि में लगभग १० बजे जब मैं सो चुका था, गाँव के एक व्यक्ति ने मुझे जगाया और बताया, "बलात्कार में शामिल एक युवा कुख्यात अपराधी का भाई है और वह आपसे बहुत नाराज है और आपके विरुद्ध कुछ भी कर सकता है. इसलिए इस बारे में शांत बैठ जाना ही आपके हित में है." यह व्यक्ति भी अपराधियों के परिवार का है और उसे अपराधियों ने ही भेजा था.
मैंने उसे बता दिया कि मैं सुबह थाने जाऊँगा और इस अपराध को पंजीकृत करूँगा. जिस किसी जो भी करना हो वह करे, मैं मुकाबला करने के लिए तैयार हूँ. वह निराश होकर चला गया.
अगली सुबह मैं लडकी और उसके परिवार के साथ पुलिस थाने पहुंचा. पुलिस निरीक्षक ने मुझे भी टालने का प्रयास किया तो मैंने उसे बताया कि यदि उसने तुरंत पंजीकरण नहीं किया तो मैं लडकी और उसके परिवार सहित पुलिस अधीक्षक के पास चला जाऊंगा. इस पर वह सहम गया और उसने तुरंत केस पंजीकृत करने का आश्वासन दिया. इस पर भी वह मामले को दो घंटे तक टलाता रहा. ज्ञात हुआ कि अपराधियों ने उससे सांठ-गाँठ कर ली थी और वे थाने पहुँचाने वाले थे. उन्ही की प्रतीक्षा के लिए वह हमें टलाता रहा. किन्तु वहां अपराधी पक्ष से कोई नहीं आया, और केस पंजीकृत हो गया और लडकी को चिकित्सीय परीक्षण हेतु भेज दिया गया.
चिकित्सीय परीक्षण में लडकी का यौन शोषण सिद्ध हो गया. इसके बाद अपराधी पक्ष की ओर से समझौते के निवेदन आने लगे. मैं इसके लिए तैयार नहीं था किन्तु लडकी ले परिवार की निर्धनता और केस को लम्बे समय तक न लड़ पाने की स्थिति से परिचित था, इसलिए यह मामला लडकी के परिवार पर ही छोड़ दिया. सामाजिक दवाब में आकर वे समझौते के लिए तैयार हो गए और कुछ आर्थिक सहायता के बदले केस वापिस ले लिया गया.
इस घटनाक्रम से गाँव वालों को मुझ पर विश्वास हो गया कि मैं प्रत्येल संकट में निर्भयतापूर्वक उनकी सहायता कर पाने में सक्षम हूँ. .
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अपराध-वृत्ति,
बलात्कार,
साहसिक कार्य
शुक्रवार, 26 मार्च 2010
शोषण और प्रतिस्पर्द्धा का विलोप
प्रत्येक व्यक्ति प्राकृत रूप में भी अपनी आवश्यकता से बहुत अधिक उत्पादित करने की क्षमता रखता है सभ्यता और वैज्ञानिक विकास कार्यों ने इस उत्पादन क्षमता को और भी अधिक संवर्धित किया है. इसलिए मानब जाति सही दिशा में चलने पर कभी अभावग्रस्त नहीं हो सकती. तथापि, आज विश्व की आधी से अधिक जनसँख्या अभावग्रस्त है और अभावों से सतत जूझ रही है. इसका कारण कुछ दुष्ट लोगों द्वारा राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक सत्ताओं पर अधिकार कर अन्य लोगों का सतत शोसन करते रहना. अतः शोषण ही आधुनिक विश्व की गंभीरतम विडम्बना है. महामानव सदैव शोषण-विहीन समाज की संरचना के प्रयासों में लगे रहते हैं ताकि कोई भी अभावग्रस्त न रहे और अन्य सभी मनुष्य मानवीय जीवन जी सकें.
विश्व में शोषण व्यवस्था का उद्गम धर्मों के रूप में हुआ जब चतुर लोगों ने जनसाधारण को ईश्वर के नाम से आतंकित करके उनपर अपने मनोवैज्ञानिक शासन स्थापित किये. विश्व के सभी अभावग्रस्त लोग धर्मान्धता के कारण ही आज भी पिछड़े हैं और चतुर लोगों के चंगुल में शोषण के शिकार हो रहे हैं.
आधुनिक विश्व में जो लोग अपनी चिन्तनशीलता के कारण धर्मान्धता के शिकार होने से बच गए, दुष्टों ने उनपर दूसरा मनोवैज्ञानिक प्रहार किया और उनमें यह धारणा पनपायी कि प्रतिस्पर्द्धा ही विकास की जननी होती है. इसे अंतर-मानव और अंतर-वर्ग संघर्ष पल्लवित और पुष्पित हुए जिनका लाभ दुष्ट लोग उठाते रहे हैं.
प्रतिस्पर्द्धा सदैव आवश्यकता और उपलब्धि के असंतुलन से पनपती है और यह असंतुलन नियोजन में त्रुटियों के कारण उत्पन्न होता है. उदाहरण के लिए भारत में इंजीनियर समुदाय अपनी रचनात्मकता के कारण प्रतिष्ठा के शीर्ष पर रहा है. किन्तु अभी शासन की रीति-नीति और नियोजन दोषों के कारण इस समुदाय का एक बड़ा भाग बेरोजगारी का शिकार बना दिया गया है. देश को अभी केवल ५०,००० इंजीनियरों के प्रति वर्ष उत्पादन की आवश्यकता है जबकि मूर्ख एवं दुष्ट शासकों ने ३,००,००० प्रति वर्ष इंजीनियरों के उत्पादन की व्यवस्था कर दी. इससे देश के बहुमूल्य संसाधनों की भी बर्बादी की जा रही है.
समुचित नियोजन से देश के संसाधनों का ही सदुपयोग नहीं होता, प्रत्येक नागरिक प्रतिस्पर्द्धा एवं शोषण विहीन होकर सुखपूर्वक जीवनयापन कर सकता है. किन्तु यह शासकों के हित में नहीं होता इसलिए वे कदापि ऐसा नहीं होने देते. धर्मों के माध्यम से शासन ने ही राजनैतिक शासन की नींव डाली है. इसलिए ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं जैसा कि शोषण और प्रतिस्पर्द्धा का परस्पर सम्बन्ध है. ये सभी असंतुलन से ही जन्म लेते हैं और उसी से पनपते हैं.
असंतुलन उत्पन्न होने के दो कारण संभव हैं - दुष्टता और बुद्धिहीनता. नियोजन का अभाव अथवा दोष इन्ही दोनों कारणों से जन्म लेते हैं, और यही दो कारण मानवता के अभिशाप हैं. प्रतीत ऐसा होता है कि ये दो कारण एक दूसरे से निरपेक्ष हैं किन्तु वास्तविकता यह है कि इन दोनों का घनिष्ठ है. प्रत्येक बुद्धि-संपन्न व्यक्ति चिंतनशील होता है और वह कदापि दुष्ट नहीं हो सकता. इसलिए दुष्टता केवल बुद्धिहीनता का परिचायक होती है और इसे इन दोनों में से किसी भी नाम से पुकारा जा सकता है. महामानव इन दोनों का विरोध करता है.
विश्व में शोषण व्यवस्था का उद्गम धर्मों के रूप में हुआ जब चतुर लोगों ने जनसाधारण को ईश्वर के नाम से आतंकित करके उनपर अपने मनोवैज्ञानिक शासन स्थापित किये. विश्व के सभी अभावग्रस्त लोग धर्मान्धता के कारण ही आज भी पिछड़े हैं और चतुर लोगों के चंगुल में शोषण के शिकार हो रहे हैं.
आधुनिक विश्व में जो लोग अपनी चिन्तनशीलता के कारण धर्मान्धता के शिकार होने से बच गए, दुष्टों ने उनपर दूसरा मनोवैज्ञानिक प्रहार किया और उनमें यह धारणा पनपायी कि प्रतिस्पर्द्धा ही विकास की जननी होती है. इसे अंतर-मानव और अंतर-वर्ग संघर्ष पल्लवित और पुष्पित हुए जिनका लाभ दुष्ट लोग उठाते रहे हैं.
प्रतिस्पर्द्धा सदैव आवश्यकता और उपलब्धि के असंतुलन से पनपती है और यह असंतुलन नियोजन में त्रुटियों के कारण उत्पन्न होता है. उदाहरण के लिए भारत में इंजीनियर समुदाय अपनी रचनात्मकता के कारण प्रतिष्ठा के शीर्ष पर रहा है. किन्तु अभी शासन की रीति-नीति और नियोजन दोषों के कारण इस समुदाय का एक बड़ा भाग बेरोजगारी का शिकार बना दिया गया है. देश को अभी केवल ५०,००० इंजीनियरों के प्रति वर्ष उत्पादन की आवश्यकता है जबकि मूर्ख एवं दुष्ट शासकों ने ३,००,००० प्रति वर्ष इंजीनियरों के उत्पादन की व्यवस्था कर दी. इससे देश के बहुमूल्य संसाधनों की भी बर्बादी की जा रही है.
समुचित नियोजन से देश के संसाधनों का ही सदुपयोग नहीं होता, प्रत्येक नागरिक प्रतिस्पर्द्धा एवं शोषण विहीन होकर सुखपूर्वक जीवनयापन कर सकता है. किन्तु यह शासकों के हित में नहीं होता इसलिए वे कदापि ऐसा नहीं होने देते. धर्मों के माध्यम से शासन ने ही राजनैतिक शासन की नींव डाली है. इसलिए ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं जैसा कि शोषण और प्रतिस्पर्द्धा का परस्पर सम्बन्ध है. ये सभी असंतुलन से ही जन्म लेते हैं और उसी से पनपते हैं.
असंतुलन उत्पन्न होने के दो कारण संभव हैं - दुष्टता और बुद्धिहीनता. नियोजन का अभाव अथवा दोष इन्ही दोनों कारणों से जन्म लेते हैं, और यही दो कारण मानवता के अभिशाप हैं. प्रतीत ऐसा होता है कि ये दो कारण एक दूसरे से निरपेक्ष हैं किन्तु वास्तविकता यह है कि इन दोनों का घनिष्ठ है. प्रत्येक बुद्धि-संपन्न व्यक्ति चिंतनशील होता है और वह कदापि दुष्ट नहीं हो सकता. इसलिए दुष्टता केवल बुद्धिहीनता का परिचायक होती है और इसे इन दोनों में से किसी भी नाम से पुकारा जा सकता है. महामानव इन दोनों का विरोध करता है.
फतेहपुर सीकरी की सत्यता
आगरा के निकट एक प्रसिद्द एतिहासिक स्थल फतेहपुर सीकरी है जिसे अकबर द्वारा निर्मित बताया जा रहा है जबकि अनेक ऐतिहासिक साक्ष्य सिद्ध कराते हैं कि अकबर से इसके निर्माण का कोई सम्बन्ध नहीं है. यह महाभारत से पूर्व देवों द्वारा बसाया गया एक लाल पत्थरों से बना नगर था जिसमें देव परिवार रहते थे. इसका निर्माण काल अब से लगभग २,५०० वर्ष पूर्व इस आधार पर सिद्ध होता है कि सिकंदर का भारत पर आक्रमण ईसापूर्व ३२३ में हुआ जिसके १५ माह बाद महाभारत युद्ध हुआ. इस युद्ध में सिकंदर उपस्थित था जिसे 'महाभारत' ग्रन्थ में शिखंडी कहा गया है तथा जो समलैंगिक मैथुन के लिए प्रसिद्द था. इसकी समलैंगिकता का चित्रण अभी कुछ वर्ष पहले हॉलीवुड से निर्मित फिल्म Alexander में भी किया गया है.
फतेहपुर सीकरी लगभग ४ वर्ग किलोमीटर क्षत्र में फैला एक नगर था जो ध्वस्त किया जाकर केवल कुछ भवनों तक सीमित कर दिया गया है. मुस्लिम शासकों द्वारा कब्रिस्तान में परिवर्तित किये जाने के बाद भी वर्तमान भवन भी वास्तुकला और सौन्दर्य के अद्भुत उदाहरण हैं. इसके मुख्य भवन के प्रांगण में सलीम चिश्ती का स्मारक बना है जो स्पष्ट रूप से बाद का निर्माण है और संभवतः यही अकबर द्वारा बनवाया गया था. अकबर के शासन काल में भी यह नगर इतना भव्य था कि उसने इसे अपनी राजधानी बनने का प्रयास किया. किन्तु उसके इंजीनिअर इस नगर के प्राचीन जल-प्रदाय संस्थान को सक्रिय न कर सके और वह इसे त्याग कर दिल्ली चला आया. यह विशाल जल संस्थान अब भी सुरक्षित है किन्तु इसे समझने और सक्रिय करने के कोई प्रयास वर्तमान सरकारी वेतनभोगी तथाकथित विशेषज्ञों ने नहीं किये हैं. यदि यह नगर तथा जल संस्थान अकबर द्वारा बनवाया गया होता तो उसे जलाभाव में यह नगर छोड़ने की विवशता नहीं होती. नगर के पश्चिमी किनारे पर एक जलधारा का सतत प्रवाह रहता है जिसके समीप ही जल-संस्थान स्थित है.
नगर के मुख्य भवन का द्वार बुलंद दरवाजा कहलाता है जिसके विशाल मुख पर ईसा मसीह का एक वाक्य उत्कीर्ण है जो अकबर कदापि नहीं कराता क्योंकि विश्व का सबसे लम्बा युद्ध ईसाई और इस्लाम धर्मावलम्बियों के मध्य हुआ है जो ६३० से आरम्भ होकर १९वीं शताब्दी तक चला है.
अकबर इस नगर में एक युद्ध में विजय प्राप्ति के बाद आया था, उस समय ऐसे भव्य नगर का निर्माण करना एक असंभव कल्पना है. नगर के एक भवन को आज भी 'सीताजी की रसोई' कहा जाता है जो इस नगर का देवों के साथ सम्बन्ध स्थापित करता है. जल संस्थान के दक्षिण में ऊंची चारदीवारी से घिरा एक प्रांगण है जिसके मद्य एक जलताल है. इस प्रांगण में देवी दुर्गा के पालतू शेर रखे जाते थे जिनपर सवारी कर वह दुष्टों का संहार करने जाया करती थीं. दुष्टों में उनका इतना आतंक था कि वे रात्रि भर जागृत रहते और देवी को प्रसन्न रखने के लिए उनके गुणगान कराते रहते. इसी प्रचलन को आज देवी-जागरण कहा जता है जो पुनजब क्षेत्र से फैलता हुआ उत्तरी भारत के अनेक क्षेत्रों में प्रचलित है. यही देवी दुर्गा मूलतः ईसा मसीह की बड़ी बाहें मरियम थीं जो विष्णु से विवाह होने के कारण 'विष्णुप्रिया' भी कहलाती थीं. विष्णु का एक नाम लक्ष्मण होने के कारण इन्ही देवी को 'लक्ष्मी' के रूप में भी जाना जाता है. वैश्य समाज की ये आराध्य देवी हैं क्योंकि वैश्य (गुप्त) वंश का आरम्भ इन्ही के पुत्र चन्द्र गुप्त मोर्य से हुआ. काली के रूप में भी ये शतरूप\ओं का संहार किया करती थीं.
फतेहपुर सीकरी के मुख्य भवन के उत्तर में एक विद्यालय भवन है जहाँ देवों के बच्चे शिक्षा पाते थे. यह नगर उस समय बनाया गया जब यवन समुदाय ने देवों को सताना आरम्भ कर दिया था और देव पुरुष संघर्षों में व्यस्त रहते थे. इसलिए परिवारों को सुरक्षित रखने के लिए इस नगर को बसाया गया जिसकी चारदीवारी में केवल एक द्वार था जो पूर्व की ओर आज भी स्थित है. नगर के मुख्य भवनों में देव परिवार रहते थे तथा स्त्रियाँ ग्रंथों के लेखन का कार्य करती थीं. महाभारत की रचना प्रमुखतः इसी नगर में की गयी जिसमें देव स्त्रियों का प्रमुख योगदान है.
फतेहपुर सीकरी लगभग ४ वर्ग किलोमीटर क्षत्र में फैला एक नगर था जो ध्वस्त किया जाकर केवल कुछ भवनों तक सीमित कर दिया गया है. मुस्लिम शासकों द्वारा कब्रिस्तान में परिवर्तित किये जाने के बाद भी वर्तमान भवन भी वास्तुकला और सौन्दर्य के अद्भुत उदाहरण हैं. इसके मुख्य भवन के प्रांगण में सलीम चिश्ती का स्मारक बना है जो स्पष्ट रूप से बाद का निर्माण है और संभवतः यही अकबर द्वारा बनवाया गया था. अकबर के शासन काल में भी यह नगर इतना भव्य था कि उसने इसे अपनी राजधानी बनने का प्रयास किया. किन्तु उसके इंजीनिअर इस नगर के प्राचीन जल-प्रदाय संस्थान को सक्रिय न कर सके और वह इसे त्याग कर दिल्ली चला आया. यह विशाल जल संस्थान अब भी सुरक्षित है किन्तु इसे समझने और सक्रिय करने के कोई प्रयास वर्तमान सरकारी वेतनभोगी तथाकथित विशेषज्ञों ने नहीं किये हैं. यदि यह नगर तथा जल संस्थान अकबर द्वारा बनवाया गया होता तो उसे जलाभाव में यह नगर छोड़ने की विवशता नहीं होती. नगर के पश्चिमी किनारे पर एक जलधारा का सतत प्रवाह रहता है जिसके समीप ही जल-संस्थान स्थित है.
नगर के मुख्य भवन का द्वार बुलंद दरवाजा कहलाता है जिसके विशाल मुख पर ईसा मसीह का एक वाक्य उत्कीर्ण है जो अकबर कदापि नहीं कराता क्योंकि विश्व का सबसे लम्बा युद्ध ईसाई और इस्लाम धर्मावलम्बियों के मध्य हुआ है जो ६३० से आरम्भ होकर १९वीं शताब्दी तक चला है.
अकबर इस नगर में एक युद्ध में विजय प्राप्ति के बाद आया था, उस समय ऐसे भव्य नगर का निर्माण करना एक असंभव कल्पना है. नगर के एक भवन को आज भी 'सीताजी की रसोई' कहा जाता है जो इस नगर का देवों के साथ सम्बन्ध स्थापित करता है. जल संस्थान के दक्षिण में ऊंची चारदीवारी से घिरा एक प्रांगण है जिसके मद्य एक जलताल है. इस प्रांगण में देवी दुर्गा के पालतू शेर रखे जाते थे जिनपर सवारी कर वह दुष्टों का संहार करने जाया करती थीं. दुष्टों में उनका इतना आतंक था कि वे रात्रि भर जागृत रहते और देवी को प्रसन्न रखने के लिए उनके गुणगान कराते रहते. इसी प्रचलन को आज देवी-जागरण कहा जता है जो पुनजब क्षेत्र से फैलता हुआ उत्तरी भारत के अनेक क्षेत्रों में प्रचलित है. यही देवी दुर्गा मूलतः ईसा मसीह की बड़ी बाहें मरियम थीं जो विष्णु से विवाह होने के कारण 'विष्णुप्रिया' भी कहलाती थीं. विष्णु का एक नाम लक्ष्मण होने के कारण इन्ही देवी को 'लक्ष्मी' के रूप में भी जाना जाता है. वैश्य समाज की ये आराध्य देवी हैं क्योंकि वैश्य (गुप्त) वंश का आरम्भ इन्ही के पुत्र चन्द्र गुप्त मोर्य से हुआ. काली के रूप में भी ये शतरूप\ओं का संहार किया करती थीं.
फतेहपुर सीकरी के मुख्य भवन के उत्तर में एक विद्यालय भवन है जहाँ देवों के बच्चे शिक्षा पाते थे. यह नगर उस समय बनाया गया जब यवन समुदाय ने देवों को सताना आरम्भ कर दिया था और देव पुरुष संघर्षों में व्यस्त रहते थे. इसलिए परिवारों को सुरक्षित रखने के लिए इस नगर को बसाया गया जिसकी चारदीवारी में केवल एक द्वार था जो पूर्व की ओर आज भी स्थित है. नगर के मुख्य भवनों में देव परिवार रहते थे तथा स्त्रियाँ ग्रंथों के लेखन का कार्य करती थीं. महाभारत की रचना प्रमुखतः इसी नगर में की गयी जिसमें देव स्त्रियों का प्रमुख योगदान है.
मूषक
शास्त्रों के भ्रमात्मक एवं प्रचलित अर्थों के अनुसार मूषक का अर्थ चूहा कहा जाता है जिसे एक सुप्रसिद्ध देव गणेशजी का वाहन कहा जाता है जो एक मूर्खतापूर्ण भाव है. शास्त्रों में यह शब्द ग्रीक भाषा के शब्द moschos का देवनागरी स्वरुप है जिसका हिंदी अर्थ कस्तूरी जैसी सुगंधि वाला किन्तु इससे भिन्न एक द्रव्य है. अतः गणेशजी के सन्दर्भ में मूषक शब्द का उपयोग गणेश जी द्वारा इस द्रव्य के बारे में अध्ययन को इंगित करता है. यह द्रव्य अनेक फलों जैसे भिन्डी, खरबूजा, आदि में भी पाया जाता है.
गुरुवार, 25 मार्च 2010
पार्थ
पार्थ शब्द का उपयोग महाभारत में प्रचुर हुआ है जो ग्रीक भाषा के शब्द 'पर्ठेनोस' का देवनागरी स्वरुप है जिसका अर्थ 'मैथुन-विहीन' है अर्थात वह उत्पत्ति जिसमें मैथुन क्रिया का उपयोग न किया गया हो. आधुनिक संस्कृत में इस शब्द को अर्जुन का एक नाम कहा गया है जो एक भ्रांत धारणा है.
इसी शब्द का दूसरा उपयोग तत्कालीन 'पार्थिया' राज्य के लिए भी किया गया है जो जो वर्तमान पूर्वी इरान भूभाग पर स्थित था.
इसी शब्द का दूसरा उपयोग तत्कालीन 'पार्थिया' राज्य के लिए भी किया गया है जो जो वर्तमान पूर्वी इरान भूभाग पर स्थित था.
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