बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

मेरी आमरण भूख हड़ताल - स्पष्टीकरण

अपने क्षेत्र में विद्युत् की दुरावस्था से तृस्त होकर मैंने आमरण भूख हड़ताल की सूचना विद्युत् और प्रशासनिक अधिकारियों को दी थी. उसी सन्दर्भ में उन्ही अधिकारियों को जो दूसरा पत्र मैंने लिखा है, उसका हिंदी अनुवाद यहाँ प्रस्तुत है. यह भी उन अधिकारियों को प्रेषित कर दिया जाएगा.

सेवा में,
अध्यक्ष महोदय
उत्तर प्रदेश शक्ति निगम लिमिटेड
लखनऊ

श्रीमान जी,
दिनांक ११ फरवरी २०११ को एक्सीकुटिव इंजिनियर, ई.डी.डी.३, बुलंदशहर मेरे पास आये थे और मुझसे ट्रांस्फोर्मेर न्यूट्रल को तुरंत अर्थ करने का वायदा किया. किन्तु वे मुझे इसका कोई संतोषजनक उत्तर न दे सके कि यह कार्य अब तक के लगभग एक वर्ष में क्यों नहीं किया जा सका जिसका मुझे भारी मूल्य चुकाना पडा है. जैसा कि आपके अधीनस्थ सदैव से करते आये हैं, वे भी अपने उन दोषी सहकर्मियों एक्सीकुटिव इंजिनियर, उप खंड अधिकारी और जूनियर इंजिनियर के संरक्षण से चिंतित थे जिनके कारण मुझे आमरण भूख हड़ताल जैसा कठोर दुखद कदम उठाना पडा है.
इस सन्देश द्वारा मैं आपके क्षेत्रीय अधिकारियों की कार्य पद्यति से निराशा और अपनी आमरण भूख हड़ताल पर अडिग रहने के बारे में अपने स्पष्टीकरण देना चाहता हूँ.


१. ट्रांस्फोर्मेर न्यूट्रल अर्थिंग
आज जब मेरी आमरण भूख हड़ताल का समाचार फ़ैल चुका था, एक्सीकुटिव इंजिनियर प्रमोद कुमार ई.डी.डी. ३, पी वी वी एन एल बुलंदशहर मुझसे मिले और ट्रांस्फोर्मेर न्यूट्रल को अर्थ करने का वचन दिया जिसकी मैं एक वर्ष से अधिक समय से जब से यह ट्रांस्फोर्मेर स्थापित हुआ था, मांग करता रहा हूँ. मैंने उन्हें ट्रांस्फोर्मेर न्यूट्रल अर्थ की स्थिति दिखाई जिसके दो चित्र आपके सन्दर्भ हेतु एवं यह समझने के लिए कि आपके क्षेत्र अधिकारी किस तरह का कार्य कर रहे हैं, संलग्न कर रहा हूँ.

ट्रांस्फोर्मेर न्यूट्रल अर्थ करना एक सामान्य प्रक्रिया है और ट्रांस्फोर्मेर स्थापित करने वाले किसी भी कर्मी द्वारा सरलता से किया जा सकता है. किन्तु यह इस ट्रांस्फोर्मेर पर नहीं किया गया जिसके लिए मैं लगातार जोर देता रहा हूँ और इसकी अनुपस्थिति से हानि उठता रहा हूँ. इसके लिए मैं जूनियर इंजिनियर के.एल.गुप्ता, एस.डी.ओ. अमिट कुमार और एक्सीकुटिव इंजिनियर विश्वम्भर सिंह सी बार निवेदन करता रहा हूँ. किन्तु इस बारे में कभी जुछ नहीं किया गया. जैसा कि मैंने अपने पिछले पत्र में कहा था कि इस बारे में मैं अपनी वेदना व्यक्त करने के लिए सम्बंधित एस.ई. के पास ३ बार गया किन्तु प्रत्येक उन्होंने मुझसे मिलने से ही इनकार कर दिया.


अंततः, ४ दिसम्बर २०१० को मैंने आपके उच्च कार्यालय को ईमेल द्वारा अवगत कराया जिसके बाद एस.डी.ओ. अमिट कुमार और ई.ई. (टेस्ट) राकेश कुमार मेरे पास आये जब मैंने उन्हें अपनी समस्या बतायी. उन्होंने ट्रांस्फोर्मेर न्यूट्रल को २/३ दिन में अर्थ करने का वचन दिया किन्तु दीर्घ काल तक कुछ नहीं किया. इस बारे में मैंने आपको अपने ईमेल सन्देश द्वारा २२ जनवरी  २०११ को अवगत कराया जिस पर आपने कोई ध्यान नहीं दिया. .

मेरा मत यह है कि मुझे आपके अधिकारियों द्वारा दूषित भावनाओं के साथ सताया गया. इसके परिणामस्वरूप मेरा कंप्यूटर सिस्टम पिछले एक वर्ष में ५/६ बार ल्शातिग्रस्त हुआ और मुझे इसका भारी मूल्य चुकाना पडा. इससे मेरे लेखन कार्यों में पडा विघ्न मेरे लिए चिंता का विषय है. 

२. ऊंचागांव विद्युत् केंद्र उपकरण नवीनीकरण
ऊंचागाओं विद्युत् केंद्र ५० वर्ष से अधिक पुराना है और इसके अधिकाँश उपकरण इतने ही पुराने हैं और अपने सेवा योग्य जीवन काल को बहुत पहले समाप्त कर चुके हैं. यह इस क्षेत्र के विद्युत् उपभोक्ताओं के समक्ष समुचित विद्युत् पाने में यह एक बड़ी समस्या है. एक वर्ष से अधिक समय से विद्युत् के क्षेत्रीय अधिकारी विभिन्न अवसरों पर मुझे बताते रहे हैं कि उपकरणों के  नवीनीकरण के कार्य के लिए मांग उच्च स्तर को भेजी जा चुकी है और शीघ्र ही नवीनीकरण कर दिया जाएगा. किन्तु मुझे घोर निराशा हुई जब ई.ई. प्रमोद कुमार ने मुझे बताया कि उक्त नवीनीकरण संबंधी कोई दस्तावेज कार्यालय में उपलब्ध नहीं हैं, इसलिए नए सिरे मांग भेजने की आवश्यकता हो सकती है. इसका अर्थ यह है कि आपके क्षेत्रीय अधिकारी इस विषय पर उपभोक्ताओं को छलते रहे हैं अथवा वे अपने कार्यालयी कार्य में भी सक्षम नहीं हैं. कारण जो भी हो, यह मुझ जैसे उपभोक्ताओं के लिए निराशा का विषय है.


३. ऊंचागांव विद्युत् केंद्र - निपुण कर्मचारी
मेरे क्षेत्र के विद्युत् उपभोक्ता दीर्घ काल से ऊंचागांव विद्युत् केंद्र पर निपुण कर्मियों की कमी से परेशान होते रहे हैं. ई.ई. प्रमोद कुमार ने मुझे बताया कि विद्युत् केंद्र पर उपभोक्ताओं के लिए विद्युत् उपकरणों की देख-रेख के लिए एक भी निपुण कर्मी उपलब्ध नहीं है. और जो भी अस्थायी अनिपुण व्यक्ति उपलब्ध हैं, उनके पास समुचित उपकरण उपलब्ध नहीं हैं. इससे मुझे और भी अधिक निराशा हुई है. 


४. उपभोक्ताओं हेतु विद्युत् लाइन
मेरे ग्राम के विद्युतीकरण के ४५ वर्षों तक लगभग २० विद्युत् कनेक्शन थे और विद्युत् लाइन की दशा दयनीय थी. मेरे यहाँ आने के बाद कुछ सुधार कार्य किये गए और मैंने लोगों से अधिकृत रूप में विद्युत् उपयोग करने के आग्रह किये. परिणामस्वरूप, गाँव में अधिकृत विद्युत् उपभोक्ताओं की संख्या लगभग १०० तक पहुँच गयी. किन्तु अनेक नए उपभोक्ताओं के घरों के पास में विद्युत् लाइन नहीं हैं जब कि वे विद्युत् बिल्लों के भुगतान कर रहे हैं. इस प्रकार आपके अधिकारियों द्वारा इन मूक लोगों का शिकार बनाये जाने पर मेरी सहानुभूति इनके साथ है.

आपके अधिकारियों की इस प्रकार की कार्य दक्षता पर भी मुझे बताया गया है कि जे.ई. के एल गुप्ता को पदोन्नति द्वारा पुरस्कृत किया गया है, ई.ई विश्वम्भर सिंह को अपनी वैभवशाली जीवन चर्या हेतु स्थानांतरित कर दिया गया है और एस.डी.ओ. अमिट कुमार अपने श्रेष्ठ कार्यों के लिए प्रशंसा पाते हुए अपने कार्यकाल का आनंद ले रहे हैं.  

इस प्रकार, मैं स्वयं को अँधेरी सुरंग के अंतिम सिरे पर पाता हूँ जहां मेरी समस्याओं का कोई समाधान नहीं है. एक अनुशासित नागरिक और एक विनम्र उपभोक्ता होने के नाते मैं आपके अधीनस्थ उच्च अधिकारियों के साथ अभद्र नहीं हो सकता. ऐसी अवस्था में अधिकाँश उपभोक्ता आपके अधिकारियों को रिश्वत देकर अपने समस्याओं के समाधान पा लेते हैं किन्तु मैं अपनी जागृत अंतरात्मा के कारण ऐसा भी नहीं कर सकता. इससे मेरे पास आपके क्षेत्र अधिकारियों की आन्तारात्माओं को जागृत करने और उत्तर प्रदेश राज्य में विद्युत् उपभोक्ताओं की दयनीय स्थिति विश्व को दर्शाने के लिए अपने जीवन की आहुति देने के अतिरिक्त कोई अन्य मार्ग शेष नहीं रह गया है.  

इसलिए, मैं चार मांगों के साथ अपने गाँव में विद्युत्  वितरण ट्रांस्फोर्मेर के निकट २० फरवरी २०११ से आरम्भ अपनी प्रस्तावित आमरण भूख हड़ताल पर अविचल हूँ -

  • तीन सम्बंधित अधिकारियों - ई.ई. विश्वम्भर सिंह, एस.डी.ओ. अमिट कुमार, और जे.ई. के.एल.गुप्ता के विरुद्ध मुझे सताने हेतु अपने उत्तरदायित्वों के प्रति उदासीन रहने के लिए कठोर कार्यवाही हो. के.एल.गुप्ता की पदोन्नति तुरंत निरस्त की जाए.
  • ऊंचागांव विद्युत् गृह के सभी ५० वर्ष से अधिक पुराने उपकरण नवीन उपकरणों से विस्थापित किये जाएँ.
  • ऊंचागांव विद्युत् गृह पर समुचित संख्या में  निपुण कर्मीं नियुक्त किये जाएँ.
  • सभी अधिकृत विद्युत् उपभोक्ताओं के घरों के पास तक विद्युत् लाइन पूरी की जाएँ.
भवदीय

राम कुमार बंसल
गाँव खंदोई, बुलंदशहर.
Picture

My Life : Passion for making a Difference
http://rambansal-the-theosoph.blogspot.comI

रविवार, 6 फ़रवरी 2011

हमारे देश की हालत

एक मित्र श्री ललित भरद्वाज द्वारा प्रस्तुत -


'ये हे हमारे देश की हालत देश वासियों जागो 

"भारतीय गरीब है लेकिन भारत देश कभी गरीब नहीं रहा"* ये कहना है स्विस बैंक के डाइरेक्टर का. स्विस बैंक के डाइरेक्टर ने यह भी कहा है कि भारत का लगभग २८० लाख करोड़ रुपये (280 ,00 ,000 ,000 ,000) उनके स्विस बैंक में जमा है. ये रकम
इतनी है कि भारत का आने वाले 30 सालों का बजट बिना टैक्स के बनाया जा सकता है.या यूँ कहें कि 60 करोड़ रोजगार के अवसर दिए जा सकते है. या यूँ भी कह सकते है कि भारत के किसी भी गाँव से दिल्ली तक 4 लेन रोड बनाया जा सकता है. ऐसा भी कह
सकते है कि 500 से ज्यादा सामाजिक प्रोजेक्ट पूर्ण किये जा सकते है. ये रकम इतनी ज्यादा है कि अगर हर भारतीय को 2000 रुपये हर महीने भी दिए जाये तो 60 साल तक ख़त्म ना हो.

Unholy Trinity: The Vatican, The Nazis, and The Swiss Banksयानी भारत को किसी वर्ल्ड बैंक से लोन लेने कि कोई जरुरत नहीं है. जरा सोचिये
... हमारे भ्रष्ट राजनेताओं और नोकरशाहों ने कैसे देश को लूटा है और ये लूट का
सिलसिला अभी तक 2010 तक जारी है. इस सिलसिले को अब रोकना बहुत ज्यादा जरूरी हो गया है. अंग्रेजो ने हमारे भारत पर करीब 200 सालो तक राज करके करीब 1 लाख करोड़ रुपये लूटा. मगर आजादी के केवल 64 सालों में हमारे भ्रस्टाचार ने 280 लाख करोड़
लूटा है. एक तरफ 200 साल में 1 लाख करोड़ है और दूसरी तरफ केवल 64 सालों में
280 लाख करोड़ है. यानि हर साल लगभग 4.37 लाख करोड़, या हर महीने करीब 36 हजार
करोड़ भारतीय मुद्रा स्विस बैंक में इन भ्रष्ट लोगों द्वारा जमा करवाई गई है.

भारत को किसी वर्ल्ड बैंक के लोन की कोई दरकार नहीं है. सोचो की कितना पैसा हमारे भ्रष्ट राजनेताओं और उच्च अधिकारीयों ने ब्लाक करके रखा हुआ है.

हमे भ्रस्ट राजनेताओं और भ्रष्ट अधिकारीयों के खिलाफ जाने का पूर्ण अधिकार है. हाल ही में हुवे घोटालों का आप सभी को पता ही है - CWG घोटाला, २ जी स्पेक्ट्रुम घोटाला , आदर्श होउसिंग घोटाला ... और ना जाने कौन कौन से घोटाले अभी उजागर होने वाले है ........

आप लोग जोक्स फॉरवर्ड करते ही हो. इसे भी इतना फॉरवर्ड करो की पूरा भारत इसे
पढ़े ... और एक आन्दोलन बन जाये ...

सदियो की ठण्डी बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज् पहन इठलाती है।
दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो,
सिहासन खाली करो की जनता आती है।' 

ललित भरद्वाज 

शनिवार, 5 फ़रवरी 2011

मेरी आमरण भूख हड़ताल

अपने घर, गाँव और क्षेत्र में विद्युत् प्रदाय की अति गंभीर रूप से बुरी दशा से मैं इतना निराश हो गया हूँ कि विद्युत् अधिकारियों की अंतरात्मा को जागृत करने के लिए मैं अपने जीवन को समाप्त करने हेतु प्रस्तुत हूँ. जिसके लिए मैंने जनपद प्रशासन और विद्युत् अधिकारियों को जो सूचना दी है, उसका हिंदी अनुवाद निम्नांकित है.    

"सेवा में,
श्रीमान जिलाधिकारी महोदय,
बुलंदशहर


श्रीमान जी,
मैं ६२ वर्षीय इंजिनियर हूँ और अब विगत लगभग १० वर्षों से अपने पैतृक गाँव में रहते हुए लेखन कार्य कर रहा हूँ. मैं सर्वश्री पश्चिमांचल विद्युत् वितरण निगम लिमिटेड का अपने गाँव खंदोई, उपखंड जहांगीराबाद, विद्युत् वितरण खंड ३, बुलंदशहर के अंतर्गत कुछ वर्षों से एक विद्युत् उपभोक्ता हूँ और अपने कंप्यूटर सिस्टम पर लेखन कार्य के लिए उपयुक्त और पर्याप्त विद्युत् प्राप्त करने के लिए संघर्ष करता रहा हूँ किन्तु विद्युत् निगम के क्षेत्रीय अधिकारियों - जूनियर इंजिनियर, सुब-डिविजनल ऑफिसर, एक्जीकुटिव इंजिनियर की कर्तव्यहीनता के कारण बुरी तरह से असफल होता रहा हूँ. अपनी कठिनाई बुलंदशहर स्थित अधीक्षण अभियंता श्री आर. के. गुप्ता के समक्ष रखने के लिए मैंने ३/४ प्रयास किये हैं किन्तु वे शिकायत करने वाले उपभोक्ताओं से मिलने से ही इनकार करते रहे हैं.


वर्त्तमान में, मैं विगत ६ माह से विद्युत् वोल्टेज में अत्यधिक अप्रत्याशित विचलन - १०० से ३०० तक, से दुखी हूँ जिसके कारण मेरा कंप्यूटर प्रत्येक १०/१५ मिनट पर बंद हो जाता है. जबकि निर्धारित मानक के अनुसार वोल्टेज में केवल ६ प्रतिशत उतर-चढ़ाव अनुमत है. मैंने इस समस्या का अध्ययन किया है और इसके दो कारण पाए हैं -
  1. विद्युत् वितरण ट्रांसफार्मर का न्यूट्रल भूमि से ठीक प्रकार से नहीं जोड़ा गया है जिससे लाइन पर एक-फेज के विद्युत् भारों में परिवर्तन होते रहने से न्यूट्रल का विभव परिवर्तित होता रहता है.
  2. विद्युत् लाइन पर भारी मात्रा में अनधिकृत विद्युत् भार - लाइट तथा पॉवर, चोरी से डाले जा रहे हैं जिसमें जूनियर इंजिनियर और उच्च अधिकारियों का व्यक्तिगत लाभों के कारण सहयोग रहता है.        
मैं जूनियर इंजिनियर और उच्च अधिकारियों से ट्रांस्फोर्मेर न्यूट्रल को ठीक से अर्थ करने हेतु निवेदन करता रहा हूँ किन्तु उन द्वारा कोई कार्यवाही न किये जाने के कारण उत्तर प्रदेश पॉवर कारपोरेशन के चेयरमेन तक पहुंचा हूँ जिन्होंने क्षेत्र अधिकारियों को मेरी शिकायत दूर करने के निर्देश दिए हैं. इसके परिणामस्वरूप उप खंड अधिकारी और एक एक्सीकुटिव इंजिनियर श्री राकेश कुमार लगभग एक माह पूर्व मेरे पास आये और मैंने उन्हें समस्या से अवगत कराया जिसपर उन्होंने २/३ दिन में कार्यवाही का आश्वासन दिया. किन्तु अभी तक कुछ भी नहीं किया गया है और समस्या दिन प्रति दिन गहनतर होती जा रही है.
उक्त राज्य पोषित अधिकारियों की मुझ जैसे सही विद्युत् उपभोक्ताओं के प्रति इस प्रकार की लापरवाही और कर्तव्यहीनता मैं उसी समय से देखता रहा हूँ जब मैंने विद्युत् कनेक्शन के लिए आवेदन किया था. इन अधिकारियों की कार्य प्रणाली मेन दमन, शोषण, भृष्टाचार, आदि भरपूर हैं.
उक्त मामले को मैं विद्युत् उपभोक्ता फोरम में ले गया था किन्तु फोरम के अधिकारी उसी विद्युत् निगम के अधीन हैं जिसके विरुद्ध शिकायत की गयी थी, इसलिए वे विद्युत् निगम अधिकारीयों के विरुद्ध जब तक निर्णय नहीं लेते जब तक कि उनके निजी स्वार्थ निहित न हों. इसके अतिरिक्त फोरम को अपने निर्णय के अनुपालन कराने के अधिकार भी नहीं हैं. इस बारे में मैंने फोरम के नियोक्ता उत्तर प्रदेश विद्युत् नियामक आयोग को भी लिख किन्तु उन्होंने उपभोक्ता शिकायतों को सुनने से इंकार कर दिया. इस सबका अर्थ यही है कि वर्तमान व्यवस्था के अंतर्गत विद्युत् उपभोक्ता शिकायत दूर करने का कोई उपाय नहीं है.
उक्त व्यक्तिगत समस्या के अतिरिक्त मेरे क्षेत्र की अनेक विद्युत् समस्याएँ भी हैं जिनसे मैं भी प्रभावित होता हूँ -

  1. ऊंचागांव विद्युत् गृह के उपकरण लगभग ५० वर्ष पुराने हैं और उनके सेवाकाल बहुत पहले ही समाप्त हो चुके हैं. इससे विद्युत् उपलब्धि की निर्धारित अवधि में भी बार-बार विद्युत् बंद होती रहती है, जो निर्धारित ८ घंटे प्रतिदिन के स्थान पर मात्र ४-५ घंटे ही उपलब्ध होती है.   
  2. जनपद बुलंदशहर में विद्युत् अधीक्षण अभियंताओं की संख्य दोगुनित कर दी गयी है, तथा एक्सीकुटिव इंजीनिअरों की संख्या में भी वृद्धि होती रही है, किन्तु उपभोक्ता सेवा के लिए नियुक्त कर्मियों की संख्या कम की जाती रही है. इससे उपकरणों और लाइनों की देखरेख दुष्कर हो गयी है जिससे उपभोक्ता सेवाओं में गिरावट आयी है.
  3. क्षेत्र में विद्युत् की स्थिति सुधार के लिए निगम की अनेक योजनाएं दीर्घ काल से लंबित पडी हुई हैं जिसका कारण धन का अभाव बताया जाता है, जो क्षेत्र के विद्युत् अधिकारीयों द्वारा नियोजित अथवा उनकी लापरवाही के कारण विद्युत् की बड़े पैमाने पर चोरियों के कारण है. इस पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है.  
अब चूंकि प्रदेश की शीर्षस्थ विद्युत् निगम के अध्यक्ष महोदय भी क्षेत्र अधिकारियों को अपनी कर्त्तव्य-परायणता और दायित्वों को समझाने में पूरी तरह असफल होते रहे हैं, मैं अब पूरी तरह निराश हो चुका हूँ और किसी सुधार की आशा नहीं कर सकता. इसी के साथ ही उक्त लापरवाहियों और कर्तव्यहीनता के सर्वाधिक दोषी जूनियर इंजिनियर श्री के. एल. गुप्ता को क्षेत्रीय अधिकारियों ने स्पष्ट कारणों से पदोन्नति देकर पुरस्कृत किया है.

अतः, मैंने पूजनीय महात्मा गाँधी से प्रेरणा पाकर उत्तर प्रदेश में विद्युत् अधिकारियों द्वारा विद्युत् उपभोक्ताओं के उत्पीडन को विश्व स्तर पर प्रकाश में लाने के लिए और विद्युत् अधिकारियों की अंतरात्माओं को अपने कर्तव्यों और दायित्वों के प्रति जागृत करने के उद्देश्य से २० फरवरी २०११ से अपने गाँव खंदोई में विद्युत् वितरण ट्रांस्फोर्मेर के निकट आमरण भूख हड़ताल कर अपने जीवन को समाप्त करने का निर्णय लिया है. मेरे जीवन की इस प्रकार समाप्ति के लिए उपरोक्त विद्युत् अधिकारी ही पूर्णतः उत्तरदायी होंगे. 
Non-Violent Resistance (Satyagraha)
यह आप की सूचनार्थ और आप द्वारा ध्यान देने हेतु प्रेषित है. 

भवदीय 
राम कुमार बंसल 
पुत्र स्वर्गीय श्री करन लाल, स्वतन्त्रता सेनानी
गाँव खंदोई, जनपद बुलंदशहर."   






मंगलवार, 4 जनवरी 2011

हिंदी मानसिकता से निराशा

लगभग १ वर्ष पहले एक मित्र ने प्रोत्साहित किया था हिंदी में ब्लॉग लिखने के लिए, सो एक के बाद एक करके ८ ब्लोगों पर लिखना आरम्भ किया. किन्तु अभी तक के अनुभवों से हिंदी मानसिकता से घोर निराशा हुई है. प्रथम तो हिंदी क्षेत्र में गंभीर विषयों के लिए पाठक ही नहीं हैं, और जो हैं वे अपनी घिसी-पीती मानसिकता के इतने अधिक दास हैं कि किसी नए चिंतन, शोध अथवा मत के लिए उनके मन में कोई स्थान है ही नहीं. उन्हें बस वही चाहिए जो वे जानते हैं और मानते हैं. उनमें विचारशीलता का नितांत अभाव है.


भारत में दीर्घ काल से जंगली जातियों का वर्चस्व रहा है, यह एक उत्तम घटनाक्रम सिद्ध होता यदि ये जंगली जातियां मानवीय सभ्यता और शिष्टाचार अपनातीं और विश्व मानव समुदाय का अंग बनने की ललक रखतीं. किन्तु अपने अनुभवों के आधार पर मैं निश्चित रूप से यह कह सकता हूँ कि इन्हें अपने जंगलीपन पर गर्व है जिसके कारण ये उसी को अपने व्यवहार में बनाए रखने और प्रोन्नत करने में रूचि रखते हैं. इसके फलस्वरूप जो अभद्रता अपने शोधपरक आलेखों पर टिप्पणियों के रूप में मुझे सहन करनी पडी है, वह अशोभनीय ही नहीं अमानवीय भी है.

हिंदी क्षेत्र के लोग इतिहास जैसे तथ्यपरक विषय को भी अपनी भावनाओं के अनुरूप देखना चाहते हैं - कोई हिन्दू है तो हिंदुत्व को गौरवान्वित देखना चाहता है, कोई मुस्लिम है तो इस्लाम को गौरवान्वित देखने की लालसा रखता है ...   ..., चाहे ऐतिहासिक तथ्य इनके विपरीत ही क्यों न हों. कहीं अथवा कभी किसी को मानवीय दृष्टिकोण की चिंता नहीं सताती. इसके अतिरिक्त हिन्दुओं में कोई वामन है, तो कोई क्षत्रीय, कोई वैश्य तो कोई शूद्र, ... हिन्दू कोई नहीं है, और न ही कोई भारतीय है, और बस एक मानव होने या बनने की सभावना दूर-दूर तक नहीं पायी जाती.

लोगों की बस एक जिद है - भारत, इसकी संस्कृति और इसका अतीत महान कही जाब्नी चाहिए, चाहे इनमें कितनी भी विकृतियाँ हों, कितनी भी दुर्गन्ध भरी सडन हो. सच कहा जाएगा तो लोगों की भावनाएं क्षत-विक्षत होंगी और वे झंडे और डंडे के साथ उग्र विरोध करेंगे. इसलिए लोकप्रियता चाहने वाले तथाकथित बुद्धिजीवी सच कहने का साहस ही नहीं करते. इस कारण से हिंदी लेखन में मौलिकता का नितांत अभाव रहा है, अब भी है और आगे भी ऐसा ही रहेगा.

किसी भी वस्तु अथवा विचार में दोष तभी दूर किया जा सकता है जब उसे पहचाना जाए. इसके लिए यह आवश्यक है कि वस्तु अथवा विचार पर भावुकता का परित्याग करते हुए उसके बारे में लक्ष्यपरक विश्लेषण किया जाए. हिंदी मानसिकता में ऐसा किया नहीं जा रहा है अथवा करने नहीं दिया जा रहा है. इसलिए कालान्तर में मामूली से दोष भी भयंकर व्याधियां बन गए हैं और हिंदी मानसिकता में इनकी पैठ इतनी गहन है कि कठोर प्रहार के बिना इनका उन्मूलन नहीं किया जा सकता.
Orthodoxy

हिंदी लेखन के अपने अनुभवों से मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि मैंने अपने संसाधनों का दुरूपयोग किया है. अतः मैं अपने ८ ब्लोगों में से पांच पर लिखना बंद कर रहा हूँ, शेष तीन पर अभी लिखता रहूँगा. हाँ अपने अंग्रेज़ी के ८ ब्लोगों के लेकन और पाठकों से मुझे पूर्ण संतुष्टि है और मैं उनपर लिखता रहूँगा.

रविवार, 26 दिसंबर 2010

निपुणत क्या है

मैं अपने लिए एक घर बना रहा हूँ - मेरा स्वप्न महल. मेरे पास समय की उपलब्धि, धन का अभाव, स्वयं परिश्रम करने में रूचि, घर की लागत न्यूनतम रखना आदि अनेक कारण हैं जिनके लिए यथासंभव यह घर मैं स्वयं ही निर्मित कर रहा हूँ. बाहरी मिस्त्री और मजदूर केवल छत डालने और दीवारों पर प्लास्टर करने के लिए लगाये गए हैं. शेष सभी कार्य मैं स्वयं ही कर रहा हूँ - केवल दो घंटे प्रतिदिन प्रातःकाल में, जिसदिन भी मुझे कोई अधिक महत्वपूर्ण कार्य नहीं होता. निर्माण आरम्भ किये दो वर्ष से अधिक हो गए हैं, और सम्पूर्णता में एक वर्ष और लग सकता है. मुझे कोई शीघ्रता नहीं है. अब तक रहने के लिए पुराना भवन है और अब नए भवन के तैयार भाग में रहना आरम्भ करने की तैयारियों में लगा हूँ.


अभी एक सप्ताह प्लास्टर के लिए एक राज मिस्त्री और एक मजदूर से कार्य कराया. इस कार्य में इतनी अधिक सामग्री व्यर्थ की गयी जो मैंने इस भवन के निर्माण में अब तक नहीं की. इस कार्य की अपने कार्य से तुलना की तो निपुणता के बारे में कुछ चिंतन हुआ, जिसे यहाँ अंकित कर रहा हूँ.

निपुणता का सम्बन्ध हाथों से किये गए कार्य अर्थात शारीरिक श्रम से होता है न कि मानसिक श्रम अथवा बौद्धिक कार्य से. व्यक्ति द्वारा अपने कार्य को अंतिम रूप में उत्तम स्वरुप देना प्रायः निपुणता कहा जाता है. किन्तु निपुणता की यह परिभाषा पर्याप्त नहीं है. इसके अन्य महत्वपूर्ण अवयव कार्य में न्यूनतम लागत और न्यूनतम समय लगाना भी हैं.

लागत विचार
प्रत्येक कार्य अनेक प्रकार से किया जा सकता है जो परिस्थितियों के अतिरिक्त व्यक्ति की अपनी आवश्यकता और मानसिकता पर भी निर्भर करता है. दी गयी परिस्थितियों के अंतर्गत आवश्यकताओं की आपूर्ति न्यूनतम लागत पर होनी चाहिए, जो  निपुणता का प्राथमिक अवयव है. लागत के दो भाग होते हैं - सामग्री और श्रम. दोनों में ही मितव्ययता निपुणता की परिचायक होती है.

कार्य में सामग्री की खपत दो प्रकार से होती है - कार्य में समाहित और कार्य के दौरान सामग्री की अपव्ययता. कार्य में संतुलित  आवश्यकता से अधिक सामग्री झोंक देना भी सामग्री की अपव्ययता ही है जो हमारे कार्यों में प्रायः हो रही है. यहाँ संतुलित आवश्यकता का तात्पर्य कार्य के सभी अवयवों की एक समान सामर्थ्य बनाये रखने से है. ऐसा न होने पर कार्य का निर्बलतम अवयव उपयोग में अन्य अवयवों का साथ नहीं दे पायेगा, स्वयं नष्ट होगा और शेष को भी व्यर्थ कर देगा. यह संतुलन ही कार्य की न्यूनतम लागत का महत्वपूर्ण सूत्र है.

श्रम का मूल्य भी सामग्री के मूल्य जैसा ही महत्व रखता है, इसलिए कार्य में लगे समय को भी न्यूनतम रखा जाना चाहिए. प्रत्येक व्यक्ति के लिए समय के उपयोग के लिए अनेक विकल्प होते हैं. इसलिए समय का वहीं उपयोग किया जाए जाहाँ उसका महत्व सर्वाधिक हो. इसके विपरीत, कार्य पर वही व्यक्ति लगाया जाए जिसकी उस समय की लागत न्यूनतम हो अर्थात उसके पास समय के उपयोग के लिए बेहतर विकल्प न हों.
Interpersonal Skills at Work, Second Edition

कार्य की सम्पन्नता
न्यूनतम लागत के साथ कार्य गुणवत्ता की दृष्टि से प्रशंसनीय हो जो मुख्यता उसके बाहरी स्वरुप से मापा जाता है. इसमें भी कार्य के आतंरिक सौन्दर्य और गुणता पर पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए. यद्यपि उत्कृष्टता सदीव वांछित होती है तथापि इसे सदैव सर्वोपरि नहीं माना जा सकता, इसका पारिस्थितिकी से सम्मिलन आवश्यक होता है. जिस प्रकार एक मंजिले भवन को सौ मंजिले भवन जैसी सामर्थ्य नहीं दी जानी चाहिए, उसी प्रकार एक धूल-भरे पिछड़े गाँव में शुभ्रता के स्थान पर सरलता से मैले न होने वाले रंग ही दिए जाने चाहिए.    

मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

मंतव्य, भय और नियति

गाँव में समाज-कंटक विरोधियों द्वारा राजनैतिक सत्ता हथियाने के बाद लोगों ने मुझे सार्वजनिक हितों के रक्षण हेतु ग्राम सभा का सदस्य बनाया. इससे जहां मैं प्रमुख विरोधी स्वर के रूप में स्थापित हुआ हूँ, वहीं सत्ता पक्ष में सन्नाटा छा गया है. ग्राम सभा के सदस्यों का बहुमत मेरे साथ है और उनके सहयोग के बिना ग्राम प्रधान विकास हेतु आबंटित सार्वजनिक धन का दुरूपयोग नहीं कर सकेगा. ग्राम प्रधान ने इस पद पर चुने जाने के लिए अनैतिक रूप से लगभग ३ लाख रुपये व्यय किये थे. इसके अतिरिक्त उसकी कृषि आय भी लापरवाही के कारण नगण्य है. इसलिए उसके लिए यह पद ही आय का स्रोत बनाना था, जो अब संभव नहीं रह गया है.


९ दिसम्बर को ग्राम पंचायत की सभा में ग्राम विकास हेतु विभिन्न समितियों का गठन होना था जिससे सदस्यों को दायित्व भार प्रदान होने थे. किन्तु भयभीत प्रधान ने इसमें रोड़ा लगाने के लिए स्वयं को अन्यत्र व्यस्त कहते हुए इसे टला दिया जिससे ग्राम विकास का कोई कार्य आरम्भ नहीं हो पाया है. अब उसने घोषित करना आरम्भ कर दिया है कि चूंकि वह ग्राम विकास से कोई आय नहीं कर सकता वह ग्राम विकास का कोई कार्य भी नहीं करेगा. सदस्य अगला कदम उठाने से पूर्व उसे लम्बा समय देना चाहते हैं ताकि उसके विरुद्ध प्रशासनिक कदम उठाये जा सकें.

ग्राम प्रधान का मंतव्य स्पष्ट है - अवैध आय अथवा ग्राम विकास ठप्प. इसके साथ ही उसे भय है कि उसकी अनियमितताओं के कारण उसे सदस्यों द्वारा अधिकारों से वंचित किया जा सकता है इसलिए वह सदस्यों को निष्क्रिय कर देना चाहता है जिसके लिए वह अवैध र्रोप से और भी धन व्यय करने के लिए तत्पर है. किन्तु ऐसा होना असंभव है, और उसे निरंतर भय में ही अपना ५ वर्ष का कार्यकाल पूरा करना है अथवा मध्य में ही अधिकारों से वंचित हो जाना है. यही उसकी नियति है.
Corruption in India

यह स्थिति केवल मेरे गाँव की न होकर समस्त भारत की है, जहां पदासीन राजनेता अपने दूषित मंतव्यों में लिप्त रहते हैं, साथ ही कुछ निष्ठावान लोगों से भयभीत रहते हैं, पदमुक्त होते रहते हैं अथवा सशक्त विरोध न होने पर सार्वजनिक संपदा को हड़पते रहते हैं. आज देश की लगभग ३० प्रतिशत संपदा के स्वामी राजनेता ही हैं जिनकी संख्या देश की कुल जनसँख्या का केवल ५ प्रतिशत है. अपने मंतव्यों को पूरा करने के लिए वे राज्यकर्मियों को भी भृष्टाचार में लिप्त करते है, जो उनके साथ सार्वजनिक संपदाओं को हड़पते रहते हैं. देश की यह लगभग १० प्रतिशत जनसँख्या लगभग ३० प्रतिशत सार्वजनिक संपदा की स्वामी बनी हुई है. देश की शेष ४० प्रतिशत संपदा पर देश की ८५ प्रतिशत जनसँख्या निर्भर है.