मैं अपने लिए एक घर बना रहा हूँ - मेरा स्वप्न महल. मेरे पास समय की उपलब्धि, धन का अभाव, स्वयं परिश्रम करने में रूचि, घर की लागत न्यूनतम रखना आदि अनेक कारण हैं जिनके लिए यथासंभव यह घर मैं स्वयं ही निर्मित कर रहा हूँ. बाहरी मिस्त्री और मजदूर केवल छत डालने और दीवारों पर प्लास्टर करने के लिए लगाये गए हैं. शेष सभी कार्य मैं स्वयं ही कर रहा हूँ - केवल दो घंटे प्रतिदिन प्रातःकाल में, जिसदिन भी मुझे कोई अधिक महत्वपूर्ण कार्य नहीं होता. निर्माण आरम्भ किये दो वर्ष से अधिक हो गए हैं, और सम्पूर्णता में एक वर्ष और लग सकता है. मुझे कोई शीघ्रता नहीं है. अब तक रहने के लिए पुराना भवन है और अब नए भवन के तैयार भाग में रहना आरम्भ करने की तैयारियों में लगा हूँ.
अभी एक सप्ताह प्लास्टर के लिए एक राज मिस्त्री और एक मजदूर से कार्य कराया. इस कार्य में इतनी अधिक सामग्री व्यर्थ की गयी जो मैंने इस भवन के निर्माण में अब तक नहीं की. इस कार्य की अपने कार्य से तुलना की तो निपुणता के बारे में कुछ चिंतन हुआ, जिसे यहाँ अंकित कर रहा हूँ.
निपुणता का सम्बन्ध हाथों से किये गए कार्य अर्थात शारीरिक श्रम से होता है न कि मानसिक श्रम अथवा बौद्धिक कार्य से. व्यक्ति द्वारा अपने कार्य को अंतिम रूप में उत्तम स्वरुप देना प्रायः निपुणता कहा जाता है. किन्तु निपुणता की यह परिभाषा पर्याप्त नहीं है. इसके अन्य महत्वपूर्ण अवयव कार्य में न्यूनतम लागत और न्यूनतम समय लगाना भी हैं.
लागत विचार
प्रत्येक कार्य अनेक प्रकार से किया जा सकता है जो परिस्थितियों के अतिरिक्त व्यक्ति की अपनी आवश्यकता और मानसिकता पर भी निर्भर करता है. दी गयी परिस्थितियों के अंतर्गत आवश्यकताओं की आपूर्ति न्यूनतम लागत पर होनी चाहिए, जो निपुणता का प्राथमिक अवयव है. लागत के दो भाग होते हैं - सामग्री और श्रम. दोनों में ही मितव्ययता निपुणता की परिचायक होती है.
कार्य में सामग्री की खपत दो प्रकार से होती है - कार्य में समाहित और कार्य के दौरान सामग्री की अपव्ययता. कार्य में संतुलित आवश्यकता से अधिक सामग्री झोंक देना भी सामग्री की अपव्ययता ही है जो हमारे कार्यों में प्रायः हो रही है. यहाँ संतुलित आवश्यकता का तात्पर्य कार्य के सभी अवयवों की एक समान सामर्थ्य बनाये रखने से है. ऐसा न होने पर कार्य का निर्बलतम अवयव उपयोग में अन्य अवयवों का साथ नहीं दे पायेगा, स्वयं नष्ट होगा और शेष को भी व्यर्थ कर देगा. यह संतुलन ही कार्य की न्यूनतम लागत का महत्वपूर्ण सूत्र है.
श्रम का मूल्य भी सामग्री के मूल्य जैसा ही महत्व रखता है, इसलिए कार्य में लगे समय को भी न्यूनतम रखा जाना चाहिए. प्रत्येक व्यक्ति के लिए समय के उपयोग के लिए अनेक विकल्प होते हैं. इसलिए समय का वहीं उपयोग किया जाए जाहाँ उसका महत्व सर्वाधिक हो. इसके विपरीत, कार्य पर वही व्यक्ति लगाया जाए जिसकी उस समय की लागत न्यूनतम हो अर्थात उसके पास समय के उपयोग के लिए बेहतर विकल्प न हों.
कार्य की सम्पन्नता
न्यूनतम लागत के साथ कार्य गुणवत्ता की दृष्टि से प्रशंसनीय हो जो मुख्यता उसके बाहरी स्वरुप से मापा जाता है. इसमें भी कार्य के आतंरिक सौन्दर्य और गुणता पर पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए. यद्यपि उत्कृष्टता सदीव वांछित होती है तथापि इसे सदैव सर्वोपरि नहीं माना जा सकता, इसका पारिस्थितिकी से सम्मिलन आवश्यक होता है. जिस प्रकार एक मंजिले भवन को सौ मंजिले भवन जैसी सामर्थ्य नहीं दी जानी चाहिए, उसी प्रकार एक धूल-भरे पिछड़े गाँव में शुभ्रता के स्थान पर सरलता से मैले न होने वाले रंग ही दिए जाने चाहिए.