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शनिवार, 5 फ़रवरी 2011

मेरी आमरण भूख हड़ताल

अपने घर, गाँव और क्षेत्र में विद्युत् प्रदाय की अति गंभीर रूप से बुरी दशा से मैं इतना निराश हो गया हूँ कि विद्युत् अधिकारियों की अंतरात्मा को जागृत करने के लिए मैं अपने जीवन को समाप्त करने हेतु प्रस्तुत हूँ. जिसके लिए मैंने जनपद प्रशासन और विद्युत् अधिकारियों को जो सूचना दी है, उसका हिंदी अनुवाद निम्नांकित है.    

"सेवा में,
श्रीमान जिलाधिकारी महोदय,
बुलंदशहर


श्रीमान जी,
मैं ६२ वर्षीय इंजिनियर हूँ और अब विगत लगभग १० वर्षों से अपने पैतृक गाँव में रहते हुए लेखन कार्य कर रहा हूँ. मैं सर्वश्री पश्चिमांचल विद्युत् वितरण निगम लिमिटेड का अपने गाँव खंदोई, उपखंड जहांगीराबाद, विद्युत् वितरण खंड ३, बुलंदशहर के अंतर्गत कुछ वर्षों से एक विद्युत् उपभोक्ता हूँ और अपने कंप्यूटर सिस्टम पर लेखन कार्य के लिए उपयुक्त और पर्याप्त विद्युत् प्राप्त करने के लिए संघर्ष करता रहा हूँ किन्तु विद्युत् निगम के क्षेत्रीय अधिकारियों - जूनियर इंजिनियर, सुब-डिविजनल ऑफिसर, एक्जीकुटिव इंजिनियर की कर्तव्यहीनता के कारण बुरी तरह से असफल होता रहा हूँ. अपनी कठिनाई बुलंदशहर स्थित अधीक्षण अभियंता श्री आर. के. गुप्ता के समक्ष रखने के लिए मैंने ३/४ प्रयास किये हैं किन्तु वे शिकायत करने वाले उपभोक्ताओं से मिलने से ही इनकार करते रहे हैं.


वर्त्तमान में, मैं विगत ६ माह से विद्युत् वोल्टेज में अत्यधिक अप्रत्याशित विचलन - १०० से ३०० तक, से दुखी हूँ जिसके कारण मेरा कंप्यूटर प्रत्येक १०/१५ मिनट पर बंद हो जाता है. जबकि निर्धारित मानक के अनुसार वोल्टेज में केवल ६ प्रतिशत उतर-चढ़ाव अनुमत है. मैंने इस समस्या का अध्ययन किया है और इसके दो कारण पाए हैं -
  1. विद्युत् वितरण ट्रांसफार्मर का न्यूट्रल भूमि से ठीक प्रकार से नहीं जोड़ा गया है जिससे लाइन पर एक-फेज के विद्युत् भारों में परिवर्तन होते रहने से न्यूट्रल का विभव परिवर्तित होता रहता है.
  2. विद्युत् लाइन पर भारी मात्रा में अनधिकृत विद्युत् भार - लाइट तथा पॉवर, चोरी से डाले जा रहे हैं जिसमें जूनियर इंजिनियर और उच्च अधिकारियों का व्यक्तिगत लाभों के कारण सहयोग रहता है.        
मैं जूनियर इंजिनियर और उच्च अधिकारियों से ट्रांस्फोर्मेर न्यूट्रल को ठीक से अर्थ करने हेतु निवेदन करता रहा हूँ किन्तु उन द्वारा कोई कार्यवाही न किये जाने के कारण उत्तर प्रदेश पॉवर कारपोरेशन के चेयरमेन तक पहुंचा हूँ जिन्होंने क्षेत्र अधिकारियों को मेरी शिकायत दूर करने के निर्देश दिए हैं. इसके परिणामस्वरूप उप खंड अधिकारी और एक एक्सीकुटिव इंजिनियर श्री राकेश कुमार लगभग एक माह पूर्व मेरे पास आये और मैंने उन्हें समस्या से अवगत कराया जिसपर उन्होंने २/३ दिन में कार्यवाही का आश्वासन दिया. किन्तु अभी तक कुछ भी नहीं किया गया है और समस्या दिन प्रति दिन गहनतर होती जा रही है.
उक्त राज्य पोषित अधिकारियों की मुझ जैसे सही विद्युत् उपभोक्ताओं के प्रति इस प्रकार की लापरवाही और कर्तव्यहीनता मैं उसी समय से देखता रहा हूँ जब मैंने विद्युत् कनेक्शन के लिए आवेदन किया था. इन अधिकारियों की कार्य प्रणाली मेन दमन, शोषण, भृष्टाचार, आदि भरपूर हैं.
उक्त मामले को मैं विद्युत् उपभोक्ता फोरम में ले गया था किन्तु फोरम के अधिकारी उसी विद्युत् निगम के अधीन हैं जिसके विरुद्ध शिकायत की गयी थी, इसलिए वे विद्युत् निगम अधिकारीयों के विरुद्ध जब तक निर्णय नहीं लेते जब तक कि उनके निजी स्वार्थ निहित न हों. इसके अतिरिक्त फोरम को अपने निर्णय के अनुपालन कराने के अधिकार भी नहीं हैं. इस बारे में मैंने फोरम के नियोक्ता उत्तर प्रदेश विद्युत् नियामक आयोग को भी लिख किन्तु उन्होंने उपभोक्ता शिकायतों को सुनने से इंकार कर दिया. इस सबका अर्थ यही है कि वर्तमान व्यवस्था के अंतर्गत विद्युत् उपभोक्ता शिकायत दूर करने का कोई उपाय नहीं है.
उक्त व्यक्तिगत समस्या के अतिरिक्त मेरे क्षेत्र की अनेक विद्युत् समस्याएँ भी हैं जिनसे मैं भी प्रभावित होता हूँ -

  1. ऊंचागांव विद्युत् गृह के उपकरण लगभग ५० वर्ष पुराने हैं और उनके सेवाकाल बहुत पहले ही समाप्त हो चुके हैं. इससे विद्युत् उपलब्धि की निर्धारित अवधि में भी बार-बार विद्युत् बंद होती रहती है, जो निर्धारित ८ घंटे प्रतिदिन के स्थान पर मात्र ४-५ घंटे ही उपलब्ध होती है.   
  2. जनपद बुलंदशहर में विद्युत् अधीक्षण अभियंताओं की संख्य दोगुनित कर दी गयी है, तथा एक्सीकुटिव इंजीनिअरों की संख्या में भी वृद्धि होती रही है, किन्तु उपभोक्ता सेवा के लिए नियुक्त कर्मियों की संख्या कम की जाती रही है. इससे उपकरणों और लाइनों की देखरेख दुष्कर हो गयी है जिससे उपभोक्ता सेवाओं में गिरावट आयी है.
  3. क्षेत्र में विद्युत् की स्थिति सुधार के लिए निगम की अनेक योजनाएं दीर्घ काल से लंबित पडी हुई हैं जिसका कारण धन का अभाव बताया जाता है, जो क्षेत्र के विद्युत् अधिकारीयों द्वारा नियोजित अथवा उनकी लापरवाही के कारण विद्युत् की बड़े पैमाने पर चोरियों के कारण है. इस पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है.  
अब चूंकि प्रदेश की शीर्षस्थ विद्युत् निगम के अध्यक्ष महोदय भी क्षेत्र अधिकारियों को अपनी कर्त्तव्य-परायणता और दायित्वों को समझाने में पूरी तरह असफल होते रहे हैं, मैं अब पूरी तरह निराश हो चुका हूँ और किसी सुधार की आशा नहीं कर सकता. इसी के साथ ही उक्त लापरवाहियों और कर्तव्यहीनता के सर्वाधिक दोषी जूनियर इंजिनियर श्री के. एल. गुप्ता को क्षेत्रीय अधिकारियों ने स्पष्ट कारणों से पदोन्नति देकर पुरस्कृत किया है.

अतः, मैंने पूजनीय महात्मा गाँधी से प्रेरणा पाकर उत्तर प्रदेश में विद्युत् अधिकारियों द्वारा विद्युत् उपभोक्ताओं के उत्पीडन को विश्व स्तर पर प्रकाश में लाने के लिए और विद्युत् अधिकारियों की अंतरात्माओं को अपने कर्तव्यों और दायित्वों के प्रति जागृत करने के उद्देश्य से २० फरवरी २०११ से अपने गाँव खंदोई में विद्युत् वितरण ट्रांस्फोर्मेर के निकट आमरण भूख हड़ताल कर अपने जीवन को समाप्त करने का निर्णय लिया है. मेरे जीवन की इस प्रकार समाप्ति के लिए उपरोक्त विद्युत् अधिकारी ही पूर्णतः उत्तरदायी होंगे. 
Non-Violent Resistance (Satyagraha)
यह आप की सूचनार्थ और आप द्वारा ध्यान देने हेतु प्रेषित है. 

भवदीय 
राम कुमार बंसल 
पुत्र स्वर्गीय श्री करन लाल, स्वतन्त्रता सेनानी
गाँव खंदोई, जनपद बुलंदशहर."   






गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010

विद्युत् ऊर्जा की कमी तथापि दुरूपयोग

आधुनिक मानव जीवन के लिए विद्युत् ऊर्जा वस्त्रों और भवनों की तरह ही महत्वपूर्ण हो गयी है. इस पर भी भारत की लगभग आधी जनसँख्या को विद्युत् उपलब्ध नहीं है. जिन ग्रामीण क्षेत्रों में विद्युत् उपलब्ध भी है वहां भी अनेक क्षेत्रों में केवल नाम मात्र के लिए उपलब्ध है, और संध्या के समय तो बिलकुल नहीं जब प्रकाश के लिए इसकी अतीव आवश्यकता होती है. इस कारण से भारत के अधिकाँश ग्रामीणों का जीवन अभी भी अँधेरे की कालिख में दबा हुआ है. नगरीय क्षेत्रों में जहाँ रात्री के १०-१२ बजे तक चहल-पहल रहती है, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में संध्या होते ही घर और गलियां अँधेरे में डूब जाते हैं. चूंकि देश की अधिकाँश जनसँख्या ग्रामों में रहती है, इसलिए कहा जा सकता है कि भारतीयों के जीवन अंधेरों में डूबे हैं.

भारत में विद्युत् ऊर्जा का अभाव प्रतीत होता है इस पर भी इस जीवन समृद्धि स्रोत का किस प्रकार दुरूपयोग किया जा रहा है, इस पर एक दृष्टि डालें.
  1. ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ विदुत पहुँच चुकी है वहां इसकी चोरी सार्वजनिक रूप से की भी जा रही है और विद्युत् वितरण अधिकारियों द्वारा निजी स्वार्थों के लिए कराई भी जा रही है. चोरी का किया जाना भी उनकी लापरवाही के कारण ही संभव होता है. इससे कुछ जीवन तो प्रकाशित होते हैं किन्तु यह प्रक्रिया बहुत अन्यों के जीवनों को अँधेरे में धकेल रही है क्योंकि चोरी से विद्युत् का उपयोग करने वाले इसका अत्यधिक दुरूपयोग करते हैं. उनके घरों में बल्ब तो अनेक लगे होते हैं किन्तु उनके कोई स्विच नहीं होते. दिन हो या रात, प्रकाश की आवश्यकता हो या नहीं उनके बल्ब विद्युत् उपलब्ध होने पर जले ही रहते हैं.   
  2. भारत के अधिकाँश क्षेत्रों में विद्युत् का सही विद्युत् वोल्टेज प्राप्त नहीं होता है. देखा यह गया है कि विद्युत् वोल्टेज २३० के स्थान पर १००-१५० ही रहता है. इन दोनों कारणों से विद्युत् उपभोक्ताओं की विवशता होती है कि वे प्रत्येक विदुत परिचालित उपकरण के लिए एक वोल्टेज स्थिरक का उपयोग करें, जिनकी कार्य दक्षता ६० से ७० प्रतिशत होती है. अतः विद्युत् की जितनी खपत होनी चाहिए, उससे लगभग ३० प्रतिशत अधिक खपत होती है. यदि विद्युत् लीनों पर वोल्टेज सही रहे तो यहे ३० प्रतिशत ऊर्जा अन्य लोगों के जीवनों को प्रकाशित कर सकती है. साथ हीउपभोक्ताओं का जो धन इन अतिरिक्त अनावश्यक उपकरणों पर व्यय हो रहा है, वह उनके जीवन स्तर को सुधार सकता है.
  3. विद्युत् अधिकारियों की असक्षमता और लापरवाही के कारण भारत में विद्युत् उपलब्धि का कोई निश्चित समय नहीं होता. यहे कभी भी उपलब्ध हो सकती है और कभी भी बंद. इस कारण से विद्युत् उपभोक्ताओं की विवशता यह भी होती है कि वे अपने घर एवं कार्यालयों में आवश्यकतानुसार विदुत उपलब्ध रखने के लिए बैट्री और इनवर्टरों का उपयोग करें. ये अतिरिक्त उपकरण ५० प्रतिशत से कम कार्य दक्षता रखते हैं और बहुमूल्य भी होते हैं. इस प्रकार इन से उपभोक्ताओं को धन की हनी तो होती ही है विद्युत् ऊर्जा की खपत भी दोगुनी हो जाती है. जहाँ विद्युत् का अभाव इतना अधिक हो, वहां विद्युत् का इस प्रकार का दुरूपयोग एक आपराधिक वृत्ति को दर्शाता है. 
  4. विदुत का चौथा दुरूपयोग उत्तर प्रदेश जैसे कुछ कुप्रबंधित राज्यों में ही पाया जाता है. उत्तर प्रदेश में, जहाँ विद्युत् का बहुत अधिक अभाव है, प्रत्येक घरेलु उपभोलता के लिए २ किलोवाट का विदुत कनेक्शन लेना अनिवार्य कर दिया गया है जबकि अधिकांश घरों में ५०० वाट का ही विद्युत् भार होता है अथवा सीमित किया जा सकता है. इस प्रकार प्रत्येक घरेलु उपभोक्ता को विवश किया जा रहा है कि वह अपनी आवश्यकता से चार गुनी विदुत ऊर्जा की खपत करे तथा उसके विद्युत् बिउल्ल का भुगतान करे. विद्युत् कुप्रबंधन का यह सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है.  
भारत विद्युत् ऊर्जा का उत्पादन एवं वितरण अभी भी सार्वजनिक क्षेत्र में है और शासन प्रशासन इसकी व्यवस्था करता है. इस प्रकार देश और इसके नागरिक स्वयं ही पतन की ओर नहीं जा रहे उन्हें शासन एवं प्रशासन द्वारा इस ओर धकेला भी जा रहा है.