मोदी सरकार के मंत्रियों एवं सचिवों ने गंगा शुद्धिकरण के लिए समय की उलटी गंगा बहाने की योजना बनाई है, जिसके अंतर्गत गंगा तटों पर नए नगर और और व्यावसायिक केंद्र खोले जायेंगे जैसा कि प्राचीन काल में जल की सहज उपलब्धता के लिए किया जाता था। यह योजना एक कुशल व्यवसायी मंत्री नितिन गडकरी की अध्यक्षता में बनी है, जिसके अंतर्गत गंगा को व्यवसाय के साधन के रूप में परिवर्तित किया जायेगा। इसी सन्दर्भ में मैं आज जब इंटरनेट पर गंगा-स्नान के चित्र खोज रहा था तब मुझे अनेक विदेशी वेबसाइट दिखाई दीं जिनमें गंगा में स्नान करती हुई नग्न एवं अर्धनग्न भारतीय महिलाओं के चित्र कामुक लोगों को परोसे गए हैं। भारतीय संस्कृति की दुहाई देने वाली सरकार इसी कामुक व्यवसाय को गंगा तट पर पर्यटक स्थलों के निर्माण से प्रोन्नत करेगी जिसके लिए गंगा शुद्धिकरण को एक बहाने के रूप में उपयोग किया जायेगा।
सरकारी योजना के अनुसार गंगा के किनारे-किनारे प्रत्येक 100 कि. मी. पर एक पर्यटक केंद्र बनाया जायेगा, जिसका अर्थ होगा लगभग 200 नई बस्तियां और व्यावसायिक केंद्र गंगा तट पर, जब कि प्राचीन काल से ही गंगा तटों पर सघन नगर, कसबे और गाँव बसे हैं, जो नदी के प्रदूषण के कारण और स्रोत हैं। गंगा तट पर वर्तमान पर्यटक केन्द्रों के अतिरिक्त स्थान-स्थान पर नित्यप्रति गंगा-स्नान मेले लगते रहते हैं जिनके माध्यम से लाखों लोग छूत की बिमारियों का परस्पर आदान-प्रदान करते हैं, और गंगा में प्रदूषण की वृद्धि करते हैं।
गंगा तट की बस्तियों में से अधिकांश सुप्रसिद्ध तीर्थ और पर्यटक स्थल हैं किन्तु पर्यावरण की दृष्टि से बहुत बुरी स्थिति में हैं। सरकार के प्रबुद्ध मंत्री यदि बुद्धि का उपयोग करें तो वे नए पर्यटक केंद्र बनाने की अपेक्षा इन्ही के विकास की योजना बनाती। किन्तु इस कार्य में कम धन लगेगा जिससे शासक-प्रशासकों की व्यक्तिगत कमाई भी कम होगी। इसलिए नए केन्द्रों की योजना बनाई गयी है।
वस्तुतः योजना ऐसी होनी चाहिए जो गंगा तट पर जनसँख्या को सीमित करे, देखरेख की लागत न्यूनतम हो, और लम्बे समय तक विभिन्न शासन व्यवस्थाओं और परिस्थितियों में सुचारू बनी रहे। इसके लिए क्षणिक उत्साह और व्यक्तिपरक प्रदर्शन से बचते हुए शांत चित्त से समाज एवं परिस्थिति परक सरल एवं सहज रूप से सुचारू रहने वाली योजना की आवश्यकता है।
भारतीयों के आचार, विचार और व्यवहार को जो जानते हैं वे यह भी जानते हैं कि गंगा के समीप जितने अधिक लोग जायेंगे अथवा बसेंगे, गंगा प्रदूषण में उतनी ही अधिक वृद्धि होगी। अतः यदि इस नदी को शुद्ध करना और रखना है तो लोगों को इससे दूर रखना होगा। तभी इसका जल शुद्ध और मानवीय उपयोग हेतु सुयोग्य रहेगा। इसका एक दम सरल, सस्ता और सहज उपाय है। गंगा के साथ-साथ दोनों ओर न्यूनतम 500 मीटर चौड़ी पट्टियां वन क्षेत्र घोषित कर दी जाएँ जिनमें बस्ती बसाना तथा कोई व्यावसायिक गतिविधि करना पूर्णतः वर्जित हो। इन हरित पट्टियों में परंपरागत मेलों के लिए सुनियोजित स्थल बनाये जाएँ जो मेला समयों के अतिरिक्त प्राकृतिक पिकनिक और पर्यटक स्थलों के रूप में उपयोगी होंगे। गंगा स्नान के लिए प्रथक कुण्ड बनाये जाएँ जिनमें गंगाजल का सतत प्रवाह होता रहे, साथ ही उनसे बाहर जाने वाले जल के सतत शोधन की भी सतत व्यवस्था हो। साथ ही गंगा की विशाल जलधारा का उपयोग यातायात के माध्यम के रूप में किया जाना चाहिए।
गंगा तट पर स्थित वर्तमान बस्तियों को यथासंभव शनैः शनैः गंगा से दूर लेजाने की योजना पर भी कार्य आरम्भ किया जाना चाहिए। साथ ही इनके पर्यावरण में सुधार किया जाना चाहिए तथा इनके प्रदूषित जल को गंगा में जाने से रोकते हुए प्रथक विस्तृत कुंडों में डाला जाये जहाँ ये सूर्य के ताप से सूखते रहें। इसी प्रकार के विस्तृत कुण्ड उद्योगों के जलमल को संग्रहित एवं शुष्कीकरण के लिए भी बनाये जाने चाहिए ताकि उनके प्रदूषित जल को नदियों में जाने से प्रतिबंधित किया जा सके।
सरकारी योजना के अनुसार गंगा के किनारे-किनारे प्रत्येक 100 कि. मी. पर एक पर्यटक केंद्र बनाया जायेगा, जिसका अर्थ होगा लगभग 200 नई बस्तियां और व्यावसायिक केंद्र गंगा तट पर, जब कि प्राचीन काल से ही गंगा तटों पर सघन नगर, कसबे और गाँव बसे हैं, जो नदी के प्रदूषण के कारण और स्रोत हैं। गंगा तट पर वर्तमान पर्यटक केन्द्रों के अतिरिक्त स्थान-स्थान पर नित्यप्रति गंगा-स्नान मेले लगते रहते हैं जिनके माध्यम से लाखों लोग छूत की बिमारियों का परस्पर आदान-प्रदान करते हैं, और गंगा में प्रदूषण की वृद्धि करते हैं।
गंगा तट की बस्तियों में से अधिकांश सुप्रसिद्ध तीर्थ और पर्यटक स्थल हैं किन्तु पर्यावरण की दृष्टि से बहुत बुरी स्थिति में हैं। सरकार के प्रबुद्ध मंत्री यदि बुद्धि का उपयोग करें तो वे नए पर्यटक केंद्र बनाने की अपेक्षा इन्ही के विकास की योजना बनाती। किन्तु इस कार्य में कम धन लगेगा जिससे शासक-प्रशासकों की व्यक्तिगत कमाई भी कम होगी। इसलिए नए केन्द्रों की योजना बनाई गयी है।
वस्तुतः योजना ऐसी होनी चाहिए जो गंगा तट पर जनसँख्या को सीमित करे, देखरेख की लागत न्यूनतम हो, और लम्बे समय तक विभिन्न शासन व्यवस्थाओं और परिस्थितियों में सुचारू बनी रहे। इसके लिए क्षणिक उत्साह और व्यक्तिपरक प्रदर्शन से बचते हुए शांत चित्त से समाज एवं परिस्थिति परक सरल एवं सहज रूप से सुचारू रहने वाली योजना की आवश्यकता है।
भारतीयों के आचार, विचार और व्यवहार को जो जानते हैं वे यह भी जानते हैं कि गंगा के समीप जितने अधिक लोग जायेंगे अथवा बसेंगे, गंगा प्रदूषण में उतनी ही अधिक वृद्धि होगी। अतः यदि इस नदी को शुद्ध करना और रखना है तो लोगों को इससे दूर रखना होगा। तभी इसका जल शुद्ध और मानवीय उपयोग हेतु सुयोग्य रहेगा। इसका एक दम सरल, सस्ता और सहज उपाय है। गंगा के साथ-साथ दोनों ओर न्यूनतम 500 मीटर चौड़ी पट्टियां वन क्षेत्र घोषित कर दी जाएँ जिनमें बस्ती बसाना तथा कोई व्यावसायिक गतिविधि करना पूर्णतः वर्जित हो। इन हरित पट्टियों में परंपरागत मेलों के लिए सुनियोजित स्थल बनाये जाएँ जो मेला समयों के अतिरिक्त प्राकृतिक पिकनिक और पर्यटक स्थलों के रूप में उपयोगी होंगे। गंगा स्नान के लिए प्रथक कुण्ड बनाये जाएँ जिनमें गंगाजल का सतत प्रवाह होता रहे, साथ ही उनसे बाहर जाने वाले जल के सतत शोधन की भी सतत व्यवस्था हो। साथ ही गंगा की विशाल जलधारा का उपयोग यातायात के माध्यम के रूप में किया जाना चाहिए।
गंगा तट पर स्थित वर्तमान बस्तियों को यथासंभव शनैः शनैः गंगा से दूर लेजाने की योजना पर भी कार्य आरम्भ किया जाना चाहिए। साथ ही इनके पर्यावरण में सुधार किया जाना चाहिए तथा इनके प्रदूषित जल को गंगा में जाने से रोकते हुए प्रथक विस्तृत कुंडों में डाला जाये जहाँ ये सूर्य के ताप से सूखते रहें। इसी प्रकार के विस्तृत कुण्ड उद्योगों के जलमल को संग्रहित एवं शुष्कीकरण के लिए भी बनाये जाने चाहिए ताकि उनके प्रदूषित जल को नदियों में जाने से प्रतिबंधित किया जा सके।
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