जातीयता
भारत का समाज सदैव जातियों में विभाजित रहा है किन्तु इस विभाजन का सर्वाधिक दुष्प्रभाव भारत की राजनीति पर होता है जिसमें चुनावों के लिए प्रत्याशियों के चयन से लेकर मतदान तक व्यक्ति की जाति को प्रमुख आधार बनाया जाता है तथा व्यक्ति की पद हेतु सुयोग्यता को ताक पर रख दिया जाता है. चूंकि मूर्ख और अशिक्षित व्यक्ति अधिक बच्चे जनते हैं इसलिए इस प्रकार की जातियां ही देश की बहुसंख्यक होती रही हैं और अपने प्रतिनिधि भी इसी प्रकार के चुनते रहे हैं. इसी कारण से अनेक आपराधिक प्रवृत्तियों वाली परम्परागत जातियां भी देश की राजनैतिक सत्ता हथियाती रही हैं.
आरक्षण
बुद्धिहीन और आपराधिक प्रवृत्तियों वाली जातियों द्वारा सत्ता प्राप्त करते रहने के कारण ही देश में राजनैतिक एवं प्रशासनिक पदों पर स्वयं को सत्तासीन करने के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गयी जो आरम्भ में सीमित थी और केवल १० वर्ष की अवधि के लिए पर्याप्त मानी गयी थी. किन्तु अब स्वतन्त्रता के ६० वर्ष होने पर भी इसे केवल सतत ही नहीं रखा गया इसका विस्तार भी किया जाता रहा है. वर्तमान में प्रत्येक राजनैतिक और प्रशासनिक पद के लिए दो-तिहाई स्थान आरक्षित कर दिए गए हैं जिनमें महिला आरक्षण भी सम्मिलित है.
राजनीति में आरक्षण करने की मूर्खता इससे भी स्पष्ट होती है कि देश की पिछड़ी और दलित जातियां बहुमत में हैं और वे जनतांत्रिक पद्यति से अपने बहुमत के कारण देश की राजनैतिक सत्ता हथियाती रही हैं और उन्हें किसी आरक्षण की आवश्यकता नहीं है. इसी प्रकार महिलाओं की संख्या लगभग ५० प्रतिशत होने कारण वे भी अपने प्रतिनिधि छनने में सक्षम हैं और उन के लिए भी आरक्षण की कोई आवश्यकता नहीं है.
बुद्धिहीन भावुकता
अभी हुए पंचायती चुनावों में एक जाने-माने अपराधी ने कानूनी फंदे से अपनी जान बचाने की गुहार देते हुए मतदाताओं के पैरों में सिर रख-रख कर उन्हें भावुकता का शिकार बनाया और उनके मत प्राप्त कर लिए. इस प्रकार एक अपराधी भी सत्ताधिकारी बन गया. जन साधारण को उस पर दया आयी जिसके कारण उसे अपने मत दे दिए किन्तु किसी ने भी उसे अपनी कोई व्यक्तिगत संपत्ति नहीं दी जिससे उसे अपराध करने की आवश्यकता न हो. ऐसा उन्होंने इसलिए किया क्योंकि वे अपने मतों का महत्व नहीं जानते किन्तु अपनी व्यक्तिगत संपदाओं का महत्व जानते हैं. इससे सिद्ध यही होता है कि भारतीय जनमानस अभी भी जनतंत्र हेतु वांछित सुयोग्यता प्राप्त नहीं कर पाया है.
इसी प्रकार की बुद्धिहीन भावुकता के कारण ही स्वतन्त्रता के बाद से देश की राजनैतिक सत्ता केवल एक परिवार के इर्द-गिर्द ही घूमती रही है.
शराबखोरी
चुनावों में मत पाने के लिए जिस वस्तु का सर्वाधिक उपयोग होता है वह शराब है जिसका प्रत्याशियों द्वारा निःशुल्क वितरण किया जाता है. यह मात्र एक दूषित परम्परा है जिससे मत प्राप्त नहीं होते केवल कुछ दुश्चरित्र लोगों को खुश कर प्रत्याशी के पक्ष में वातावरण बनाया जाता है. इस प्रकार के शराबी समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति माने जाते हैं जिन्हें खुश रखना प्रत्येक प्रत्याशी के लिए आवश्यक होता है. केवल शराब के वितरण पर ही प्रत्येक औसत ग्राम में २० लाख रुपये व्यय कर दिया जाता है.
धन का लालच
इस चुनाव से सिद्ध हो गया है कि अब मतदाताओं को खुश करने के लिए केवल शराब पिलाना पर्याप्त नहीं रह गया है, उन्हें नकद धन भी दिया जाने लगा है. मेरे गाँव में ही ग्राम प्रधान पद के दो प्रत्याशियों ने डेढ़-डेढ़ लाख रुपये वितरित किये जिनमें से एक ने विजय पायी. इन चुनावों में जनपद पंचायत के प्रत्येक प्रत्याशी ने अपने प्रचार और मतदाताओं को खुश करने के लिए २० से ५० लाख रुपये तक व्यय किये जिसमें से अधिकाँश शराब के वितरण पर व्यय हुआ.
बाहरी प्रभाव
मूल रूप से गाँव के निवासी शिक्षित और साधन संपन्न होकर दूर शहरों में जा बसते हैं जहां उनके स्थायी घर, राशन कार्ड, मताधिकार आदि सभी कुछ होते हैं तथापि वे अपने गाँवों में भी अपने घर, राशन कार्ड तथा मताधिकार बनाए रखते हैं. इस प्रकार ये देश के दोहरे नागरिक होते हैं और दोनों स्थानों से सुविधाएं प्राप्त करते रहते हैं. इनकी तुलना में ग्रामवासी प्रायः निर्धन होते हैं इसलिए उन्हें स्वयं से श्रेष्ठ मानते हुए चुनावों में उनके मार्गदर्शन की अपेक्षा करते हैं. इस प्रकार ग्रामों के ये अवैध नागरिक गाँवों पर अपना वर्चस्व बनाए हुए हैं और पंचायत चुनावों को अपने हित में प्रभावित करते हैं.
मेरे ग्राम में भी इस प्रकार के लगभग ४०० अवैध मतदाता हैं जो गाँव के लगभग १६०० वैध मतदाताओं को मूर्ख समझते और बनाते रहे हैं. उक्त पंचायत चुनावों से पूर्व मैंने उत्तर प्रदेश के चुनाव आयुक्त को लिखित निवेदन भेजा था कि ऐसे मतदाताओं के नाम गाँव की मतदाता सूची से हटाने की व्यवस्था की जाए किन्तु इस पर कोई कार्यवाही नहीं की गयी.
उक्त कारणों से कहा जा सकता है कि भारत में अभी तक कोई जनतांत्रिक व्यवस्था स्थापित नहीं हो पायी है और इस नाम पर जो कुछ भी हो रहा है वह सब धोखाधड़ी है. इसमें बुद्धिमानी अथवा सुयोग्यता का कोई महत्व नहीं है.
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