मानव समाज क्रोध की भावना को व्यक्तित्व का एक दुर्गुण मानता है इसीलिये क्रोधी व्यक्ति का प्रायः तिरस्कार किया जाता है. इस बारे में कहा जाता है कि 'बुद्धिमान क्रोध करते हैं किन्तु मूर्ख इसका प्रदर्शन करते हैं'. क्रोध का स्रोत सदैव सम्बंधित व्यक्तियों के मध्य असहमति ही होती है जिसे अभिव्यक्त करने के लिए साहस की आवश्यकता होती है, जो सभी में नहीं होता. इससे सिद्ध होता है कि क्रोधी व्यक्ति में 'बौद्धिक साहस' अथवा 'साहसिक बुद्धि' होती है. इसके विपरीत असहमति में भी सहमत हो जाना सरल होता है, इसमें न क्रोध की आवश्यकता होती है और न ही किसी संग्राम की. इस प्रकार की सहमति के लिए न तो बुद्धि की आवश्यकता होती है और न ही किसी साहस की.
जब कोई व्यक्ति क्रोध करता है तो वह जानता होता है कि उसे दुरूह स्थिति का सामना करना होगा और वह अपनी तार्किक बुद्धि और वाक् शास्त्रों के उपयोग हेतु तत्पर होता है. ऐसा तभी संभव है जब व्यक्ति विरोधी की तर्क-विसंगति और स्वयं की तार्किकता के बारे में सुनिश्चित होता है. इसलिए क्रोध व्यक्ति को अधिक तर्कसंगत बनाता है. यह मनोवैज्ञानिक शोधों से पाया गया है.
क्रोध का आवेश व्यक्ति के चिंतन को दुष्प्रभावित करता है, उसकी निष्पक्षता पर प्रश्न लगाता है, व्यक्ति को पूर्वाग्रह से आवेशित करता है, और उसे आक्रामक बनता है. किन्तु ये सभी दुष्प्रभाव उसी समय होते हैं जब व्यक्ति अपने क्रोध को तीक्ष्णता से प्रकट करता है. प्रत्येक असहमति में क्रोध का प्रदर्शन अनिवार्य नहीं होता किन्तु व्यक्ति में आतंरिक क्रोध की उपस्थिति अनिवार्य होती है. इस कारण से असहमति और क्रोध में गहन सम्बन्ध होते हुए भी इनमें अंतर होता है जो क्रोध के प्रदर्शन में गंभीर हो जाता है.
वस्तुतः क्रोध व्यक्ति को जधिक सावधान और विरोधी मत के बारे में अधिक तर्क-संगत बनाता है ताकि वह अपना मत तर्कपूर्ण तरीके से प्रस्तुत कर सके. इसलिए आदतन क्रोधी व्यक्ति आदतन तर्क-संगत भी होते हैं. उनका दोष बस इतना होता है कि वे कूटनीति नहीं जानते एवं अपनाते, जिसे आधुनिक समाज में एक सद्गुण माना जाता है तथापि यह नैतिक दृष्टि से एक दुर्गुण है.
मनोवैज्ञानिकों ने पाया है कि जब कोई व्यक्ति क्रोध के आवेश में होता है तब वह अधिक सावधान और तर्क-संगत होता है. इस प्रकार क्रोध व्यक्ति विश्लेषणात्मक और निर्णय लेने की सामर्थ्य का संवर्धन करता है. वह सम्बंधित सूचनाओं को अधिक सावधानी से विश्लेषित करता है. तथापि क्रोध में व्यक्ति निर्णय लेने में अनावश्यक शीघ्रता प्रदर्शित कर सकता है तथा कुछ सूचनाओं की अनदेखी कर सकता है.
उक्त चर्चा का सार यह है कि स्वभाव से क्रोधी व्यक्ति अपने शांत क्षणों में अन्य व्यक्तियों की तुलना में अधिक अच्छे निर्णायक होते हैं. इसलिए स्वभावतः क्रोधी व्यक्ति के शांत क्षण मानवता और समाज के लिए बहुमूल्य निधि सिद्ध होते हैं जबकि स्वभावतः शांत व्यक्ति मानवता और समाज के लिए अनुपयोगी सिद्ध होते हैं.
यहाँ क्रोध करने और तृस्त होने में अंतर को समझना भी प्रासंगिक है. व्यक्ति अपने भरसक प्रयासों की असफलता के कारण तृस्त होता है जिससे वह निष्क्रिय एवं निराशावादी बनता है जब कि क्रोध किसी अन्य जीव के व्यवहार से असहमति पर आता है जिससे उसकी मनोदशा प्रतिक्रियात्मक सक्रियता एवं चिंतन के लिए उद्यत होती है.
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